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GROUND REPORT: नहीं सुधरे जीवनदायिनी रिस्पना नदी के हालात, CM के ड्रीम प्रोजेक्ट में कोई बदलाव नहीं

18 मार्च को राज्य सरकार के तीन वर्ष पूरे होने जा रहे हैं. सत्ता में आते ही सरकार ने रिस्पना नदी का कायाकल्प करने का संकल्प लिया था, लेकिन हकीकत यह है कि इन तीन सालो में भी रिस्पना नदी की स्थिति जस की तस बनी हुई है. सरकार के सभी दावे खोखले साबित हो रहे हैं.

रिस्पना नदी
रिस्पना नदी
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Published : Mar 15, 2020, 2:47 AM IST

Updated : Mar 16, 2020, 11:46 AM IST

देहरादूनः आगामी 18 मार्च को उत्तराखंड सरकार के तीन साल पूरे हो जाएंगे. सरकार इसे लेकर राज्य की सभी विधान सभाओं में विशेष आयोजन होंगे. इसके जरिए सरकार अपनी उपलब्धियां को बताने का प्रयास करेगी. सरकार का दावा है कि उसने राज्य में सभी क्षेत्रों में जमकर विकास कार्य किया है.

मौजूदा सरकार ने सबसे पहले देहरादून की जीवनदायिनी रिस्पना नदी को लेकर रिस्पना से ऋषिप्रणा मुहिम छेड़ी थी और दावा किया था कि वह आने वाले एक साल में रिस्पना नदी को इतना साफ कर देंगे कि उसमें स्नान किया जा सकेगा.

सरकार के तीन साल पूरे होने पर हैं. रिस्पना नदी के हालात देखिए हमारी इस ग्राउंड रिपोर्ट में. जितना पुराना देहरादून शहर का इतिहास है उससे भी ज्यादा पुराना है देहरादून की रिस्पना और बिंदाल नदी का इतिहास.

नहीं सुधरे जीवनदायिनी रिस्पना नदी के हालात.

बताया जाता है कि रिस्पना और बिंदाल दो नदियों के बीच में मौजूद घाटी में ही देहरादून शहर को बसाया गया था और उस वक्त इन नदियों में भरपूर और साफ पानी बहा करता था.

यही वजह थी कि शहर को यहां फलने-फूलने में मदद मिली, लेकिन आज जब देहरादून शहर विश्व मानचित्र पर अपनी पहचान बना रहा है तो शहर को सींचने वाली इन नदियों के अस्तित्व पर गहरा खतरा मंडरा रहा है.

इसी की चिंता पिछले लंबे समय से सत्ता में आने वाली हर सरकार महसूस करती है.18 मार्च 2017 को उत्तराखंड में सत्ता में आई भाजपा की त्रिवेंद्र सरकार ने ही रिस्पना और बिंदाल नदी की दयनीय होती जा रही स्थिति पर चिंता जताते हुए सबसे पहले इस नदी के जीर्णोद्धार को लेकर कसम खाई थी.खास बात यह है कि यह सीएम का ड्रीम प्रोजेक्ट था.

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने खुद रिस्पना से ऋषिप्रणा के संकल्प के साथ रिस्पना को साफ करने का वादा किया था, जिसको लेकर शुरुआती दौर में पौधारोपण इत्यादि का काम भी किया गया था, लेकिन अगर वास्तविक रूप से नदी के हालातों को देखा जाए तो अभी तक कोई बदलाव देखने को नहीं मिला है.

भाजपा सरकार के तीन साल पूरे होने पर ईटीवी भारत ने देहरादून शहर की जीवनदायिनी रिस्पना नदी की जमीनी हकीकत पर रियलिटी चेक किया और देहरादून शहर के बीचोंबीच होकर बहने वाली रिस्पना नदी के साथ हमने भी सफर किया.

यह भी पढ़ेंः उत्तराखंड: कैबिनेट बैठक में कोरोना को लेकर लिये गए बड़े फैसले, 555 डॉक्टरों की होगी तैनाती

साथ ही नदी के आसपास मौजूद लोगों से जानने की कोशिश की कि इस सरकार में रिस्पना नदी के जीर्णोद्धार के लिए क्या काम किया गया है. साथ ही यह भी जानने की कोशिश की कि पिछले 3 सालों में नदी की सफाई को लेकर सरकार द्वारा कितना काम किया गया है.

