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जिसके दम पर खड़ा हुआ उत्तराखंड, आज सियासत से उसका नाम ही गायब - बीजेपी

एनडी तिवारी के सियासी कद का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वो अकेले  ऐसे नेता थे, जिन्हें दो राज्य (यूपी और उत्तराखंड) के मुख्यमंत्री होने का गौरव प्राप्त है.

पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी
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Published : Apr 1, 2019, 3:21 PM IST

Updated : Apr 1, 2019, 4:58 PM IST

देहरादून: चुनाव के दौरान उत्तराखंड की सियासत में ये पहला मौका होगा, जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और यूपी व उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी का नाम नहीं लिया जा रहा है. 1951 के पहले चुनाव से लेकर 2017 के विधानसभा चुनाव तक ऐसा कोई मौका नहीं था जब राजनीति में एनडी तिवारी की धमक न रही हो. उत्तराखंड की राजनीति हमेशा उनके आस-पास घूमा करती थी, लेकिन अब जब वो हमारे बीच नहीं हैं तो सियासत से उनका नाम गायब हो गया है.

पढ़ें-युवक ने होटल के कमरे में फांसी लगाकर की खुदकुशी, नौकरी छूटने से था परेशान

दो राज्यों केमुख्यमंत्री होने का गौरव प्राप्त

एनडी तिवारी के सियासी कद का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वो अकेले ऐसे नेता थे, जिन्हें दो राज्य (यूपी और उत्तराखंड) के मुख्यमंत्री होने का गौरव प्राप्त है. इसके अवाला वो केंद्र में मंत्री भी रहे चुके थे. यही कारण है कि उत्तराखंड समेत पूरा देश उनके सियासी कद को कभी भुला नहीं सकता है. कई बड़े नेता उनके नाम के साथ अपनी चुनावी यात्रा की शुरुआत करते थे.

पढ़ें-Etv Bharat के जरिए कवियों ने की वोट करने की अपील तो लोग बोले- जागो प्यारे मतदाता

एनडी तिवारी के कद का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब उन्होंने सियासत से दूरी बना ली थी तब भी सूबे के बड़े नेता उनका नाम लेते नहीं थकते थे या यूं कहें कि सियासत उनके इर्द-गिर्द ही घूमा करती थी, लेकिन आज जब वो संसार छोड़ चुके हैं तो कोई उनका जिक्र भी नहीं कर रहा है. ऐसा लगता है जैसे उत्तराखंड की सियासत से कभी उनका कोई नाता ही न रहा हो.

कांग्रेस को उत्तराखंड में मजबूत किया

सत्ता में मौजूद बीजेपी हो या एनडी तिवारी की अपनी पार्टी कांग्रेस, हर किसी पर तिवारी का प्रभाव था. जबतक वो जिंदा थे तिवारी सबके लिए सियासत का केंद्र थे. हालांकि, बीजेपी से ज्यादा उम्मीद नहीं की जा सकी है, लेकिन कांग्रेस जिसे उन्होंने अपना पूरी जीवन दिया, उत्तराखंड में कांग्रेस की जमीन मजबूत करने में तिवारी का बड़ा योगदान दिया रहा है, आज वो कांग्रेस भी शायद तिवारी को भूल गई है. चुनाव में उनके पोस्टर तो दूर की बात है कांग्रेस की जुबान पर उनका नाम तक नहीं आ रहा है.

क्या कहते है बीजेपी-कांग्रेस के नेता

इस बात को खुद कांग्रेस के बड़े नेता भी मानते हैं कि तिवारी की उपस्थिति मात्र ही उनके लिए किसी संजीवनी से कम नहीं थी. कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना का कहना है कि तिवारी कांग्रेस के लिए एक ऊर्जा की तरह थे. कांग्रेस को उनकी कमी खल रही है.

