देहरादून: उत्तराखंड राज्य को बने हुए 21 साल हो गए हैं. राज्य ने 21 सालों में 10 से अधिक मुख्यमंत्री देख लिए हैं. साथ ही राज्य की जनता ने कई सरकारें बनते और गिरते हुए भी देखीं हैं. नेताओं की बड़ी-बड़ी रैलियां और वादों को भी जनता परख चुकी है. अब जनता के मूड को देखकर लगता है कि उसका नेताओं की रैलियों से मोहभंग हो गया है.
जनता का रैलियों से मोहभंग होने की बात क्यों कही जा रही है, इसकी कई वजहें हैं. देहरादून में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी की रैली हो या फिर आज की अरविंद केजरीवाल की रैली. इन तमाम रैलियों में जनता ने जिस तरह से मुंह मोड़ा है, उसके बाद साफ समझा जा सकता है कि जनता का मूड क्या है. अब नेताओं को भी समझ जाना चाहिए की रैलियों में बड़े-बड़े भाषण और वादे कर यूं ही जनता को नहीं ठगा नहीं सकते हैं.
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इसका पहला नजारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनसभा में देखने को मिला. देश के सबसे बड़े लीडर की जनसभा में ही कुर्सियां खाली दिखाई थी. इतना ही नहीं जब पीएम मोदी संबोधित कर रहे थे तो इस दौरान भी कई लोग वहां से जाते दिखाई दिए थे, जिससे बीजेपी भी टेंशन में आ गई. वहीं, बीजेपी के बाद कांग्रेस के लिए भी राहुल गांधी की रैली में अधिक भीड़ जुटाने की चुनौती थी. कांग्रेस ने इसे काफी हद तक पूरा किया भी, मगर राहुल गांधी की रैली के दौरान भी लोग कुछ ज्यादा उत्साहित नहीं दिखें. यहां भी जनता बीच में भाषण छोड़कर चलती बनी.
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ऐसा ही हाल आज अरविंद केजरीवाल की रैली में भी देखने को मिला. अरविंद केजरीवाल भी अपने उत्तराखंड के दौरे पर हर बार कोई नहीं गारंटी जनता को देकर चले जाते हैं. दिल्ली में मुफ्त की बातें करते हुए पंजाब और उत्तराखंड में अपनी पकड़ बनाने में जुटे अरविंद केजरीवाल के नेताओं को यही लग रहा था कि परेड ग्राउंड की रैली दोनों रैलियों का रिकॉर्ड तोड़ेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. आलम ये रहा कि केजरीवाल के मंच पर आने तक और उनके जाने तक सैकड़ों कुर्सियां खाली रहीं.
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मजे की बात तो यह है के तीनों दलों के 3 बड़े नेताओं ने उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के परेड ग्राउंड से ही जनता को संबोधित किया. इसी मंच से बड़े-बड़े वादे हुए. नेताओं ने जनता से जुड़ने की कोशिश की. रैलियों और मंचों से अपनी पार्टी का एजेंडा रखने की कोशिश की, मगर रैलियों में पहुंची भीड़ और जनता के रुख को देखकर कुछ और ही लग रहा है.