ETV Bharat / state

उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग का हाईकोर्ट ने लिया संज्ञान, 4 साल पुरानी याचिका पर PCCF को पेश होने के आदेश - UTTARAKHAND FOREST FIRE

उत्तराखंड में वनाग्नि की घटनाओं पर हाईकोर्ट सख्त, चकराता-पौड़ी में लगी आग का लिया संज्ञान, 2021 की फॉरेस्ट फायर से जुड़ी याचिका पर की सुनवाई

Uttarakhand High Court
नैनीताल हाईकोर्ट (फाइल फोटो- ETV Bharat)
author img

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Feb 17, 2025, 6:29 PM IST

नैनीताल: हाल ही में चकराता और पौड़ी के जंगलों में आग धधकी. जिसका संज्ञान लेकर मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने साल 2021 की फॉरेस्ट फायर से संबंधित जनहित याचिका को आज दोबारे से सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया है. जिस पर मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने राज्य सरकार के पीसीसीएफ को 19 फरवरी को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश होने को कहा है. कोर्ट ने उनसे ये भी पूछा है कि साल 2021 में हाईकोर्ट ने फॉरेस्ट फायर रोकने के लिए जो दिशा-निर्देश दिए थे, उस आदेश का कितना अनुपालन हुआ? व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश होकर अवगत कराएं.

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में मामला विचाराधीन होने की दी दलील: आज सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की तरफ से कोर्ट को अवगत कराया कि इससे संबंधित विशेष अपील सर्वोच्च न्यायालय यानी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है. इसलिए राज्य सरकार को वर्तमान स्थिति पेश करने के लिए एक हफ्ते का समय दिया जाए. इसका विरोध करते हुए न्यायमित्र दुष्यंत मैनाली ने कोर्ट के समक्ष वाक्य रखा कि यह मामला अलग है. जो मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, वो अलग है.

न्यायमित्र दुष्यंत मैनाली ने रखा अपना वाक्य: इस मामले का कोर्ट ने कोरोनाकाल के दौरान स्वतः संज्ञान लिया था. जब संज्ञान लिया था, तब भी प्रदेश के जंगलों में इंसानों का कम आवाजाही होने पर भी जंगल आग से धधक रहे थे. इस पर उच्च न्यायालय यानी हाईकोर्ट ने जो दिशा निर्देश राज्य सरकार को दिए थे, उनका अभी तक अनुसरण नहीं किया. जबकि, अभी फॉरेस्ट के फ्रंट लाइन कहे जाने वाले कर्मचारी, फॉरेस्ट गार्ड अपनी सुरक्षा समेत अन्य सुविधाओं को पाने के लिए हड़ताल पर हैं.

वन विभाग में खाली पदों पर भर्ती का जिक्र नहीं: न्यायमित्र दुष्यंत मैनाली ने अवगत कराया कि पूर्व में कोर्ट ने राज्य सरकार को अहम दिशा निर्देश जारी करते हुए कहा था कि वन विभाग में खाली पड़े 65 प्रतिशत पदों को 6 महीने के भीतर भरें. इसके अलावा ग्राम पंचायतों को मजबूत करने के साथ साल भर जंगलों की निगरानी करने को लेकर शपथ पत्र पेश करें.

ये भी पढ़ें- अल्मोड़ा फॉरेस्ट फायर हादसा, जान बचाने के लिए छटपटाते रहे वनकर्मी, धुएं के गुब्बार गुम हुई 'सांसे'

ये भी पढ़ें- हिमालय में धधक रही आग से पर्यावरणविद् चिंतित, पेयजल स्त्रोतों पर भी पड़ रहा असर

पीसीसीएफ को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश होने के आदेश: कोर्ट के आदेश के क्रम में सरकार ने जो शपथ पत्र पेश किया, उसमें खाली पड़े पदों पर पदोन्नति और नई भर्ती का कोई जिक्र नहीं किया गया. जैसे कब भर्ती होगी? कितने पदों पर होगी और कितने पद रिक्त हैं? जिस पर कोर्ट ने पीसीसीएफ यानी प्रधान मुख्य वन संरक्षक (PCCF) को व्यक्तिगत रूप से पेश होने के आदेश दिए हैं.

