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स्वच्छता अभियान पर डाला जा रहा 'कचरा', बच्चों को जन्मजात रोगी बना रहा जल संस्थान

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Published : Jan 24, 2020, 11:36 PM IST

लक्कड़घाट में जल संस्थान की ओर से खुले में उड़ेले जा रहे स्लज ने गंभीर बीमारियों का खतरा पैदा कर दिया है. लेकिन जिम्मेदार अधिकारी अभी भी आंख मूंदे बैठे हैं.

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ऋषिकेश

ऋषिकेश: जिन विभागों पर स्वच्छता अभियान को नई ऊंचाई पर पहुंचाने का दारोमदार है, वही इस राष्ट्रव्यापी मुहिम पर कचरा डालने का काम कर रहे हैं. मामला श्यामपुर का है. यहां निर्माणाधीन अत्याधुनिक एसटीपी के समीप ही स्वर्गारम एसटीपी से निकलने वाले स्लज (गाद) को खुले में उड़ेला जा रहा है. इससे उठ रही दुर्गंध ने लोगों का जीना मुहाल कर रखा है.

स्वच्छता अभियान पर डाला जा रहा 'कचरा'

गंभीर पहलू ये है कि जिस स्वच्छता के नाम पर भारी भरकम एसटीपी स्थापित की जा रही है, उन्हीं परियोजनाओं से निकलने वाले कचरे से पर्यावरण को दूषित करने का ये कारनामा पिछने एक साल से जारी है. संबंधित विभाग इस लापरवाही पर या तो एक-दूसरे पर ठीकरा फोड़ रहे हैं या फिर तथ्यों को नजरंदाज कर बरगलाने की कोशिश कर रहे हैं. नतीजा ये है कि रोजाना एक ट्रॉली स्लज लक्कड़घाट में छोड़ा जा रहा है. इससे भूगर्भ जल प्रदूषित होने और स्थानीय लोगों में सांस की ‌गंभीर बीमारियों का खतरा पैदा हो गया है.

पढ़ें- ऋषिकेश: 200 बीघा अवैध प्लॉटिंग को MDDA करेगा ध्वस्त, एक हफ्ते का अल्टीमेटम

पिछले एक साल से स्वर्गाश्रम स्थित वेद निकेतन के पास स्थापित एसटीपी से निकलने वाला स्लज लक्कड़घाट स्थित एसटीपी के पास गड्ढा बनाकर उस में उड़ेला जा रहा है. इसके लिए जिम्मेदार विभाग जल संस्थान ने बुनियादी मानकों का भी पालन नहीं किया है. हालत ये है ‌कि गड्ढे खोदकर स्लज को उसमें ही उड़ेला जा रहा है.

इस अनियमितता पर राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का भी रवैया दिलचस्प है. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी अमित पोखरियाल का कहना है कि इस संबंध में जल संस्थान और सीवर विभाग के अधिकारियों से पूछा जाए तो बेहतर होगा.

पढ़ें- 1500 रुपए के लिए युवक ने अधेड़ को मारी गोली, हायर सेंटर रेफर

खुले में स्लज उड़ेलने के संभावित खतरे
लक्कड़घाट में जल संस्थान की ओर से खुले में उड़ेले जा रहे स्लज ने गंभीर बीमारियों का खतरा पैदा कर दिया है. इस संबंध में आईआईटी रुड़की के प्रोफेसर और एनजीटी के पैनल में शामिल ए काजमी का कहना है कि यदि खुले में स्लज उड़ेला जा रहा है तो यह गंभीर अनियमितता है. इस पर एनजीटी ने भी प्रतिबंध लगा रखा है. गीला स्लज गड्ढे में भरने से नाइट्रेट का उत्सर्जन होने लगता है. यह भूगर्भ जल को प्रदूषित करता है.

