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पड़ताल: राजधानी में दवाइयों के दावों की 'हकीकत', 'बीमार आदेश' का कैसे हो इलाज ?

उत्तराखंड में सरकार और स्वास्थ्य विभाग ने सर्दी, जुखाम और बुखार की दवाइयां बिना डॉक्टर्स की सलाह या फिर बिना पर्चे के बेचेने पर रोक लगाई है. इसे जानने के लिए ETV भारत की टीम ने राजधानी देहरादून के मेडिकल स्टोर्स का रुख किया. हमने कोशिश की कि शहर के बड़े मेडिकल कॉलेज, अस्पतालों के आस-पास मौजूद मेडिकल स्टोर्स का रियलिटी चेक किया जाये. जिससे जमीनी हकीकत का पता चल सके.

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राजधानी में दवाइयों के दावों की 'हकीकत'
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Published : Jul 4, 2020, 5:20 PM IST

Updated : Jul 4, 2020, 9:07 PM IST

देहरादून: कोरोना वायरस संकट के बीच उत्तराखंड में कुछ दवाइयों की बिक्री सशर्त की गयी है. जिनमें सर्दी, जुखाम और बुखार की दवाइयों को शामिल किया गया है. राज्य में बिना डॉक्टर्स की सलाह या फिर बिना पर्चे के सर्दी, बुखार, जुखाम की सामान्य दवाइयों को बेचने पर रोक लगाई गई है. ऐसे में राजधानी देहरादून में क्या इस आदेश की तामिल हो रही है, या फिर यहां ये आदेश सिर्फ कागजों तक ही सीमित हैं, ये सब जानने के लिए ETV भारत की टीम ने रियलिटी चेक किया. जिसमें क्या कुछ निकलकर सामने आया आपको बताते हैं.

कोविड-19 के दौरान संक्रमण के लक्षण से जुड़ी दवाइयों को लेकर स्वास्थ्य विभाग ने एक खास आदेश जारी किया है. आदेश में मेडिकल स्टोर संचालकों को बिना डॉक्टर के पर्चे के सर्दी, जुखाम और बुखार की दवाइयां बेचने की अनुमति नहीं दी गई है. दरअसल, इस आदेश का मकसद ये था कि अगर किसी व्यक्ति में कोरोना संक्रमण से जुड़े ये लक्षण दिखाई देते हैं तो वे सीधे स्वास्थ्य विभाग या अपने नजदीकी डॉक्टर के पास जाये, न कि घर पर ही सर्दी, जुखाम और बुखार की दवाई खाकर खुद को आश्वस्त कर ले.

राजधानी में दवाइयों के दावों की 'हकीकत'

ऐसे में सरकार के इस आदेश की धरातलीय हकीकत जानने के लिए ETV भारत की टीम ने राजधानी देहरादून के मेडिकल स्टोर्स का रुख किया. हमने कोशिश की कि शहर के बीचों-बीच स्थित दून मेडिकल कॉलेज या बड़े अस्पतालों के इर्द-गिर्द मौजूद मेडिकल स्टोर्स तक ही अपने रियलिटी चेक को सीमित न रखकर इसे शहर भर के दूसरे इलाकों में किया जाये.

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इस कड़ी में बाईपास रोड से होते हुए दून विश्वविद्यालय क्षेत्र के आस-पास की दुकानों में पहुंचे. यहां हमने सबसे पहले जिस मेडिकल स्टोर पर जाकर सर्दी, जुखाम और बुखार की दवाइयों के बारे में पूछा तो दुकानदार ने बिना किसी पूछताछ के ही दवाइयां हमारे हाथों में थमा दी. पहली ही मेडिकल की दुकान पर दवाई मिलने के बाद हम समझ गए कि स्वास्थ्य और ड्रग विभाग के आदेशों को मेडिकल स्टोर संचालक कितनी गंभीरता से ले रहे हैं.

