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पड़ताल: दून के कोचिंग सेंटर्स में सुरक्षा की अनदेखी का जिम्मेदार कौन?

राजधानी देहरादून के करणपुर, डीएल रोड, घंटाघर, पटेलनगर, नेहरु कॉलोनी, कार्गी चौक सहित शहर के कई इलाकों में तकरीबन 100 से ज्यादा अलग-अलग कोचिंग सेंटर चल रहे हैं. हैरानी की बात तो ये है कि इनमें से कुछ ऐसे इंस्टीट्यूट हैं जो काफी नामी गिरामी है और यहां से हर साल कई मेधावी छात्र अलग-अलग परीक्षाओं में उत्तीर्ण होते हैं.

देहरादून कोचिंग इंस्टीट्यूट की पड़ताल
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Published : May 25, 2019, 8:23 PM IST

देहरादून: जहां एक तरफ जहां सूरत के एजुकेशनल इंस्टीट्यूट में हुए हादसे के बाद पूरा देश सदमे में है. वहीं, एजुकेशन हब के रूप में कहे जाने वाले देहरादून में स्थित कोचिंग सेंटरों में इस तरह के हादसों से निपटने के क्या इंतजाम है. ईटीवी भारत ने दून स्थित कोचिंग सेंटरों में जाकर रियलटी चेक किया और जाना यहां आग से निपटने के क्या इंतजाम है. ऐसे में इस पूरी पड़ताल में जो कुछ सामने निकलकर आया है. वो वाकई चौंकाने वाला है. आखिर दून के कोचिंग सेंटर्स में सुरक्षा की अनदेखी का जिम्मेदार कौन है? देखिए खास रिपोर्ट...

दून के कोचिंग सेंटर्स में सुरक्षा की अनदेखी का जिम्मेदार कौन?

एजुकेशन हब के रूप में अपनी देहरादून अपनी अलग ही पहचान रखता है. सूरत में हुए हादसे से सबक लेकर हमने जब देहरादून में संचालित कोचिंग सेंटरों रुख किया तो यहां चल रहे कोचिंग सेंटर्स की तस्वीर, सूरत में दुर्घटना से पहले चल रहे कोचिंग सेंटर से बिल्कुल भी अलग नहीं थी. ठीक उसी तरह से कई बहुमंजिला कॉम्पलेक्स में यहां कोचिंग सेंटर चल रहे हैं. एक ही कमरें में सैकड़ों बच्चे एक साथ पढ़ते है. कॉम्पलेक्स से कोचिंग रूम तक जाने वाला रास्ता भी एक ही है. जो बहुत संकरा है. हमारी पड़ताल में लगभग राजधानी के हर इलाके में मौजूद कोचिंग सेंटर्स में यह सूरत-ए-हाल देखने को मिला.

पढ़ें- गंगा में बन रहे बांधों पर लगाई जाए रोक- जल पुरुष

राजधानी देहरादून के करणपुर, डीएल रोड, घंटाघर, पटेलनगर, नेहरु कॉलोनी, कार्गी चौक सहित शहर के कई इलाकों में तकरीबन 100 से ज्यादा अलग-अलग कोचिंग सेंटर चल रहे हैं. हैरानी की बात तो ये है कि इनमें से कुछ ऐसे इंस्टीट्यूट हैं जो काफी नामी गिरामी है और यहां से हर साल कई मेधावी छात्र अलग-अलग परीक्षाओं में उत्तीर्ण होते हैं. लेकिन अफसोस इन बात है कि इन होनहारों की सुरक्षा के लिए इन्हें कोचिंग देने वाला संस्थान कतई भी गंभीर नजर नहीं आता. ईटीवी भारत ने जब अपनी पड़ताल के दौरान इन कोचिंग इंस्टीट्यूट संचालकों से बात करनी चाही तो इन्होंने कैमरे पर कुछ भी कहने से सीधा इनकार कर दिया.

