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उत्तराखंड में डिफॉल्टर बिल्डरों का आतंक, जानिए रेरा क्यों नहीं कर पा रहा कार्रवाई - अधिवक्ता चंद्रशेखर तिवारी

उत्तराखंड में डिफॉल्टर बिल्डरों का आतंक देखने को मिल रहा है. रेरा में सैकड़ों की शिकायतें दर्ज हैं, लेकिन रेरा में अधिकारियों और कर्मचारियों की कमी के चलते डिफॉल्टर बिल्डरों के खिलाफ समये से कोर्रवाई नहीं हो पा रही है और न ही वसूली हो पा रही है.

Real Estate Regulatory Authority
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Published : Jan 9, 2021, 9:09 PM IST

Updated : Jan 12, 2021, 3:35 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में फ्लैट-अपार्टमेंट जैसे घर खरीदने का सपना देखने वाले ग्राहकों को गुमराह कर फर्जीवाड़ा करने वाले डिफाल्टर बिल्डरों का आतंक प्रदेश में वर्ष दर वर्ष बढ़ता जा रहा है. देवभूमि की शांत वादियों में आशियाने का सपना संजोए ग्राहकों की गाढ़ी कमाई पर डाका डाल कर जालसाज बिल्डर रेरा कानून से बेपरवाह होकर ठगी के गोरखधंधे का खेल बदस्तूर जारी रखे हुए हैं. आलम यह है कि विगत दो वर्षों की तुलना वर्ष 2020-21 में बिल्डरों के हाथों धोखाधड़ी का शिकार होने वाले पीड़ित ग्राहकों की शिकायत 40 फीसदी बढ़ गई है, लेकिन सरकार की उदासीनता के कारण रेरा प्राधिकरण, मैनपावर और इंफोर्समेंट टीम की किल्लत के चलते डिफाल्टर बिल्डरों पर लगाम कसने में नाकाम साबित हो रहा है.

उत्तराखंड में डिफॉल्टर बिल्डरों का आतंक.

जानकार भी मानते हैं कि उत्तराखंड में राज्य सरकार ने रेरा एक्ट को बिना दांत वाला कानून बना दिया हैं. उधर, रेरा प्राधिकरण में शिकायतों की फाइलें इतनी संख्या में जमा हो रही है कि उसे मैनपावर की कमी के कारण निष्पादन (जजमेंट) तक ले जाना दिन प्रतिदिन मुश्किल होता जा रहा है.

हरिद्वार देहरादून उधम सिंह नगर में सबसे अधिक डिफाल्टर रियल एस्टेट कारोबारी

राज्य में सबसे अधिक रियल एस्टेट प्रोजेक्ट में सीधे-साधे ग्राहकों के साथ धोखाधड़ी करने वाले बिल्डर हरिद्वार, देहरादून और उधम सिंह नगर से है. इन 3 जनपदों के सबसे अधिक सैकड़ों की तादात में शिकायतें रेरा प्राधिकरण में दर्ज है.

शिकायतों में जजमेंट के बावजूद डिफाल्टर बिल्डरों से आर्थिक वसूली ना के बराबर

उत्तराखंड में वर्ष 2017 में रेरा एक्ट अस्तित्व में आने के बाद 28 दिसंबर 2020 तक 766 शिकायतें धोखेबाज बिल्डरों के खिलाफ रेरा प्राधिकरण में दर्ज हो चुकी है, जिसमें से 296 मामलें रेरा एक्ट में लंबित चल रहे हैं. हालांकि, लंबी सुनवाई के उपरांत 470 मामलों का निष्पादन (जजमेंट) भले ही रेरा प्राधिकरण द्वारा किया चुका है, लेकिन इतने निर्णय आने के बावजूद रेरा द्वारा लगाया गया जुर्माना और ग्राहकों के रुपयों की वसूली बिल्डरों से न के बराबर है.