मसूरी लंढोर बाजार की पहाड़ियों से नीचे उतरकर शिखर फॉल से उद्गम होने वाली रिस्पना नदी शुरुआत में काफी साफ-सुथरी नजर आती है, लेकिन जैसी देहरादून शहर में रिस्पना नदी प्रवेश करती है पानी की हालत बद से बदतर होती जाते हैं.

देहरादून शहर में प्रवेश करते ही रिस्पना नदी का सामना पहली मलिन बस्ती काठ बंगला से होता है जहां पर सीवरेज का गंदा पानी, कूड़ा-कचरा सीधे नदी में पिछले कई सालों से डाला जा रहा है.

यहां पर हमने लोगों से बातचीत की तो लोगों ने बताया कि नदी के हालात पिछले कई सालों से बद से बत्तर होते जा रहे हैं और सरकार द्वारा इसको लेकर कुछ भी पहल नहीं की जा रही है.

इसके बाद शहर से होते हुए रिस्पना नदी अपने पीक लोकेशन रिस्पना पुल पर पहुंचती है. जहां पहुंचते-पहुंचते नदी का पानी एक गंदे नाले के रूप में तब्दील हो जाता है. यहां पर हालात भी किसी से छिपे नहीं है.

यह भी पढ़ेंः रुड़की के विकास को लगेंगे पंख, CM ने 8 करोड़ का बजट किया प्रस्तावित

नदी में मवेशी, कूड़ा-करकट, प्लास्टिक सीवरेज का पानी खुले तौर से छोड़ा जा रहा है. यहां पर भी लोगों का साफ तौर से यह कहना है कि सरकार द्वारा पिछले 3 सालों में नदी की सफाई को लेकर कोई कदम नहीं उठाया गया है और अगले 2 सालों से भी कोई खास उम्मीद उन्हें नजर नहीं आ रही है.

तो इस तरह से रिस्पना नदी का सफर देहरादून शहर को अलविदा कहते-कहते अपने अस्तित्व को खो देती है. एक पूरे शहर को किसी जमाने में सींचने वाली रिस्पना नदी आज एक गंदे नाले के रूप में शहर को अलविदा करते हुए आगे बढ़ जाती है, जो कि कुछ किलोमीटर का सफर तय करने के बाद गंगा नदी में समा जाती है. ईटीवी भारत में अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में पाया कि रिस्पना नदी की सफाई को लेकर इन 3 सालों में कुछ खास तब्दीली देखने को नहीं मिली है.

देहरादूनः आगामी 18 मार्च को उत्तराखंड सरकार के तीन साल पूरे हो जाएंगे. सरकार इसे लेकर राज्य की सभी विधान सभाओं में विशेष आयोजन होंगे. इसके जरिए सरकार अपनी उपलब्धियां को बताने का प्रयास करेगी. सरकार का दावा है कि उसने राज्य में सभी क्षेत्रों में जमकर विकास कार्य किया है.

मौजूदा सरकार ने सबसे पहले देहरादून की जीवनदायिनी रिस्पना नदी को लेकर रिस्पना से ऋषिप्रणा मुहिम छेड़ी थी और दावा किया था कि वह आने वाले एक साल में रिस्पना नदी को इतना साफ कर देंगे कि उसमें स्नान किया जा सकेगा.

सरकार के तीन साल पूरे होने पर हैं. रिस्पना नदी के हालात देखिए हमारी इस ग्राउंड रिपोर्ट में. जितना पुराना देहरादून शहर का इतिहास है उससे भी ज्यादा पुराना है देहरादून की रिस्पना और बिंदाल नदी का इतिहास.

नहीं सुधरे जीवनदायिनी रिस्पना नदी के हालात.

बताया जाता है कि रिस्पना और बिंदाल दो नदियों के बीच में मौजूद घाटी में ही देहरादून शहर को बसाया गया था और उस वक्त इन नदियों में भरपूर और साफ पानी बहा करता था.

यही वजह थी कि शहर को यहां फलने-फूलने में मदद मिली, लेकिन आज जब देहरादून शहर विश्व मानचित्र पर अपनी पहचान बना रहा है तो शहर को सींचने वाली इन नदियों के अस्तित्व पर गहरा खतरा मंडरा रहा है.