हालांकि, देहरादून के नेहरू कॉलोनी में स्थित एजुकेशन एकेडमी का संचालन कर रहे अंकित ने माना की सूरत हादसे से उन्हें सीखने की जरूरत है. साथ ही उन्होंने जल्द ही अपने सेंटर में आगे से निपटने के उपकरणों को लगाने का भरोसा भी दिया है. सेंटर के अन्य सदस्य कमलेश्वर ममगाईं ने बताया कि उनके इंस्टीट्यूट में हर रोज 300 से 400 छात्र पढ़ने आते है. ऐसे में सूरत हादसे को लेकर वह काफी सदमे में है. वहीं, इस इंस्टीट्यूट में पढ़ने वाले एक छात्र ने बताया कि एक कमरे में करीब 100 से 300 तक बच्चों को एक साथ पढ़ाया जाता है. ऐसे में अगर कोई हादसा हो जाए तो स्थिति भयावह हो सकती है. वहीं, ग्रुप सी की तैयारी कर रहे एक अन्य छात्र महिपाल रावत का कहना है कि सूरत की घटना से उनके कोचिंग चेयरमैन को सीख लेनी चाहिए. ताकि, ऐसे हादसों से निपटा जा सके.

पढ़ें- जीत का जश्न: रानी ने निकाला विजय जुलूस, निशंक के घर लगा बधाई का तांता

अग्निशमन विभाग और एमडीडीएम की लापरवाही
शहर में चल रहे सभी कोचिंग सेटरों पर किसी की भी कोई लगाम नहीं है और ना ही कोचिंग सेटर खोलते वक्त सुरक्षा के कोई मानक तय किये गए हैं. शिक्षा के व्यवसायीकरण के साथ ही दिनों-दिन कोचिंग सेंटर का व्यापार भी खूब फल फूल रहा है. लेकिन शहर में कितने कोंचिग इंस्टीट्यूट संचालित हो रहे हैं इसका हिसाब आपकों कहीं नहीं मिलेगा. ऐसे में आप केवल अंदाजा ही लगा सकते हैं कि देहरादून में कितने कोचिंग सेंटर संचालित हो रहे है. एक कोचिंग सेंटर संचालक की माने तो राजधानी में छोटे-बड़े सभी कोचिंग सेटर मिलाकर इनकी संख्या 100 से 150 तक होगी. जिनमें से अधिकतर बहुमंजिला कॉम्पलेक्सों में संचालित हो रहे है. लेकिन इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं.

देहरादून में हर तरह के भवन निर्माण के लिए मानकों को पूरा करवाने की जिम्मेदार एमडीडीए की है. लेकिन सूरत की घटना के बाद जब हमने देहरादून चल रहे सैकड़ों कोचिंग सेंटर को लेकर एमडीडीए से सवाल किया तो उन्होनें बात अग्निशमन विभाग के ऊपर डाल दी और कहा कि भवन निर्माण में अग्निशमन विभाग की एनओसी भी जरूरी होती है. ऐसे में अगर किसी भवन में आग लगने जैसी घटना होती है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी अग्निशमन विभाग की होगी. बहरहाल, अग्निशमन विभाग से खासतौर पर कोचिंग सेंटर में अग्निशमन उपकरणों के इंतजामात को लेकर बात की गई तो उनके पास भी इसका कोई आंकड़ा नहीं है. फायर अधिकारियों का कहना है कि सूरत की घटनाओं को देखते हुए ही विभाग जल्द इस संबध में पूरे शहर का निरीक्षण करवाएगा.

बहरहाल, उत्तराखंड में ना जाने कितने कोचिंग सेंटर हैं जो कि सूरत में चल रहे कोचिंग सेंटर की तरह सुरक्षा मानकों को धता बताकर संचालित हो रहे है. एक अनुमान के मुताबिक, राजधानी देहरादून में करीब ऐसे 100 से 150 इंस्टीट्यूट संचालित हो रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि 8x10 के कमरों में नए भारत के निर्माण का सपना पाल रहे छात्र क्या ऐसे ही सिस्टम की नजरअंदाजी का खामियाजा भुगतते रहेंगे.

