ETV Bharat / state

महिला दिवस विशेष: 'मशरूम गर्ल' की कहानी उन्हीं की जुबानी, स्वरोजगार से सैकड़ों लोगों को बनाया आत्मनिर्भर

देवभूमि की 'मशरूम गर्ल' किसी पहचान के मोहताज नहीं है. मशरूम से स्वरोजगार अपनाने वाली दिव्या की इस मुहिम से अब सैकड़ों लोग जुड़ चुके हैं. कुछ अलग करने की चाह और जज्बे से ही दून की रहने वाली दिव्या ने ये मुकाम पाया है.

मशरूम गर्ल दिव्या रावत
author img

By

Published : Mar 3, 2019, 3:44 PM IST

Updated : Mar 6, 2019, 1:13 PM IST

देहरादूनः देवभूमि की 'मशरूम गर्ल' किसी पहचान के मोहताज नहीं है. मशरूम की खेती से शुरू हुआ दिव्या रावत का सफर आज एक बिजनेस का रूप ले चुका है. उनकी कामयाबी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उत्तराखंड सरकार ने उन्हें मशरूम का ब्रांड एंबेसडर बनाया है. मशरूम से स्वरोजगार अपनाने वाली दिव्या की इस मुहिम से अब सैकड़ों लोग जुड़ चुके हैं. कुछ अलग करने की चाह और जज्बे से ही दून की रहने वाली दिव्या ने ये मुकाम पाया है.


महिला सशक्तिकरण में एक नाम उत्तराखंड की 'मशरूम गर्ल' यानि दिव्या रावत का भी आता हैं. दिव्या देश में ही नहीं बल्कि, दुनिया में मशरूम उत्पादन में एक अलग पहचान बनाई है. सूबे में लगातार हो रहे पलायन को रोकने में भी दिव्या की ये मुहिम खासी कारगर साबित हो रही है.


ईटीवी भारत से बातचीत में दिव्या रावत ने बताया कि पहाड़ों में खंडहर हो चुके मकानों को मशरूम उत्पादन के लिए प्रयोग में लाने के लिए ग्रामीणों को प्रेरित किया जा रहा है. उनका कहना है कि मशरूप उत्पादन की इस मुहिम से उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के कई लोग जुड़ चुके हैं. जो मशरूम का उत्पादन कर 15 से 20 हजार प्रतिमाह कमा रहे हैं. उनके इस अभियान से अब उत्तराखंड के अलावा यूपी, बिहार, पंजाब, दिल्ली समेत कई राज्यों के लोग भी जुड़ रहे हैं.

undefined
ईटीवी भारत से बातचीत करती 'मशरूम गर्ल' दिव्या रावत.


मूल रूप से चमोली जिले के कोट कंडारा गांव की रहने वाली दिव्या रावत सैनिक परिवार से ताल्लुक रखती हैं. दिव्या अपने पांच भाई बहनों में सबसे छोटी है. उनके पिता तेज सिंह रावत रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर हैं. दिव्या ने बताया कि उन्होंने यूपी के नोएडा से एमबीए की पढ़ाई की. जिसके बाद वह एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने लगी. इस दौरान उन्होंने कई नौकरियां बदली. लेकिन, उनका मन कुछ अलग करने का था. इसी तमन्ना को लेकर उन्होंने स्वरोजगार की ठानी.

ये भी पढे़ंःधर्मनगरी में थमने का नाम नहीं ले रहा अवैध खनन, प्रशासन ने मौके से किए दो डंपर सीज


दिव्या का कहना है कि देहरादून के डिफेंस कॉलोनी में स्थित उत्तराखंड मशरूम विभाग में मशरूम उत्पादन के विषय में उन्होंने बेसिक ट्रेनिंग ली. उसके बाद हिमाचल के सोलन स्थित "डायरेक्टर ऑफ मशरूम रिसर्च सेंटर" में जाकर मशरूम उत्पादन की बारीकियां सीखी. जिसके बाद 2013 में उन्होंने अपने गांव जाकर मशरूम उत्पादन का व्यवसाय शुरू करने का निर्णय लिया. गांव में पलायन से खंडहर हुए घरों में उन्होंने मशरूम का उत्पादन शुरू किया और समय बीतने के साथ-साथ कई लोग उनके साथ जुड़ते चले गए.

