देहरादून: उत्तराखंड में ब्रिटिश शासन काल से चली आ रही राजस्व क्षेत्रों में बदहाल-लचर कानून व्यवस्था में सुधार लाने का सपना अब दूर की कौड़ी नजर आ रहा हैं. लंबे समय से मैदानी क्षेत्रों की तरह ही अब अपराध का ग्राफ राजस्व क्षेत्रों में भी तेजी से पांव पसार रहा है. जहां संसाधन विहीन राजस्व क्षेत्रों की कानून व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए रेगुलर पुलिस स्थापित की मांग अर्से से चल आ रही हैं, लेकिन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की नजर में यह मामला दो तरफा होने के चलते टेढ़ी खीर बना हुआ है. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि राजस्व पुलिस की जगह रेगुलर पुलिस स्थापित करने की मांग कुछ लोग चाहते हैं और कुछ लोग नहीं. ऐसे में यह मामला फिलहाल विवादित है.
रेगुलर पुलिसिंग के प्रति बढ़ा विश्वास
हालांकि मुख्यमंत्री ने यह भी साफ किया कि अब राजस्व क्षेत्रों में पुलिस थाने खोलने का विरोध पहले की तरह नहीं है. रेगुलर पुलिसिंग व्यवस्था में बेहतर कार्य होने से विश्वास बढ़ा है. अब इन क्षेत्रों में भी रेगुलर पुलिसिंग की डिमांड बढ़ रही है. बीते तीन-चार वर्षों से लगातार ऐसे इलाकों में रेगुलर पुलिस की थाना-चौकी खोली जा रही हैं. अब मांग के मुताबिक आने वाले दिनों में कुछ और राजस्व वाले क्षेत्रों में रेगुलर पुलिस वाली नई थाना चौकी खोली जाएंगी.
हजारों गांव में आज भी राजस्व पुलिस व्यवस्था लागू
उत्तराखंड के 5 हजार से अधिक पर्वतीय दुर्गम क्षेत्रों में आज भी अंग्रेजी हुकूमत के समय से ही लचर और संसाधन विहीन राजस्व (पटवारी) पुलिस की कानून व्यवस्था चल रही है. जबकि बदलते वक्त के साथ-साथ अब राज्य के मैदानी इलाकों की तरह इन पहाड़ी राजस्व क्षेत्रों में भी हत्या, लूट, बलात्कार की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं. साइबर क्राइम जैसे कई संगीन अपराध भी इन क्षेत्रों में तेजी से फैल रहे हैं. विगत कुछ वर्षों में राजस्व क्षेत्रों में ऐसे कई संगीन अपराध, बलात्कार और हत्या जैसे अपराध हुए हैं. जिन्हें रेगुलर पुलिस ने टेकओवर कर वर्कआउट किया. वहीं, दूसरी तरफ कोरोना काल में भी राजस्व पुलिस के महत्वपूर्ण कार्य रेगुलर पुलिस द्वारा सफलता पूर्वक किए गए.
ये भी पढ़ें: उत्तराखंड में अब हर थाने में सुनवाई के लिए होगा जनता संवाद कार्यक्रम
अंग्रेजी हुकूमत वाली राजस्व पुलिस व्यवस्था
बता दें कि उत्तराखंड देश का इकलौता ऐसा प्रदेश है, जहां आज भी अंग्रेजों की हुकूमत के समय से चली आ रही राजस्व पुलिस की व्यवस्था कई पहाड़ी और दुर्गम इलाकों में लागू है. यहां एक मात्र पटवारी और पेशकार अपने मन मुताबिक कानून व्यवस्था देखते हैं. जबकि वर्तमान समय में अपराध का ग्राफ मैदानी इलाकों की तरह इन राजस्व इलाकों में भी बढ़ता जा रहा है. जिनसे पार पाना दूर-दूर तक राजस्व पुलिस व्यवस्था के बस में नहीं है.
उच्च न्यायालय राजस्व पुलिस व्यवस्था समाप्त करने का दे चुका है निर्देश
बता दें कि करीब 3 साल पहले नैनीताल उच्च न्यायालय उत्तराखंड के पर्वतीय और दुर्गम ग्रामीण इलाकों में बदहाल राजस्व पुलिस व्यवस्था को खत्म करने का निर्देश दे चुका है. इतना ही नहीं कानून व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए इन स्थानों पर रेगुलर पुलिस स्थापित करने की बात भी कोर्ट द्वारा सामने आ चुकी है. न्यायालय के इसी आदेश के मुताबिक उत्तराखंड पुलिस मुख्यालय द्वारा शासन को इस मसले पर प्रस्ताव भी भेजा चुका है. लेकिन अभी तक शासन द्वारा इस मामले में सहमति न बनने के चलते हरी झंडी नहीं मिली है. जबकि पुलिस मुख्यालय अपने प्रस्ताव में शासन से यह कह चुका है कि राज्य के लगभग 50% राजस्व वाले इलाकों को वह बिना किसी अतिरिक्त बजट व पहले से मौजूद अपने संसाधनों के बलबूते, इन क्षेत्रों में रेगुलर पुलिस स्थापित कर कानून व्यवस्था दुरुस्त कर सकता है. इसके बावजूद आज तक राज्य सरकार द्वारा इस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है.
1861 में ब्रिटिश हुकूमत में पटवारियों को दी गई राजस्व पुलिस की जिम्मेदारी
1816 में ब्रिटिश हुकूमत के दौरान उत्तराखंड में कुमाऊं गढ़वाल के इलाकों में राजस्व पुलिस पटवारियों के अधीन कर दी गई. इसी दौरान तत्कालीन कमिश्नर द्वारा 16 पद पटवारी राजस्व पुलिस के रूप में सृजित किए गए. वहीं, वर्ष 1874 में एक नोटिफिकेशन जारी हुआ, जिसमें पटवारी को कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी दी गई. लेकिन पटवारी तब से आज तक कानून व्यवस्था के मामलों को छोड़ जमीन-प्रॉपर्टी जैसे कार्यों में ज्यादा व्यस्त हैं.
वहीं, वर्ष 1916 में पटवारियों की नियमावली में संशोधन हुआ और 1956 में टिहरी, उत्तरकाशी, देहरादून जिलों के गांव भी पटवारियों के कार्य में जोड़ दिए गए. ऐसे में उत्तराखंड के कई पर्वतीय और दुर्गम ग्रामीण इलाके आज भी अंग्रेजी हुकूमत के पुलिस कानून से दूर-दूर तक जानकारी ना रखने वाले संसाधन विहीन पटवारियों के भरोसे चल रही है. बहरहाल उत्तराखंड के हजारों पर्वतीय ग्रामीण राजस्व क्षेत्र कब तक रेगुलर पुलिसिंग के अधीन कानून व्यवस्था के लिहाज से सुदृढ़ और बेहतर रूप सुचारू होंगे, यह कहना उत्तराखंड शासन की मंशा के अनुसार मुश्किल नजर आता हैं.