देहरादून: उत्तराखंड में भाजपा ने सोमवार को प्रदेश की कमान एक बार फिर से पुष्कर सिंह धामी को देने का फैसला किया है. उत्तराखंड से दिल्ली तक सीएम पद के दावेदार दौड़ लगाते रहे. लेकिन उसके अंतिम समय तक भी भाजपा हाईकमान ने मुख्यमंत्री के नाम पर संशय बनाए रखा. हालांकि इस बीच में कई विधायकों ने पुष्कर सिंह धामी के नाम की पैरवी भी की. साथ ही आम जनता भी धामी को सीएम बनाने की मांग करती रही.
10 दिनों के संशय के बाद उत्तराखंड पहुंचे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और सह पर्यवेक्षक मीनाक्षी लेखी ने भाजपा मुख्यालय में विधानमंडल की बैठक कर एक बार फिर पुष्कर सिंह धामी के नाम की घोषणा मुख्यमंत्री के लिए की. आइए जानते हैं कि आखिर क्यों भाजपा हाईकमान ने धाकड़ धामी पर दोबारा जताया विश्वास. वरिष्ठ पत्रकार भागीरथ शर्मा का कहना है कि भाजपा ने उत्तराखंड में युवा सरकार 60 पार के नारे के साथ ही चुनाव लड़ा था. इसके साथ ही चुनाव में धामी के 6 माह के कार्यकाल में हुए कार्यों को लेकर भी भाजपा जनता के बीच में गई थी.
अल्मोड़ा रैली के दौरान पीएम मोदी ने भी स्वयं जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि आप भाजपा की सरकार दीजिए, उसके बाद आपको सीएम के रूप में धामी को देंगे. वहीं धामी की जनता के बीच जो छवि बनी थी, वह भी उनके दोबारा काम आई. साथ ही उनके भाजयुमो के कार्यकाल और पूर्व में भगत सिंह कोश्यारी के ओएसडी रहने के अनुभव का लाभ भी मिला.
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भागीरथ शर्मा ने कहा कि जिस प्रकार से भाजपा में मुख्यमंत्री के दावेदारों की एक लंबी फेहरिस्त बन गई थी, उससे भी भाजपा हाईकमान के सामने यह मुश्किल थी कि अगर इस लंबी फेहरिस्त में किसी एक के नाम पर भाजपा मुहर लगाती हैं तो इससे पार्टी में जोड़ तोड़ का सामना करना पड़ सकता है. इन दावेदारों की लंबी फेहरिस्त का भी धामी को फायदा मिला. क्योंकि भाजपा हाईकमान के पास पार्टी में घमासान को रोकने का यह भी एक तरीका था.
चुनाव में धामी के नाम पर वोट मांगे गए थे. साथ ही धामी जातीय और क्षेत्रीय समीकरण में फिट बैठ रहे थे. बता दें कि, उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी को हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में हारने के बावजूद दोबारा मुख्यमंत्री बनाया जा रहा है. बीजेपी ने राज्य में बहुमत हासिल किया है, लेकिन धामी अपनी खटिमा से हार गए थे.