देहरादून: कहते हैं ऊंची उड़ान के लिए सपने भी बड़े होने चाहिए. क्योंकि सपनों में भी जरिए लक्ष्य ढूंढने वालों को सफलता मिलती है. ये कहानी है उत्तराखंड के चमोली जिले के देवाल ब्लॉक के रामपुर गांव निवासी प्रियंका दीवान की. पहाड़ के दुर्गम गांव में बकरियां पालने और लकड़ी काट घर का चूल्हा जलाने वालीं प्रियंका दीवान देश की सबसे प्रतिष्ठित यूपीएससी की परीक्षा को पहले प्रयास में पास किया है.
प्रियंका दीवान एक मध्यम वर्गीय परिवार से हैं, जिन्होंने यूपीएससी की सिविल सर्विस परीक्षा-2019 में 257वीं रैंक हासिल की है. प्रियंका के पिता दीवान राम किसान और मां गृहणी हैं. ईटीवी भारत से खास बातचीत में प्रियंका दीवान बताती हैं गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ते हुए घर के सभी कामों और जानवरों की देखभाल भी किया करती थीं. स्कूल के बाद पढ़ने में रुचि के चलते उनके पिता ने आर्थिक स्थिति खराब होने के बावजूद उनका एडमिशन गोपेश्वर डिग्री कॉलेज में करवाया. यहां भी प्रियंका ने अकेले रहकर अपने कॉलेज की पढ़ाई को पूरा किया और यूपीएससी की तैयारियों में डटी रहीं.
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मामा से मिली प्रेरणा
साल 2011 में प्रियंका राजकीय महाविद्यालय गोपेश्वर से बीए करने के बाद देहरादून चली गईं. जहां उन्होंने डीएवी पीजी कॉलेज में एलएलबी में दाखिला लिया. परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, इसलिए पढ़ाई और सिविल सेवा की तैयारी का खर्चा निकालने के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया. प्रियंका अपने मामा से बेहद ज्यादा प्रभावित हैं, जो न्यायिक सेवा से जुड़े हुए हैं. परिवारिक चुनौतियों से लड़ते हुए प्रियंका ने पहले प्रयास में सिविल सेवा परीक्षा में 257वां स्थान प्राप्त कर यह साबित कर दिया कि हौसलों के आगे बड़ी से बड़ी चुनौतियां भी बौनी हो जाती हैं.
3 दिन बाद परिजनों को मिली खुशखबरी
प्रियंका का गांव रामपुर आज भी शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क और संचार सुविधा से महरूम है. यही वजह है कि प्रियंका की कामयाबी की सूचना अपने परिजनों तक पहुंचाने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ा. ईटीवी भारत से खास बातचीत में प्रियंका कहती हैं कि परीक्षा पास होने की खुशखबरी जब माता-पिता को देनी चाही तो गांव में कनेक्टिविटी की समस्या होने के चलते 2 दिनों तक संपर्क नहीं हो पाया. तीसरे दिन परिजनों ने पहाड़ की ऊंची चोटी पर जाकर फोन किया तो बड़ी मुश्किल से प्रियंका ने अपने परिजनों को बताया कि उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा पहले प्रयास में ही पास कर ली है.
रामपुर गांव में मूलभूत सुविधाओं का अभाव
गांव की मूलभूत समस्याओं पर बोलते हुए प्रियंका बताती हैं कि उनके गांव में यदि कोई बीमार होता है तो उसे खाट और कुर्सी पर बांधकर इलाज के लिए देवाल ले जाया जाता है. ऐसे में बतौर अफसर उनकी प्राथमिकता दुर्गम गांवों में स्कूल, अस्पताल जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना.
प्रियंका चाहती हैं कि इस तरह के दुर्गम गांवों में लोगों को हो रही समस्याओं से निजात दिलाई जा सके. साथ ही विभागों में आपसी समन्वय की कमी के कारण जो विकास कार्य ठंडे बस्ते में पड़े रहते हैं उन्हें तेजी से किया जाए. बेटी प्रियंका दीवान की सफलता पर गांव वाले फूले नहीं समा रहे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि प्रियंका के माता-पिता ने मेहनत-मजदूरी कर बेटी को पढ़ाया और बेटी ने भी उनकी मेहनत जाया नहीं होने दी.