देहरादून: तीर्थनगरी ऋषिकेश में अंकिता भंडारी हत्याकांड (Ankita bhandari murder case) के बाद एक बार फिर राजस्व पुलिस व्यवस्था की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े होने शुरू हो गए हैं. ऐसे में बार भी राजस्व क्षेत्रों में रेगुलर पुलिस की मांग जोर पकड़ती नजर आ रही है. यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि अंकिता के गायब होने के 6 दिन तक राजस्व पुलिस में मुकदमा दर्ज होने के बावजूद भी कोई छानबीन या प्रभावी कार्रवाई नहीं कर सकी. जबकि, यह केस रेगुलर पुलिस को हैंडओवर होते ही एक दिन में वर्कआउट हो गया और इस मामले में तीन आरोपियों की गिरफ्तारी भी हो गई.
यह कोई पहला मामला नहीं है. इससे पहले भी राजस्व पुलिस क्षेत्र में कई अपराधों को वर्कआउट न होने के चलते उसे सिविल पुलिस को ट्रांसफर किया गया है. राजस्व क्षेत्रों में दुष्कर्म-हत्या जैसे अपराध समाने आते रहते हैं, जिन्हें वर्कआउट तो करना दूर राजस्व पुलिस इनकी जांच-पड़ताल तक भी नहीं कर सकी है. यही कारण रहा कि कई मामलों में समय रहते कानूनी कार्रवाई न होने के चलते अपराधी बचकर निकल जाते हैं.
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हाईकोर्ट के आदेश और पुलिस मुख्यालय के प्रस्ताव पर आज तक शासन ने नहीं लिया संज्ञान: उत्तराखंड के पर्वतीय राजस्व क्षेत्रों में आज भी 1861 से चली आ रही ब्रिटिश कालीन राजस्व पुलिस व्यवस्था कायम है. लिहाजा, पटवारी के पास न तो कोई ऐसा प्रशिक्षण या संसाधन है. जिसके चलते वह गंभीर अपराधों को वर्कआउट कर सके. जिसकी उपयोगिता आज की पुलिसिंग में है. यही वजह है कि लंबे समय से उत्तराखंड में राजस्व पुलिस क्षेत्र को रेगुलर पुलिस में देने की मांग जोर पकड़ रही है.
वहीं, यह मामला लंबे समय से शासन में अटका हुआ है. साल 2013 में हाईकोर्ट ने राज्य के अधिकांश राजस्व पुलिस क्षेत्र को 6 महीने के भीतर रेगुलर पुलिस क्षेत्र में बदलने के आदेश दिए थे. लेकिन इसके बावजूद यह कार्य आज तक शासन से नहीं किया गया. जबकि, दूसरी तरफ कोर्ट के आदेश के बाद उत्तराखंड पुलिस मुख्यालय ने भी राज्य सरकार से अनुरोध कर बिना किसी बजट और संसाधन को ना बढ़ाते हुए स्वेच्छा अनुसार राजस्व क्षेत्रों को रेगुलर पुलिस अधिकार में लेने की इच्छा जाहिर की थी. जिससे मैदानी क्षेत्रों की तरह ही पहाड़ी क्षेत्रों में भी लगातार बढ़ने वाले अपराधों पर अंकुश लगाया जा सके.
क्या है राजस्व पुलिस व्यवस्था: ब्रिटिश शासन काल में साल 1861 में उत्तराखंड पर्वतीय ग्रामीण इलाकों में कानून व्यवस्था के लिए अंग्रेजों द्वारा राजस्व पुलिस की व्यवस्था लागू की गई थी. राजस्व पुलिस प्रणाली में प्रत्येक तहसील पर तैनात नायब तहसीलदार को कानूनगो और पटवारी रिपोर्ट करते हैं. पटवारी के साथ एक चपरासी और एक होमगार्ड या पीआरडी जवान पूरे क्षेत्र के जमीन और आपराधिक मामलों को देखता है. पुराने समय से चली आ रही व्यवस्था के चलते पटवारी के पास आज भी न तो हथियार होता है और न ही वाहन या किसी अन्य तरह के संसाधन. राजस्व पुलिस केवल 2 से 3 लोग केवल लाठी के सहारे की 20 से 30 गांवों की एक पट्टी की जिम्मेदारी सभांलते हैं.
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उत्तराखंड के 60 फीसदी भू-भाग राजस्व पुलिस क्षेत्र: उत्तराखंड में राजस्व पुलिस के अधीन 60 फीसदी क्षेत्र आता है और बाकी 40 फीसदी भू-भाग पर नियमित पुलिस कानून व्यवस्था पर नियंत्रण रखती है. उत्तराखंड राज्य में कुल 1216 राजस्व उपनिरिक्षक क्षेत्र हैं. प्रत्येक राजस्व क्षेत्र के अंतर्गत 20 से 30 गांव की एक पट्टी है. राज्य में सबसे ज्यादा 234 पटवारी पौड़ी जिले में हैं. वहीं, अल्मोड़ा में 211, टिहरी में 183, पिथौरागढ़ में 144, उत्तरकाशी में 96, चमोली में 74, चंपावत में 68, रुद्रप्रयाग में 52 और देहरादून में 39 पटवारी शामिल हैं.
वहीं, हरिद्वार और उधम सिंह नगर में बदलाव हुआ और पटवारी की जगह नियमित पुलिस ले चुकी है और अब पटवारी लेखपाल के रूप में कार्यरत हैं. हालांकि, इसमें कोई दो राय नहीं है कि अपने समय में राजस्व पुलिस व्यवस्था सफल थी, लेकिन समय के साथ जो बदलाव हुए हैं और अपराधों में जिस तरह की तेज आ रही है. वहां यह व्यवस्था अब गुजरे जमाने की बात हो गई है. बिना संसाधनों के आज अपराधों में अकुंश लगाना दूर की कौड़ी नजर आता है.
साल 2011 में टिहरी जनपद के गांव में हुई दहेज हत्या के मामले में राजस्व पुलिस के नाकारापन के बावजूद भी ये व्यवस्था उसी ढर्रे पर जारी है. हाइकोर्ट का राजस्व पुलिस को हटाने का आदेश साल 2013 की आपदा के दौरान राजस्व पुलिस के फेलियर को देखते दिये थे. साथ ही कोर्ट ने 6 महीने के भीतर पूरे राज्य से राजस्व पुलिस के बदले नियमित पुलिस को तैनात करने का आदेश भी सुनाया. हालांकि, हाई कोर्ट के इस आदेश के बाद उत्तराखंड गृह विभाग ने अतिरिक्त आर्थिक बोझ का हवाला देते हुए अपने हाथ पीछे खींच लिये. साथ ही हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले गए.