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कैदियों को घातक बीमारियों के चंगुल से बचाना बड़ी चुनौती! कैसे पूरा होगा पीएम मोदी का सपना?

Uttarakhand jails condition टीबी जैसी बीमारी से भारत को मुक्त कराने के लिए राष्ट्रीय स्तर प्रधानमंत्री टीबी उन्मूलन भारत अभियान चलाया जा रहा है. इसका उद्देश्य 2025 तक देश से टीबी जैसी गंभीर बीमारी को खत्म करना है. लेकिन पीएम मोदी के इस सपने के लिए उत्तराखंड की जेलें बड़ी चुनौती बन रही हैं. उत्तराखंड की जेलों में कैदियों की जो हालत है, उन्हें देखकर नहीं लगाता है कि भारत जल्द ही इस बीमारी से मुक्त हो पाएगा.

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Published : Aug 21, 2023, 12:53 PM IST

Updated : Aug 21, 2023, 2:37 PM IST

कैदियों को घातक बीमारियों के चंगुल से बचाना बड़ी चुनौती!

देहरादून: उत्तराखंड की जेलों में बंद कैदियों पर घातक बीमारी का खतरा हर पल मंडराता रहता है. ऐसा प्रदेश की जेलों के हालात और यहां की व्यवस्थाओं को देखकर कहा जा सकता है. हालांकि पिछले दिनों हुए कुछ अध्ययनों ने उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देशभर की जेलों के लिए चिंता को बढ़ा दिया है. लेकिन उत्तराखंड इस लिहाज से डेंजर जोन में नजर आता है. उत्तराखंड में बंद कैदियों और जेल के हालात पर आधारित ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

जेलों में क्षमता से 2 गुना ज्यादा कैदी: उत्तराखंड स्वास्थ्य विभाग प्रदेश की जेलों और नारी निकेतन को लेकर कुछ खास अभियान चलाता रहा है. ऐसा यहां मौजूद कैदियों और संवासिनियों के स्वास्थ्य की चिंताओं को देखते हुए किया जाता है. हालांकि इसका मकसद कैदियों की स्वास्थ्य स्थितियों पर नज़र रखना भी है. बहरहाल उत्तराखंड की जेलें कई लिहाज से घातक बीमारियों को लेकर डेंजर जोन में नजर आती हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह प्रदेश की जेलों में ठसा ठस भरे कैदी हैं, जो जेलों की क्षमता से 2 गुना ज्यादा हैं.
पढ़ें- लंबे इंतजार के बाद तैयार हुआ जेल मैनुअल ड्राफ्ट, जिलों में ओवरक्राउड समस्याएं होंगी दूर

कैदियों को इस घातक बीमारी का डर: ऐसे हालात में सबसे ज्यादा खतरा उन संक्रमण से जुड़ी बीमारियों का है, जो तेजी से फैलती हैं. कोरोना काल के दौरान भी इसी खतरे को भांपते हुए कई कैदियों को जेलों से बाहर भी भेजना पड़ा था, लेकिन बात केवल कोरोना की नहीं है, समय समय पर ऐसी कई घातक बीमारियां विकराल रूप ले लेती हैं जो कैदियों के लिए भी चिंता बन जाती हैं. इन्हीं में से एक घातक बीमारी है Tuberculosis, जिसे सामान्य भाषा में हम TB नाम से जानते हैं.

चिंता पैदा करने वाला विषय: एक अध्ययन के अनुसार देश की जेलों में टीबी के मरीजों की संख्या सामान्य जनसंख्या की तुलना में 5 गुना अधिक है. अब ये आंकड़ा उत्तराखंड के लिए इसलिए भी चिंता पैदा करने वाला है, क्योंकि यहां की जेलें भारी अव्यवस्थाओं से जूझ रही हैं. उत्तराखंड की जेलों में किस तरह की हैं परेशानियां जानिए.
पढ़ें- उत्तराखंड की जेलों में क्षमता से 178% ज्यादा महिला कैदी, बजट खर्च करने में भी पीछे!

उत्तराखंड में जेलों के हालात: उत्तराखंड में कुल 11 जेलें मौजूद हैं, जिसमें 9 जिला जेल और 02 उप जेल हैं. इन जेलों में कैदियों के लिहाज से क्षमता कुल 3700 कैदी है. राज्य की इन जेलों में बंद हैं करीब 6 हज़ार कैदी. ठसाठस भरी जेलों में चिकित्सकों की भी भारी कमी है. अव्यवस्थाओं के चलते जेलों में एमबीबीएस चिकित्सकों की तैनाती भी नहीं हो पाती है, विशेषज्ञ तो दूर की बात है. जेलों में साइकेट्रिस्ट का भी कोई इंतजाम नहीं है. नियमित चेकअप के लिए कैदियों को सरकारी अस्पताल ले जाना पड़ता है. जांच के दौरान कैदी कई गंभीर बीमारियों से ग्रसित मिलते हैं.