पढ़ें-बीजेपी को झटका, बसपा प्रत्याशी अंतरिक्ष सैनी को मंडल महामंत्री का मिला समर्थन

तिवारी के वजूद को बीजेपी भी मानती है. बीजेपी प्रवक्ता विरेंद्र बिष्ट की मानें तो आज भी उत्तराखंड की जनता उनका आदर और सम्मान करती है. उनका उत्तराखंड के प्रति विशेष लगाव था. यहां की राजनीति में उनका बड़ा हस्तक्षेप था. अंतिम दिनों में उनका स्नेह और आशीर्वाद बीजेपी को मिला है.

एनडी तिवारी के राजनीतिक सफर पर एक नजर

  • आजादी के बाद 1951 में देश के पहले चुनाव में नैनीताल (उत्तर) सीट से सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीत कर उत्तर प्रदेश विधानसभा पहुंचे थे.
  • 1963 में कांग्रेस से जुड़े और 1965 में काशीपुर से कांग्रेस के टिकट पर जीत कर फिर विधनसभा पहुंचे और मंत्री परिषद में जगह पायी.
  • 1969 से 1971 तक नेहरू युवा केन्द्र संगठन के अध्यक्ष बने.
  • 1 जनवरी 1976 को पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने.
  • एनडी तिवारी (1976-77) (1984-85) (1988-89) 3 बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे.
  • 1986 से 1988 के बीच उन्होंने देश के विदेश मंत्री और वित्त मंत्री का पदभार भी संभाल. राजीव गांधी उस वक्त प्रधानमंत्री थे, 1990 में राजीव गांधी की हत्या के बाद एनडी तिवारी को प्रधनमंत्री का प्रबल दावेदार माना जाता था.
  • 2002 से 2007 तक वो उत्तर प्रदेश से अलग उत्तराखंड के भी मुख्यमंत्री रहे और अब तक पूरे 5 साल रहने वाले एक मात्र मुख्यमंत्री हैं.
  • 2007 से 2009 तक उन्हें आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया. इस दौरान उनका कार्यकाल विवादित भी रहा.
  • लंबी बीमारी के चलते 18 अक्टूबर 2018 को 93 साल की उम्र में एनडी तिवारी ने दिल्ली के मैक्स अस्पताल में अंतिम सांस ली थी.

देहरादून: चुनाव के दौरान उत्तराखंड की सियासत में ये पहला मौका होगा, जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और यूपी व उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी का नाम नहीं लिया जा रहा है. 1951 के पहले चुनाव से लेकर 2017 के विधानसभा चुनाव तक ऐसा कोई मौका नहीं था जब राजनीति में एनडी तिवारी की धमक न रही हो. उत्तराखंड की राजनीति हमेशा उनके आस-पास घूमा करती थी, लेकिन अब जब वो हमारे बीच नहीं हैं तो सियासत से उनका नाम गायब हो गया है.

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दो राज्यों केमुख्यमंत्री होने का गौरव प्राप्त

एनडी तिवारी के सियासी कद का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वो अकेले ऐसे नेता थे, जिन्हें दो राज्य (यूपी और उत्तराखंड) के मुख्यमंत्री होने का गौरव प्राप्त है. इसके अवाला वो केंद्र में मंत्री भी रहे चुके थे. यही कारण है कि उत्तराखंड समेत पूरा देश उनके सियासी कद को कभी भुला नहीं सकता है. कई बड़े नेता उनके नाम के साथ अपनी चुनावी यात्रा की शुरुआत करते थे.

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एनडी तिवारी के कद का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब उन्होंने सियासत से दूरी बना ली थी तब भी सूबे के बड़े नेता उनका नाम लेते नहीं थकते थे या यूं कहें कि सियासत उनके इर्द-गिर्द ही घूमा करती थी, लेकिन आज जब वो संसार छोड़ चुके हैं तो कोई उनका जिक्र भी नहीं कर रहा है. ऐसा लगता है जैसे उत्तराखंड की सियासत से कभी उनका कोई नाता ही न रहा हो.