undefined


दिव्या ने बताया कि उन्होंने देहरादून के मथुरावाला इलाके मशरूम उत्पादन लैब को बनाने का निर्णय लिया और लोन लेकर मशरूम बीज तैयार करने के लिए स्पॉन लैब बनाया. उन्होंने इस लैब में मशरूम के बीज (स्पॉन) को एक प्रोसेस से तैयार कर नए-नए तरीके से मशरूम उत्पादन शुरू किया. उन्होंने हिमालय में पाई जाने वाली कीड़ा जड़ी को भी अपनी लैब में कृत्रिम तरीके से तैयार किया. जिसके बाद उन्होंने बेल्जियम, मलेशिया, थाईलैंड, वियतनाम आदि देशों में जाकर एडवांस तरीके से मशरूम के जुड़ी अन्य ट्रेनिंग ली. दिव्या रावत के मुताबिक, कोई भी व्यक्ति मशरूम का घरेलू उत्पाद 30 हजार की लागत से शुरू कर सकता है.


दिव्या आज देहरादून के मथुरावाला में मशरूम बीज उत्पादन से लेकर रोजगार से जुड़ने वाले लोगों को प्रशिक्षण भी दे रही हैं. साथ ही मशरूम की कई प्रजातियों को लेकर देश के अलग-अलग राज्य से लोग आकर दिव्या के संस्थान से ट्रेनिंग लेकर स्वरोजगार अपना रहे हैं. दिव्या रावत को उत्तराखंड सरकार की तरफ से मशरूम की ब्रांड एंबेसडर भी बनाया गया है. जबकि, महिला सशक्तिकरण के लिए दिव्या राष्ट्रपति पुरस्कार से भी सम्मानित हो चुकी है.

undefined


वर्तमान में उत्तराखंड मशरूम उत्पादन परियोजना को दिव्या रावत संचालित कर रही हैं. जिसमें मशरूम उत्पादन ट्रेनिंग से लेकर ट्रेडिंग तक का प्रशिक्षण देकर दिव्या लोगों को स्वरोजगार के लिए प्रेरित कर रही है. अभी तक सैकड़ों लोगों को दिव्या ने मशरूम के माध्यम से स्वरोजगार उपलब्ध कराया है.

देहरादूनः देवभूमि की 'मशरूम गर्ल' किसी पहचान के मोहताज नहीं है. मशरूम की खेती से शुरू हुआ दिव्या रावत का सफर आज एक बिजनेस का रूप ले चुका है. उनकी कामयाबी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उत्तराखंड सरकार ने उन्हें मशरूम का ब्रांड एंबेसडर बनाया है. मशरूम से स्वरोजगार अपनाने वाली दिव्या की इस मुहिम से अब सैकड़ों लोग जुड़ चुके हैं. कुछ अलग करने की चाह और जज्बे से ही दून की रहने वाली दिव्या ने ये मुकाम पाया है.


महिला सशक्तिकरण में एक नाम उत्तराखंड की 'मशरूम गर्ल' यानि दिव्या रावत का भी आता हैं. दिव्या देश में ही नहीं बल्कि, दुनिया में मशरूम उत्पादन में एक अलग पहचान बनाई है. सूबे में लगातार हो रहे पलायन को रोकने में भी दिव्या की ये मुहिम खासी कारगर साबित हो रही है.


ईटीवी भारत से बातचीत में दिव्या रावत ने बताया कि पहाड़ों में खंडहर हो चुके मकानों को मशरूम उत्पादन के लिए प्रयोग में लाने के लिए ग्रामीणों को प्रेरित किया जा रहा है. उनका कहना है कि मशरूप उत्पादन की इस मुहिम से उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के कई लोग जुड़ चुके हैं. जो मशरूम का उत्पादन कर 15 से 20 हजार प्रतिमाह कमा रहे हैं. उनके इस अभियान से अब उत्तराखंड के अलावा यूपी, बिहार, पंजाब, दिल्ली समेत कई राज्यों के लोग भी जुड़ रहे हैं.

undefined
ईटीवी भारत से बातचीत करती 'मशरूम गर्ल' दिव्या रावत.