देहरादून: जहां एक तरफ जहां सूरत के एजुकेशनल इंस्टीट्यूट में हुए हादसे के बाद पूरा देश सदमे में है. वहीं, एजुकेशन हब के रूप में कहे जाने वाले देहरादून में स्थित कोचिंग सेंटरों में इस तरह के हादसों से निपटने के क्या इंतजाम है. ईटीवी भारत ने दून स्थित कोचिंग सेंटरों में जाकर रियलटी चेक किया और जाना यहां आग से निपटने के क्या इंतजाम है. ऐसे में इस पूरी पड़ताल में जो कुछ सामने निकलकर आया है. वो वाकई चौंकाने वाला है. आखिर दून के कोचिंग सेंटर्स में सुरक्षा की अनदेखी का जिम्मेदार कौन है? देखिए खास रिपोर्ट...

दून के कोचिंग सेंटर्स में सुरक्षा की अनदेखी का जिम्मेदार कौन?

एजुकेशन हब के रूप में अपनी देहरादून अपनी अलग ही पहचान रखता है. सूरत में हुए हादसे से सबक लेकर हमने जब देहरादून में संचालित कोचिंग सेंटरों रुख किया तो यहां चल रहे कोचिंग सेंटर्स की तस्वीर, सूरत में दुर्घटना से पहले चल रहे कोचिंग सेंटर से बिल्कुल भी अलग नहीं थी. ठीक उसी तरह से कई बहुमंजिला कॉम्पलेक्स में यहां कोचिंग सेंटर चल रहे हैं. एक ही कमरें में सैकड़ों बच्चे एक साथ पढ़ते है. कॉम्पलेक्स से कोचिंग रूम तक जाने वाला रास्ता भी एक ही है. जो बहुत संकरा है. हमारी पड़ताल में लगभग राजधानी के हर इलाके में मौजूद कोचिंग सेंटर्स में यह सूरत-ए-हाल देखने को मिला.

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राजधानी देहरादून के करणपुर, डीएल रोड, घंटाघर, पटेलनगर, नेहरु कॉलोनी, कार्गी चौक सहित शहर के कई इलाकों में तकरीबन 100 से ज्यादा अलग-अलग कोचिंग सेंटर चल रहे हैं. हैरानी की बात तो ये है कि इनमें से कुछ ऐसे इंस्टीट्यूट हैं जो काफी नामी गिरामी है और यहां से हर साल कई मेधावी छात्र अलग-अलग परीक्षाओं में उत्तीर्ण होते हैं. लेकिन अफसोस इन बात है कि इन होनहारों की सुरक्षा के लिए इन्हें कोचिंग देने वाला संस्थान कतई भी गंभीर नजर नहीं आता. ईटीवी भारत ने जब अपनी पड़ताल के दौरान इन कोचिंग इंस्टीट्यूट संचालकों से बात करनी चाही तो इन्होंने कैमरे पर कुछ भी कहने से सीधा इनकार कर दिया.

हालांकि, देहरादून के नेहरू कॉलोनी में स्थित एजुकेशन एकेडमी का संचालन कर रहे अंकित ने माना की सूरत हादसे से उन्हें सीखने की जरूरत है. साथ ही उन्होंने जल्द ही अपने सेंटर में आगे से निपटने के उपकरणों को लगाने का भरोसा भी दिया है. सेंटर के अन्य सदस्य कमलेश्वर ममगाईं ने बताया कि उनके इंस्टीट्यूट में हर रोज 300 से 400 छात्र पढ़ने आते है. ऐसे में सूरत हादसे को लेकर वह काफी सदमे में है. वहीं, इस इंस्टीट्यूट में पढ़ने वाले एक छात्र ने बताया कि एक कमरे में करीब 100 से 300 तक बच्चों को एक साथ पढ़ाया जाता है. ऐसे में अगर कोई हादसा हो जाए तो स्थिति भयावह हो सकती है. वहीं, ग्रुप सी की तैयारी कर रहे एक अन्य छात्र महिपाल रावत का कहना है कि सूरत की घटना से उनके कोचिंग चेयरमैन को सीख लेनी चाहिए. ताकि, ऐसे हादसों से निपटा जा सके.