कांग्रेस को उत्तराखंड में मजबूत किया

सत्ता में मौजूद बीजेपी हो या एनडी तिवारी की अपनी पार्टी कांग्रेस, हर किसी पर तिवारी का प्रभाव था. जबतक वो जिंदा थे तिवारी सबके लिए सियासत का केंद्र थे. हालांकि, बीजेपी से ज्यादा उम्मीद नहीं की जा सकी है, लेकिन कांग्रेस जिसे उन्होंने अपना पूरी जीवन दिया, उत्तराखंड में कांग्रेस की जमीन मजबूत करने में तिवारी का बड़ा योगदान दिया रहा है, आज वो कांग्रेस भी शायद तिवारी को भूल गई है. चुनाव में उनके पोस्टर तो दूर की बात है कांग्रेस की जुबान पर उनका नाम तक नहीं आ रहा है.

क्या कहते है बीजेपी-कांग्रेस के नेता

इस बात को खुद कांग्रेस के बड़े नेता भी मानते हैं कि तिवारी की उपस्थिति मात्र ही उनके लिए किसी संजीवनी से कम नहीं थी. कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना का कहना है कि तिवारी कांग्रेस के लिए एक ऊर्जा की तरह थे. कांग्रेस को उनकी कमी खल रही है.

पढ़ें-बीजेपी को झटका, बसपा प्रत्याशी अंतरिक्ष सैनी को मंडल महामंत्री का मिला समर्थन

तिवारी के वजूद को बीजेपी भी मानती है. बीजेपी प्रवक्ता विरेंद्र बिष्ट की मानें तो आज भी उत्तराखंड की जनता उनका आदर और सम्मान करती है. उनका उत्तराखंड के प्रति विशेष लगाव था. यहां की राजनीति में उनका बड़ा हस्तक्षेप था. अंतिम दिनों में उनका स्नेह और आशीर्वाद बीजेपी को मिला है.

एनडी तिवारी के राजनीतिक सफर पर एक नजर

  • आजादी के बाद 1951 में देश के पहले चुनाव में नैनीताल (उत्तर) सीट से सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीत कर उत्तर प्रदेश विधानसभा पहुंचे थे.
  • 1963 में कांग्रेस से जुड़े और 1965 में काशीपुर से कांग्रेस के टिकट पर जीत कर फिर विधनसभा पहुंचे और मंत्री परिषद में जगह पायी.
  • 1969 से 1971 तक नेहरू युवा केन्द्र संगठन के अध्यक्ष बने.
  • 1 जनवरी 1976 को पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने.
  • एनडी तिवारी (1976-77) (1984-85) (1988-89) 3 बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे.
  • 1986 से 1988 के बीच उन्होंने देश के विदेश मंत्री और वित्त मंत्री का पदभार भी संभाल. राजीव गांधी उस वक्त प्रधानमंत्री थे, 1990 में राजीव गांधी की हत्या के बाद एनडी तिवारी को प्रधनमंत्री का प्रबल दावेदार माना जाता था.
  • 2002 से 2007 तक वो उत्तर प्रदेश से अलग उत्तराखंड के भी मुख्यमंत्री रहे और अब तक पूरे 5 साल रहने वाले एक मात्र मुख्यमंत्री हैं.
  • 2007 से 2009 तक उन्हें आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया. इस दौरान उनका कार्यकाल विवादित भी रहा.
  • लंबी बीमारी के चलते 18 अक्टूबर 2018 को 93 साल की उम्र में एनडी तिवारी ने दिल्ली के मैक्स अस्पताल में अंतिम सांस ली थी.
Intro:सियासत से भी गायब एनडी तिवारी का नाम

एंकर- पूरे देश के साथ साथ उत्तराखंड का ये पहला चुनाव है जब सियासत के केंद्र में एनडी तिवारी का नाम नही है। 1951 से लेकर उत्तराखंड में हुए पिछले विधानसभा चुनावों तक एनडी तिवारी के नाम की धमक थी और चुनाव आते ही सियासत उनके आस-पास घूमा करती थी लेकिन आज जब वो हमारे बीच नही है तो सियासत से उनका नाम भी गायब है।