मूल रूप से चमोली जिले के कोट कंडारा गांव की रहने वाली दिव्या रावत सैनिक परिवार से ताल्लुक रखती हैं. दिव्या अपने पांच भाई बहनों में सबसे छोटी है. उनके पिता तेज सिंह रावत रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर हैं. दिव्या ने बताया कि उन्होंने यूपी के नोएडा से एमबीए की पढ़ाई की. जिसके बाद वह एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने लगी. इस दौरान उन्होंने कई नौकरियां बदली. लेकिन, उनका मन कुछ अलग करने का था. इसी तमन्ना को लेकर उन्होंने स्वरोजगार की ठानी.

ये भी पढे़ंःधर्मनगरी में थमने का नाम नहीं ले रहा अवैध खनन, प्रशासन ने मौके से किए दो डंपर सीज


दिव्या का कहना है कि देहरादून के डिफेंस कॉलोनी में स्थित उत्तराखंड मशरूम विभाग में मशरूम उत्पादन के विषय में उन्होंने बेसिक ट्रेनिंग ली. उसके बाद हिमाचल के सोलन स्थित "डायरेक्टर ऑफ मशरूम रिसर्च सेंटर" में जाकर मशरूम उत्पादन की बारीकियां सीखी. जिसके बाद 2013 में उन्होंने अपने गांव जाकर मशरूम उत्पादन का व्यवसाय शुरू करने का निर्णय लिया. गांव में पलायन से खंडहर हुए घरों में उन्होंने मशरूम का उत्पादन शुरू किया और समय बीतने के साथ-साथ कई लोग उनके साथ जुड़ते चले गए.

undefined


दिव्या ने बताया कि उन्होंने देहरादून के मथुरावाला इलाके मशरूम उत्पादन लैब को बनाने का निर्णय लिया और लोन लेकर मशरूम बीज तैयार करने के लिए स्पॉन लैब बनाया. उन्होंने इस लैब में मशरूम के बीज (स्पॉन) को एक प्रोसेस से तैयार कर नए-नए तरीके से मशरूम उत्पादन शुरू किया. उन्होंने हिमालय में पाई जाने वाली कीड़ा जड़ी को भी अपनी लैब में कृत्रिम तरीके से तैयार किया. जिसके बाद उन्होंने बेल्जियम, मलेशिया, थाईलैंड, वियतनाम आदि देशों में जाकर एडवांस तरीके से मशरूम के जुड़ी अन्य ट्रेनिंग ली. दिव्या रावत के मुताबिक, कोई भी व्यक्ति मशरूम का घरेलू उत्पाद 30 हजार की लागत से शुरू कर सकता है.


दिव्या आज देहरादून के मथुरावाला में मशरूम बीज उत्पादन से लेकर रोजगार से जुड़ने वाले लोगों को प्रशिक्षण भी दे रही हैं. साथ ही मशरूम की कई प्रजातियों को लेकर देश के अलग-अलग राज्य से लोग आकर दिव्या के संस्थान से ट्रेनिंग लेकर स्वरोजगार अपना रहे हैं. दिव्या रावत को उत्तराखंड सरकार की तरफ से मशरूम की ब्रांड एंबेसडर भी बनाया गया है. जबकि, महिला सशक्तिकरण के लिए दिव्या राष्ट्रपति पुरस्कार से भी सम्मानित हो चुकी है.

undefined


वर्तमान में उत्तराखंड मशरूम उत्पादन परियोजना को दिव्या रावत संचालित कर रही हैं. जिसमें मशरूम उत्पादन ट्रेनिंग से लेकर ट्रेडिंग तक का प्रशिक्षण देकर दिव्या लोगों को स्वरोजगार के लिए प्रेरित कर रही है. अभी तक सैकड़ों लोगों को दिव्या ने मशरूम के माध्यम से स्वरोजगार उपलब्ध कराया है.

