ETV Bharat / state

जौनसार बावर में रानी और मुन्नी को करते हैं कुएं में विसर्जित, जानिए पांइता की मान्यता - Jaunsar Bawar Tribal Area

जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र में अष्टमी के दिन रानी और मुन्नी दो कन्याओं की प्रतिमा को बनाकर पूजा जाता है और दशहरे के दिन गांव के नजदीक एक कुएं में विसर्जित किया जाता है.

paina-festival-celebration-at-jaunsar-bawar
जौनसार बावर में पांइता पर्व की धूम
author img

By

Published : Oct 15, 2021, 5:29 PM IST

विकासनगर: देशभर में दशहरे के दिन रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ का पुतला दहन की परंपरा है, लेकिन देहरादून के जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र के ग्राम उद्पाल्टा में श्राप से मुक्ति के लिए दो कन्याओं की घास की प्रतिमाओं को बनाकर जल में विसर्जित करने की परंपरा है.

बताया जाता है कि सदियों पहले उद्पाल्टा के गांव में दो परिवारों में दो कन्या रानी व मुन्नी थी, जो गांव के नजदीक कुएं में पानी लेने गई थी. एक दिन एक कन्या का पैर फिसलने से वह कुएं में गिर गई, जिससे उसकी मौत हो गई. इसके लिए परिजनों ने दूसरी कन्या को जिम्मेदार ठहराया था. ग्रामीणों के ताने सुन दूसरी कन्या ने भी उसी कुएं में छलांग लगाकर अपनी जान दे दी.

कुछ दिनों बाद दोनों कन्याओं का श्राप ग्रामीणों को लगा, तब से श्राप से मुक्ति पाने के लिए उद्पाल्टा व कुरौली गांव के लोग दोनों कन्याओं की घास की प्रतिमा बनाकर जल में विसर्जित करने की परंपरा का निर्वहन करते हैं. यह परंपरा आज तक चली आ रही है. उनकी याद में दशहरे के दिन पाइंता पर्व मनाते हैं, जिसमें दोनों गांव के लोग कियाणी धार पर गागली युद्ध करते हैं. उसके बाद सभी ग्रामीण एक दूसरे को गले लगाकर पंचायती आंगन में सामूहिक लोक नृत्य करते हैं.

ये भी पढ़ें: अल्मोड़ा में विसर्जन के साथ दुर्गा महोत्सव का समापन, भाव-विह्वल हुए भक्त

ग्रामीण कश्मीरी राय ने बताया कि सदियों पहले गांव में पीने के पानी की व्यवस्था नहीं थी. इसलिए लोग गांव से थोड़ी दूर पर पानी भरने जाते थे. गांव में दो परिवारों की दो कन्याएं सहेलियां थी. दोनों कुएं के पास पानी भरने गई, जिसमें से एक कन्या का पैर फिसल गया. दूसरी कन्या को गांव वालों ने उस कन्या का मौत का जिम्मेदार बताया. ताने सुनकर दूसरी कन्या ने भी कुंए में छलांग लगाकर अपनी जान दे दी.

वहीं, गांव के स्याणा राजेंद्र सिंह राय ने कहा नवरात्रों में अष्टमी के दिन दो परिवार अलग-अलग रानी और मुन्नी की प्रतिमाएं बनाते हैं. जिन्हें दशहरे के दिन कुएं में विसर्जित किया जाता हैं. दोनों कन्याओं की मौत से ग्रामीणों को श्राप लगा था, दोनों परिवारों की आपसी दुश्मनी हो गई थी, जिस कारण गागली युद्ध किया जाता है. माना जाता है कि दशहरे के दिन अगर दोनों परिवारों में दो कन्या जन्म लेगी तो यह परंपरा समाप्त हो जाएगी.

विकासनगर: देशभर में दशहरे के दिन रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ का पुतला दहन की परंपरा है, लेकिन देहरादून के जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र के ग्राम उद्पाल्टा में श्राप से मुक्ति के लिए दो कन्याओं की घास की प्रतिमाओं को बनाकर जल में विसर्जित करने की परंपरा है.

बताया जाता है कि सदियों पहले उद्पाल्टा के गांव में दो परिवारों में दो कन्या रानी व मुन्नी थी, जो गांव के नजदीक कुएं में पानी लेने गई थी. एक दिन एक कन्या का पैर फिसलने से वह कुएं में गिर गई, जिससे उसकी मौत हो गई. इसके लिए परिजनों ने दूसरी कन्या को जिम्मेदार ठहराया था. ग्रामीणों के ताने सुन दूसरी कन्या ने भी उसी कुएं में छलांग लगाकर अपनी जान दे दी.

कुछ दिनों बाद दोनों कन्याओं का श्राप ग्रामीणों को लगा, तब से श्राप से मुक्ति पाने के लिए उद्पाल्टा व कुरौली गांव के लोग दोनों कन्याओं की घास की प्रतिमा बनाकर जल में विसर्जित करने की परंपरा का निर्वहन करते हैं. यह परंपरा आज तक चली आ रही है. उनकी याद में दशहरे के दिन पाइंता पर्व मनाते हैं, जिसमें दोनों गांव के लोग कियाणी धार पर गागली युद्ध करते हैं. उसके बाद सभी ग्रामीण एक दूसरे को गले लगाकर पंचायती आंगन में सामूहिक लोक नृत्य करते हैं.

ये भी पढ़ें: अल्मोड़ा में विसर्जन के साथ दुर्गा महोत्सव का समापन, भाव-विह्वल हुए भक्त

ग्रामीण कश्मीरी राय ने बताया कि सदियों पहले गांव में पीने के पानी की व्यवस्था नहीं थी. इसलिए लोग गांव से थोड़ी दूर पर पानी भरने जाते थे. गांव में दो परिवारों की दो कन्याएं सहेलियां थी. दोनों कुएं के पास पानी भरने गई, जिसमें से एक कन्या का पैर फिसल गया. दूसरी कन्या को गांव वालों ने उस कन्या का मौत का जिम्मेदार बताया. ताने सुनकर दूसरी कन्या ने भी कुंए में छलांग लगाकर अपनी जान दे दी.

वहीं, गांव के स्याणा राजेंद्र सिंह राय ने कहा नवरात्रों में अष्टमी के दिन दो परिवार अलग-अलग रानी और मुन्नी की प्रतिमाएं बनाते हैं. जिन्हें दशहरे के दिन कुएं में विसर्जित किया जाता हैं. दोनों कन्याओं की मौत से ग्रामीणों को श्राप लगा था, दोनों परिवारों की आपसी दुश्मनी हो गई थी, जिस कारण गागली युद्ध किया जाता है. माना जाता है कि दशहरे के दिन अगर दोनों परिवारों में दो कन्या जन्म लेगी तो यह परंपरा समाप्त हो जाएगी.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.