Body:वीओ- केवल उत्तराखंड राज्य ही नहीं बल्कि देश के नामी-गिरामी नेताओं में शुमार एनडी तिवारी आज भले ही हमारे बीच ना हो लेकिन देश और उत्तराखंड में उनके योगदान को और उनके सियासी कद को कभी भुलाया नहीं जा सकता यही वजह थी कि जब भी चुनाव होते थे तो बड़े बड़े नेताओं की चुनावी यात्रा भी उनके नाम से शुरू हुआ करती थी। यंहा तक कि जब वो अपने अंतिम समय में थे और ज्यादा सक्रिय नहीं थे लेकिन तब भी सियासत उनके इर्द-गिर्द घूमा करती थी। लेकिन आज जब वह नहीं है तो चुनाव में उनका कहीं कोई जिक्र तक नहीं है।

सत्ता में मौजूद बीजेपी हो या एनडी तिवारी की अपनी पार्टी कोंग्रेस हर किसी हर किसी पर तिवारी जी का प्रभाव था। उनके अंत समय तक सियासत ने उनके नाम को खूब भुनाया कभी वोट बटोरने के लिए तो कभी सुर्खियां बटोरने के लिए लेकिन आज जब वो नही है तो कोई उनका नाम लेने के लिए राजी नही है। बीजेपी हो या कांग्रेस जब तक वो जिंदा थे सबके लिए सियासत का केंद्र थे हालांकि बीजेपी से इतनी उम्मीद ना भी की जाए लेकिन कांग्रेस को उत्तराखंड में एक मजबूत जमीन देने वाले तिवारी का नाम आज भूले से भी कांग्रेस की जुबान पर नही आता है। क्या कहना है दोनों बड़े दलों का तिवारी के विषय मे आइये आपको सुनते हैं।
बाइट- कांग्रेस
बाइट- वीरेंद्र बिष्ट

एनडी तिवारी के राजनीतिक सफर पर एक नजर-----

-आजादी के बाद 1951 में देश के पहले चुनाव में नैनीताल (उत्तर) सीट से सोसलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीत कर उत्तरप्रदेश विधानसभा पहुंचे।
- 1963 में कांग्रेस से जुड़े और 1965 में काशीपुर से कांग्रेस के टिकट पर जीत कर फिर विधनसभा पहुंचे और मंत्री परिषद में जगह पायी।
- 1969 से 1971 तक नेहरू युवा केन्द्र संगठन के अध्यक्ष बने।
- 1 जनवरी 1976 को पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।
- एनडी तिवारी (1976-77) (1984-85) (1988-89) 3 बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।
- 1986 से 1988 के बीच उन्होंने देश के विदेश मंत्री और वित्त मंत्री का पदभार भी संभाल, राजीव गांधी उस वक्त प्रधानमंत्री थे, 1990 में राजीव गांधी की हत्या के बाद एनडी तिवारी को प्रधनमंत्री का प्रबल दावेदार माना जाता था।
-2002 से 2007 तक वो उत्तर प्रदेश से अलग उत्तराखंड के भी मुख्यमंत्री रहे और अब तक पूरे 5 साल रहने वाले एक मात्र मुख्यमंत्री हैं।
-2007 से 2009 तक उन्हें आंध्रप्रदेश के राज्यपाल बनाया गया, इस दौरान उनका कार्यकाल विवादित भी रहा।
- लंबी बीमारी के चलते 18 अक्टूबर 2018 को 93 वर्षीय एनडी तिवारी ने दिल्ली के मैक्स अस्पताल में अंतिम सांस ली और हमारे बीच नही रहे।




Conclusion:
Last Updated : Apr 1, 2019, 4:58 PM IST
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