Intro:pls संसोधन स्क्रिप्ट- नोट डेस्क स्पेशल स्टोरी -उत्तराखंड की मशरूम गर्ल( इस स्पेशल स्टोरी की feed लाइव व्यू से भेजी गई है .Folder/ID- "UK Mashroom Girl" मशरूम स्वरोजगार के जरिए करोड़पति बनने का सफर देहरादून- देशभर में महिला सशक्तिकरण की कतार में एक नाम उत्तराखंड की मशरूम गर्ल -यानी दिव्या रावत का हैं जो आज ऐसे मिशन में चल रही हैं,जो देश ही नहीं दुनियांभर में उत्तराखंड को मशरूम उत्पादन के नाम से एक अलग पहचान देना चाहती हैं। प्रदेश के पर्वतीय जिलों में पलायन जैसी बड़ी समस्या का हल दिव्या रावत ने मशरूम उत्पादन से ऐसे बेहतरीन ढंग से निकाला है कि पहाड़ों में जो मकान बनाने के कारण खंडहर हो चुके हैं उसमें स्थानीय लोगों को मशरूम उत्पादन करने के लिए प्रेरित किया गया जिसके बाद आज सैकड़ो परिवारों को उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल जिलों के पर्वतीय क्षेत्रों में में 15 से 20 हज़ार प्रतिमाह मशरूम उत्पादन रोजी रोटी चला आ रहे हैं। इसके अलावा दिव्या के मशरूम स्वरोजगार के जरिए यूपी बिहार पंजाब दिल्ली सहित कई राज्यों में लोग जुड़ते हुए इस स्वरोजगार को बढ़ाने में जुटे ।दिव्या के कदम आज इस कदर मशरूम उत्पादन में बढ़ रहे हैं कि वह देश में नहीं दुनिया में उत्तराखंड को मशरूम उत्पादन के नाम से पहचान दिलाना चाहती है दिव्या ने तय किया कि वह दूसरों की नौकरी करने के बजाय खुद ऐसा काम करेगी जिससे वह दूसरों को स्वरोजगार दे सके सैनिक परिवार से ताल्लुक रखने वाली दिव्या रावत अपने पांच भाई बहनों में सबसे छोटी बेटी है,जिसने अपनी पढ़ाई के बाद एक ऐसा सपना देखा जिसमें उन्होंने उत्तराखंड में रहकर अपने सपनों को पंख देने की उम्मीद अपने अंदर जगाई। उधर दिव्या से बड़े चार भाई बहन अपनी शिक्षा पूरी दिल्ली जैसे शहर में निजी कम्पनी और एक बड़ा भाई एयरफोर्स में नौकरी में चले गए,लेकिन दिव्या ने अपने आप को इस बात के लिए प्रेरित किया कि वह किसी की नौकरी करने की बजाय खुद ही कुछ ऐसा सामाजिक व्यवसाय करेगी जिससे वह अपने साथ ही दूसरों को भी स्वरोजगार दे सकें । सब्जी मंडी में जाकर मिला दिव्या को मशरूम उत्पादन का आईडिया उत्तराखंड मशरूम गर्ल दिव्या रावत ने सबसे पहले एक दिन सब्जी मंडी में जाकर कुछ जानने की कोशिश की,तो दिव्या की नजर सबसे पहले मंडी के गेट पर खड़ी मशरूम की थैली पर पड़ी, जब उसने मशरूम का रेट पूछा तो वह ₹200 किलो के हिसाब से बताया गया इसके बाद दिव्या मंडी के अंदर अन्य सब्जियों के दाम पूछती गई जो 10 से 20 रुपये तक थी। दिव्या को मशरूम की सब्जी देख आईडिया सूझा जो बाजार में सबसे कम व महंगा दिखता था दिव्या ने उत्तराखंड मशरूम विभाग देहरादून डिफेंस कॉलोनी में जाकर डॉक्टर संजय कमल से मशरूम उत्पादन के विषय मे बेसिक ट्रेनिंग प्राप्त की, उसके बाद हिमाचल के सोलन स्थित "डायरेक्टर ऑफ़ मशरुम रिसर्च सेंटर" में जाकर मशरूम की पैदावार उत्पादन जैसी अन्य प्रणाली के बारे में दिव्या प्रशिक्षण प्राप्त किया । इधर ट्रेनिंग लेने के बाद अब दिव्या ने मशरूम की खेती जो सबसे अलग किस्म की थी उसे वर्ष 2013 से अपने पैतृक गांव चमोली जिले के "कोट कंडारा गांव" में जाकर शुरू करने का फैसला किया. दिव्या अपने गांव पहुंची वहां गांव के कई मकान पलायन के कारण खाली हो चुके थे,दिव्या ने स्थानीय निवासियों से उसके मालिकाना हक लोगों से बातचीत कर खंडन पड़े घरों में मशरूम के कारोबार को शुरू किया। दिव्या ने इस तरह से मशरुम उत्पादन कर उसको धीरे धीरे कर मार्केट किया जिसके बाद उसको एक अच्छी-खासी आमदनी हुई और पलायन से खंडहर वाले घरों के मालिकों को उसका किराया दिया इसके बाद धीरे धीरे पलायन होते गांव में खाली पड़े मकानों में मशरूम का उत्पादन कर कई लोगों दिव्या से ट्रेनिंग लेकर इस रोजगार से जुड़ते गए। आज गढ़वाल और कुमाऊं जिलों में सैकड़ो पलायन वाले लोग एक पड़े पैमाने में मशरूम घरेलू स्वरोजगार से अच्छा खांसी आमदनी कर अपना रोजगार चला रहे हैं। pls note - tick tek divya Rawat


