देहरादून: चित्रकारी अपने मन की भावनाओं को बाहर लाने का सबसे अच्छा माध्यम है. विश्व आपदा न्यूनीकरण दिवस के मौके पर राजधानी देहरादून में चित्रकारों ने अपनी कला के माध्यम से पहाड़ में आई आपदाओं को अपने चित्रों में उकेरा. चित्रकारों का कहना है कि उन्होंने अपनी चित्रकारी में उत्तराखंड की प्राकृतिक सुंदरता के अलावा जलवायु परिवर्तन जैसे ज्वलंत मुद्दों को भी जगह दी है.
"आपदा और हम"
कुमाऊं विश्वविद्यालय में चित्रकला विभाग में प्रोफेसर शिखर चंद जोशी ने अपनी पेंटिंग में उस संवेदनशील मंजर को उकेरा है. जो आपदा के वक्त नजर आता है. जोशी ने अपनी चित्रकारी के बारे में बताया है कि उनकी इस तस्वीर में आपदा के समय किस तरह से एक दूसरे की मदद करनी चाहिए, वह दिखाया गया है. कुमाऊं विश्वविद्यालय से आए शेखर चंद जोशी की ये तस्वीर हमें सीख देती है कि हम आपदा के समय जागरूक रहें, सतर्क रहें और अपने आसपास आपदा में फंसे लोगों की मदद करें.
"आपदा पर लगाम"
देहरादून के चित्रकार भारत भंडारी ने अपनी चित्रकारी में एक घोड़े को हमारी प्रकृति के सूचक के रूप में दिखाया है. भंडारी का कहना है कि हमारी प्रकृति इसी घोड़े जैसी है, जो मुंह से आग उगल रही है और पूंछ से पानी का सैलाब ला रहा है. उनके अनुसार मजबूत घोड़े की प्रवृत्ति को बदला नहीं जा सकता है, लेकिन इंसान इस पर लगाम जरूर लगा सकता है. चित्रकार के अनुसार प्रकृति रूपी इस घोड़े को जो कि अपने आप में खूबसूरत है. मजबूत है और खतरनाक भी है उसको हम बदल नहीं सकते हैं. लेकिन इस पर लगाम कसने जैसा आपदा न्यूनीकरण के दिशा में हम प्रयास जरूर कर सकते हैं.
"पति और पत्थर"
देहरादून के वरिष्ठ चित्रकार सीवी रसैली ने अपनी पेंटिंग में पत्थर और पति के रूप में पेड़ों का हमारे पर्यावरण और खासतौर से आपदा पर कैसे असर होता है, उसे दर्शाया है. सीवी रसैली ने अपनी तस्वीर में दिखाया है कि पत्थर यानी चट्टान कठोर और खतरनाक चीज है, लेकिन इसे संभालने के लिए पत्तियों की जरूरत पड़ती है. पत्थर को नियंत्रित करने में केवल पत्तियां ही काम आ रही हैं और पत्तियों की हमारी प्रकृति में क्या भूमिका है? वह भी पेंटिंग में दर्शाया है. रसैली के अनुसार हमारी प्रकृति के लिए पेड़ अटूट हिस्सा हैं और आपदा के समय में भी यही पेड़ भूमि कटाव और तमाम नुकसान को कम करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. चित्र का संदेश है कि पेड़ लगाएं.