बता दें कि पूर्व में कोर्ट ने 'इन द मैटर ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ फॉरेस्ट एरिया, फॉरेस्ट हेल्थ एंड वाइल्ड लाइफ' से संबंधित मामले को जनहित याचिका के रूप में स्वतः संज्ञान साल 2018 और 2021 में वनों में लगी आग पर लिया था. जंगलों को आग से बचाने के लिए कोर्ट ने पूर्व में कई दिशा निर्देश जारी किए थे, लेकिन साल 2021 में और ज्यादा आग लगने के कारण यह मामला दोबारा से उजागर हुआ.

ये भी पढ़ें- पौड़ी गढ़वाल के जंगल में फायर सीजन से पहले लगी आग, वन विभाग को शरारती तत्वों पर शक

ये भी पढ़ें- मसूरी में फायर कंट्रोल ऑपरेशन के दौरान जंगल में भड़की आग, बुझाने में वन कर्मियों के छूटे पसीने

दरअसल, इससे पहले पर्यावरण मित्र अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली ने कोर्ट में उत्तराखंड के जंगलों में लग रही आग को लेकर तमाम समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों का हवाला पेश किया था. जिस पर कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेकर राज्य सरकार को वन, वन्यजीव और पर्यावरण को बचाने के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए थे. जबकि, हाईकोर्ट ने साल 2016 में भी जंगलों को आग से बचाने के लिए गाइडलाइन जारी की थी.

हेलीकॉप्टर से आग बुझाना काफी खर्चीला: कोर्ट ने अपने दिशा-निर्देशों में कहा था कि गांव स्तर से ही आग बुझाने के लिए समितियां गठित किए जाएं. जिस पर अमल नहीं किया गया. सरकार आग बुझाने के लिए हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल कर रही है, उसका खर्चा बहुत ज्यादा है और पूरी तरह से आग भी नहीं बुझती है. इसके बजाय गांव स्तर पर समितियां गठित की जाए. अभी तक उस आदेश का अनुपालन तक नहीं हुआ. वर्तमान में राज्य सरकार आग बुझाने के लिए हेलीकॉप्टर का सहारा ले रही है, जो काफी महंगा है.

ये भी पढ़ें-

नैनीताल: हाल ही में चकराता और पौड़ी के जंगलों में आग धधकी. जिसका संज्ञान लेकर मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने साल 2021 की फॉरेस्ट फायर से संबंधित जनहित याचिका को आज दोबारे से सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया है. जिस पर मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने राज्य सरकार के पीसीसीएफ को 19 फरवरी को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश होने को कहा है. कोर्ट ने उनसे ये भी पूछा है कि साल 2021 में हाईकोर्ट ने फॉरेस्ट फायर रोकने के लिए जो दिशा-निर्देश दिए थे, उस आदेश का कितना अनुपालन हुआ? व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश होकर अवगत कराएं.

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में मामला विचाराधीन होने की दी दलील: आज सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की तरफ से कोर्ट को अवगत कराया कि इससे संबंधित विशेष अपील सर्वोच्च न्यायालय यानी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है. इसलिए राज्य सरकार को वर्तमान स्थिति पेश करने के लिए एक हफ्ते का समय दिया जाए. इसका विरोध करते हुए न्यायमित्र दुष्यंत मैनाली ने कोर्ट के समक्ष वाक्य रखा कि यह मामला अलग है. जो मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, वो अलग है.

न्यायमित्र दुष्यंत मैनाली ने रखा अपना वाक्य: इस मामले का कोर्ट ने कोरोनाकाल के दौरान स्वतः संज्ञान लिया था. जब संज्ञान लिया था, तब भी प्रदेश के जंगलों में इंसानों का कम आवाजाही होने पर भी जंगल आग से धधक रहे थे. इस पर उच्च न्यायालय यानी हाईकोर्ट ने जो दिशा निर्देश राज्य सरकार को दिए थे, उनका अभी तक अनुसरण नहीं किया. जबकि, अभी फॉरेस्ट के फ्रंट लाइन कहे जाने वाले कर्मचारी, फॉरेस्ट गार्ड अपनी सुरक्षा समेत अन्य सुविधाओं को पाने के लिए हड़ताल पर हैं.

