देहरादून: उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने शुक्रवार को अपनी कैबिनेट का विस्तार किया. कैबिनेट में ज्यादातर पुराने चेहरे ही देखने को मिले. लेकिन इस मंत्रिमंडल की खास बात यही है कि इसमें क्षेत्रीय और जातीय दोनों समीकरणों को साधने की भरपूर कोशिश की गई है.
लेकिन, 12 मार्च को कैबिनेट शपथ ग्रहण समारोह में जब मंत्रियों के नाम जाहिर किए गए तो अधिकतर लोग आश्चर्यचकित हो गए. इसकी वजह से थे मुन्ना सिंह रावत. उत्तराखंड के सियासी गलियारों में चर्चाएं थी कि तीरथ कैबिनेट में वरिष्ठ विधायक मुन्ना सिंह चौहान को भी जिम्मेदारी दी जा सकती है. लेकिन मंत्रिमंडल के नामों की लिस्ट जारी होने के बाद यह साफ हो गया कि मुन्ना सिंह चौहान को कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई है.
मुन्ना सिंह चौहान बीजेपी के उन वरिष्ठ नेताओं में शामिल हैं. जो स्व. प्रकाश पंत और मदन कौशिक की जिम्मेदारियों को बखूबी निभा सकते हैं. बावजूद इसके तीरथ कैबिनेट में मुन्ना को जगह नहीं मिली.
राजनीतिक विश्लेषक जय सिंह रावत के मुताबिक अगर उत्तराखंड की राजनीति को सुधारने के लिए इसका शुद्धीकरण करना पड़ेगा. इसके साथ ही प्रदेश की राजनीति में जो वाद हैं. इन सब से उत्तराखंड को मुक्त करना होगा. तभी जाकर सही लोग सरकार में आ सकते हैं. अगर सरकार में विद्वान नेता होंगे तो ऐसे में ना सिर्फ राज्य का सही ढंग से विकास होगा. बल्कि एक बेहतर संदेश भी लोगों तक पहुंचेगी.
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जय सिंह रावत के मुताबिक मुन्ना सिंह चौहान को कैबिनेट में जगह न मिलने की वजह प्रदेश की राजनीति में मौजूद जातीय और क्षेत्रीय समीकरण के साथ-साथ त्रिवेंद्र सिंह रावत से करीबी का भी असर है. जय सिंह रावत ने बताया कि उम्मीद की जा रही थी कि मुन्ना सिंह चौहान के लंबे अनुभव का फायदा तीरथ कैबिनेट को मिलता, लेकिन ऐसा ना हो सका.
पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के करीबी होने का नुकसान न सिर्फ मुन्ना सिंह चौहान को हुआ है. बल्कि राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) धन सिंह रावत को भी हुआ है. धन सिंह रावत को लेकर चर्चाएं थी कि वह मुख्यमंत्री बनेंगे. लेकिन चर्चाओं के बीच भी धन सिंह रावत को तीरथ कैबिनेट में जगह नहीं मिल पाई है.