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वोट बैंक का हिस्सा बनने तक सीमित 'आधी आबादी', टिकट देने में पार्टियां दिखीं कंजूस

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Published : Jul 10, 2021, 7:40 PM IST

राज्य गठन की बात करें तो महिला शक्ति ही थी, जिसने राज्य आंदोलन को गति देने का काम करते हुए बेहद अहम भूमिका निभाई. लेकिन जब टिकट देने की बारी आती है तो सभी पार्टियां महिलाओं को नजर अंदाज कर देती हैं.

uttarakhand politics
महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने से कतराती राष्ट्रीय पार्टियां.

देहरादून: सभी राजनीतिक दल महिलाओं को नेतृत्व में तवज्जो देने की बात तो करते हैं, लेकिन चुनावी शंखनाद खत्म होते ही उनके प्रतिनिधित्व को दरकिनार कर दिया जाता है. प्रदेश की 'आधी आबादी', जिन्होंने प्रदेश के गठन में महत्वपूर्व भूमिका निभाई थी. सभी पार्टियां चुनाव खत्म होने के साथ ही उन्हें हाशिए पर रख देती है. टिकट बंटवारे में खानापूर्ति के लिए कुछ महिलाओं को उम्मीदवारी का टिकट थमा दिया जाता है.

उत्तराखंड में 'आधी आबादी' को रिझाने के प्रयास राजनीतिक दलों की प्राथमिकताओं में रहे हैं. इसको लेकर महिलाओं के लिए कई योजनाएं भी सरकारों द्वारा चलाई जाती रही हैं, लेकिन जब बात सरकारों में प्रतिनिधित्व को लेकर आती है तो उत्तराखंड की आधी आबादी इस मामले में काफी पीछे नजर आती है. यह हालत तब है जब महिलाओं के वोट प्रदेश में निर्णायक भूमिका में हैं और करीब 'आधी आबादी' महिलाओं की ही है.

वोट बैंक तक ही सीमित 'आधा आबादी'

उत्तराखंड में भूमि अधिकार, भूमि खरीदने में स्टांप ड्यूटी शुल्क में छूट समेत महिला विकास की कई योजनाएं संचालित की जा रही है, जो महिलाओं को आकर्षित करती है. लेकिन विधानसभा और लोकसभा में प्रतिनिधित्व के तौर पर कोई भी दल महिलाओं को तवज्जों देने के मूड में नहीं दिखता.

दरअसल, हाल ही में मोदी सरकार में मंत्रिमंडल विस्तार हुआ, जिसमें कुल 7 महिलाओं को मंत्रिपरिषद में जगह मिली और देश में इस तरह 11 महिलाओं को केंद्रीय मंत्री परिषद में जगह मिल चुकी है. इस तरह आगामी चुनाव में उत्तराखंड में महिलाओं को लेकर टिकट पर क्या समीकरण होंगे, इसपर बहस शुरू हो गई है.

पढ़ें-Exclusive: केंद्रीय रक्षा व पर्यटन राज्य मंत्री अजय भट्ट से खास बातचीत, जानें क्या कहा

उत्तराखंड में फिलहाल कुल मतदाता 78,32,412 हैं. इसमें करीब 40 लाख 74 हजार पुरुष मतदाता और 37 लाख 40 हजार महिला मतदाता हैं. इस तरह देखा जाए तो पुरुषों से महिलाएं केवल राज्य में 3 लाख ही कम है. जाहिर है कि प्रदेश में महिलाओं की ही 'आधी आबादी' है.

साल 2017 के दौरान प्रदेश में कुल 61 महिला प्रत्याशी मैदान में उतरीं, जिसमें से 5 महिला प्रत्याशियों ने जीत हासिल करते हुए विधानसभा पहुंचने में कामयाबी हासिल की. इस दौरान राज्य में 35,33,225 महिला मतदाता रहीं और उनका मत प्रतिशत 69.3 4% था. हालांकि कुछ विधायकों के निधन के बाद महिलाओं के प्रतिनिधित्व बढ़ोत्तरी हुई और प्रकाश पंत की पत्नी चंद्र पंत, मगनलाल शाह के निधन के बाद उनकी पत्नी मुन्नी देवी शाह विधानसभा तक पहुंची.

साल 2012 में 63 महिला प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा. जिसमें से पांच महिलाएं विधानसभा तक पहुंची. इस चुनाव में 68% महिलाओं ने मतदान किया. जबकि इस दौरान महिलाओं की संख्या 30 लाख 24 हजार थी.

साल 2007 में कुल 56 महिला प्रत्याशी थीं, जिसमें से चार महिला प्रत्याशी विजयी होकर विधानसभा पहुंची. इस दौरान 59.4 5% महिलाओं ने अपने मत का प्रयोग किया. 2007 में कुल 29,46,311 महिला मतदाता थीं.

पढ़ें-भू-कानून पर CM धामी का बयान, कहा- जल्द लेंगे कोई बड़ा फैसला !