पढ़ें- जीत का जश्न: रानी ने निकाला विजय जुलूस, निशंक के घर लगा बधाई का तांता

अग्निशमन विभाग और एमडीडीएम की लापरवाही
शहर में चल रहे सभी कोचिंग सेटरों पर किसी की भी कोई लगाम नहीं है और ना ही कोचिंग सेटर खोलते वक्त सुरक्षा के कोई मानक तय किये गए हैं. शिक्षा के व्यवसायीकरण के साथ ही दिनों-दिन कोचिंग सेंटर का व्यापार भी खूब फल फूल रहा है. लेकिन शहर में कितने कोंचिग इंस्टीट्यूट संचालित हो रहे हैं इसका हिसाब आपकों कहीं नहीं मिलेगा. ऐसे में आप केवल अंदाजा ही लगा सकते हैं कि देहरादून में कितने कोचिंग सेंटर संचालित हो रहे है. एक कोचिंग सेंटर संचालक की माने तो राजधानी में छोटे-बड़े सभी कोचिंग सेटर मिलाकर इनकी संख्या 100 से 150 तक होगी. जिनमें से अधिकतर बहुमंजिला कॉम्पलेक्सों में संचालित हो रहे है. लेकिन इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं.

देहरादून में हर तरह के भवन निर्माण के लिए मानकों को पूरा करवाने की जिम्मेदार एमडीडीए की है. लेकिन सूरत की घटना के बाद जब हमने देहरादून चल रहे सैकड़ों कोचिंग सेंटर को लेकर एमडीडीए से सवाल किया तो उन्होनें बात अग्निशमन विभाग के ऊपर डाल दी और कहा कि भवन निर्माण में अग्निशमन विभाग की एनओसी भी जरूरी होती है. ऐसे में अगर किसी भवन में आग लगने जैसी घटना होती है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी अग्निशमन विभाग की होगी. बहरहाल, अग्निशमन विभाग से खासतौर पर कोचिंग सेंटर में अग्निशमन उपकरणों के इंतजामात को लेकर बात की गई तो उनके पास भी इसका कोई आंकड़ा नहीं है. फायर अधिकारियों का कहना है कि सूरत की घटनाओं को देखते हुए ही विभाग जल्द इस संबध में पूरे शहर का निरीक्षण करवाएगा.

बहरहाल, उत्तराखंड में ना जाने कितने कोचिंग सेंटर हैं जो कि सूरत में चल रहे कोचिंग सेंटर की तरह सुरक्षा मानकों को धता बताकर संचालित हो रहे है. एक अनुमान के मुताबिक, राजधानी देहरादून में करीब ऐसे 100 से 150 इंस्टीट्यूट संचालित हो रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि 8x10 के कमरों में नए भारत के निर्माण का सपना पाल रहे छात्र क्या ऐसे ही सिस्टम की नजरअंदाजी का खामियाजा भुगतते रहेंगे.

Intro:देहरादून में भी कोंचिंग सेंटर का सूरत हादसे को दावत- Special Story

Note- फीड FTP से Reality check coaching center- Special नाम से भेजी गई है।

एंकर- जहां एक तरफ सूरत में हुए हादसे के बाद पूरा देश सदमें में है तो वहीं उत्तराखंड में सचालित किये जाने वाले कोचिंग सेंटरो का की पड़ताल Etv भारत ने की है। अपनी पड़ताल में हमने प्रदेश का एजुकेशन हब कहे जाने वाले देहरादून शहर के कई कोचिंग सेटरों का रियलिटी चैक किया और जाना कि यहां चलने वाले कोचिंग सेटरों में सुरक्षा के क्या हालात हैं और हमारी पड़ताल में जो सामने आया वो वाकई में चौकाने वाला है। तो अगर आप का बच्चा कोचिंग सेटर में पढ़ने जाता है तो जान लिजिए कितना सुरक्षित है वो...देखिए हमारी खास पड़ताल


