देहरादून: पिछले कुछ समय से उत्तराखंड भाजपा में आपसी खटपट काफी बढ़ गई हैं, जो कि भारतीय जनता पार्टी के लिए चिंता का सबब है. वहीं, भाजपा की आपसी खटपट विपक्षी दलों के लिए मौका बन रही है. चुनावी साल से पहले हर कोई इस आपसी तनातनी को भुनाने की जद्दोजहद में लगा है. विपक्षी दल उम्मीद लगाए बैठे हैं कि उत्तराखंड मे 2017 का इतिहास फिर से दोहराएगा जाएगा. मगर, इस बार 'भूकंप' का केंद्र उत्तराखंड भाजपा होगी.
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हालांकि, चुनावी साल आते ही दलों में आपसी खटपट और खींचातानी आम बात है. मगर भाजपा में ये लड़ाई वर्चस्व की लड़ाई है. जिससे पार्टी में टूट की संभावनाएं ज्यादा नजर आती हैं. पार्टी में ये लड़ाई बस इतनी ही नहीं है. प्रदेश में बेलगाम अफसरशाही के बहाने मंत्री अपनी सरकार को घेरने में भी लगे रहते हैं. इक्का-दुक्का मंत्रियों को छोड़ दिया जाये तो अधिकतर मंत्री अफसर इस मामले में अपनी पीड़ा जाहिर भी कर चुके हैं.
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यह सब परिस्थितियां आगामी 2022 के चुनाव के नजदीक आते ही और ज्यादा विकट होती दिख रही हैं. बस यही वह बात है जो विपक्षी दलों को उत्साहित कर रही है. चुनावी साल नजदीक है, लिहाजा विरोधियों को लगता है कि चुनाव से ठीक पहले भाजपा में गदर मचेगा. जिससे कुछ ताकतवर नेता उनकी भी शरण में आएंगे. इसी बात को विरोधी दल अपनी जीत के ट्रंपकार्ड मान रहे हैं. कांग्रेस के प्रदेश सचिव मथुरा दत्त जोशी कहते हैं कि आज के हालात से साफ है कि पार्टी नेताओं में जबरदस्त उबाल है. प्रदेश के युवा कभी भी ज्वालामुखी बनकर फूट सकते हैं.
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प्रदेश में पनप रहे इन हालातों पर कांग्रेस की ही नजर नहीं है, बल्कि आम आदमी पार्टी भी इस मामले में आंख और बांहे खोले खड़ी है. आम आदमी पार्टी ने तो भाजपा के ऐसे विधायकों को पीड़ित बताकर उन्हें अपनी पार्टी में शामिल होने तक का न्योता दे दिया है. वैसे भी आम आदमी पार्टी को उत्तराखंड में जाने-माने और बड़े चेहरों की सख्त जरूरत है. विधानसभा चुनाव से पहले उसे भाजपा के अंदर सिर फुटव्वल की खबर राहत लग रही है.
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आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता रविंद्र आनंद कहते हैं कि भाजपा में जो हालात हैं वह किसी से छिपे नहीं हैं. उन्होंने कहा जो भी आम आदमी पार्टी की रीति नीति पर विश्वास करता है वह आम आदमी पार्टी में शामिल हो सकता है.
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भाजपा में दिग्गजों की चुप्पी भी है बड़ा संकेत
2017 में जो कांग्रेस के साथ हुआ क्या वह भाजपा में भी दोहराया जाएगा, यह कहना अभी जल्दबाजी होगा. मगर भाजपा के भीतर दिग्गजों की चुप्पी पार्टी के अंदर दबे हुए ज्वालामुखी का जरूर दर्शाती है. भाजपा में आने के बाद विजय बहुगुणा को अब तक कोई बड़ा पद नहीं मिल पाया है, लेकिन फिर भी वह शांत हैं. सतपाल महाराज अपनी चुप्पी से ही त्रिवेंद्र सरकार के सिस्टम खिलाफ नाराजगी जाहिर करते रहे हैं. विधायक उमेश शर्मा काऊ तो खुलेआम सरकार विरोधी हैं. रेखा आर्य ने भी अफसरों के बहाने मोर्चा खोला हुआ है. सरकार में हरक सिंह रावत की नाराजगी से कौन वाफिफ नहीं है? कुम मिलाकर कहा जाये तो कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए ये तमाम दिग्गज नेता विभिन्न मामलों को लेकर नाराज चल रहे हैं.
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पुराने भाजपाई भी दिखाते रहे हैं आंख
यहां विरोध और नाराजगी का सवाल केवल कांग्रेस से आए नेताओं के साथ ही नहीं है. पुराने और सीनियर भाजपाई भी मौका मिलने पर सरकार को आंख दिखाने से गुरेज नहीं कर रहे हैं. पिछले दिनों बिशन सिंह चुफाल की नाराजगी को सबने देखा है. हरभजन सिंह चीमा भी ईटीवी भारत से बात करते हुए अपना दुखड़ा बयां किया. पूरन सिंह फर्त्याल से लेकर कुमाऊं में हरीश रावत सरीखे नेता को धूल चटाने वाले राजेश शुक्ला भी गाहे-बगाहे सिस्टम के बहाने सरकार को कटघरे में खड़ा करते रहे हैं. साफ है कि सीनियर और पुराने भाजपाई भी मौके की तलाश में हैं.
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ऐसा नहीं है कि इन हालातों का और विकट परिस्थितियों का बोध भाजपाइयों को ना हो, संगठन भी जानता है और सरकार भी इसे महसूस कर रही है. मगर, इस सब से आंख फेरकर फिलहाल भाजपा आगामी चुनावी कार्यक्रमों की तैयारियों को ही प्राथमिकता में ले रही है. भाजपा के प्रदेश महामंत्री कुलदीप कुमार कहते हैं कि पार्टी के अंदर एकजुटता बनी हुई है. फूट जैसी स्थिति पार्टी में किसी भी स्तर पर नहीं है. लिहाजा, पार्टी 2022 में एक बार फिर इसी एकजुटता के चलते सरकार बनाने जा रही है.