देहरादून: देश के ग्रामीण, दूरस्थ और पिछड़े क्षेत्र की महिलाओं में माहवारी (मासिक धर्म) के दिनों में साफ-सफाई और इससे होने वाले अलग-अलग संक्रमण के बारे में आज भी जागरूकता की कमी देखी जाती रही है. देखा गया है कि कई ग्रामीण महिलाओं को माहवारी के बारे में विशेष जानकारी नहीं होती है. इन संक्रमण को रोकने और विशेष सुरक्षा के लिए अब सेनेटरी पैड्ड को लेकर भी नित नए प्रयोग किया जा रहे हैं.
इसी कड़ी में देहरादून की सौख्यम संस्था ने केले के फाइबर से पैड बनाए हैं. यह सेनेटरी पैड रियूजेबल यानी इसको एक बार इस्तेमाल करने के बाद दोबारा यूज किया जा सकता है. ये पैड सेनेटरी नैपकिन की तुलना में एक बेहतर विकल्प माने गए हैं. इसमें कोई भी रासायनिक और विषाक्त पदार्थ नहीं होते हैं. जबकि ये सेनेटरी नैपकिन से 90 फीसदी सस्ते भी होते हैं.
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में उन्नत भारत अभियान के तहत आयोजित एक बैठक में सौख्यम रियूजेबल पैड्स की मैनेजिंग डायरेक्टर अंजू बिष्ट, जिन्हें भारत की पैड वूमेन के नाम से भी जाना जाता है. उनकी मौजूदगी में उत्तराखंड में सस्टेनेबल मासिक धर्म स्वच्छता की आवश्यकता पर आधारित सम्मेलन आयोजित हुआ. जिसमें जैविक सामग्री से बने दोबारा इस्तेमाल किए जाने वाले पैड, विशेष रूप से केले के रेशे से बनाए गए अत्याधुनिक पैड के उपयोग को बढ़ावा दिया गया.
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इस संबंध में सौख्यम संस्था की मैनेजिंग डायरेक्टर अंजू बिष्ट का कहना है कि आईआईटी रुड़की और प्रौद्योगिकी प्रबंधन संस्थान (ITM) के साथ ये प्रोजेक्ट तैयार किया है. इसके माध्यम से पर्वतीय क्षेत्रों की महिलाओं को पैड्स उपलब्ध कराने के साथ ही बनाने की तकनीक भी सिखाई जाएगी. ताकि जैविक सामग्री से बने पैड्स को बेचकर पहाड़ों की महिलाएं रोजगार के अवसर सृजित कर पाए. उन्होंने बताया कि इन पैड की कीमत 350 रुपए (6 पीस) हैं.
पैड्स की खासियत: सौख्यम की ओर से लॉन्च किए गए सेनेटरी पैड की खासियत है कि ये आसानी से धुल जाते हैं. इसमें दाग, धब्बे नहीं लगते हैं. इसे एक बार खरीदने पर 3 से 4 साल तक चल सकते हैं. इसके अलावा यह इको फ्रेंडली पैड है. इससे प्रदूषण नहीं फैलता है. जबकि अधिकांश ब्रांडों में खतरनाक रसायन और विषाक्त पदार्थ होते हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी बताए जाते हैं.