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देहरादून की सूरत भी सूरत जैसी ही---
एजुकेशन हब के रुप में अपनी पहचान बना चुका देहरादून शहर में कोचिंग सेटरों के हालात देखने इसलिए भी जरुरी है क्योंकि देहरादून उत्तराखंड राज्य का वो शहर है जहां माना जाता है कि सिस्टम और सियासत का सबसे पहला और मजबूत असर होता है लेकिन सूरत में हुए इतने बड़े हादसे के बावजूद भी देहरादून में संचालित कोचिंग सेंटरों के हालात अगर हम देखे तो यहां सिस्टम और सियासत दोनो ही बेबस सी लगती है और इससे हम उन शहरो के हालातों का भी अंदाजा लगा सकते है जो सिस्टम और सियासद दोनो से दूर है। बहरहाल हमने देहरादून में संचालित कोचिंग सेंटरों का जब रुख किया तो यहां चल रहे कोचिंग सेंटर्स की तस्वीर, सूरत में दुर्घटना से पहले चल रहे कोचिंग सेंटर से बिल्कुल भी अलग नही थी। ठीक बिल्कुल उसी तरह से कई मजीलों के कॉम्पलेक्स में कोचिंग सेंटर चल रहे हैं। एक ही कमरें में सैकड़ो बच्चे एक साथ ट्युशन पढ़ते है और कमरे के साथ साथ पूरे कॉपलेक्स रास्ता भी एक ही संकरा सा। ये सारी तस्वीरें देहरादून के तमाम पौश इलाकों में मौजूद कोचिगं सेंटर्स का हमे देखने को मिली। देहरादून के करणपुर, डीएल रोड़, घंटाघर, पटेलनगर, नेहरु कॉलोनी, कार्गी चौक सहित शहर के कई ईलाकों में तकरीबन 100 से ज्यादा अलग अलग कोर्स, विषयों, इन्ट्रेन्स एक्जाम्स और नौकरियों के कोचिंग सेंटर देहरादून में चल रहें है। हेरानी की बात तो यह है कि इनमें से कुछ एसे भी कोचिंग सेंटर है जो नामी गिनामी है और हर साल कई मैधावी छात्र इन कोचिंग सैटर ने निकलकर कीर्तीमान हासिल करते हैं लेकिन अपसोस की सूरत जैसे किसी हादसे में देश के इन्ही अनमोल धरोहरों की सुरक्षा के लिए कोई गंभीर नजर नही आता। रियलिटी चैक के दौरान हमने कई कोचिंग सेंटर के संचालकों से बात करनी चाही लेकिन अधिकतर संचालकों ने कैमरे पर बात करने से मना कर दिया लेकिन एक कोचिंग सेंटर में संचालक की गैरमोजूदगी में सेंटर के अधिकृती व्यक्ती से हम कैमरे पर बात कर पाये। देहरादून के नेहरु कॉलोनी में स्थित एजुकेशन अकेडमी का संचालन कर रहे अंकित ने माना की सूरत हादसे से उन्हे सीखने की जरुरत है साथ ही उन्होने जल्द ही अपने सेंटर पर अग्निशमन यंत्र लगाने का भरोसा भी दियाा। सेंटर संचालक सदस्य कमलेश्वर मंमगई ने बताया की उनके सेंटर पर तकरीबन 300 से 400 छात्र पढ़ते है और सूरत के हादसे के बाद वो अपने सेंटर पर सभी कमीयों को दूर करेंगे। तो वहीं दूसरी तरफ इन कोचिंग सेंटरों में पढ़ने वाले छात्र सूरत के हादसे के बाद काफी सदमें में। छात्र ने बताया की एक ही कमरे में तकरीन न्युनतम 100 से 300 तक बच्चों को एक साथ पढ़ाया जाता है और एसे में अगर कोई हादसा हो जाए तो स्थीती भयावह हो सकती है। ग्रुप सी की तैयारी कर रहे महिपाल रावत ने कहा कि उनके कोचिंग सेटंर चला रहे चेयरमेन को सूरत की घटना से सीख लेने चाहिए। एसे ही एक अन्य छात्र आनन्द ने भी बताया की दुर्घटना कभी भी हो सकती है औ वो भी अपने कोचिंग संचालक से इस संबध में बात करेगें।