साल 2002 विधानसभा चुनाव में कुल 927 उम्मीदवारों ने अपना भाग्य आजमाया था. जिनमें 72 महिला उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरी और 4 महिलाएं ही विधायक बन पाई. इस दौरान 52.64 प्रतिशत महिलाओं ने वोटिंग की. 25 लाख 57 हजार महिला मतदाता राज्य में थीं. उत्तराखंड में राज्य निर्माण आंदोलन की लड़ाई का प्रतिनिधित्व महिलाओं ने ही किया था. लेकिन इसके बावजूद उत्तराखंड में विधानसभा के भीतर महिलाओं की संख्या कभी दहाई तक भी नहीं पहुंच पाई. राज्य में महिलाएं करीब 14% तक ही विधानसभा में भागीदारी निभा पाई हैं.

प्रदेश में लोकसभा के लिहाज से भी स्थिति बहुत अच्छी रही है. साल 2019 के दौरान होने वाले लोकसभा चुनाव में कुल 52 प्रत्याशी मैदान में थे, जिसमें 5 महिलाएं निर्दलीय चुनाव लड़ी थीं. जबकि भाजपा ने टिहरी से एक महिला प्रत्याशी मालाराज्य लक्ष्मी शाह को टिकट दिया, जो जीतकर लोकसभा पहुंची. कांग्रेस ने इस मामले में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का कोई ख्याल नहीं रखा.

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की तरफ से एक और कांग्रेस की तरफ से भी एक टिकट महिला को दिया गया. इसमें टिहरी से माला राजलक्ष्मी को भाजपा ने और हरिद्वार से हरीश रावत की पत्नी रेणुका रावत को कांग्रेस ने टिकट दिया था. हालांकि टिहरी से मालाराज्य लक्ष्मी ही लोकसभा पहुंच सकीं. राज्य में एक बार फिर चुनाव नजदीक है और 2022 के चुनाव के लिए 'आधी आबादी' फिर राजनीतिक दलों की प्रमुखता में हैं.

भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय महामंत्री दीप्ति रावत कहती है कि महिलाओं को विधानसभा में ज्यादा से ज्यादा प्रतिनिधित्व देने के लिए महिला मोर्चा प्रयास करेगा और कोशिश होगी कि अधिक महिलाओं को चुनाव के दौरान टिकट दिए जा सके. उन्होंने कहा कि मोदी मंत्रिमंडल के विस्तार के दौरान महिलाओं को मिली तवज्जो से साफ है कि भाजपा महिलाओं को आगे बढ़ाना चाहती है.

उधर कांग्रेस दावा करते हुए दिखाई देती है कि विधानसभा चुनाव में भाजपा से ज्यादा प्रमुखता महिलाओं को कांग्रेस देती आई है और टिकट के मामले में भी कांग्रेस आगे रही है. भाजपा ने केवल सहानुभूति पाने के लिए महिलाओं को उप चुनावों में टिकट दिया है. कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता गरिमा दसौनी कहती है कि महिलाओं को 50% प्रतिनिधित्व देने का काम यदि भाजपा करती है तो वह इसका स्वागत करेंगे.

देहरादून: सभी राजनीतिक दल महिलाओं को नेतृत्व में तवज्जो देने की बात तो करते हैं, लेकिन चुनावी शंखनाद खत्म होते ही उनके प्रतिनिधित्व को दरकिनार कर दिया जाता है. प्रदेश की 'आधी आबादी', जिन्होंने प्रदेश के गठन में महत्वपूर्व भूमिका निभाई थी. सभी पार्टियां चुनाव खत्म होने के साथ ही उन्हें हाशिए पर रख देती है. टिकट बंटवारे में खानापूर्ति के लिए कुछ महिलाओं को उम्मीदवारी का टिकट थमा दिया जाता है.

उत्तराखंड में 'आधी आबादी' को रिझाने के प्रयास राजनीतिक दलों की प्राथमिकताओं में रहे हैं. इसको लेकर महिलाओं के लिए कई योजनाएं भी सरकारों द्वारा चलाई जाती रही हैं, लेकिन जब बात सरकारों में प्रतिनिधित्व को लेकर आती है तो उत्तराखंड की आधी आबादी इस मामले में काफी पीछे नजर आती है. यह हालत तब है जब महिलाओं के वोट प्रदेश में निर्णायक भूमिका में हैं और करीब 'आधी आबादी' महिलाओं की ही है.

वोट बैंक तक ही सीमित 'आधा आबादी'

उत्तराखंड में भूमि अधिकार, भूमि खरीदने में स्टांप ड्यूटी शुल्क में छूट समेत महिला विकास की कई योजनाएं संचालित की जा रही है, जो महिलाओं को आकर्षित करती है. लेकिन विधानसभा और लोकसभा में प्रतिनिधित्व के तौर पर कोई भी दल महिलाओं को तवज्जों देने के मूड में नहीं दिखता.

दरअसल, हाल ही में मोदी सरकार में मंत्रिमंडल विस्तार हुआ, जिसमें कुल 7 महिलाओं को मंत्रिपरिषद में जगह मिली और देश में इस तरह 11 महिलाओं को केंद्रीय मंत्री परिषद में जगह मिल चुकी है. इस तरह आगामी चुनाव में उत्तराखंड में महिलाओं को लेकर टिकट पर क्या समीकरण होंगे, इसपर बहस शुरू हो गई है.

