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ऐतिहासिक है विकासनगर का बाढ़वाला गांव, भगवान राम से जुड़ती हैं कड़ियां, अश्वमेध यज्ञ से भी है कनेक्शन

विकासनगर का बाढ़वाला गांव को अश्वमेध यज्ञ स्थल कहा जाता है. यहां पर तीन यज्ञ वेदिकाओं के अवशेष भी हैं. जिसे देखने के लिए इतिहास में रूचि रखने वाले छात्र आते हैं. माना जाता है कि यहां पर राम के पूर्वज राजा अमरीश ने कई यज्ञ किए थे. Ashvamedha Yagya

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Dec 2, 2023, 5:00 AM IST

Updated : Dec 2, 2023, 6:45 AM IST

राम के पूर्वज राजा अमरीश ने किया था यज्ञ

विकासनगर: कहा जाता है कि श्री कृष्ण ने मथुरा छोड़ने के बाद द्वारका को अपना नया घर बनाया था. कुछ वर्षों पहले द्वारका शहर के कुछ अवशेष नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ ओसियनोग्राफी को समुद्र से मिल थे. ऐसा ही एक बाढ़वाला गांव है, जिसको प्राचीन काल में जगत ग्राम कहा जाता था. यहां पर ऐतिहासिक पर्यटन स्थल अश्वमेध यज्ञ है, जो कि अभी पुरातत्व विभाग की देखरेख में है. इतिहास के जानकारों का कहना है कि यह क्षेत्र काफी समृद्धशाली था और यहां पर तीसरी शताब्दी की गरुड़ के आकार की तीन यज्ञ वेदिकाओं के अवशेष हैं. जिसे देखने के लिए इतिहास में रूचि रखने वाले छात्र आते हैं. साथ ही पर्यटकों का आवागमन भी लगा रहता है.

Ashvamedha Yagya
बाढ़वाला गांव में हुआ था अश्वमेध यज्ञ

राजा शीलवर्मन ने जगत ग्राम में किया था अश्वमेध यज्ञ: इतिहासकार श्रीचंद शर्मा बताते हैं कि बाढ़वाला को प्राचीन काल में जगत ग्राम बोला गया है, जहां राजा शीलवर्मन ने अश्वमेध यज्ञ किया था. साथ ही महाभारत के सभापर्व में लिखा है कि जो राम के पूर्वज राजा अमरीश हुए थे, उन्होंने भी इस क्षेत्र में यज्ञ किए हैं. इसके अलावा कई और भी यज्ञ हुए हैं. वहीं, पाकिस्तान के मद्र देश शेर कोट और सियालकोट के राजा उशीनर ने भी इस क्षेत्र में बड़ा यज्ञ किया था, लेकिन इतिहासकार और पुरातत्व विभाग भी इसको खोज नहीं पाए कि वह स्थान हरिपुर का यमुना तट है या लाखामंडल का यमुनातट है.

जगत ग्राम में सिक्कों का होता था चलन: जगत ग्राम उत्तर भारत का एकमात्र ऐसा ग्राम था, जहां सोने के सिक्कों का चलन होता था. यज्ञ करने के लिए आचार्य अयोध्या से आए ऐसा भी प्रमाण है. यहां के स्थानीय ब्राह्मणों ने भी उपआचार्य के रूप में भूमिका निभाई थी. यह स्थान भारत के लिए ही नहीं विश्व के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है.
ये भी पढ़ें: उत्तराखंड के इस मंदिर में जाने से 7 जन्मों के पापों से मिलती है मुक्ति, जानें इतिहास

क्या है अश्वमेध यज्ञ: प्राचीनकाल में कोई भी चक्रवर्ती राजा अश्वमेध यज्ञ करता था. जिसमें देवयज्ञ करने के बाद घोड़े की पूजा करके घोड़े के माथे पर जयपत्र बांधकर उसके पीछे सेना को छोड़ दिया जाता था.
ये भी पढ़ें: Geeta Sar : योगीजन ब्रह्म की प्राप्ति के लिए शास्त्रीय विधि के अनुसार यज्ञ,दान तथा तप की समस्त क्रियाओं का शुभारम्भ सदैव...

राम के पूर्वज राजा अमरीश ने किया था यज्ञ

विकासनगर: कहा जाता है कि श्री कृष्ण ने मथुरा छोड़ने के बाद द्वारका को अपना नया घर बनाया था. कुछ वर्षों पहले द्वारका शहर के कुछ अवशेष नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ ओसियनोग्राफी को समुद्र से मिल थे. ऐसा ही एक बाढ़वाला गांव है, जिसको प्राचीन काल में जगत ग्राम कहा जाता था. यहां पर ऐतिहासिक पर्यटन स्थल अश्वमेध यज्ञ है, जो कि अभी पुरातत्व विभाग की देखरेख में है. इतिहास के जानकारों का कहना है कि यह क्षेत्र काफी समृद्धशाली था और यहां पर तीसरी शताब्दी की गरुड़ के आकार की तीन यज्ञ वेदिकाओं के अवशेष हैं. जिसे देखने के लिए इतिहास में रूचि रखने वाले छात्र आते हैं. साथ ही पर्यटकों का आवागमन भी लगा रहता है.

Ashvamedha Yagya
बाढ़वाला गांव में हुआ था अश्वमेध यज्ञ

राजा शीलवर्मन ने जगत ग्राम में किया था अश्वमेध यज्ञ: इतिहासकार श्रीचंद शर्मा बताते हैं कि बाढ़वाला को प्राचीन काल में जगत ग्राम बोला गया है, जहां राजा शीलवर्मन ने अश्वमेध यज्ञ किया था. साथ ही महाभारत के सभापर्व में लिखा है कि जो राम के पूर्वज राजा अमरीश हुए थे, उन्होंने भी इस क्षेत्र में यज्ञ किए हैं. इसके अलावा कई और भी यज्ञ हुए हैं. वहीं, पाकिस्तान के मद्र देश शेर कोट और सियालकोट के राजा उशीनर ने भी इस क्षेत्र में बड़ा यज्ञ किया था, लेकिन इतिहासकार और पुरातत्व विभाग भी इसको खोज नहीं पाए कि वह स्थान हरिपुर का यमुना तट है या लाखामंडल का यमुनातट है.

जगत ग्राम में सिक्कों का होता था चलन: जगत ग्राम उत्तर भारत का एकमात्र ऐसा ग्राम था, जहां सोने के सिक्कों का चलन होता था. यज्ञ करने के लिए आचार्य अयोध्या से आए ऐसा भी प्रमाण है. यहां के स्थानीय ब्राह्मणों ने भी उपआचार्य के रूप में भूमिका निभाई थी. यह स्थान भारत के लिए ही नहीं विश्व के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है.
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क्या है अश्वमेध यज्ञ: प्राचीनकाल में कोई भी चक्रवर्ती राजा अश्वमेध यज्ञ करता था. जिसमें देवयज्ञ करने के बाद घोड़े की पूजा करके घोड़े के माथे पर जयपत्र बांधकर उसके पीछे सेना को छोड़ दिया जाता था.
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Last Updated : Dec 2, 2023, 6:45 AM IST
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