देहरादून: उत्तराखंड की पांचों लोकसभा सीट पर कमल खिलने के साथ ही गुरुवार को प्रदेश में कांग्रेस का सुफड़ा भी साफ हो गया है. वहीं टिहरी लोकसभा सीट की बात करें तो यहां से बीजेपी की सांसद माला राज्यलक्ष्मी शाह ने जीत की हैट्रिक लगाई हैं. उन्होंने तीसरी बार जीत कर साबित कर दिया कि राजपरिवार का वर्चस्व बरकरार हैं. शाह ने 300586 वोटों से कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह को हराया है. लेकिन इस बार चुनाव को लेकर राज परिवार और बदरीनाथ धाम से जुड़ा हुआ एक मिथक भी टूट गया.
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टिहरी सीट पर राजपरिवार को लेकर एक मिथक भी जुड़ा था. कहा जाता है कि यदि बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने पर टिहरी सीट पर कोई चुनाव होता है तो राज परिवार को हार को मुंह देखने पड़ा है. इससे पहले दो बार ऐसा हो चुका है. साल 1971 के आम चुनाव और साल 2007 के उपचुनाव के दौरान बदरीनाथ के कपाट बंद थे. इन दोनों ही मौकों पर राज परिवार के प्रत्याशी को करारी हार का सामना करना पड़ा. लेकिन, इस बार माला राज्यलक्ष्मी शाह ने जीत हासिल कर इस मिथक को तोड़ दिया. वहीं 2012 में मनजेंद्र शाह की पत्नी माला राज्य लक्ष्मी शाह जीतीं जब यहां 10 अक्टूबर को मतदान हुआ था. इसके बाद इस सीट पर 2014 के चुनाव 7 मई को हुए, इन दोनों ही चुनावी तारीखों में मंदिर के पट खुले थे और दोनों चुनाव राजपरिवार की सदस्य माला राज्य लक्ष्मी शाह जीती थीं.
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इस बार उत्तराखंड की पांचों लोकसभा सीट पर 11 अप्रैल को मतदान हुआ था, जबकि मंदिर के पट 10 मई को खुले थे. लेकिन इस बार जिस तरह के राजपरिवार की सदस्य माला राज्यलक्ष्मी शाह ने अपने पिछले रिकॉर्ड को तोड़ते हुए जीत दर्ज की है. उससे राज परिवार के चुनाव को लेकर बदरीनाथ धाम से जुड़ा हुआ मिथक भी टूट गया है.
मंदिर का संरक्षक है राजघराना
टिहरी राजघराने को बदरीनाथ मंदिर का संरक्षक माना जाता है. परिवार के मुखिया को 'बोलंदा बदरी' (बदरीनाथ की बात करने वाला) कहा जाता है, जो हर साल मंदिर के खुलने की तारीखों की घोषणा करते हैं. शाही परिवार के सदस्यों ने यहां की सीट से 13 बार चुनाव लड़ा और उन्हें 11 बार जीत मिली. दो बार जब वे चुनाव हारे, तब बदरीनाथ मंदिर के कपाट ठंड के कारण बंद थे. 1971 में मार्च में चुनाव हुए और परिवार के मुखिया मानवेन्द्र शाह चुनाव हार गए. 2007 में, जब इस सीट पर उपचुनाव हुआ तब 21 फरवरी की तारीख थी और तब भी ठंड के कारण मंदिर के कपाट बंद थे. नतीजा यह हुआ कि मनुजेंद्र शाह चुनाव हार गए.