बाइट- अंकित, कोचिंग सेंटर संचालक
बाइट- कमलेश्वर मंमगाई, कोचिंग सेंटर सचालक
बाइट- महीपाल रावत, छात्र
बाइट- आनन्द, छात्र


अग्निशमन विभाग और एमडीडीएम की लापरवाही---

देहरादून शहर में चल रहे सभी कोचिंक सेटरों पर किसी की भी कोई लगाम नही है। कोचिंग सेटर खोलने के लिए कोई मानक तय नही है। कोचिंग सेंटर की कोई अधिकृत परिभाषा नही और ना ही इसके पंजिकरण के लिए कोई अधिकृत सरकारी या गैर सरकार व्यवस्था है। कोचिंग सेटर को आप कहा खोल सकते है कहां नही इसका भी कोई नियम नही है। दरसल कोचिंग सेंटर एक प्रकार का ट्युशन है जो कि आधुनिकता का चोला ओढ़े ट्युशन का बड़ा स्वरुप है। सरकार और सभी प्रशासनिक दायरे से बाहर इन कोचिंग सेंटरो में हर साल हजारों छात्र पढ़ने आते है और करोड़ो का व्यवसाय इन कोचिंग सेंटरों के जरिए चलता है लेकिन इसका हिसाब आपको कही नही मिलेगा। कितने कोचिंग सेंटर नये खुले, कितने पुराने है, कितने फर्जी है और कितने विश्वास के पात्र है इसका भी कोई हिसाब कहीं नही है। देहरादून में कितने कोचिंग सेंटर है इसका केवल आप अंजादा ही लगा सकते हैं और कम से कम मानते हुए भी इन कोचिंग सेटरों की संख्या सैकड़ो में होगी। एक नामी कोचिंग सेंटर चला रहे संचालक के अनुसार देहरादून में तकरीबन छोटे-बड़े सभी कोचिंग सेटर मिला कर 100 से 150 होगें और सभी इसी तरह अधिकतर किराये के काम्पलेक्सों में चल रहे है लेकिन इनकी सुध लेने वाला कोई नही है। देहरादून में हर तरह के भवन निर्माण के लिए मानको को पूरा करने के लिए मसूरी देहरादून प्राधीकरण पूरी तरह से जिम्मेदार है लेकिन सूरत की घटना के बाद जब हमने देहरादून चल रहे सैकड़ो कोचिंग सेंटर को लेकर एमडीडीए से सवाल किया तो उन्होने बात अग्निशमन विभाग के ऊपर डाल दी और कहा कि भवन निर्माण में अग्निशमन विभाग का प्रमाण प्रत्र भी जरुरी है और आग जैसी घटनाओं के लिए अग्निशमन विभाग पूरी तरह से जिम्मेदार है ही। बहरहाल अग्निशमन विभाग से जब हमने इस बारे में पूछा तो उन्होने बाताया कि खास तौर से कोचिंग सेंटर की कोई जानकारी उनके पास नही है क्योकिं कोचिंग सेंटर का कोई आंकड़ा किसी के पास भी उपलब्ध नही है। फायर अधिकारियों का कहना है कि सूरत की घटनाओं को देखते हुए ही विभाग जल्द इस संबध में पूरे शहर में और राज्य में निरिक्षण करवायेगा।


PTC Dheeraj Sajwan




Conclusion:हैरानी इस बात की है कि ये उत्तराखंड में ना जाने कितने कोचिंग सेंटर हैं जो कि सूरत में चल रहे कोचिंग सेंटर की तरह अवैध रुप से चल रहें है। एक अंदाजे के अनुसार केवल देहरादून में इनकी संख्या 150 के करीब हो सकती है। तो एसे में बड़ा सवाल है कि क्या 8x10 के कमरों में नये भारत के निर्माण का सपना पाल रहा छात्र एसे ही सिस्टम की नजरअंदाजी की भेट चढ़ता रहेगा..? 
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