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उत्तराखंड की जेलों का हाल.

उत्तराखंड की जेलों में मानक के अनुसार कैदियों की संख्या के लिहाज से कई चिकित्सकों की जरूरत है, लेकिन जिलों में कई जगह केवल एक चिकित्सक या बिना चिकित्सक के भी काम चलाना पड़ रहा है. इस स्थिति में सरकारी अस्पतालों में कैदियों को अतिरिक्त सुरक्षा व्यवस्था के साथ ले जाना होता है.
पढ़ें- तेलंगाना की तर्ज पर अब उत्तराखंड के कैदी भी बढ़ाएंगे सरकारी खजाना, जेलों में होने जा रहा ये बड़ा काम

नई जेल बनाने पर विचार: मौजूदा स्थिति पर गृह विभाग में विशेष सचिव रिद्धिम अग्रवाल कहती हैं कि इस बात में कोई दो राय नहीं है कि उत्तराखंड की जेलों में उनकी क्षमता से कहीं ज्यादा कैदी मौजूद हैं. इसीलिए भारत सरकार के निर्देशों के क्रम में जेलों के लिए नई नीति बनाई जा रही है. ताकि कम गंभीर मामलों वाले अपराधियों के लिए जमानत को लेकर नियम शिथिल किए जा सकें. इसके अलावा राज्य में कई नई जेलों के निर्माण पर भी विचार चल रहा है.

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रिद्धिम अग्रवाल, विशेष सचिव, गृह विभाग

प्रधानमंत्री के अभियान को जेल से चुनौती: राष्ट्रीय स्तर पर भी देखें तो क्षमता से अधिक कैदियों को लेकर उत्तराखंड की जेलें सबसे खराब हालात में हैं. एक बैरक में ही कई कैदियों को रखना पड़ता है. इस बीच प्रधानमंत्री टीबी उन्मूलन भारत अभियान के तहत 2025 तक देश से टीबी जैसी गंभीर बीमारी को खत्म करने का लक्ष्य रखा गया है, लेकिन इस लक्ष्य को चुनौती भारत की जेल से ही मिल रही है.
पढ़ें- उत्तराखंड के इन चार जेलों के कैदियों का होगा स्किल डेवलपमेंट, बदलेगी जीवन की राह

रिपोर्ट का दावा: अध्ययन बताता है कि भारत की जेलों में बंद करीब 1 लाख कैदियों में 1076 कैदी टीबी से ग्रसित मिले हैं. जबकि सामान्य रूप से टीबी के मरीजों को लेकर प्रत्येक 1 लाख लोगों में आंकड़ा करीब 200 मरीजों का है. उधर, उत्तराखंड में देखें तो कुल सक्रिय टीबी के मरीज 12,514 हैं. हालांकि जेलों में ये संख्या कितनी है ये जानकारी स्वास्थ्य विभाग ने साझा नहीं की है.

जेलों में बंद कैदियों को लेकर समय-समय पर अभियान चलाए जाते रहे हैं. स्वास्थ्य विभाग की तरफ से ऐसा ही एक अभियान पिछले दिनों पूरा किया गया, जिसमें उत्तराखंड की सभी जेलों में बंद कैदियों की टीबी की जांच की गई. यहीं नहीं HIV के साथ हेपेटाइटिस की भी जांच की गई.
पढ़ें- अब जेल से नहीं चलेगा अपराधियों का 'खेल', CCTV कैमरों होगी कड़ी निगरानी

सरकार कर रही विचार: बताया जा रहा है कि जेलों में HIV के साथ टीबी के भी मरीज मिलें हैं, जो चिंता को बढ़ाने वाले हैं. वैसे जिन मरीजों में ऐसी घातक बीमारियां मिली हैं, उनको जेल से अलग अस्पतालों में इलाज के लिए भेजा गया है. राज्य की जेलों में चिकित्सकों की कमी एक बड़ी समस्या रही है, लेकिन नियमित चिकित्सकों की तैनाती जेलों में नहीं हो पा रही है और तमाम चिकित्सक जेलों में अपनी तैनाती देने की इच्छा नहीं रख रहे हैं.