प्रो. काजमी के मुताबिक भूगर्भ जल में नाइट्रेट मिल जाने से ब्लू बेबी सिंड्रोम नामक बीमारी फैलने का खतरा रहता है. वैसे स्लज को डिस्पोज करने के लिए यार्ड या स्लज बेड बनवाना चाहिए. ऐसा न होने पर स्लज डालने से पहले गड्ढे में पालिथीन बिछानी चाहिए, जिससे गंदा पानी जमीन के अंदर न जाए. बरसात के दिनों में ऊपर भी पालिथीन से ढकना चाहिए. फिलहाल गढ़ी मयचक में उड़ेला जा रहा स्लज इन मानकों से कोसों दूर है.

पढ़ें- अपने इस पुराने 'दोस्त' को विदा करने जा रही उत्तराखंड पुलिस, 163 सालों तक निभाया है साथ

किस तरह की बीमारियों का है खतरा
स्लज सीधे गड्ढे में उड़ेलने से नाइट्रेट मिश्रित प्रदूषित भूगर्भ जल कई बीमारियों को पैदा कर सकता है. इनमें नाखून का नीला पड़ना, सांस की बीमारी और हृदय रोग की संभावना ज्यादा रहती है. खास बात ये है कि नाइट्रेट मिश्रित जल से होने वाली बीमारियां छह साल से कम के बच्चों पर जल्दी धावा बोलती हैं.

जल संस्थान के सहायक अभियंता हरीश बंसल ने कहा हमारे पास स्वर्गाश्रम क्षेत्र में स्लज डालने के लिए भूमि उपलब्ध नहीं है. लक्कड़घाट में जिस जगह स्लज डाला जा रहा है वह जलसंस्थान का स्थान है. यहां गड्ढे खोदकर गाद को डाला जा रहा है और सूखने पर उसे ढक दिया जाता है. बरसात ‌के दिनों में गड्ढों में पानी भर गया होगा. यदि बदबू या संक्रमण की शिकायत आ रही है तो समुचित उपाय किए जाएंगे.
एक तरफ जहां स्वार्गाश्रम एसटीपी का स्लज मानकों के विरुद्ध खुले में उड़ेला जा रहा है. वहीं नमामि गंगे परियोजना के अधिकारियों के पास लक्कड़घाट में निर्माणाधीन 26 एमएलडी के एसटीपी से निकलने वाली स्लज निस्तारण का कोई उपाय ही अभी तक‌ तय नहीं हो पाया है.

इस संदर्भ में नमामि गंगे परियोजना के प्रबंधक संदीप कश्यप का कहना है कि पूर्व में श्यामपुर में ऋषिकेश का ट्रंचिंग ग्राउंड ‌स्थापित होने वाला था. बाद में लालपानी में भूमि चिन्हित कर ली गई है. वहीं स्लज ‌भिजवाया जाएगा.

परियोजना प्रबंधक का कहना है कि अनुबंध के मुताबिक 10 किमी के दायरे में स्लज डालने का प्रावधान है. फिलहाल निगम के लिए ट्रंचिंग ग्राउंड लालपानी में चयनित होने के कारण अभी स्लज बेड की कोई योजना नहीं बनी है.

ऋषिकेश: जिन विभागों पर स्वच्छता अभियान को नई ऊंचाई पर पहुंचाने का दारोमदार है, वही इस राष्ट्रव्यापी मुहिम पर कचरा डालने का काम कर रहे हैं. मामला श्यामपुर का है. यहां निर्माणाधीन अत्याधुनिक एसटीपी के समीप ही स्वर्गारम एसटीपी से निकलने वाले स्लज (गाद) को खुले में उड़ेला जा रहा है. इससे उठ रही दुर्गंध ने लोगों का जीना मुहाल कर रखा है.

