देहरादून: राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी ने भी लोगों को इगास पर्व की बधाई दी है. उत्तराखंड के लोक पर्वों, त्योहारों से प्रवासियों को जोड़ने के उद्देश्य से राज्यसभा सदस्य अनिल बलूनी निरंतर प्रयास कर रहे हैं. अनिल बलूनी इगास से प्रवासियों को जोड़ने की मुहिम शुरू की है, उनकी यह मुहिम रंग ला रही है. वहीं अनिल बलूनी ने इगास पर्व की पूर्व संध्या पर देव प्रयाग संगम पर विश लाइट को आसमान में छोड़ा. साथ ही उन्होंने प्रदेश की खुशहाली की कामना की.
राज्यसभा सांसद बलूनी ने वर्ष 2018 में उत्तराखंड वासियों व प्रवासियों से ईगास पर्व अपने पैतृक गांव में मनाए जाने की अपील की थी. तब से अब तक वो इस मुहिम को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं. वहीं अनिल बलूनी ने इगास पर्व की पूर्व संध्या पर देव प्रयाग संगम पर विश लाइट को आसमान में छोड़ा. साथ ही सोशल मीडिया पर वीडियो शेयर करते हुए उन्होंने कहा कि वो भगवान से प्रार्थना करते हैं कि इस इगास पर्व से समृद्धि आए, उत्तराखंड विकास के पथ पर आगे बढ़े, उत्तराखंड खुशहाल हो, उत्तराखंड में जितनी समस्याएं हैं उनका निवारण हो, ऐसी कामना करते हैं. साथ ही उन्होंने विश लाइट को आसमान में छोड़ा.
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उत्तराखंड में बग्वाल, इगास मनाने की परंपरा है. दीपावली को यहां बग्वाल कहा जाता है, जबकि बग्वाल के 11 दिन बाद एक और दीपावली मनाई जाती है, जिसे इगास कहते हैं. पहाड़ की लोक संस्कृति से जुड़े इगास पर्व के दिन घरों की साफ-सफाई के बाद मीठे पकवान बनाए जाते हैं और देवी-देवताओं की पूजा की जाती है.
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क्या है इगास पर्वः उत्तराखंड में बग्वाल, इगास मनाने की परंपरा है. दीपावली को यहां बग्वाल कहा जाता है, जबकि बग्वाल के 11 दिन बाद एक और दीपावली मनाई जाती है, जिसे इगास कहते हैं. पहाड़ की लोक संस्कृति से जुड़े इगास पर्व के दिन घरों की साफ-सफाई के बाद मीठे पकवान बनाए जाते हैं और देवी-देवताओं की पूजा की जाती है. साथ ही गाय व बैलों की पूजा की जाती है. शाम के वक्त गांव के किसी खाली खेत अथवा खलिहान में नृत्य के भैलो खेला जाता है. भैलो एक प्रकार की मशाल होती है, जिसे नृत्य के दौरान घुमाया जाता है. इगास पर पटाखों का प्रयोग नहीं किया जाता है.