ऐसे में सरकार फिलहाल व्यवस्थाओं को सुचारू रखने के लिए संविदा पर चिकित्सकों को जेलों में तैनात करने का फैसला ले चुकी है. हालांकि इसको लेकर अभी प्रक्रिया गतिमान है और न केवल जेल प्रशासन बल्कि कैदियों को भी जेलों में चिकित्सकों की तैनाती का इंतजार है.

कैदियों को घातक बीमारियों के चंगुल से बचाना बड़ी चुनौती!

देहरादून: उत्तराखंड की जेलों में बंद कैदियों पर घातक बीमारी का खतरा हर पल मंडराता रहता है. ऐसा प्रदेश की जेलों के हालात और यहां की व्यवस्थाओं को देखकर कहा जा सकता है. हालांकि पिछले दिनों हुए कुछ अध्ययनों ने उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देशभर की जेलों के लिए चिंता को बढ़ा दिया है. लेकिन उत्तराखंड इस लिहाज से डेंजर जोन में नजर आता है. उत्तराखंड में बंद कैदियों और जेल के हालात पर आधारित ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

जेलों में क्षमता से 2 गुना ज्यादा कैदी: उत्तराखंड स्वास्थ्य विभाग प्रदेश की जेलों और नारी निकेतन को लेकर कुछ खास अभियान चलाता रहा है. ऐसा यहां मौजूद कैदियों और संवासिनियों के स्वास्थ्य की चिंताओं को देखते हुए किया जाता है. हालांकि इसका मकसद कैदियों की स्वास्थ्य स्थितियों पर नज़र रखना भी है. बहरहाल उत्तराखंड की जेलें कई लिहाज से घातक बीमारियों को लेकर डेंजर जोन में नजर आती हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह प्रदेश की जेलों में ठसा ठस भरे कैदी हैं, जो जेलों की क्षमता से 2 गुना ज्यादा हैं.
पढ़ें- लंबे इंतजार के बाद तैयार हुआ जेल मैनुअल ड्राफ्ट, जिलों में ओवरक्राउड समस्याएं होंगी दूर

कैदियों को इस घातक बीमारी का डर: ऐसे हालात में सबसे ज्यादा खतरा उन संक्रमण से जुड़ी बीमारियों का है, जो तेजी से फैलती हैं. कोरोना काल के दौरान भी इसी खतरे को भांपते हुए कई कैदियों को जेलों से बाहर भी भेजना पड़ा था, लेकिन बात केवल कोरोना की नहीं है, समय समय पर ऐसी कई घातक बीमारियां विकराल रूप ले लेती हैं जो कैदियों के लिए भी चिंता बन जाती हैं. इन्हीं में से एक घातक बीमारी है Tuberculosis, जिसे सामान्य भाषा में हम TB नाम से जानते हैं.

चिंता पैदा करने वाला विषय: एक अध्ययन के अनुसार देश की जेलों में टीबी के मरीजों की संख्या सामान्य जनसंख्या की तुलना में 5 गुना अधिक है. अब ये आंकड़ा उत्तराखंड के लिए इसलिए भी चिंता पैदा करने वाला है, क्योंकि यहां की जेलें भारी अव्यवस्थाओं से जूझ रही हैं. उत्तराखंड की जेलों में किस तरह की हैं परेशानियां जानिए.
पढ़ें- उत्तराखंड की जेलों में क्षमता से 178% ज्यादा महिला कैदी, बजट खर्च करने में भी पीछे!

उत्तराखंड में जेलों के हालात: उत्तराखंड में कुल 11 जेलें मौजूद हैं, जिसमें 9 जिला जेल और 02 उप जेल हैं. इन जेलों में कैदियों के लिहाज से क्षमता कुल 3700 कैदी है. राज्य की इन जेलों में बंद हैं करीब 6 हज़ार कैदी. ठसाठस भरी जेलों में चिकित्सकों की भी भारी कमी है. अव्यवस्थाओं के चलते जेलों में एमबीबीएस चिकित्सकों की तैनाती भी नहीं हो पाती है, विशेषज्ञ तो दूर की बात है. जेलों में साइकेट्रिस्ट का भी कोई इंतजाम नहीं है. नियमित चेकअप के लिए कैदियों को सरकारी अस्पताल ले जाना पड़ता है. जांच के दौरान कैदी कई गंभीर बीमारियों से ग्रसित मिलते हैं.

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उत्तराखंड की जेलों का हाल.

