देहरादून: पहाड़ी टोपी, भगवा जैकेट पहनकर आज पुष्कर धामी ने प्रदेश के 11वें मुख्यमंत्री की शपथ ली. इस दौरान पुष्कर धामी के साथ उनके 11 मंत्रियों ने भी शपथ ली. सुबह से चल रही नाराजगी की खबरें, दल-बदल और तमाम तरह की स्थितियों को मैनेज करते हुए पहले ही दिन पुष्कर धामी ने सभी को साधते हुए एकजुटता का संदेश दिया.
पार्टी और सरकार में सांमजस्य बैठाने के लिए धामी ने तीरथ की टीम इलेवन पर ही भरोसा जताया, इतना ही नहीं सभी को खुश करते हुए उन्होंने तीनों राज्यमंत्रियों के कद को देखते हुए प्रमोट कर कैबिनेट मंत्री बना दिया. इससे उन्होंने पहले ही दिन मास्टर स्ट्रोक खेलते हुए फिलहाल सभी समीकरणों को साध लिया है. ऐसे में अब धामी आने वाले दिनों में अपने 11 मंत्रियों से 2022 के समीकरण को साधने की कोशिश करेंगे.
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जिसके लिए उनके पास समय बहुत कम है. राजनीतिक जानकारों का मानन है कि अगर धामी इन आने वाले महीनों में अगर अपना करिश्मा दिखा देते हैं तो आने वाले सालों में धामी उत्तराखंड के धाकड़ नेताओं में शामिल हो जाएंगे. इस छोटे से कार्यकाल में पुष्कर धामी के पास करने के लिए बहुत कुछ है, लेकिन समय कम है. सबसे पहले पुष्कर धामी के सामने सबसे पहली चुनौती पार्टी में सभी को साथ लेकर चलने की है. पार्टी में तमाम बड़े नेताओं मौजूदगी उनके लिए परेशानी खड़ी कर सकती है. इन सबके बीच सामंजस्य बिठाना उनके लिए बड़ी चुनौती होगा.
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2022 में जब उत्तराखंड बीजेपी विधानसभा का चुनाव लड़ेगी तो नेतृत्व पुष्कर धामी ही करेंगे. इस बार पार्टी ने 60+ का नारा भी दे दिया है. जिसके बाद से ही पुष्कर धामी की चुनौतियां बढ़ गई हैं. प्रदेश में विकास, पलायन, रोजगार, स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर भी चुनौतियां धामी के सामने खड़ी होंगी. ऐसे में धामी अपनी ड्रीम 11 के साथ 2022 के समीकरणों को साधने की कोशिश में कितने कामयाब होंगे, ये तो आने वाले दिनों में उनकी कार्य-कुशलता से पता चलेगा. वे किस तरह से योजनाओं का क्रियान्नवयन करते हैं, इस पर भी सबकी नजरें होंगी.
पुष्कर सिंह धामी के सामने चुनौतियां
- कोरोना काल में चारधाम यात्रा कोरोना संक्रमण के कारण अभी शुरू नहीं हो पाई है. तीरथ सरकार ने एक जुलाई से तीन जिलों के लिए यात्रा खोलने का निर्णय लिया था, लेकिन मामला अदालत में पहुंच गया. तीरथ सरकार इस प्रकरण में हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का निश्चय किया. ऐसे में अब इसे लेकर धामी सरकार पर सबकी नजरें टिकी रहेंगी, क्योंकि इससे राज्य की आर्थिकी के साथ ही व्यापार, पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा. धामी की इस पर नजरिया बहुत कुछ बदल सकता है.
- पुष्कर धामी के लिए आने वाले दिनों मे देवस्थानम बोर्ड बड़ी चुनौती बन सकता है. त्रिवेंद्र सरकार में बने उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम पर तीरथ सरकार ने एक फैसला लिया था. जिसमें 51 मंदिरों को हटाया गया था. मगर इसबके बावजूद ही पंडा समाज इसे निरस्त करने की मांग पर अड़ा है. ऐसे में धामी इस पर क्या रुख लेते हैं, ये भी आने वाले दिनों में देखने वाली बात होगी.
