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राष्ट्रीय विज्ञान दिवस: 18वीं शताब्दी में कैसे मापी गई थी पृथ्वी की गोलाई, देखें वीडियो

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Published : Feb 28, 2020, 6:23 PM IST

Updated : Feb 28, 2020, 7:01 PM IST

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के मौके पर ETV BHARAT आपको दिलचस्प कहानी बताने जा रहा है, कैसे पृथ्वी की गोलाई मापने का काम हुआ.

Raman Effect
कैसे मापी गई थी पृथ्वी की गोलाई

देहरादून: प्रकाश के प्रकीर्णन और रमन इफेक्ट की खोज के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले एशियाई भौतिक वैज्ञानिक सीवी रमन आधुनिक भारत के महान वैज्ञानिक माने जाते हैं. रमन इफेक्ट की खोज की स्मृति में हर साल 28 फरवरी का दिन राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है. देहरादून में स्थित देश के सबसे पुराने विज्ञान भवन सर्वे ऑफ इंडिया में साइंटिस्ट अरुण कुमार ने ETV BHARAT से खास बातचीत की. उन्होंने बताया कि वैज्ञानिक विलियम्स लैमटम ने ही भारत में पृथ्वी की गोलाई मापने का काम शुरू किया था.

कैसे मापी गई थी पृथ्वी की गोलाई

भारत में वर्ष 1767 में सर्वे ऑफ इंडिया की स्थापना हुई. पहले दिन से ही सर्वे ऑफ इंडिया का काम मैपिंग करना था. पृथ्वी के छोटे-छोटे हिस्से की मैपिंग का काम शुरू हुआ. सर्वे ऑफ इंडिया में तत्कालीन साइंटिस्ट विलियम्स लैमटम ने 1802 में पृथ्वी के आकार मापने का काम 78 डिग्री देशांतर से शुरू किया. जो भारत के कन्याकुमारी, भोपाल, नागपुर, मुंबई और दिल्ली से होते हुए देहरादून के ऊपर से निकल जाता है. हालांकि 1823 में इस कार्य के दौरान विलियम्स जब नागपुर पहुंचे तो बीमारी की वजह से उनकी मौत हो गई थी. ऐसे में पृथ्वी को माप कर संभावनाओं को जानने का काम मसूरी के जॉर्ज एवरेस्ट ने आगे बढ़ाया.

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1802 से शुरू हुआ पृथ्वी को मापने का कार्य 1841 में समाप्त हुआ. साइंटिस्ट अरुण कुमार के मुताबिक, 1823 में विलियम्स के अधूरे कार्य को जॉर्ज एवरेस्ट ने आगे बढ़ाया. पृथ्वी को मापते हुए वे मसूरी के पास पहुंचे. उन्होंने हाथी पांव के पास अपना बेस बनाया. 1841 में मसूरी में ही उन्होंने पृथ्वी को मापने का कार्य पूरा किया. सर्वे ऑफ इंडिया के वैज्ञानिक अरुण कुमार के मुताबिक, 18वीं शताब्दी में जटिल और जोखिम परिस्थितियों के साथ उस जमाने में ऐतिहासिक यंत्रों के माध्यम से पृथ्वी को मापना और संभावनाओं को तलाश करने का काम अकल्पनीय था. सर्वे ऑफ इंडिया ने अपने साइंटिस्ट विलियम्स और उनके बाद जॉर्ज एवरेस्ट के इस कार्य में इस्तेमाल होने वाले सभी तरह के यंत्रों और रिसर्च पेपर्स को आज भी सहेज कर रखा है.

देहरादून: प्रकाश के प्रकीर्णन और रमन इफेक्ट की खोज के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले एशियाई भौतिक वैज्ञानिक सीवी रमन आधुनिक भारत के महान वैज्ञानिक माने जाते हैं. रमन इफेक्ट की खोज की स्मृति में हर साल 28 फरवरी का दिन राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है. देहरादून में स्थित देश के सबसे पुराने विज्ञान भवन सर्वे ऑफ इंडिया में साइंटिस्ट अरुण कुमार ने ETV BHARAT से खास बातचीत की. उन्होंने बताया कि वैज्ञानिक विलियम्स लैमटम ने ही भारत में पृथ्वी की गोलाई मापने का काम शुरू किया था.

कैसे मापी गई थी पृथ्वी की गोलाई

भारत में वर्ष 1767 में सर्वे ऑफ इंडिया की स्थापना हुई. पहले दिन से ही सर्वे ऑफ इंडिया का काम मैपिंग करना था. पृथ्वी के छोटे-छोटे हिस्से की मैपिंग का काम शुरू हुआ. सर्वे ऑफ इंडिया में तत्कालीन साइंटिस्ट विलियम्स लैमटम ने 1802 में पृथ्वी के आकार मापने का काम 78 डिग्री देशांतर से शुरू किया. जो भारत के कन्याकुमारी, भोपाल, नागपुर, मुंबई और दिल्ली से होते हुए देहरादून के ऊपर से निकल जाता है. हालांकि 1823 में इस कार्य के दौरान विलियम्स जब नागपुर पहुंचे तो बीमारी की वजह से उनकी मौत हो गई थी. ऐसे में पृथ्वी को माप कर संभावनाओं को जानने का काम मसूरी के जॉर्ज एवरेस्ट ने आगे बढ़ाया.

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1802 से शुरू हुआ पृथ्वी को मापने का कार्य 1841 में समाप्त हुआ. साइंटिस्ट अरुण कुमार के मुताबिक, 1823 में विलियम्स के अधूरे कार्य को जॉर्ज एवरेस्ट ने आगे बढ़ाया. पृथ्वी को मापते हुए वे मसूरी के पास पहुंचे. उन्होंने हाथी पांव के पास अपना बेस बनाया. 1841 में मसूरी में ही उन्होंने पृथ्वी को मापने का कार्य पूरा किया. सर्वे ऑफ इंडिया के वैज्ञानिक अरुण कुमार के मुताबिक, 18वीं शताब्दी में जटिल और जोखिम परिस्थितियों के साथ उस जमाने में ऐतिहासिक यंत्रों के माध्यम से पृथ्वी को मापना और संभावनाओं को तलाश करने का काम अकल्पनीय था. सर्वे ऑफ इंडिया ने अपने साइंटिस्ट विलियम्स और उनके बाद जॉर्ज एवरेस्ट के इस कार्य में इस्तेमाल होने वाले सभी तरह के यंत्रों और रिसर्च पेपर्स को आज भी सहेज कर रखा है.

Last Updated : Feb 28, 2020, 7:01 PM IST
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