Body: मशरूम बीज लैब तैयार करना थी दिव्य के लिए बड़ी चुनौती- इधर दिव्या ने देहरादून में निवास मथुरावाला इलाकें मशरूम उत्पादन लैब को बनाने का निर्णय लिया, लेकिन इसके लिए भारी भरकम रकम की जरूरत थी, उसने बैंकों से ऋण लेने की सोची लेकिन लैब ले लिए 70 लाख जैसी बड़ी रकम के लिए बैंक द्वारा देने में आनाकानी के चलते यह बात दिव्या की बड़ी बहन जो दिल्ली में बड़ी कंपनी में नौकरी कर रही थी उसके पास पहुंची। दिव्या के कुछ कर गुजरने की इच्छा शक्ति के बढ़ते कदम व पहाड़ से पलायन रोकने के साथ स्वरोजगार के जरिये तमाम लोगों तक रोजगार पहुंचाने जैसे विषय को देखते हुए दिव्या की बड़ी बहन शकुंतला ने तय किया कि वह इस काम में दिव्या की मदद करेगी। शकुंतला ने अपने दिल्ली के फ्लैट को बेचकर देहरादून मथुरावाला निवास स्थान पर दिव्या के लिए 70 लाख की रकम से मशरूम बीज ने तैयार करने वाला स्पॉन लैब बनाया। दिव्या ने इसी लैब में मशरूम के बीज (स्पॉन) को एक प्रोसेस से तैयार अपने साथ जोड़ने वाले स्वरोजगार लोगों को बीच देकर मशरूम उत्पादन का काम देहरादून सहित राज्य के अलग-अलग जिलों में फैलाना शुरू कर दिया। उधर दिव्या के बढ़ते इस कारोबार को देख उसकी बड़ी बहन शकुंतला दिल्ली से अपनी नौकरी छोड़ कर दिव्या का हाथ बंटाने देहरादून पहुंची।जिसके बाद दिव्या का बड़ा भाई जो दिल्ली में नौकरी कर रहा था वह भी दिव्या के बढ़ते कदम और ऊंची उड़ान को देखते हुए वह भी उसके सामाजिक कारोबार के साथ जुड़ गया। दिव्या आज अपने देहरादून के मथुरावाला निवास में मशरूम बीज उत्पादन से लेकर रोजगार से जुड़ने वाले लोगों को प्रशिक्षण भी दे रही हैं। मशरूम की कई प्रजातियों को लेकर देश के अलग-अलग राज्य से लोग आकर दिव्या के संस्थान से ट्रेनिंग प्राप्त कर अपना रोजगार बढ़ा रहे हैं।दिव्या के साथ जुड़ने वाले लोग ₹100 प्रति किलो के हिसाब से मशरूम का बीच (स्पर्म)ले जाते हैं जिसमें एक किलो बीज से 8 से 10 गुना यानी 8 किलो तक घरों में बने यूनिट मशरूम तैयार होता हैं जिसका बाजारी मूल्य 12 सौ से 16 सौ तक होता हैं। दिव्या के अनुसार कोई भी मशरूम का घरेलू उत्पाद 30 हजार की लागत से शुरू कर सकता है जिसके लिए वह अपने निवास स्थान पर ट्रेनिंग से लेकर ट्रेडिंग तक का प्रशिक्षण देकर लोगों को तैयार करती है। इतना ही नहीं उत्तराखंड की मशरूम गर्ल दिव्या रावत आज मशरूम से अचार, चटनी, मसाला,पापड़,जैम जैसे बढ़िया जैसे अन्य तरह के प्रोडक्ट भी तैयार कर रही हैं जो बाजार में खूब बिक रहे हैं। Byte-दिव्या रावत, उत्तराखंड मशरूम गर्ल दुर्गम हिमालय में पाई जाने वाली कीमती कीड़ा जड़ी औषधि को भी दिव्या अपने स्पेशल लैब में तैयार करती है- दिव्या रावत आज मशरूम उत्पादन के साथ साथ अपने निवास स्थान में एक करोड़ की लागत से बने स्पेशल लैब में हिमालय की दुर्गम क्षेत्र में पाई जाने वाली कीमती "कीड़ाजड़ी" जैसी औषधि को भी अपने लैब में कृत्रिम तरीके से तैयार कर रही है। कीड़ा जड़ी जैसी औषधि की बाजारी मूल्य 3 लाख रुपये प्रति किलो के हिसाब से है। दिव्या रावत बताती हैं कि, कीड़ाजड़ी जैसी औषधि जो एथलेटिक को चमत्कारी ऊर्जा देने के साथ ही हर तरह के वर्ग को शारीरिक ऊर्जा सहित एड्स ,कैंसर, लीवर, किडनी जैसे अन्य घातक बीमारियों के साथ लड़ने में मदद करती है। इस औषधि को वह हिमालय के वातावरण के मुताबिक पूरे प्राकृतिक तरीके से अपने लैब में तैयार कर रही है जो अपने आप में एक बहुत ही संवेदनशील व एहतियातन भरा उन्दा कार्य है।