रेरा प्राधिकरण के अधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 28 दिसंबर 2020 तक 48 मुख्य डिफॉल्टर बिल्डरों से 13 करोड़ की वसूली के प्रमाण पत्र (नोटिस) जारी किये गए थे, लेकिन हैरानी की बात है कि मात्र एक करोड़ रुपये ही डिफाल्टर बिल्डरों से वसूल हो सके. ऐसे में रेरा एक्ट के तहत कानूनी लड़ाई लड़ जजमेंट तो आ गया, लेकिन पीड़ितों को अपनी गाढ़ी कमाई का इंसाफ उन धोखेबाज बिल्डरों से वापस नहीं मिल सका. रेरा प्राधिकरण के अध्यक्ष विष्णु कुमार के मुताबिक इसकी सबसे बड़ी वजह जहां एक तरफ रेरा के पास पहले दिन कार्रवाई वाले मैनपावर का भारी कमी है, तो वहीं दूसरी ओर जुर्माना-वसूली के लिए जारी नोटिस में जिला प्रशासन की ओर से इंफोर्समेंट की कार्रवाई में पर्याप्त सहयोग न मिलना भी प्रमुख वजह है.

पढ़ें- उत्तराखंड में कोल और बोफोर्स जैसा घोटाला ! मेनका गांधी का शीप एंड वूल डेवलपमेंट बोर्ड के CEO के खिलाफ CM को पत्र

रेरा प्राधिकरण में इन पदों पर मैनपावर की भारी किल्लत

मार्च 2016 में केंद्र सरकार द्वारा रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण यानी रेरा एक्ट को देश में लागू किया गया था. इस कानून के तहत उन लोगों को इंसाफ दिलाने की कवायद शुरू की गई थी, जो रियल एस्टेट कारोबारियों द्वारा घर प्रॉपर्टी खरीदने का सपना देखने के तहत गाढ़ी कमाई गवा कर धोखेबाजी का शिकार होते हैं. उत्तराखंड में साल 2017 में रेरा प्राधिकरण की स्थापना की गई.

हालांकि, 2018 में ही यहां रेरा अस्तित्व में आया लेकिन सबसे बड़ी हैरानी की बात है कि राज्य सरकार की उदासीनता के चलते पहले दिन से आज तक रेरा प्राधिकरण को सुचारू और प्रभावी रूप से क्रियान्वयन के लिए संसाधन और मैनपावर मुहैया नहीं कराई गई है. इंजीनियर, इंफोर्समेंट टीम, लीगल एडवाइजर, असिस्टेंट अकाउंटेंट और न्याय निर्णायक पदाधिकारी जैसे मुख्य पद अब तक रिक्त चल रहे हैं. इसी मुख्य समस्या के कारण ग्राहकों को इंसाफ दिलाने वाले रेरा एक्ट को उत्तराखंड में प्रभावी रूप से धरातल पर नहीं उतारा जा सका है. रेरा प्राधिकरण अध्यक्ष विष्णु कुमार के मुताबिक मुख्य तौर से प्राधिकरण को संचालित करने के लिए 25 अधिकारी व कर्मचारियों इंफोर्समेंट टीम की आवश्यकता है, लेकिन वर्तमान समय तक आधी संख्या 12 लोग ही कार्यरत है.

रेरा में यह पद है रिक्त

  • न्याय निर्णायक पदाधिकारी
  • इंजीनियर
  • लीगल एडवाइजर
  • असिस्टेंट अकाउंटेंट

सीमित संख्या में रेरा में रजिस्टर्ड है बिल्डर और एजेंट

रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण (रेरा) मुताबिक के राज्य में दिसंबर 2020 तक 300 रियल एस्टेट प्रोजेक्ट रेरा प्राधिकरण में रजिस्टर्ड है. वहीं, फ्लैट और अपार्टमेंट जैसे आशियाने बिकवाने का काम करने वाले 313 एजेंट भी प्राधिकरण में रजिस्टर्ड है. हालांकि, राज्य में देहरादून, हरिद्वार, उधमसिंह नगर सहित अन्य जिलों में भारी संख्या में फ्लैट और अपार्टमेंट जैसे कई प्रोजेक्ट चल रहे हैं, लेकिन उनका रजिस्ट्रेशन रेरा में नहीं है. इसके चलते भी कई ग्राहक बिल्डरों के हाल तो धोखेबाजी का शिकार हो रहे हैं.