स्वच्छता अभियान पर डाला जा रहा 'कचरा'

गंभीर पहलू ये है कि जिस स्वच्छता के नाम पर भारी भरकम एसटीपी स्थापित की जा रही है, उन्हीं परियोजनाओं से निकलने वाले कचरे से पर्यावरण को दूषित करने का ये कारनामा पिछने एक साल से जारी है. संबंधित विभाग इस लापरवाही पर या तो एक-दूसरे पर ठीकरा फोड़ रहे हैं या फिर तथ्यों को नजरंदाज कर बरगलाने की कोशिश कर रहे हैं. नतीजा ये है कि रोजाना एक ट्रॉली स्लज लक्कड़घाट में छोड़ा जा रहा है. इससे भूगर्भ जल प्रदूषित होने और स्थानीय लोगों में सांस की ‌गंभीर बीमारियों का खतरा पैदा हो गया है.

पढ़ें- ऋषिकेश: 200 बीघा अवैध प्लॉटिंग को MDDA करेगा ध्वस्त, एक हफ्ते का अल्टीमेटम

पिछले एक साल से स्वर्गाश्रम स्थित वेद निकेतन के पास स्थापित एसटीपी से निकलने वाला स्लज लक्कड़घाट स्थित एसटीपी के पास गड्ढा बनाकर उस में उड़ेला जा रहा है. इसके लिए जिम्मेदार विभाग जल संस्थान ने बुनियादी मानकों का भी पालन नहीं किया है. हालत ये है ‌कि गड्ढे खोदकर स्लज को उसमें ही उड़ेला जा रहा है.

इस अनियमितता पर राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का भी रवैया दिलचस्प है. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी अमित पोखरियाल का कहना है कि इस संबंध में जल संस्थान और सीवर विभाग के अधिकारियों से पूछा जाए तो बेहतर होगा.

पढ़ें- 1500 रुपए के लिए युवक ने अधेड़ को मारी गोली, हायर सेंटर रेफर

खुले में स्लज उड़ेलने के संभावित खतरे
लक्कड़घाट में जल संस्थान की ओर से खुले में उड़ेले जा रहे स्लज ने गंभीर बीमारियों का खतरा पैदा कर दिया है. इस संबंध में आईआईटी रुड़की के प्रोफेसर और एनजीटी के पैनल में शामिल ए काजमी का कहना है कि यदि खुले में स्लज उड़ेला जा रहा है तो यह गंभीर अनियमितता है. इस पर एनजीटी ने भी प्रतिबंध लगा रखा है. गीला स्लज गड्ढे में भरने से नाइट्रेट का उत्सर्जन होने लगता है. यह भूगर्भ जल को प्रदूषित करता है.

प्रो. काजमी के मुताबिक भूगर्भ जल में नाइट्रेट मिल जाने से ब्लू बेबी सिंड्रोम नामक बीमारी फैलने का खतरा रहता है. वैसे स्लज को डिस्पोज करने के लिए यार्ड या स्लज बेड बनवाना चाहिए. ऐसा न होने पर स्लज डालने से पहले गड्ढे में पालिथीन बिछानी चाहिए, जिससे गंदा पानी जमीन के अंदर न जाए. बरसात के दिनों में ऊपर भी पालिथीन से ढकना चाहिए. फिलहाल गढ़ी मयचक में उड़ेला जा रहा स्लज इन मानकों से कोसों दूर है.

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किस तरह की बीमारियों का है खतरा
स्लज सीधे गड्ढे में उड़ेलने से नाइट्रेट मिश्रित प्रदूषित भूगर्भ जल कई बीमारियों को पैदा कर सकता है. इनमें नाखून का नीला पड़ना, सांस की बीमारी और हृदय रोग की संभावना ज्यादा रहती है. खास बात ये है कि नाइट्रेट मिश्रित जल से होने वाली बीमारियां छह साल से कम के बच्चों पर जल्दी धावा बोलती हैं.

