देहरादून: हाईकोर्ट ने राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी सेवाओं में 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण के संबंध में प्रार्थना पत्र को निरस्त कर दिया है. जिसके बाद प्रदेश के 730 राज्य आंदोलनकारियों की नौकरी पर संकट खड़ा हो गया है. प्रदेश सरकार की हीलाहवाली और ठोस पैरवी न होने के कारण ये सब हुआ है. भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि भाजपा सरकार ने राज्य आंदोलनकारी आरक्षण एक्ट के लिए कैबिनेट से प्रस्ताव पारित कर अनुमोदन को राज्यपाल को भेजा है. अब नई सरकार राज्यपाल के अनुमोदन मिलने के बाद जल्द ही कानून बनाकर कोर्ट को अवगत करवाएगी.
राज्य आंदोलनकारी व भाजपा प्रवक्ता रविंद्र जुगरान का कहना है कि कोर्ट ने जिस प्रकार से राज्य आंदोलकारियों को नौकरी पर लगाए जाने के 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण के प्रार्थना पत्र निरस्त कर दिया है उसमें कहीं न कहीं सबकी गलती है. यह मामला आज से नहीं बल्कि पिछले 10 से 12 वर्षों से कोर्ट में चल रहा था. इसके लिए किसी एक को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है. भारतीय जनता पार्टी राज्य आंदोलनकारियों के लिए प्रतिबद्ध है. पूर्व में धामी सरकार ने राज्य आंदोलनकारियों के आरक्षण के लिए कैबिनेट से प्रस्ताव पारित कर अनुमोदन के लिए राज्यपाल को भेजा है.
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रविंद्र जुगरान ने कहा उसके बाद आचार संहिता लगने के कारण यह मामला रुक गया. अब राज्य सरकार इस एक्ट के अनुमोदन के लिए दोबारा राज्यपाल से अनुरोध करेगी. जल्द ही राज्य आंदोलनकारियों के लिए कानून बनाकर 730 लोगों की नौकरी को बहाल रखा जाएगा. बता दें 2004 में तत्कालीन एनडी तिवारी सरकार ने राज्य आंदोलनकारियों के क्षैतिज आरक्षण के लिए शासनादेश लेकर आई थी.
उसके बाद 2011 में हाईकोर्ट ने इस रोक लगा दी थी. बाद में कोर्ट ने इसे जनहित याचिका में तब्दील कर 2015 में सुनवाई की. उसके बाद कांग्रेस सरकार इस पर विधेयक लाई और राजभवन को भेजा. लेकिन वह वापस नहीं आया. उसके बाद कोर्ट ने 30 दिन के भीतर सरकार से जवाब मांगा था.