पढ़ें- शिवालिक एलिफेंट रिजर्व पर राज्य सरकार को झटका, HC ने खारिज किया नोटिफिकेशन

राज्य सरकार की उदासीनता रेरा एक्ट को कर रही है नाकाम: जानकार

वह इस मामले में कानून के जानकारों से लेकर वरिष्ठ पत्रकारों का भी यह मानना है कि उत्तराखंड में रेरा कानून को प्रभावी रूप से धरातल पर लाने के लिए राज्य सरकार का रवैया अब तक बेहद उदासीन नजर आया है. ऐसे में साल दर साल देवभूमि में रियल एस्टेट बिल्डरों के हाथों गाढ़ी कमाई गंवाकर धोखाधड़ी का शिकार होने वाले माफियाओं की चांदी कट रही है. वहीं, दूसरी ओर घर खरीदने का सपना देखने वाले ग्राहकों की जिंदगी भर की कमाई डूब रही है. जब तक राज्य सरकार रेरा प्राधिकरण को पर्याप्त संसाधन मेन पावर और इंफोर्समेंट टीम मुहैया नहीं कराती तब तक डिफाल्टर बिल्डरों पर शिकंजा नहीं कसा जा सकता. ऐसे में देश में रेरा एक्ट लागू होना बेमानी सा नजर आता है.

रियल एस्टेट कारोबारी द्वारा फ्लैट अपार्टमेंट प्रॉपर्टी खरीदते वक्त ग्राहक इन बातों का रखें ध्यान

रेरा में रजिस्टर्ड प्रोजेक्ट से प्रॉपर्टी खरीदें. रेरा में रजिस्टर्ड बिल्डर का बॉन्ड और एग्रीमेंट ड्राफ्ट अप्रूव्ड होता हैं, उसी एग्रीमेंट ड्राफ्ट पर खरीद फरोख्त करके साइन करें. कई बार बिल्डर गलत एग्रीमेंट पर साइन करा देते हैं.

देहरादून: उत्तराखंड में फ्लैट-अपार्टमेंट जैसे घर खरीदने का सपना देखने वाले ग्राहकों को गुमराह कर फर्जीवाड़ा करने वाले डिफाल्टर बिल्डरों का आतंक प्रदेश में वर्ष दर वर्ष बढ़ता जा रहा है. देवभूमि की शांत वादियों में आशियाने का सपना संजोए ग्राहकों की गाढ़ी कमाई पर डाका डाल कर जालसाज बिल्डर रेरा कानून से बेपरवाह होकर ठगी के गोरखधंधे का खेल बदस्तूर जारी रखे हुए हैं. आलम यह है कि विगत दो वर्षों की तुलना वर्ष 2020-21 में बिल्डरों के हाथों धोखाधड़ी का शिकार होने वाले पीड़ित ग्राहकों की शिकायत 40 फीसदी बढ़ गई है, लेकिन सरकार की उदासीनता के कारण रेरा प्राधिकरण, मैनपावर और इंफोर्समेंट टीम की किल्लत के चलते डिफाल्टर बिल्डरों पर लगाम कसने में नाकाम साबित हो रहा है.

उत्तराखंड में डिफॉल्टर बिल्डरों का आतंक.

जानकार भी मानते हैं कि उत्तराखंड में राज्य सरकार ने रेरा एक्ट को बिना दांत वाला कानून बना दिया हैं. उधर, रेरा प्राधिकरण में शिकायतों की फाइलें इतनी संख्या में जमा हो रही है कि उसे मैनपावर की कमी के कारण निष्पादन (जजमेंट) तक ले जाना दिन प्रतिदिन मुश्किल होता जा रहा है.

