देहरादून: हिंदू धर्म में सनातन परंपरा के अनुसार मां गंगा की तरह मां यमुना का भी बड़ा धार्मिक महत्व है. हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार हर साल चैत्र मास की शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि को मां यमुना का प्राकट्य दिवस मनाया जाता था. इस साल से तिथि सोमवार 27 मार्च को पड़ी है. मां यमुनोत्री धाम के पुरोहित पुजारी अनिरुद्ध प्रसाद उनियाल इस मौके पर सभी श्रद्धालुओं को मां यमुना के प्राकट्य दिवस की बधाई और इस हिंदू धर्म में इसके महत्व के बारे में बताया.
पुजारी अनिरुद्ध प्रसाद उनियाल ने बताया कि आज ही के दिन (चैत्र मास की शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि) मां यमुना कलियुग में मानव जाति के उत्थान के लिए अवतरण लिया था. इसी दिन (चैत्र मास की शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि) यमुनोत्री धाम के कपाट खुलने की तिथि भी घोषित होती है. इस बार अक्षय तृतीया यानी 22 अप्रैल को यमुनोत्री धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोले जाएंगे.
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मां यमुना के प्राकट्य के क्या हैं मायने: पुजारी अनिरुद्ध प्रसाद उनियाल ने बताया कि मां यमुना का नाम ही कालिंदी है और कलियुग में मानव जाति के उत्थान के लिए मां यमुना धरती पर प्रकट हुई हैं. मां यमुना यम की बहन है, जिसकी वजह से इनकी साधना करने पर यम के दोष मुक्त हो जाते हैं.
यमुनोत्री धाम के तीर्थ पुरोहित अनिरुद्ध प्रसाद उनियाल ने बताया कि सनातन धर्म में भगवान श्रीकृष्ण भगवान को सर्वेश्वर माना गया है और हिंदू धर्मग्रंथों में जिन आठ पटरानियों के बारे में बताया गया है, भगवती यमुना भी उनमें से एक है. पुराणों के अनुसार यमुना जी भगवान सूर्य की पुत्री होने के साथ साथ यमराज और शनिदेव की बहन भी हैं.
यमुनोत्री पुरोहित बताते हैं कि द्वापर युग में मां यमुना का आविर्भाव चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन हुआ था. यानी यह पावन तिथि यमुना मां के प्राकट्य या फिर यमुना जयंती नाम से प्रसिद्ध है. हर साल यह महोत्सव ब्रज मंडल में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है.
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मार्कण्डेय पुराण में लिखा है गंगा-यमुना सगी बहनें हैं और जिस तरह गंगा का उद्गम गंगोत्री के पास गोमुख से हुआ है, उसी तरह से यमुना जी भी जब भूलोक में प्रकट हुई तो उनका उद्गम यमुनोत्री के पास कालिंदगिरि से हुआ. द्वापर युग में श्रीकृष्ण लीला के समय सर्वेश्वर श्रीकृष्ण और यमुना जी के पुनर्मिलन का जिक्र मिलता है.
यमुनोत्री धाम के पुरोहित पंडित अनिरुद्ध प्रसाद उनियाल कहते हैं कि उत्तराखंड की चारधाम यात्रा में यमुनोत्री धाम की यात्रा का अपना एक अलग महत्व है और यमुनोत्री धाम में विशेष पूजा अर्चना के बाद ही यह चारधाम यात्रा आगे विधिवत की जाती है.