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उत्तराखंड में फिलहाल कुल मतदाता 78,32,412 हैं. इसमें करीब 40 लाख 74 हजार पुरुष मतदाता और 37 लाख 40 हजार महिला मतदाता हैं. इस तरह देखा जाए तो पुरुषों से महिलाएं केवल राज्य में 3 लाख ही कम है. जाहिर है कि प्रदेश में महिलाओं की ही 'आधी आबादी' है.

साल 2017 के दौरान प्रदेश में कुल 61 महिला प्रत्याशी मैदान में उतरीं, जिसमें से 5 महिला प्रत्याशियों ने जीत हासिल करते हुए विधानसभा पहुंचने में कामयाबी हासिल की. इस दौरान राज्य में 35,33,225 महिला मतदाता रहीं और उनका मत प्रतिशत 69.3 4% था. हालांकि कुछ विधायकों के निधन के बाद महिलाओं के प्रतिनिधित्व बढ़ोत्तरी हुई और प्रकाश पंत की पत्नी चंद्र पंत, मगनलाल शाह के निधन के बाद उनकी पत्नी मुन्नी देवी शाह विधानसभा तक पहुंची.

साल 2012 में 63 महिला प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा. जिसमें से पांच महिलाएं विधानसभा तक पहुंची. इस चुनाव में 68% महिलाओं ने मतदान किया. जबकि इस दौरान महिलाओं की संख्या 30 लाख 24 हजार थी.

साल 2007 में कुल 56 महिला प्रत्याशी थीं, जिसमें से चार महिला प्रत्याशी विजयी होकर विधानसभा पहुंची. इस दौरान 59.4 5% महिलाओं ने अपने मत का प्रयोग किया. 2007 में कुल 29,46,311 महिला मतदाता थीं.

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साल 2002 विधानसभा चुनाव में कुल 927 उम्मीदवारों ने अपना भाग्य आजमाया था. जिनमें 72 महिला उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरी और 4 महिलाएं ही विधायक बन पाई. इस दौरान 52.64 प्रतिशत महिलाओं ने वोटिंग की. 25 लाख 57 हजार महिला मतदाता राज्य में थीं. उत्तराखंड में राज्य निर्माण आंदोलन की लड़ाई का प्रतिनिधित्व महिलाओं ने ही किया था. लेकिन इसके बावजूद उत्तराखंड में विधानसभा के भीतर महिलाओं की संख्या कभी दहाई तक भी नहीं पहुंच पाई. राज्य में महिलाएं करीब 14% तक ही विधानसभा में भागीदारी निभा पाई हैं.

प्रदेश में लोकसभा के लिहाज से भी स्थिति बहुत अच्छी रही है. साल 2019 के दौरान होने वाले लोकसभा चुनाव में कुल 52 प्रत्याशी मैदान में थे, जिसमें 5 महिलाएं निर्दलीय चुनाव लड़ी थीं. जबकि भाजपा ने टिहरी से एक महिला प्रत्याशी मालाराज्य लक्ष्मी शाह को टिकट दिया, जो जीतकर लोकसभा पहुंची. कांग्रेस ने इस मामले में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का कोई ख्याल नहीं रखा.

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की तरफ से एक और कांग्रेस की तरफ से भी एक टिकट महिला को दिया गया. इसमें टिहरी से माला राजलक्ष्मी को भाजपा ने और हरिद्वार से हरीश रावत की पत्नी रेणुका रावत को कांग्रेस ने टिकट दिया था. हालांकि टिहरी से मालाराज्य लक्ष्मी ही लोकसभा पहुंच सकीं. राज्य में एक बार फिर चुनाव नजदीक है और 2022 के चुनाव के लिए 'आधी आबादी' फिर राजनीतिक दलों की प्रमुखता में हैं.

भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय महामंत्री दीप्ति रावत कहती है कि महिलाओं को विधानसभा में ज्यादा से ज्यादा प्रतिनिधित्व देने के लिए महिला मोर्चा प्रयास करेगा और कोशिश होगी कि अधिक महिलाओं को चुनाव के दौरान टिकट दिए जा सके. उन्होंने कहा कि मोदी मंत्रिमंडल के विस्तार के दौरान महिलाओं को मिली तवज्जो से साफ है कि भाजपा महिलाओं को आगे बढ़ाना चाहती है.

उधर कांग्रेस दावा करते हुए दिखाई देती है कि विधानसभा चुनाव में भाजपा से ज्यादा प्रमुखता महिलाओं को कांग्रेस देती आई है और टिकट के मामले में भी कांग्रेस आगे रही है. भाजपा ने केवल सहानुभूति पाने के लिए महिलाओं को उप चुनावों में टिकट दिया है. कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता गरिमा दसौनी कहती है कि महिलाओं को 50% प्रतिनिधित्व देने का काम यदि भाजपा करती है तो वह इसका स्वागत करेंगे.

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