देहरादून: जहां एक तरफ जहां सूरत के एजुकेशनल इंस्टीट्यूट में हुए हादसे के बाद पूरा देश सदमे में है. वहीं, एजुकेशन हब के रूप में कहे जाने वाले देहरादून में स्थित कोचिंग सेंटरों में इस तरह के हादसों से निपटने के क्या इंतजाम है. ईटीवी भारत ने दून स्थित कोचिंग सेंटरों में जाकर रियलटी चेक किया और जाना यहां आग से निपटने के क्या इंतजाम है. ऐसे में इस पूरी पड़ताल में जो कुछ सामने निकलकर आया है. वो वाकई चौंकाने वाला है. आखिर दून के कोचिंग सेंटर्स में सुरक्षा की अनदेखी का जिम्मेदार कौन है? देखिए खास रिपोर्ट...
एजुकेशन हब के रूप में अपनी देहरादून अपनी अलग ही पहचान रखता है. सूरत में हुए हादसे से सबक लेकर हमने जब देहरादून में संचालित कोचिंग सेंटरों रुख किया तो यहां चल रहे कोचिंग सेंटर्स की तस्वीर, सूरत में दुर्घटना से पहले चल रहे कोचिंग सेंटर से बिल्कुल भी अलग नहीं थी. ठीक उसी तरह से कई बहुमंजिला कॉम्पलेक्स में यहां कोचिंग सेंटर चल रहे हैं. एक ही कमरें में सैकड़ों बच्चे एक साथ पढ़ते है. कॉम्पलेक्स से कोचिंग रूम तक जाने वाला रास्ता भी एक ही है. जो बहुत संकरा है. हमारी पड़ताल में लगभग राजधानी के हर इलाके में मौजूद कोचिंग सेंटर्स में यह सूरत-ए-हाल देखने को मिला.
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राजधानी देहरादून के करणपुर, डीएल रोड, घंटाघर, पटेलनगर, नेहरु कॉलोनी, कार्गी चौक सहित शहर के कई इलाकों में तकरीबन 100 से ज्यादा अलग-अलग कोचिंग सेंटर चल रहे हैं. हैरानी की बात तो ये है कि इनमें से कुछ ऐसे इंस्टीट्यूट हैं जो काफी नामी गिरामी है और यहां से हर साल कई मेधावी छात्र अलग-अलग परीक्षाओं में उत्तीर्ण होते हैं. लेकिन अफसोस इन बात है कि इन होनहारों की सुरक्षा के लिए इन्हें कोचिंग देने वाला संस्थान कतई भी गंभीर नजर नहीं आता. ईटीवी भारत ने जब अपनी पड़ताल के दौरान इन कोचिंग इंस्टीट्यूट संचालकों से बात करनी चाही तो इन्होंने कैमरे पर कुछ भी कहने से सीधा इनकार कर दिया.
हालांकि, देहरादून के नेहरू कॉलोनी में स्थित एजुकेशन एकेडमी का संचालन कर रहे अंकित ने माना की सूरत हादसे से उन्हें सीखने की जरूरत है. साथ ही उन्होंने जल्द ही अपने सेंटर में आगे से निपटने के उपकरणों को लगाने का भरोसा भी दिया है. सेंटर के अन्य सदस्य कमलेश्वर ममगाईं ने बताया कि उनके इंस्टीट्यूट में हर रोज 300 से 400 छात्र पढ़ने आते है. ऐसे में सूरत हादसे को लेकर वह काफी सदमे में है. वहीं, इस इंस्टीट्यूट में पढ़ने वाले एक छात्र ने बताया कि एक कमरे में करीब 100 से 300 तक बच्चों को एक साथ पढ़ाया जाता है. ऐसे में अगर कोई हादसा हो जाए तो स्थिति भयावह हो सकती है. वहीं, ग्रुप सी की तैयारी कर रहे एक अन्य छात्र महिपाल रावत का कहना है कि सूरत की घटना से उनके कोचिंग चेयरमैन को सीख लेनी चाहिए. ताकि, ऐसे हादसों से निपटा जा सके.
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अग्निशमन विभाग और एमडीडीएम की लापरवाही
शहर में चल रहे सभी कोचिंग सेटरों पर किसी की भी कोई लगाम नहीं है और ना ही कोचिंग सेटर खोलते वक्त सुरक्षा के कोई मानक तय किये गए हैं. शिक्षा के व्यवसायीकरण के साथ ही दिनों-दिन कोचिंग सेंटर का व्यापार भी खूब फल फूल रहा है. लेकिन शहर में कितने कोंचिग इंस्टीट्यूट संचालित हो रहे हैं इसका हिसाब आपकों कहीं नहीं मिलेगा. ऐसे में आप केवल अंदाजा ही लगा सकते हैं कि देहरादून में कितने कोचिंग सेंटर संचालित हो रहे है. एक कोचिंग सेंटर संचालक की माने तो राजधानी में छोटे-बड़े सभी कोचिंग सेटर मिलाकर इनकी संख्या 100 से 150 तक होगी. जिनमें से अधिकतर बहुमंजिला कॉम्पलेक्सों में संचालित हो रहे है. लेकिन इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं.
देहरादून में हर तरह के भवन निर्माण के लिए मानकों को पूरा करवाने की जिम्मेदार एमडीडीए की है. लेकिन सूरत की घटना के बाद जब हमने देहरादून चल रहे सैकड़ों कोचिंग सेंटर को लेकर एमडीडीए से सवाल किया तो उन्होनें बात अग्निशमन विभाग के ऊपर डाल दी और कहा कि भवन निर्माण में अग्निशमन विभाग की एनओसी भी जरूरी होती है. ऐसे में अगर किसी भवन में आग लगने जैसी घटना होती है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी अग्निशमन विभाग की होगी. बहरहाल, अग्निशमन विभाग से खासतौर पर कोचिंग सेंटर में अग्निशमन उपकरणों के इंतजामात को लेकर बात की गई तो उनके पास भी इसका कोई आंकड़ा नहीं है. फायर अधिकारियों का कहना है कि सूरत की घटनाओं को देखते हुए ही विभाग जल्द इस संबध में पूरे शहर का निरीक्षण करवाएगा.
बहरहाल, उत्तराखंड में ना जाने कितने कोचिंग सेंटर हैं जो कि सूरत में चल रहे कोचिंग सेंटर की तरह सुरक्षा मानकों को धता बताकर संचालित हो रहे है. एक अनुमान के मुताबिक, राजधानी देहरादून में करीब ऐसे 100 से 150 इंस्टीट्यूट संचालित हो रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि 8x10 के कमरों में नए भारत के निर्माण का सपना पाल रहे छात्र क्या ऐसे ही सिस्टम की नजरअंदाजी का खामियाजा भुगतते रहेंगे.