देहरादून: उत्तराखंड सौर ऊर्जा के क्षेत्र में देशभर के लिए एक उदाहरण बन सकता था, लेकिन पिछले 22 सालों में सौर ऊर्जा को लेकर राज्य सरकार की तरफ से बेहद सुस्त रवैया अपनाया गया. यही कारण है कि सौर ऊर्जा से विद्युत उत्पादन में राज्य कुछ खास नहीं कर पाया है. हालांकि, मौजूदा सरकार ने अब नई सौर ऊर्जा नीति लागू की है, लेकिन, उरेडा में कर्मचारियों की कमी पूरा कर पाने में शासन अभी भी नाकाम दिख रहा है.
उत्तराखंड सौर ऊर्जा के क्षेत्र में बड़ी उछाल लगाने के संकेत दे रहा है. राज्य सरकार ने बाकायदा नई सौर नीति को मंजूरी भी दे दी है, लेकिन सौर ऊर्जा के क्षेत्र में काम करने वाले उत्तराखंड अक्षय ऊर्जा विकास अभिकरण यानी उरेडा की दिक्कतों को सरकार अब तक खत्म नहीं कर पाई है. बता दें राज्य में सौर ऊर्जा को लेकर भले ही अब जल विद्युत निगम से लेकर यूपीसीएल भी काम कर रहा है, लेकिन, पूर्व से राज्य में उरेडा इस काम को देखता रहा है. स्थिति यह है कि उरेडा में महत्वपूर्ण इंजीनियरों के पदों को भरने तक में सुस्त रवैया अपनाया जा रहा है.
कुछ जिले तो ऐसे हैं जहां जूनियर इंजीनियर स्तर के एक भी अधिकारी नहीं हैं. जाहिर है कि इन स्थितियों के चलते उरेडा के हालात को आसानी से समझा जा सकता है. हालांकि, इसके लिए आउटसोर्स कर्मियों को रखा गया है, लेकिन, राज्य को इससे बेहतर परफॉर्मेंस नहीं मिल पा रहा है. राज्य पिछले 22 सालों में केवल करीब 340 मेगावाट का उत्पादन क्षमता बनाने में ही कामयाब हो पाया है. नई सौर ऊर्जा नीति लागू होने के बाद अब सरकार 2027 तक 2500 मेगा वाट उत्पादन करने का सपना देख रही है. उधर उरेडा में मूलभूत सुविधाओं की कमी ने इस लक्ष्य पर आशंकाएं खड़ी कर दी है. इन सभी स्थितियों के बीच उरेडा के मुख्य परियोजना अधिकारी राजीव गुप्ता कहते हैं बिना कर्मचारियों के काम करना मुश्किल होगा. ऐसे में व्यवस्था बनाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं. इसके लिए पहले ही अलग-अलग पदों के लिए अधियाचन भेजे जा चुके हैं.