जल संस्थान के सहायक अभियंता हरीश बंसल ने कहा हमारे पास स्वर्गाश्रम क्षेत्र में स्लज डालने के लिए भूमि उपलब्ध नहीं है. लक्कड़घाट में जिस जगह स्लज डाला जा रहा है वह जलसंस्थान का स्थान है. यहां गड्ढे खोदकर गाद को डाला जा रहा है और सूखने पर उसे ढक दिया जाता है. बरसात ‌के दिनों में गड्ढों में पानी भर गया होगा. यदि बदबू या संक्रमण की शिकायत आ रही है तो समुचित उपाय किए जाएंगे.
एक तरफ जहां स्वार्गाश्रम एसटीपी का स्लज मानकों के विरुद्ध खुले में उड़ेला जा रहा है. वहीं नमामि गंगे परियोजना के अधिकारियों के पास लक्कड़घाट में निर्माणाधीन 26 एमएलडी के एसटीपी से निकलने वाली स्लज निस्तारण का कोई उपाय ही अभी तक‌ तय नहीं हो पाया है.

इस संदर्भ में नमामि गंगे परियोजना के प्रबंधक संदीप कश्यप का कहना है कि पूर्व में श्यामपुर में ऋषिकेश का ट्रंचिंग ग्राउंड ‌स्थापित होने वाला था. बाद में लालपानी में भूमि चिन्हित कर ली गई है. वहीं स्लज ‌भिजवाया जाएगा.

परियोजना प्रबंधक का कहना है कि अनुबंध के मुताबिक 10 किमी के दायरे में स्लज डालने का प्रावधान है. फिलहाल निगम के लिए ट्रंचिंग ग्राउंड लालपानी में चयनित होने के कारण अभी स्लज बेड की कोई योजना नहीं बनी है.

Intro:ऋषिकेश--जिन विभागों पर स्वच्छता अभियान को नई ऊंचाई देने का दारोमदार है वही इस राष्ट्रव्यापी मुहिम पर कचरा डालने का काम कर रहे हैं। मामला श्यामपुर से जुड़ा है। यहां निर्माणाधीन अत्याधुनिक एसटीपी के समीप ही स्वर्गारम एसटीपी से निकलने वाले स्लज (गाद) को खुले में उड़ेला जा रहा है। इससे उठ रही दुर्गंध ने लोगों का जीना मुहाल कर रखा है। गंभीर पहलू ये है कि जिस स्वच्छता के लिए भारी भरकम एसटीपी स्थापित किए जा रहे हैं उन्हीं परियोजनाओं से निकलने वाले कचरे से पर्यावरण को दूषित करने की कारनामा पिछने एक साल से जारी है। संबंधित विभाग इस लापरवाही पर या तो एक दूसरे पर ठीकरा फोड़ रहे हैं या फिर तथ्यों को नजरंदाज कर बरगलाने की कोशिश हो रही है। नतीजा ये है कि रोजाना एक ट्राली स्लज लक्कडघाट में छोड़ा जा रहा है। इससे भूगर्भ जल प्रदूषित होने और स्थानीय लोगों में गंभीर सांस की ‌बीमारियों का खतरा पैदा हो गया है।


Body:वी/ओ-- पिछले एक साल से स्वर्गाश्रम स्थित वेदनिकेतन के पास स्थापित एसटीपी से निकलने वाला स्लज लक्कडघाट स्थित एसटीपी के पास गड्ढा बनाकर उस में उड़ेला जा रहा है। इसके लिए जिम्मेदार विभाग जलसंस्थान ने बुनियादी मानकों का भी पालन नहीं किया है। हालत ये है ‌कि गड्ढे खोदकर स्लज को सीधे उनमें उड़ेल दिया जा रहा है। ताजा हकीकत ये है कि करीब तीन गड्ढे ऐसे हैं जो लबालब भरकर स्लज से बजबजा रहे हैं। इस अनियमितता पर राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का भी रवैया दिलचस्प है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी अमित पोखरियाल का कहना है कि इस संबंध में जल संस्थान और सीवर विभाग के अधिकारियों से पूछा जाए तो बेहतर होगा।



