देहरादून: उत्तराखंड विद्युत नियामक योग के कार्यालय में वैकल्पिक ऊर्जा पॉलिसी में हुए संशोधन को लेकर शुक्रवार को जनसुनवाई हुई. इसमें प्रदेश के विभिन्न पहाड़ी जनपदों से आये लोगों ने नयी पॉलिसी को लेकर अपने विचार रखें. स्थानीय उपभोक्ताओं ने बताया कि जो संशोधन पॉलिसी में किये हैं उससे पहाड़ को कोई लाभ नहीं मिलेगा और न ही पलायन पर ब्रेक लगेगा.
सुनवाई में पहुंचे पहाड़ के विभिन्न उपभोक्ताओं ने राज्य सरकार की इस नयी वैकल्पिक ऊर्जा पॉलिसी पर कई सवाल खड़े किए. भारतीय उपभोक्ताओं के अनुसार पहाड़ों में 5 मेगावाट का प्लांट लगाने के लिए जमीन उपलब्ध नहीं है. 1 मेगावाट के प्लांट को लगाने के लिए 25 बीघा जमीन की जरूरत होती है. ऐसे में अनुमान लगाया जा सकता है कि 5 मेगावाट के प्लांट को लगाने में कितनी बड़ी जमीन की जरूरत होगी.
सुनवाई के लिए पहुंचे लोगों का कहना है कि यह पॉलिसी पहाड़ की आम जनता के लिए नहीं बल्कि बड़ी कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए है. यही कारण है कि इस पॉलिसी के तहत छोटे प्लांट और बड़े प्लांटों के टैरिफ में कोई अंतर नहीं रखा गया है.
बता दें कि इस नयी पॉलिसी के तहत राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों के लिए 200 मेगावाट तक बिजली उत्पादन के लिए सोलर प्लांट नीति बनाई गयी है. इससे पहाड़ी इलाकों में 100 किलोवाट से 5 मेगावाट तक कोई भी प्लांट लगाकर प्रति यूनिट 4 रुपये 75 पैसे में यूपीसीएल को बिजली भेज सकता है. इसके साथ ही पॉलिसी में कंपनियों के लिए 50 मेगावाट तक का प्लांट लगाने का प्रावधान भी रखा गया है. जिससे पहाड़ की जनता काफी नाखुश है.
गौर हो कि उत्तराखंड के विभिन्न पहाड़ी इलाकों में कई गांव ऐसे हैं जो पलायन के चलते पूरी तरह वीरान हो चुके हैं. ऐसे में पलायन पर लगाम लगाना एक बड़ी चुनौती बन गया है. इसी वजह से पलायन को रोकने के लिए प्रदेश सरकार ने वैकल्पिक ऊर्जा पॉलिसी में कुछ संशोधन किये हैं. लेकिन इससे पहाड़ी जनता खुश नहीं है.