उत्तराखंड की जेलों में मानक के अनुसार कैदियों की संख्या के लिहाज से कई चिकित्सकों की जरूरत है, लेकिन जिलों में कई जगह केवल एक चिकित्सक या बिना चिकित्सक के भी काम चलाना पड़ रहा है. इस स्थिति में सरकारी अस्पतालों में कैदियों को अतिरिक्त सुरक्षा व्यवस्था के साथ ले जाना होता है.
पढ़ें- तेलंगाना की तर्ज पर अब उत्तराखंड के कैदी भी बढ़ाएंगे सरकारी खजाना, जेलों में होने जा रहा ये बड़ा काम

नई जेल बनाने पर विचार: मौजूदा स्थिति पर गृह विभाग में विशेष सचिव रिद्धिम अग्रवाल कहती हैं कि इस बात में कोई दो राय नहीं है कि उत्तराखंड की जेलों में उनकी क्षमता से कहीं ज्यादा कैदी मौजूद हैं. इसीलिए भारत सरकार के निर्देशों के क्रम में जेलों के लिए नई नीति बनाई जा रही है. ताकि कम गंभीर मामलों वाले अपराधियों के लिए जमानत को लेकर नियम शिथिल किए जा सकें. इसके अलावा राज्य में कई नई जेलों के निर्माण पर भी विचार चल रहा है.

uttarakhand
रिद्धिम अग्रवाल, विशेष सचिव, गृह विभाग

प्रधानमंत्री के अभियान को जेल से चुनौती: राष्ट्रीय स्तर पर भी देखें तो क्षमता से अधिक कैदियों को लेकर उत्तराखंड की जेलें सबसे खराब हालात में हैं. एक बैरक में ही कई कैदियों को रखना पड़ता है. इस बीच प्रधानमंत्री टीबी उन्मूलन भारत अभियान के तहत 2025 तक देश से टीबी जैसी गंभीर बीमारी को खत्म करने का लक्ष्य रखा गया है, लेकिन इस लक्ष्य को चुनौती भारत की जेल से ही मिल रही है.
पढ़ें- उत्तराखंड के इन चार जेलों के कैदियों का होगा स्किल डेवलपमेंट, बदलेगी जीवन की राह

रिपोर्ट का दावा: अध्ययन बताता है कि भारत की जेलों में बंद करीब 1 लाख कैदियों में 1076 कैदी टीबी से ग्रसित मिले हैं. जबकि सामान्य रूप से टीबी के मरीजों को लेकर प्रत्येक 1 लाख लोगों में आंकड़ा करीब 200 मरीजों का है. उधर, उत्तराखंड में देखें तो कुल सक्रिय टीबी के मरीज 12,514 हैं. हालांकि जेलों में ये संख्या कितनी है ये जानकारी स्वास्थ्य विभाग ने साझा नहीं की है.

जेलों में बंद कैदियों को लेकर समय-समय पर अभियान चलाए जाते रहे हैं. स्वास्थ्य विभाग की तरफ से ऐसा ही एक अभियान पिछले दिनों पूरा किया गया, जिसमें उत्तराखंड की सभी जेलों में बंद कैदियों की टीबी की जांच की गई. यहीं नहीं HIV के साथ हेपेटाइटिस की भी जांच की गई.
पढ़ें- अब जेल से नहीं चलेगा अपराधियों का 'खेल', CCTV कैमरों होगी कड़ी निगरानी

सरकार कर रही विचार: बताया जा रहा है कि जेलों में HIV के साथ टीबी के भी मरीज मिलें हैं, जो चिंता को बढ़ाने वाले हैं. वैसे जिन मरीजों में ऐसी घातक बीमारियां मिली हैं, उनको जेल से अलग अस्पतालों में इलाज के लिए भेजा गया है. राज्य की जेलों में चिकित्सकों की कमी एक बड़ी समस्या रही है, लेकिन नियमित चिकित्सकों की तैनाती जेलों में नहीं हो पा रही है और तमाम चिकित्सक जेलों में अपनी तैनाती देने की इच्छा नहीं रख रहे हैं.

ऐसे में सरकार फिलहाल व्यवस्थाओं को सुचारू रखने के लिए संविदा पर चिकित्सकों को जेलों में तैनात करने का फैसला ले चुकी है. हालांकि इसको लेकर अभी प्रक्रिया गतिमान है और न केवल जेल प्रशासन बल्कि कैदियों को भी जेलों में चिकित्सकों की तैनाती का इंतजार है.

Last Updated : Aug 21, 2023, 2:37 PM IST
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