खुले में स्लज उड़ेलने के संभावित खतरे

लक्कडघाट में जल संस्थान की ओर से खुले में उड़ेले जा रहे स्लज ने गंभीर बीमारियों का खतरा पैदा कर दिया है। इस संबंध में आईआईटी रुड़की के प्रोफेसर और एनजीटी के पैनल में शामिल ए. काजमी का कहना है कि यदि खुले में स्लज उड़ेला जा रहा है तो यह गंभीर अनियमितता है। इस पर एनजीटी ने भी प्रतिबंध लगा रखा है। गीला स्लज गड्ढे में भरने से नाइट्रेट का उत्सर्जन होने लगता है। यह भूगर्भ जल को प्रदूषित करता है। उन्होंने बताया कि भूगर्भ जल में नाइट्रेट मिल जाने से ब्लू बेबी सिंड्रोम नामक बीमारी फैलने का खतरा रहता है। प्रो. काजमी के मुताबिक नियमतः स्लज को डिस्पोज करने के लिए यार्ड या स्लज बेड बनवाना चाहिए। ऐसा नहीं हो पाता है तो स्लज डालने से पहले गड्ढे में पालिथीन बिछानी चाहिए, जिससे गंदा पानी जमीन के अंदर न जाए। बरसात के दिनों में ऊपर भी पालिथीन से ढकना चाहिए। फिलहाल गढ़ीमयचक में उड़ेला जा रहा स्लज इन मानकों से कोसों दूर है।



किस तरह की बीमारियों का है खतरा

स्लज सीधे गड्ढे में उड़ेलने से नाइट्रेट मिश्रित प्रदूषित भूगर्भ जल कई बीमारियों को पैदा कर सकता है। इनमें नाखून का नीला पड़ना, सांस की बीमारी, हृदय रोग की संभावना ज्यादा रहती है। खास बात ये है कि नाइट्रेट मिश्रित जल से होने वाली बीमारियां छह साल से कम के बच्चों पर जल्दी धावा बोलती हैं।




जल संस्थान के सहायक अभियंता हरीश बंसल ने कहा हमारे पास स्वर्गाश्रम क्षेत्र में स्लज डालने के लिए भूमि उपलब्ध नहीं है। लक्कडघाट में जिस जगह स्लज डाला जा रहा है वह जलसंस्थान की है। यहां गड्ढे खोदकर गाद को डाला जा रहा है सूखने पर उसे ढक दिया जाता है। बरसात ‌के दिनों में गड्ढों में पानी भर गया होगा। यदि बदबू या संक्रमण की शिकायत आ रही है तो समुचित उपाया किया जाएगा।





Conclusion:वी/ओ--एक तरफ जहां स्वार्गाश्रम एसटीपी का स्लज मानकों के विरुद्घ खुले में उड़ेला जा रहा है। वहीं नामामि गंगे अ‌धिकारियों के पास लक्कड़घाट में निर्माणाधीन 26 एमएलडी के एसटीपी से निकलने वाली स्लज निस्तारण का कोई उपाय ही अभी तक‌ नहीं तय हो पाया है। इस संदर्भ में नमामि गंगं के परियोजना प्रबंधक संदीप कश्यप का कहना है कि पूर्व में श्यामपुर में ऋषिकेश का ट्रंचिंग ग्राउंड ‌स्थापित होने वाला था। बाद में लालपानी में भूमि चिन्हित कर ली गई है। वहीं स्लज ‌भेजवाया जाएगा। परियोजना प्रबंधक का कहना है कि अनुबंध के मुताबिक 10 किमी के दायरे में स्लज डालने का प्रावधान है। फिलहाल निगम के लिए ट्रंचिंग ग्राउंड लालपानी में चयनित होने के कारण अभी स्लज बेड की कोई योजना नहीं बनी है।

बाईट--संदीप कश्यप(परियोजना प्रबंधक नमामि गंगे)
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