देहरादून: 90 के दशक में कश्मीर पंडितों पर हुए नरसंहार की वास्तविक घटना का दावा कर बनाई गई हिंदी फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' की चर्चा इन दिनों देशभर में हो रही है. इस फिल्म में दिखाए गए पूरे घटनाक्रम का सच देशवासियों के सामने आने के बाद आज हर कोई कश्मीर पंडितों पर हुए हिंसक अत्याचार और प्रताड़ना को लेकर नाराजगी जाहिर कर रहा है.
'द कश्मीर फाइल्स' के जरिये कश्मीरी पंडितों के पलायन का वास्तविक सच सामने आने के बाद अब देशभर में कश्मीरी पंडित सामने आकर उस भयावह नरसंहार का दर्द एक बार फिर बयां कर रहे हैं. इसी कड़ी में राजधानी देहरादून में बसे कश्मीरी महासभा के लोगों से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की, जिसमें 'द कश्मीर फाइल्स' फिल्म की वास्तविकता और अनछुई दर्दनाक घटनाओं के बारे में विशेष चर्चा की गई.
देहरादून में बसे कश्मीरी पंडितों के मुताबिक 'द कश्मीर फाइल्स' फिल्म में दिखाई गई घटना 100 प्रतिशत सच है लेकिन फिल्म में इस वास्तविक त्रासदी और नरसंहार को 10% ही दिखाया जा सका है. 90 फीसदी इस भयानक त्रासदी को अभी और भी दिखाया जा सकता है. कश्मीरी पंडितों के मुताबिक, एक लोकतांत्रिक आजाद देश के उस दौर में कश्मीर घाटी में घट रहे घटनाक्रम को पूरा सरकारी तंत्र और राजनीतिक प्रतिनिधि पंगु बनकर तमाशा देखते रहे. तब ऐसा लग रहा था कि दुनिया से इंसानियत का नामोनिशान मिट गया है.
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हिंदू नहीं बल्कि हिंदुस्तानी होने की कीमत चुकानी पड़ी: ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए देहरादून कश्मीरी सभा के लोगों ने बताया कि 'द कश्मीर फाइल्स' फिल्म से सच्चाई सबके सामने आई है. अभी बहुत कुछ ऐसा दर्दनाक और भयावह है जिसे दिखाया या बताया नहीं गया है. कश्मीरी पंडितों के मुताबिक, उस दौर में उन्हें हिंदू होने के कारण नरसंहार नहीं सहना पड़ा, बल्कि असली वजह उनका हिंदुस्तानी होना था, जिसकी कीमत उन्हें चुकानी पड़ी.
पाकिस्तान की सरपरस्ती में हुआ सबसे ज्यादा कत्लेआम: कश्मीरी पंडितों के मुताबिक, उस दौर में इस कदर कत्लेआम मचा कि लाशों तक को उठाने वाले परिजनों को भी मौत के घाट उतार दिया गया. कश्मीर घाटी में एक विशेष समुदाय के लोगों ने इंसानियत को तार-तार किया. इस दौरान सारा सरकारी तंत्र असहाय और मूकदर्शक बना रहा.
एक के बाद एक कश्मीरी पंडितों के घर पर पोस्टर चिपकाये गये. उन्हें हर दिन खत्म करने की धमकी दी जाती रही. इस सारे घटनाक्रम में पाकिस्तान की भूमिका सबसे अहम थी. पाकिस्तान की ओर से ही हथियार उपलब्ध करवाये गये, जिससे इस नरसंहार को अंजाम दिया गया. कश्मीर घाटी में खुद को हिंदुस्तानी कहने वाले कश्मीरी पंडितों को घाटी से जबरन भगाया गया.
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पलायन के बाद कश्मीर पंडितों ने झेली यातनाएं: कश्मीरी पंडितों के मुताबिक, 1990 में जिस तरह की त्रासदी का उन्होंने सामना किया, वो किसी काले अध्याय से कम नहीं था. तब वो लोग किसी तरह जान बचाकर अपने बच्चे, बूढ़े मां-बाप को फटेहाल लेकर रातों-रात वहां से निकल गये. इस दौरान उन्होंने खानबदोशों का जीवन जीना पड़ा. तब वो अपना परिवार, जिंदगी भर की कमाई, आशियाना और तमाम संपत्ति को यूं ही छोड़कर वहां से जान बचाकर निकल आये.
उन्होंने बताया कश्मीरी पंडित जम्मू से लेकर दिल्ली तक तंबूओं में रहे, जहां उन्होंने कई यातनाएं झेली. उस कालखंड में काफी लोग डिप्रेशन, सांप- कीड़े के काटने, भूख-प्यास और कई तरह की बीमारियों से मरे. उस समय उनके पास तन ढकने के लिए कपड़े नहीं थे. खाने के लिए भोजन नहीं था. कश्मीर के नरसंहार के बाद पलायन करने वाले कश्मीरी पंडित आज भी उन कड़वी यादों को नहीं भूल सके हैं.
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हमारी नई पीढ़ी कश्मीर में विस्थापित हो: कश्मीर पंडितों के मुताबिक, उनकी पीढ़ी ने जो देखा वह उनकी जिंदगी का सबसे भयावह एवं नर्क से बत्तर जीवन था. ऐसे में अब वे सरकार से अपील करते हैं कि उनकी आगे नई पीढ़ी को एक व्यवस्थित तरीके से कश्मीर में विस्थापित किया जाए, जिससे सदियों से कश्मीरी पंडितों की कश्मीर घाटी की मिट्टी से जुड़ी जिंदगी को आने वाली पीढ़ियां भी देख सकें.
क्या है फिल्म की कहानी? फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' का निर्देशन विवेक अग्निहोत्री ने किया है. फिल्म 1990 में कश्मीरी पंडितों की दर्दनाक कहानी को बयां करती है. बता दें, अनुपम खेर खुद कश्मीर से संबंध रखते हैं और हाल ही में एक्टर ने इस त्रासदी के बारे में सोशल मीडिया पर बताया था. ‘द कश्मीर फाइल्स’ एक सच्ची कहानी है. यह कश्मीरी पंडितों की पहली पीढ़ी के लोगों के इंटरव्यू लेकर तैयार की गई है. त्रासदी के 32 साल होने पर एक्टर ने फिल्म के कई BTS (Behind The Scene) तस्वीरें भी शेयर की थी. विवेक अग्निहोत्री ने मीडिया से बातचीत में कहा है कि उन्होंने न किसी को सही बताया, न किसी को गलत. सिर्फ वही दिखाया जो इतिहास में हुआ.