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मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के बढ़े 'कदम', युवाओं की क्षमता परखने में जुटे अधिकारी - Migrant in search of self-employment

वापस लौटने वाले प्रवासियों को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने प्रदेश में चल रही सभी स्वरोजगार योजनाओं से जोड़ने को कहा है. प्रवासियों की कार्य क्षमता की जानकारी जुटाने के लिए अधिकारी दौरा कर ग्राउंड जीरो की हकीकत जान रहे हैं.

Migrants will join self-employment
स्वरोजगार की तलाश में प्रवासी.
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Published : Jul 5, 2020, 8:40 PM IST

Updated : Jul 5, 2020, 10:37 PM IST

देहरादून: लॉकडाउन के बाद कारखाने बंद हो गए, दिहाड़ी मजदूरों का काम छिन गया और उन्हें शहरों से पलायन कर गांवों की ओर जाना पड़ा. लॉकडाउन की वजह से बड़ी संख्या में प्रवासी वापस उत्तराखंड लौटे हैं. राज्य सरकार के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक करीब ढाई लाख प्रवासी वापस उत्तराखंड वापस आ चुके हैं. वापस लौटने वाले प्रवासियों को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने प्रदेश में चल रही सभी स्वरोजगार योजनाओं से जोड़ने को कहा है. मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना का लाभ सभी लाभार्थियों को मिले, इसके लिए सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने मीडिया सलाहकार रमेश भट्ट को दौरा कर जमीनी हकीकत जानने का आदेश दिया है.

गांव लौटे प्रवासियों को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए उत्तराखंड सरकार पूरी तरह से सक्रिय है. प्रवासियों को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए त्रिवेंद्र सरकार 300 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही है. कोरोना के बाद लगभग 90% उद्योगों ने काम कराना शुरू कर दिया है. उत्तराखंड में मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत अब कोई भी व्यक्ति ऑनलाइन आवेदन कर सकता है. इसके तहत निर्माण क्षेत्र में 25 लाख और सेवा क्षेत्र में अधिकतम 10 लाख के प्रोजेक्ट को 15 से 25 प्रतिशत तक सब्सिडी मिलेगी. मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना तेज गति से काम करे, इसके लिए प्रदेश सरकार सभी जिलाधिकारियों को 110 करोड़ रुपए का फंड पहले ही उपलब्ध करा चुकी है.

मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के बढ़े 'कदम'.

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ग्राउंड जीरो की जानकारी जुटा रहे अधिकारी
ETV BHARAT से खास बातचीत में मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार रमेश भट्ट ने बताया कि सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के निर्देश पर प्रवासियों को रोजगार से जोड़ने का काम किया जा रहा है. वापस लौटे प्रवासी किस सेक्टर में काम करना चाहते हैं और किस तरह से उनके अनुभव का प्रयोग किया जा सकता है. इन सभी चीजों को जानने के लिए अधिकारी पहाड़ का रुख कर रहे हैं. रमेश भट्ट खुद पहले चरण में 3 जिलों का भ्रमण कर चुके हैं. इसके बाद दूसरे चरण में अन्य जिलों का भ्रमण किया जाएगा. बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना को लेकर पहाड़ के युवाओं में काफी उत्साह है और इस योजना का लाभ उठाकर युवा अपनी आजीविका बढ़ाने में जुटे हुए हैं. रमेश भट्ट के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत संदेश का असर पहाड़ी इलाकों में देखने को मिल रहा है.

मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार रमेश भट्ट ने माना कि ग्राउंड जीरो की वास्तविक तस्वीर बिल्कुल अलग है. वास्तव में देखा जाए तो पहाड़ों में रहने वाले लोगों को काफी समस्याएं हैं, जिनका निस्तारण किया जा रहा है. वापस लौटे प्रवासी बैंकों के चक्कर न लगाए, इसके लिए जिलाधिकारी स्तर पर एक कमेटी का गठन किया गया है. रमेश भट्ट के मुताबिक ऑल वेदर रोड के निर्माण से गढ़वाल की कनेक्टिविटी बहुत अच्छी हो जाएगी. जबकि कुमाऊं क्षेत्र की कनेक्टिविटी बहुत हद तक ठीक हो गई है. लेकिन इससे जुड़े सब कनेक्टेड एरिया को अभी जोड़ने की जरूरत है. हालांकि अब धीरे-धीरे प्रदेश के लोकल ब्रांड को ई-कॉमर्स के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने का काम किया जा रहा है. ई-कॉमर्स के जरिए छोटे व्यापारियों को बड़े पैमाने पर फायदा पहुंचेगा.

ये भी पढ़ें: उत्तराखंड पावर कॉर्पोरेशन में नौकरी पाने का सुनहरा मौका, 764 पदों पर निकली भर्ती

उत्तराखंड के भौगोलिक परिस्थितियों के जानकार अनिल जोशी ने बताया कि इस कोरोना काल ने देश-दुनिया को बड़ा संदेश दिया है कि भविष्य में खेती-बाड़ी से ही सबसे बड़ा उद्योग खड़ा हो सकता है. अगर उत्तराखंड के लिहाज से देखा जाए तो उत्तराखंड की जनता जिन फसलों का उत्पादन कर सकती है, दूसरे राज्यों में उन फसलों का उत्पादन संभव नहीं है, क्योंकि उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियां दूसरे राज्यों से अलग है. इन पहाड़ी क्षेत्रों में ऐसे उत्पाद हो सकते हैं, जिनकी दूसरी बाजारों में उपलब्धता ही नहीं है.

