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NOTA को लेकर क्या है दून के वोटर्स की राय, देखिए ETV भारत की खास रिपोर्ट

उत्तराखंड में पांचों लोकसभा सीटों के लिए 11 अप्रैल को मतदान होना है. कई मतदाता नोटा (NOTA) विकल्प का इस्तेमाल भी करेंगे.देखिए NOTA को लेकर देहरादून के वोटर्स की राय. देखिए ETV भारत की खास रिपोर्ट

NOTA को लेकर देहरादून की जनता की राय.
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Published : Mar 15, 2019, 10:10 PM IST

देहरादूनः आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर सरगर्मियां तेज हो गई है. उत्तराखंड में पांचों लोकसभा सीटों के लिए 11 अप्रैल को मतदान होना है. चुनाव में कई मतदाता अपने पसंद के उम्मीदवार को वोट करेंगे. वहीं, कई मतदाता ईवीएम में जोड़े गए नोटा (NOTA) विकल्प का इस्तेमाल भी करेंगे. NOTA को लेकर ईटीवी भारत की टीम ने देहरादून के वोटर्स से जानी उनकी राय, देखिए खास रिपोर्ट.


बता दें कि उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद बीते साल 2013 में 'NOTA' यानी Non of the above बटन को मतदाता की सहूलियत के लिए ईवीएम में जोड़ा गया था. इस बटन को मतदाता उस स्थिति में प्रयोग कर सकता है, जब चुनाव मैदान में उतरा कोई भी उम्मीदवार उसकी पसंद का न हो. ऐसे में कई मतदाता पोलिंग बूथ में जाकर NOTA का बटन दबाकर अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर सकता है. ऐसे में वह सभी उम्मीदवारों को खारिज कर सकता है और उसका वोट भी काउंट होगा.


NOTA के इस्तेमाल और इस विकल्प के तौर पर ईटीवी भारत की टीम ने राजधानी देहरादून के वोटर्स से बातचीत की. इस दौरान कई मतदाता तो ऐसे थे जिन्हें को नोटा की जानकारी तक नहीं थी. जबकि, अधिकतर वोटर्स का कहना है कि नोटा एक बेहतर विकल्प है, लेकिन चुनाव में NOTA का उपयोग करने वाले मतदाताओं की संख्या काफी कम है.

NOTA को लेकर देहरादून की जनता की राय.


वोटर्स का कहना है कि NOTA एक बेहतर विकल्प है. इससे आम जनता मजबूरी में किसी पार्टी विशेष या निर्दलीय उम्मीदवार को नहीं चुनती. बल्कि, उसके पास उम्मीदवारों को खारिज करने का विकल्प है और इससे उनका वोट भी काउंट हो जाता है. कुछ अन्य मतदाताओं का कहना है कि दो प्रतिशत लोगों के लिए नोटा एक विश्लेषण का काम करती है. वहीं, अन्य लोगों का कहना है कि जब वोट ही देना है तो किसी भी उम्मीदवार को दे दो. NOTA दबाकर वोट बर्बाद क्यों करना है.


वहीं, इस बारे में मुख्य निर्वाचन अधिकारी सौजन्या का कहना है कि वोटर्स के लिए ईवीएम मशीन में NOTA विकल्प मौजूद है. अगर चुनाव में उतरे उम्मीदवार में से वोटर को कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं है तो वे नोटा इस्तेमाल कर सकता है.

देहरादूनः आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर सरगर्मियां तेज हो गई है. उत्तराखंड में पांचों लोकसभा सीटों के लिए 11 अप्रैल को मतदान होना है. चुनाव में कई मतदाता अपने पसंद के उम्मीदवार को वोट करेंगे. वहीं, कई मतदाता ईवीएम में जोड़े गए नोटा (NOTA) विकल्प का इस्तेमाल भी करेंगे. NOTA को लेकर ईटीवी भारत की टीम ने देहरादून के वोटर्स से जानी उनकी राय, देखिए खास रिपोर्ट.


बता दें कि उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद बीते साल 2013 में 'NOTA' यानी Non of the above बटन को मतदाता की सहूलियत के लिए ईवीएम में जोड़ा गया था. इस बटन को मतदाता उस स्थिति में प्रयोग कर सकता है, जब चुनाव मैदान में उतरा कोई भी उम्मीदवार उसकी पसंद का न हो. ऐसे में कई मतदाता पोलिंग बूथ में जाकर NOTA का बटन दबाकर अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर सकता है. ऐसे में वह सभी उम्मीदवारों को खारिज कर सकता है और उसका वोट भी काउंट होगा.