इसी की चिंता पिछले लंबे समय से सत्ता में आने वाली हर सरकार महसूस करती है.18 मार्च 2017 को उत्तराखंड में सत्ता में आई भाजपा की त्रिवेंद्र सरकार ने ही रिस्पना और बिंदाल नदी की दयनीय होती जा रही स्थिति पर चिंता जताते हुए सबसे पहले इस नदी के जीर्णोद्धार को लेकर कसम खाई थी.खास बात यह है कि यह सीएम का ड्रीम प्रोजेक्ट था.

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने खुद रिस्पना से ऋषिप्रणा के संकल्प के साथ रिस्पना को साफ करने का वादा किया था, जिसको लेकर शुरुआती दौर में पौधारोपण इत्यादि का काम भी किया गया था, लेकिन अगर वास्तविक रूप से नदी के हालातों को देखा जाए तो अभी तक कोई बदलाव देखने को नहीं मिला है.

भाजपा सरकार के तीन साल पूरे होने पर ईटीवी भारत ने देहरादून शहर की जीवनदायिनी रिस्पना नदी की जमीनी हकीकत पर रियलिटी चेक किया और देहरादून शहर के बीचोंबीच होकर बहने वाली रिस्पना नदी के साथ हमने भी सफर किया.

यह भी पढ़ेंः उत्तराखंड: कैबिनेट बैठक में कोरोना को लेकर लिये गए बड़े फैसले, 555 डॉक्टरों की होगी तैनाती

साथ ही नदी के आसपास मौजूद लोगों से जानने की कोशिश की कि इस सरकार में रिस्पना नदी के जीर्णोद्धार के लिए क्या काम किया गया है. साथ ही यह भी जानने की कोशिश की कि पिछले 3 सालों में नदी की सफाई को लेकर सरकार द्वारा कितना काम किया गया है.

मसूरी लंढोर बाजार की पहाड़ियों से नीचे उतरकर शिखर फॉल से उद्गम होने वाली रिस्पना नदी शुरुआत में काफी साफ-सुथरी नजर आती है, लेकिन जैसी देहरादून शहर में रिस्पना नदी प्रवेश करती है पानी की हालत बद से बदतर होती जाते हैं.

देहरादून शहर में प्रवेश करते ही रिस्पना नदी का सामना पहली मलिन बस्ती काठ बंगला से होता है जहां पर सीवरेज का गंदा पानी, कूड़ा-कचरा सीधे नदी में पिछले कई सालों से डाला जा रहा है.

यहां पर हमने लोगों से बातचीत की तो लोगों ने बताया कि नदी के हालात पिछले कई सालों से बद से बत्तर होते जा रहे हैं और सरकार द्वारा इसको लेकर कुछ भी पहल नहीं की जा रही है.

इसके बाद शहर से होते हुए रिस्पना नदी अपने पीक लोकेशन रिस्पना पुल पर पहुंचती है. जहां पहुंचते-पहुंचते नदी का पानी एक गंदे नाले के रूप में तब्दील हो जाता है. यहां पर हालात भी किसी से छिपे नहीं है.

यह भी पढ़ेंः रुड़की के विकास को लगेंगे पंख, CM ने 8 करोड़ का बजट किया प्रस्तावित

नदी में मवेशी, कूड़ा-करकट, प्लास्टिक सीवरेज का पानी खुले तौर से छोड़ा जा रहा है. यहां पर भी लोगों का साफ तौर से यह कहना है कि सरकार द्वारा पिछले 3 सालों में नदी की सफाई को लेकर कोई कदम नहीं उठाया गया है और अगले 2 सालों से भी कोई खास उम्मीद उन्हें नजर नहीं आ रही है.

तो इस तरह से रिस्पना नदी का सफर देहरादून शहर को अलविदा कहते-कहते अपने अस्तित्व को खो देती है. एक पूरे शहर को किसी जमाने में सींचने वाली रिस्पना नदी आज एक गंदे नाले के रूप में शहर को अलविदा करते हुए आगे बढ़ जाती है, जो कि कुछ किलोमीटर का सफर तय करने के बाद गंगा नदी में समा जाती है. ईटीवी भारत में अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में पाया कि रिस्पना नदी की सफाई को लेकर इन 3 सालों में कुछ खास तब्दीली देखने को नहीं मिली है.

Last Updated : Mar 16, 2020, 11:46 AM IST
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