हरिद्वार देहरादून उधम सिंह नगर में सबसे अधिक डिफाल्टर रियल एस्टेट कारोबारी

राज्य में सबसे अधिक रियल एस्टेट प्रोजेक्ट में सीधे-साधे ग्राहकों के साथ धोखाधड़ी करने वाले बिल्डर हरिद्वार, देहरादून और उधम सिंह नगर से है. इन 3 जनपदों के सबसे अधिक सैकड़ों की तादात में शिकायतें रेरा प्राधिकरण में दर्ज है.

शिकायतों में जजमेंट के बावजूद डिफाल्टर बिल्डरों से आर्थिक वसूली ना के बराबर

उत्तराखंड में वर्ष 2017 में रेरा एक्ट अस्तित्व में आने के बाद 28 दिसंबर 2020 तक 766 शिकायतें धोखेबाज बिल्डरों के खिलाफ रेरा प्राधिकरण में दर्ज हो चुकी है, जिसमें से 296 मामलें रेरा एक्ट में लंबित चल रहे हैं. हालांकि, लंबी सुनवाई के उपरांत 470 मामलों का निष्पादन (जजमेंट) भले ही रेरा प्राधिकरण द्वारा किया चुका है, लेकिन इतने निर्णय आने के बावजूद रेरा द्वारा लगाया गया जुर्माना और ग्राहकों के रुपयों की वसूली बिल्डरों से न के बराबर है.

रेरा प्राधिकरण के अधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 28 दिसंबर 2020 तक 48 मुख्य डिफॉल्टर बिल्डरों से 13 करोड़ की वसूली के प्रमाण पत्र (नोटिस) जारी किये गए थे, लेकिन हैरानी की बात है कि मात्र एक करोड़ रुपये ही डिफाल्टर बिल्डरों से वसूल हो सके. ऐसे में रेरा एक्ट के तहत कानूनी लड़ाई लड़ जजमेंट तो आ गया, लेकिन पीड़ितों को अपनी गाढ़ी कमाई का इंसाफ उन धोखेबाज बिल्डरों से वापस नहीं मिल सका. रेरा प्राधिकरण के अध्यक्ष विष्णु कुमार के मुताबिक इसकी सबसे बड़ी वजह जहां एक तरफ रेरा के पास पहले दिन कार्रवाई वाले मैनपावर का भारी कमी है, तो वहीं दूसरी ओर जुर्माना-वसूली के लिए जारी नोटिस में जिला प्रशासन की ओर से इंफोर्समेंट की कार्रवाई में पर्याप्त सहयोग न मिलना भी प्रमुख वजह है.

पढ़ें- उत्तराखंड में कोल और बोफोर्स जैसा घोटाला ! मेनका गांधी का शीप एंड वूल डेवलपमेंट बोर्ड के CEO के खिलाफ CM को पत्र

रेरा प्राधिकरण में इन पदों पर मैनपावर की भारी किल्लत

मार्च 2016 में केंद्र सरकार द्वारा रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण यानी रेरा एक्ट को देश में लागू किया गया था. इस कानून के तहत उन लोगों को इंसाफ दिलाने की कवायद शुरू की गई थी, जो रियल एस्टेट कारोबारियों द्वारा घर प्रॉपर्टी खरीदने का सपना देखने के तहत गाढ़ी कमाई गवा कर धोखेबाजी का शिकार होते हैं. उत्तराखंड में साल 2017 में रेरा प्राधिकरण की स्थापना की गई.

