देहरादून: उच्च न्यायालय के आदेशों के बाद इस बार नगर निगम प्रशासन ने राजधानी में सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया है. लेकिन, राजधानी की जनता सिंगल यूज प्लास्टिक के बारे में कितना जानती है और इसके नुकसान से कितना रूबरू है. इसके लिए ईटीवी भारत की टीम ने राजधानी देहरादून में रियलिटी चेक किया. देखिए ये रिपोर्ट...
बता दें कि 40 माइक्रोमीटर या उससे कम स्तर के प्लास्टिक को सिंगल यूज प्लास्टिक कहा जाता है. प्लास्टिक के थैले, ईस्ट्रो, पानी की बोतल और थर्माकोल ये सभी चीजें सिंगल यूज प्लास्टिक की श्रेणी में आते हैं. ये प्लास्टिक न तो आसानी से नष्ट होती हैं और न ही इसे रिसायकल किया जा सकता है.
राजधानी के शीशमबाड़ा डंपिंग जोन का संचालन करने वाली रेमकी कंपनी के प्रोजेक्ट मैनेजर एम.ए सैफी ने बताया कि सिंगल यूज प्लास्टिक की रासायनिक संरचना कुछ ऐसी होती है कि आसानी से नष्ट नहीं होती है. यहां तक की सालों तक जमीन के अंदर दबे होने के बावजूद भी ये प्लास्टिक नष्ट नहीं होती, जिससे अंडर ग्राउंड वाटर लेवल पर असर पड़ने के साथ ही मिट्टी की उपजाऊ क्षमता को भी नुकसान पहुंचता है.
इतना ही नहीं सिंगल यूज प्लास्टिक सिर्फ इंसानों और पर्यावरण के लिए ही घातक नहीं है. इसका असर पशुओं पर भी पड़ता है. सड़क पर बिखरे प्लास्टिक को खाकर जहां आवारा पशु बीमार पड़ते हैं. वहीं, समुद्र में फैल रहे प्लास्टिक कचरे से समुद्र के जीव और मछलियां भी प्रभावित होती हैं. एक अनुमान के मुताबिक, यदि सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल जल्द ही बंद नही हुआ तो साल 2050 तक समुद्र में मछलियों से ज्यादा संख्या प्लास्टिक की होगी.
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जब ईटीवी भारत ने जब सिंगल यूज प्लास्टिक को लेकर राजधानी दून के कुछ युवाओं से बात की तो युवा सिंगल यूज प्लास्टिक से काफी हद तक जागरूक नजर आए. लेकिन, इन युवाओं को ये पता नहीं था कि आखिर सिंगल यूज प्लास्टिक की श्रेणी में किस किस तरह के प्लास्टिक आते हैं.