वन विभाग में खाली पदों पर भर्ती का जिक्र नहीं: न्यायमित्र दुष्यंत मैनाली ने अवगत कराया कि पूर्व में कोर्ट ने राज्य सरकार को अहम दिशा निर्देश जारी करते हुए कहा था कि वन विभाग में खाली पड़े 65 प्रतिशत पदों को 6 महीने के भीतर भरें. इसके अलावा ग्राम पंचायतों को मजबूत करने के साथ साल भर जंगलों की निगरानी करने को लेकर शपथ पत्र पेश करें.

ये भी पढ़ें- अल्मोड़ा फॉरेस्ट फायर हादसा, जान बचाने के लिए छटपटाते रहे वनकर्मी, धुएं के गुब्बार गुम हुई 'सांसे'

ये भी पढ़ें- हिमालय में धधक रही आग से पर्यावरणविद् चिंतित, पेयजल स्त्रोतों पर भी पड़ रहा असर

पीसीसीएफ को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश होने के आदेश: कोर्ट के आदेश के क्रम में सरकार ने जो शपथ पत्र पेश किया, उसमें खाली पड़े पदों पर पदोन्नति और नई भर्ती का कोई जिक्र नहीं किया गया. जैसे कब भर्ती होगी? कितने पदों पर होगी और कितने पद रिक्त हैं? जिस पर कोर्ट ने पीसीसीएफ यानी प्रधान मुख्य वन संरक्षक (PCCF) को व्यक्तिगत रूप से पेश होने के आदेश दिए हैं.

बता दें कि पूर्व में कोर्ट ने 'इन द मैटर ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ फॉरेस्ट एरिया, फॉरेस्ट हेल्थ एंड वाइल्ड लाइफ' से संबंधित मामले को जनहित याचिका के रूप में स्वतः संज्ञान साल 2018 और 2021 में वनों में लगी आग पर लिया था. जंगलों को आग से बचाने के लिए कोर्ट ने पूर्व में कई दिशा निर्देश जारी किए थे, लेकिन साल 2021 में और ज्यादा आग लगने के कारण यह मामला दोबारा से उजागर हुआ.

ये भी पढ़ें- पौड़ी गढ़वाल के जंगल में फायर सीजन से पहले लगी आग, वन विभाग को शरारती तत्वों पर शक

ये भी पढ़ें- मसूरी में फायर कंट्रोल ऑपरेशन के दौरान जंगल में भड़की आग, बुझाने में वन कर्मियों के छूटे पसीने

दरअसल, इससे पहले पर्यावरण मित्र अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली ने कोर्ट में उत्तराखंड के जंगलों में लग रही आग को लेकर तमाम समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों का हवाला पेश किया था. जिस पर कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेकर राज्य सरकार को वन, वन्यजीव और पर्यावरण को बचाने के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए थे. जबकि, हाईकोर्ट ने साल 2016 में भी जंगलों को आग से बचाने के लिए गाइडलाइन जारी की थी.

हेलीकॉप्टर से आग बुझाना काफी खर्चीला: कोर्ट ने अपने दिशा-निर्देशों में कहा था कि गांव स्तर से ही आग बुझाने के लिए समितियां गठित किए जाएं. जिस पर अमल नहीं किया गया. सरकार आग बुझाने के लिए हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल कर रही है, उसका खर्चा बहुत ज्यादा है और पूरी तरह से आग भी नहीं बुझती है. इसके बजाय गांव स्तर पर समितियां गठित की जाए. अभी तक उस आदेश का अनुपालन तक नहीं हुआ. वर्तमान में राज्य सरकार आग बुझाने के लिए हेलीकॉप्टर का सहारा ले रही है, जो काफी महंगा है.

ये भी पढ़ें-

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.