NOTA के इस्तेमाल और इस विकल्प के तौर पर ईटीवी भारत की टीम ने राजधानी देहरादून के वोटर्स से बातचीत की. इस दौरान कई मतदाता तो ऐसे थे जिन्हें को नोटा की जानकारी तक नहीं थी. जबकि, अधिकतर वोटर्स का कहना है कि नोटा एक बेहतर विकल्प है, लेकिन चुनाव में NOTA का उपयोग करने वाले मतदाताओं की संख्या काफी कम है.

NOTA को लेकर देहरादून की जनता की राय.


वोटर्स का कहना है कि NOTA एक बेहतर विकल्प है. इससे आम जनता मजबूरी में किसी पार्टी विशेष या निर्दलीय उम्मीदवार को नहीं चुनती. बल्कि, उसके पास उम्मीदवारों को खारिज करने का विकल्प है और इससे उनका वोट भी काउंट हो जाता है. कुछ अन्य मतदाताओं का कहना है कि दो प्रतिशत लोगों के लिए नोटा एक विश्लेषण का काम करती है. वहीं, अन्य लोगों का कहना है कि जब वोट ही देना है तो किसी भी उम्मीदवार को दे दो. NOTA दबाकर वोट बर्बाद क्यों करना है.


वहीं, इस बारे में मुख्य निर्वाचन अधिकारी सौजन्या का कहना है कि वोटर्स के लिए ईवीएम मशीन में NOTA विकल्प मौजूद है. अगर चुनाव में उतरे उम्मीदवार में से वोटर को कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं है तो वे नोटा इस्तेमाल कर सकता है.

Intro:देहरादून- उच्चतम न्यायालय के आदेशों के बाद साल 2013 में 'NOTA' यानी Non of the above का बटन मतदाताओं की सहूलियत के लिए ईवीएम में जोड़ा गया था। इस बटन की खास बात यह है कि इस बटन को एक मतदाता उस स्थिति में प्रयोग कर सकता है जब चुनाव मैदान में उतरा कोई भी उम्मीदवार उसकी पसन्द का न हो । ऐसे में इस स्थिति में मतदाता पोलिंग बूथ में जाकर NOTA का बटन दबा कर अपने मताधिकार का इस्तमाल कर सकता है। यानी कि नोटा उम्मीदवारों को खारिज करने का एक विकल्प मतदाताओं को देता है।








Body:वहीं जैसा कि लोकसभा चुनाव 2019 के लिए आगामी 11 अप्रैल को प्रदेश भर में मतदान होने हैं । ऐसे में ईवीएम में जोड़े गए NOTA के विकल्प को लेकर जब ईटीवी भारत ने प्रदेश की राजधानी देहरादून की जनता की राय जानी तो सभी की अपनी अलग ही राय थी।

NOTA को लेकर कुछ लोगों का यह मानना है कि यह विकल्प के तौर पर तो एक बेहतर विकल्प जरूर है। लेकिन इससे मतदान प्रतिशत बढ़ने के अलावा और कुछ नहीं होता । कहीं न कहीं जनता NOTA का बटन दबा कर उम्मीदवारों को न पसंद करने का इज़हार तो जरूर करती है ।लेकिन निर्वाचन आयोग इसका कोई संज्ञान नही लेता । ऐसे में इस बटन को दबाने का कोई औचित्य समझ नही आता।

वहीं दूसरी तरफ राजधानी देहरादून में हमें कई लोग ऐसे भी मिले जिन्हें नोटा के बारे में कोई जानकारी ही थी । लिहाजा इस विषय में वो अपनी राय नही रख सके। इसके अलावा कुछ लोग NOTA को एक बेहतर विकल्प बताते भी नज़र आये । उनका मानना है कि इसके माध्यम से कहीं न कहीं आम जनता को अब यह सहूलियत है कि वह मजबूरी में किसी पार्टी विशेष को अपना मत देकर अपने बहुमूल्य वोट को बर्बाद न करें।


Conclusion:बहरहाल NOTA को लेकर राजधानी की जनता की अपनी-अपनी राय है। लेकिन जो सवाल NOTA को लकेर आम जनता ने उठाए हैं उन पर भी निर्वाचन आयोग को गौर जरूर फरमान चाहिए । इसमें कोई शक नहीं कि लोटा के इस्तेमाल से मतदान प्रतिशत में इजाफा जरूर देखने को मिलता है । लेकिन निकट भविष्य में इसका आम जनता को क्या लाभ मिलपाता है यह एक वाजिब सवाल है।
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