- पुष्कर धामी के लिए आने वाले दिनों में सरकार और संगठन में सामंजस्य बिठाना बड़ी चुनौती होगा. बिना इसके उनके लिए कुछ भी कर पाना मुश्किल होगा. सरकार में नेताओं की नाराजगी, संगठन में तालमेल बिठाते हुए धामी को आगामी विधानसभा चुनाव के लिए एक फुलप्रुफ प्लान तैयार करना होगा, जो कि उनकी आगे की राजनीति को साधेगा.
- उत्तराखंड में विपक्ष लगातार जनता के मुद्दों को उठाते हुए हमलावर है. पिछले कुछ दिनों से पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत लगातार सरकार को घेरने में लगे हैं. प्रदेश में जनता की नाराज़गी और शासन में लगातार अस्थिरता कांग्रेस के लिएं संजीवनी साबित हो रहा है, जो आने वाले दिनों में धामी की परेशानियों को बढ़ा सकता है. ऐसे में विपक्ष के तेवर को समझते हुए अपनी रणनीति तय करना भी धामी सरकार के लिए चुनौती होगी.
- प्रदेश में बेलगाम होती नौकरशाही पर लगाम लगाते हुए धरातल की असली हकीकत को समझते हुए योजनाओं को बनाकर अपनी टीम के साथ उनको जमीन पर उतारना भी धामी की बड़ी चुनौती है. अगर वे ऐसा कर पाते हैं तो वे इससे सीधे जनता से जुड़ सकते हैं. जिसका उन्हें 2022 के विधानसभा चुनाव में फायदा मिल सकता है. इसके साथ ही ही नौकरशाही के अनुभव का सहयोग लेकर तकनीकी चीजों को जल्द से जल्द समझ कर उन पर तेजी से काम करना भी धामी के लिए जरुरी होगा.
- उत्तराखंड की सियासत में गढ़वाल और कुमाऊं के बीच सियासी वर्चस्व की आजमाइश होती रहती है. ऐसे में सीएम धाम के सामेन गढ़वाल और कुमाऊं के बीच के बीच क्षेत्रीय संतुलन को साधने की चुनौती भी होगी. सीएम खुद कुमाऊं से हैं, ऐसे में उन्हें गढ़वाल के नेताओं, लोगों के साथ बैलेंस बनाकर चलना होगा.
- धामी के सामने पार्टी में जान फूंकने, जनता में फैले असंतोष को दूर करने, उनकी उम्मीदों पर खरा उतरने और पार्टी के प्रति खोया हुआ विश्वास पैदा करने की भी चुनौती होगी.
- इसके अलावा प्रदेश में रुके हुए विकास को गति देना भी अहम होगा. कोरोना संक्रमण के कारण प्रदेश की आर्थिकी पूरी तरह से बिगड़ चुकी है. जिससे प्रदेश में बेराजगारी बढ़ी है. विकास की गति बढ़ाने के लिए नई सरकार को नई रणनीति के साथ आगे बढ़ना होगा. गढ़वाल और कुमाऊं के बीच संतुलन बैठाकर सबका साथ सबका विकास पर जोर देना होगा.
- कर्मचारी वर्ग की समस्याएं , कृषि कानूनों को लेकर मैदानी क्षेत्र के किसानों की नाराजगी, देश के विभिन्न हिस्सों से गांव लौटे प्रवासियों के अलावा अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग के लिए योजनाएं तैयार करना भी बड़ी चुनौती है.
- प्रदेश में चुनावी साल है तो अब तक चल रही विकास योजनाओं की गति बढ़ाने के साथ ही नई योजनाओं के चयन को लेकर भी धामी को खास सतर्कता बरतनी पड़ेगी. केंद्र सरकार के सहयोग से चल रही योजनाओं की रफ्तार न सिर्फ बढ़ानी होगी, बल्कि नई योजनाएं भी सीचना होगा. प्रदेश में डबल इंजन की सही रफ्तार दिखानी होगी..
7 महीने के छोटे कार्यकाल में धामी के सामने पिछले सालों के विकासकार्यों को गिनाने की चुनौती, नेतृत्व परिवर्तन के बाद प्रदेश की जनता में नाराजगी को दूर करने के साथ ही कम समय में ज्यादा काम करने की दबाव होगा. जिसमें उनकी टीम 11 उनका साथ देगी. जिसके साथ मिलकर वे 2022 की राह में आने वाली सभी परेशानियों से पार पाने की कोशिश करेंगे.