हालांकि, 2018 में ही यहां रेरा अस्तित्व में आया लेकिन सबसे बड़ी हैरानी की बात है कि राज्य सरकार की उदासीनता के चलते पहले दिन से आज तक रेरा प्राधिकरण को सुचारू और प्रभावी रूप से क्रियान्वयन के लिए संसाधन और मैनपावर मुहैया नहीं कराई गई है. इंजीनियर, इंफोर्समेंट टीम, लीगल एडवाइजर, असिस्टेंट अकाउंटेंट और न्याय निर्णायक पदाधिकारी जैसे मुख्य पद अब तक रिक्त चल रहे हैं. इसी मुख्य समस्या के कारण ग्राहकों को इंसाफ दिलाने वाले रेरा एक्ट को उत्तराखंड में प्रभावी रूप से धरातल पर नहीं उतारा जा सका है. रेरा प्राधिकरण अध्यक्ष विष्णु कुमार के मुताबिक मुख्य तौर से प्राधिकरण को संचालित करने के लिए 25 अधिकारी व कर्मचारियों इंफोर्समेंट टीम की आवश्यकता है, लेकिन वर्तमान समय तक आधी संख्या 12 लोग ही कार्यरत है.

रेरा में यह पद है रिक्त

  • न्याय निर्णायक पदाधिकारी
  • इंजीनियर
  • लीगल एडवाइजर
  • असिस्टेंट अकाउंटेंट

सीमित संख्या में रेरा में रजिस्टर्ड है बिल्डर और एजेंट

रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण (रेरा) मुताबिक के राज्य में दिसंबर 2020 तक 300 रियल एस्टेट प्रोजेक्ट रेरा प्राधिकरण में रजिस्टर्ड है. वहीं, फ्लैट और अपार्टमेंट जैसे आशियाने बिकवाने का काम करने वाले 313 एजेंट भी प्राधिकरण में रजिस्टर्ड है. हालांकि, राज्य में देहरादून, हरिद्वार, उधमसिंह नगर सहित अन्य जिलों में भारी संख्या में फ्लैट और अपार्टमेंट जैसे कई प्रोजेक्ट चल रहे हैं, लेकिन उनका रजिस्ट्रेशन रेरा में नहीं है. इसके चलते भी कई ग्राहक बिल्डरों के हाल तो धोखेबाजी का शिकार हो रहे हैं.

पढ़ें- शिवालिक एलिफेंट रिजर्व पर राज्य सरकार को झटका, HC ने खारिज किया नोटिफिकेशन

राज्य सरकार की उदासीनता रेरा एक्ट को कर रही है नाकाम: जानकार

वह इस मामले में कानून के जानकारों से लेकर वरिष्ठ पत्रकारों का भी यह मानना है कि उत्तराखंड में रेरा कानून को प्रभावी रूप से धरातल पर लाने के लिए राज्य सरकार का रवैया अब तक बेहद उदासीन नजर आया है. ऐसे में साल दर साल देवभूमि में रियल एस्टेट बिल्डरों के हाथों गाढ़ी कमाई गंवाकर धोखाधड़ी का शिकार होने वाले माफियाओं की चांदी कट रही है. वहीं, दूसरी ओर घर खरीदने का सपना देखने वाले ग्राहकों की जिंदगी भर की कमाई डूब रही है. जब तक राज्य सरकार रेरा प्राधिकरण को पर्याप्त संसाधन मेन पावर और इंफोर्समेंट टीम मुहैया नहीं कराती तब तक डिफाल्टर बिल्डरों पर शिकंजा नहीं कसा जा सकता. ऐसे में देश में रेरा एक्ट लागू होना बेमानी सा नजर आता है.

रियल एस्टेट कारोबारी द्वारा फ्लैट अपार्टमेंट प्रॉपर्टी खरीदते वक्त ग्राहक इन बातों का रखें ध्यान

रेरा में रजिस्टर्ड प्रोजेक्ट से प्रॉपर्टी खरीदें. रेरा में रजिस्टर्ड बिल्डर का बॉन्ड और एग्रीमेंट ड्राफ्ट अप्रूव्ड होता हैं, उसी एग्रीमेंट ड्राफ्ट पर खरीद फरोख्त करके साइन करें. कई बार बिल्डर गलत एग्रीमेंट पर साइन करा देते हैं.

Last Updated : Jan 12, 2021, 3:35 PM IST
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