Conclusion:वर्तमान में उत्तराखंड मशरूम उत्पादन परियोजना दिव्या रावत द्वारा संचालित किया जाता है जिसमें मशरूम उत्पादन ट्रेनिंग से लेकर ट्रेडिंग तक दिव्या रावत अपने साथ जोड़ने वाले स्वरोजगार लोगों को पूरा सहयोग कर रही है उत्तराखंड में सैकड़ों लोग दिव्या से मशरूम स्वरोजगार के द्वारा जोड़कर अपनी रोजी रोटी चला रहे हैं साथ ही उत्तराखंड अलावा यूपी पंजाब दिल्ली बिहार जैसे अन्य राज्यों के लोग भी दिव्या रावत से प्रेरित होकर उनके निवास स्थान देहरादून मशरूवाला में ट्रेनिंग लेकर मशरूम उत्पादन अपना आगे बढ़ाना चाहते हैं। उत्तराखंड मशरूम गर्ल दिव्या रावत का आज मशरूम का कारोबार मल्टीनेशनल होटल से भी जुड़ चुका है जिसमें वह अच्छा खासा मुनाफा कमा रही है आज दिव्या की मशरूम वह कीड़ाजड़ी जैसी कीमती औषधि से सालाना टर्नओवर करोड़ों रुपए का हो चुका है। फिर उसके बाद बेल्जियम मलेशिया थाईलैंड वियतनाम जैसे देशों में जाकर एडवांस तरीके से मशरूम की प्रजातियों की ट्रेनिंग ली। आज दिव्या रावत उत्तराखंड सरकार की तरफ से मशरूम ब्रांड एंबेसडर है साथ महिला सशक्तिकरण के रूप में दिव्या को राष्ट्रपति पुरस्कार भी मिल चुका है।
Last Updated : Mar 6, 2019, 1:13 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.