देहरादून: उत्तराखंड कांग्रेस जहां चंपावत उपचुनाव में नए प्रत्याशी को मैदान में उतारकर पहले ही इस चुनाव में गंभीर नहीं होने के आरोपों से घिरी हुई है. वहीं, अब मतदान के दो दिन पहले तक भी कांग्रेस के किसी केंद्रीय नेता के चुनाव प्रचार के लिए नहीं पहुंचने से यह आरोप और भी ज्यादा मजबूत हो गए हैं. आपको बता दें कि चंपावत उपचुनाव के लिए 40 नेताओं की मुख्य रूप से स्टार प्रचारक के रूप में सूची जारी की गई थी. कांग्रेस के स्टार प्रचारक की सूची में पार्टी के केंद्रीय बड़े नेताओं के नाम शामिल किए गए थे, हैरत की बात यह है कि इस स्टार्ट सूची में जिन बड़े केंद्रीय नेताओं के नाम रखे गए उनमें से एक भी नेता ने चंपावत उपचुनाव में प्रचार के लिए आने की जहमत नहीं उठाई.
इस मामले पर भाजपा नेता संजीव वर्मा कहते हैं कि कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व को पहले ही यह पता है कि चंपावत उपचुनाव में कांग्रेस का प्रत्याशी नहीं जीत रहा है. लिहाजा कोई भी पार्टी का केंद्रीय नेता इस चुनाव में प्रचार के लिए नहीं पहुंचा. संजीव वर्मा कहते हैं कि कांग्रेस में अंदर की गुटबाजी इतनी ज्यादा है कि उत्तराखंड के पार्टी के बड़े नेता भी केवल औपचारिकता निभा रहे हैं. हरीश रावत से लेकर यशपाल आर्य तक भी इस चुनाव में कुछ खास गंभीर नहीं दिख रहे हैं.
चंपावत उपचुनाव के लिए स्टार प्रचारकों की जो पहली सूची जारी की गई थी. उसमें केंद्रीय नेता के रूप में सबसे ऊपर नाम राहुल गांधी का था. इसके अलावा प्रियंका गांधी, केसी वेणुगोपाल, मुकुल वासनिक, रणदीप सिंह सुरजेवाला और सचिन पायलट तक का नाम स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल था. चौंकाने वाली बात यह है कि कोई भी बड़ा नेता प्रचार के लिए चंपावत नहीं आया.
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हालांकि, इस बात का जवाब कांग्रेस नेता इस रूप में देते हैं कि पार्टी के प्रदेश स्तरीय बड़े नेता चुनाव के लिए जुटे हुए हैं और क्योंकि हार का डर भाजपा को है और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपनी हार के डर के कारण ही केंद्रीय नेताओं को बुला रहे हैं. यही नहीं, गुटबाजी के कारण मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी प्रदेश के नेताओं पर विश्वास नहीं कर रहे और उन्होंने योगी आदित्यनाथ को बुलाकर अपने डर को जाहिर कर दिया है.
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वैसे तो भाजपा की तरफ से भी केंद्रीय नेताओं की बड़ी फौज चुनाव प्रचार के लिए नहीं दिखाई दी, लेकिन पार्टी के फायर ब्रांड योगी आदित्यनाथ से लेकर पूरी सरकार चंपावत में डटी हुई है. यही नहीं संगठन स्तर पर बूथ लेवल तक महीनों से पार्टी नेताओं को ड्यूटी पर लगाया गया है. जाहिर है कि चुनाव में जीत का दबाव भाजपा पर तो है लेकिन कांग्रेस इस चुनाव को जिस तरह लड़ रही है. उसने पार्टी की जीत को लेकर आशंकाओं को जन्म दिया है और पार्टी नेताओं की गंभीरता पर भी सवाल खड़े किए है.