देहरादून के युवा व्यापारी विपिन बडोनी ने कहा कि लॉकडाउन की वजह से वापस लौटे युवाओं के लिए रोजगार को लेकर तमाम योजनाएं हैं. ऐसे में वह अपने आइडिया को धरातल पर उतार सकते हैं. पहाड़ी राज्यों में एग्रीकल्चर एक ऐसा फिल्ड है, जहां पर सबसे ज्यादा प्रोग्रेस की जा सकती है.

देहरादून: लॉकडाउन के बाद कारखाने बंद हो गए, दिहाड़ी मजदूरों का काम छिन गया और उन्हें शहरों से पलायन कर गांवों की ओर जाना पड़ा. लॉकडाउन की वजह से बड़ी संख्या में प्रवासी वापस उत्तराखंड लौटे हैं. राज्य सरकार के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक करीब ढाई लाख प्रवासी वापस उत्तराखंड वापस आ चुके हैं. वापस लौटने वाले प्रवासियों को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने प्रदेश में चल रही सभी स्वरोजगार योजनाओं से जोड़ने को कहा है. मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना का लाभ सभी लाभार्थियों को मिले, इसके लिए सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने मीडिया सलाहकार रमेश भट्ट को दौरा कर जमीनी हकीकत जानने का आदेश दिया है.

गांव लौटे प्रवासियों को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए उत्तराखंड सरकार पूरी तरह से सक्रिय है. प्रवासियों को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए त्रिवेंद्र सरकार 300 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही है. कोरोना के बाद लगभग 90% उद्योगों ने काम कराना शुरू कर दिया है. उत्तराखंड में मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत अब कोई भी व्यक्ति ऑनलाइन आवेदन कर सकता है. इसके तहत निर्माण क्षेत्र में 25 लाख और सेवा क्षेत्र में अधिकतम 10 लाख के प्रोजेक्ट को 15 से 25 प्रतिशत तक सब्सिडी मिलेगी. मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना तेज गति से काम करे, इसके लिए प्रदेश सरकार सभी जिलाधिकारियों को 110 करोड़ रुपए का फंड पहले ही उपलब्ध करा चुकी है.

मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के बढ़े 'कदम'.

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ग्राउंड जीरो की जानकारी जुटा रहे अधिकारी
ETV BHARAT से खास बातचीत में मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार रमेश भट्ट ने बताया कि सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के निर्देश पर प्रवासियों को रोजगार से जोड़ने का काम किया जा रहा है. वापस लौटे प्रवासी किस सेक्टर में काम करना चाहते हैं और किस तरह से उनके अनुभव का प्रयोग किया जा सकता है. इन सभी चीजों को जानने के लिए अधिकारी पहाड़ का रुख कर रहे हैं. रमेश भट्ट खुद पहले चरण में 3 जिलों का भ्रमण कर चुके हैं. इसके बाद दूसरे चरण में अन्य जिलों का भ्रमण किया जाएगा. बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना को लेकर पहाड़ के युवाओं में काफी उत्साह है और इस योजना का लाभ उठाकर युवा अपनी आजीविका बढ़ाने में जुटे हुए हैं. रमेश भट्ट के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत संदेश का असर पहाड़ी इलाकों में देखने को मिल रहा है.

मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार रमेश भट्ट ने माना कि ग्राउंड जीरो की वास्तविक तस्वीर बिल्कुल अलग है. वास्तव में देखा जाए तो पहाड़ों में रहने वाले लोगों को काफी समस्याएं हैं, जिनका निस्तारण किया जा रहा है. वापस लौटे प्रवासी बैंकों के चक्कर न लगाए, इसके लिए जिलाधिकारी स्तर पर एक कमेटी का गठन किया गया है. रमेश भट्ट के मुताबिक ऑल वेदर रोड के निर्माण से गढ़वाल की कनेक्टिविटी बहुत अच्छी हो जाएगी. जबकि कुमाऊं क्षेत्र की कनेक्टिविटी बहुत हद तक ठीक हो गई है. लेकिन इससे जुड़े सब कनेक्टेड एरिया को अभी जोड़ने की जरूरत है. हालांकि अब धीरे-धीरे प्रदेश के लोकल ब्रांड को ई-कॉमर्स के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने का काम किया जा रहा है. ई-कॉमर्स के जरिए छोटे व्यापारियों को बड़े पैमाने पर फायदा पहुंचेगा.

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उत्तराखंड के भौगोलिक परिस्थितियों के जानकार अनिल जोशी ने बताया कि इस कोरोना काल ने देश-दुनिया को बड़ा संदेश दिया है कि भविष्य में खेती-बाड़ी से ही सबसे बड़ा उद्योग खड़ा हो सकता है. अगर उत्तराखंड के लिहाज से देखा जाए तो उत्तराखंड की जनता जिन फसलों का उत्पादन कर सकती है, दूसरे राज्यों में उन फसलों का उत्पादन संभव नहीं है, क्योंकि उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियां दूसरे राज्यों से अलग है. इन पहाड़ी क्षेत्रों में ऐसे उत्पाद हो सकते हैं, जिनकी दूसरी बाजारों में उपलब्धता ही नहीं है.

देहरादून के युवा व्यापारी विपिन बडोनी ने कहा कि लॉकडाउन की वजह से वापस लौटे युवाओं के लिए रोजगार को लेकर तमाम योजनाएं हैं. ऐसे में वह अपने आइडिया को धरातल पर उतार सकते हैं. पहाड़ी राज्यों में एग्रीकल्चर एक ऐसा फिल्ड है, जहां पर सबसे ज्यादा प्रोग्रेस की जा सकती है.

Last Updated : Jul 5, 2020, 10:37 PM IST
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