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यहां बिना किसी डर के धड़ल्ले से ये दवाइयां बेची जा रही है. इसके बाद हमने बाईपास चौकी के पास स्थित मेडिकल स्टोर पर जाकर दवाई खरीदने की कोशिश की. यहां भी हालात वही थे. यहां भी हमें बिना किसी डॉक्टर की पर्ची या किसी सलाह से आसानी से दवाई मिल गई. एक के बाद मेडिकल स्टोर्स पर आदेशों की नाफरमानी के बाद एक बात तो साफ हो जाती है कि सरकार और स्वास्थ्य विभाग ने भले ही नाजुक दौर को देखते हुए एहतियात के तौर पर आदेश तो दिये, मगर इन आदेशों की मॉनिटरिंग की कोई व्यवस्था नहीं की. जिसका नतीजा है कि मेडिकल स्टोर्स संचालक बिना किसी डर और हिचकिचाहट के इन दवाइयों को बेच रहे हैं.

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बहरहाल ETV भारत की टीम ने शहर के कुछ दूसरे मेडिकल स्टोर्स पर जाकर भी ऐसी दवाइयों को खरीदने की कोशिश की. जिसमें कई मेडिकल स्टोर संचालक और दुकानदारों ने बिना डॉक्टर के पर्चे के इन दवाइयों को देने से इंकार कर दिया. वहीं कई जगहों पर दुकानदारों ने कैमरे की भनक लगते ही दवाई देने से मना किया.

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आखिरकार क्यों विभाग के आदेश नहीं असरदार

दरअसल, उत्तराखंड में ड्रग विभाग को अभी ठीक से ढांचागत ही नहीं किया गया है. कुछ समय पहले ही इसकी जिम्मेदारी अपर सचिव वित्त अरुणेंद्र चौहान को दी गई है. आपको सुनकर हैरानी होगी कि राजधानी देहरादून में ही होलसेल और रिटेल के रूप में करीब 5200 मेडिकल स्टोर हैं. जबकि प्रदेश में यह आंकड़ा करीब 17000 है. चौंकाने वाली बात यह है कि इतने बड़े क्षेत्र और इतनी बड़ी संख्या में दवाई की दुकानों के लिए महज 6 ड्रग इंस्पेक्टर हैं. इससे बड़ी बात यह है कि बमुश्किल हाल ही में ड्रग का ढांचा कैबिनेट से पास किया गया, लेकिन उसे कुछ दिनों बाद ही इसमें संशोधन के रूप में वापस भेज दिया गया.

देहरादून: कोरोना वायरस संकट के बीच उत्तराखंड में कुछ दवाइयों की बिक्री सशर्त की गयी है. जिनमें सर्दी, जुखाम और बुखार की दवाइयों को शामिल किया गया है. राज्य में बिना डॉक्टर्स की सलाह या फिर बिना पर्चे के सर्दी, बुखार, जुखाम की सामान्य दवाइयों को बेचने पर रोक लगाई गई है. ऐसे में राजधानी देहरादून में क्या इस आदेश की तामिल हो रही है, या फिर यहां ये आदेश सिर्फ कागजों तक ही सीमित हैं, ये सब जानने के लिए ETV भारत की टीम ने रियलिटी चेक किया. जिसमें क्या कुछ निकलकर सामने आया आपको बताते हैं.

कोविड-19 के दौरान संक्रमण के लक्षण से जुड़ी दवाइयों को लेकर स्वास्थ्य विभाग ने एक खास आदेश जारी किया है. आदेश में मेडिकल स्टोर संचालकों को बिना डॉक्टर के पर्चे के सर्दी, जुखाम और बुखार की दवाइयां बेचने की अनुमति नहीं दी गई है. दरअसल, इस आदेश का मकसद ये था कि अगर किसी व्यक्ति में कोरोना संक्रमण से जुड़े ये लक्षण दिखाई देते हैं तो वे सीधे स्वास्थ्य विभाग या अपने नजदीकी डॉक्टर के पास जाये, न कि घर पर ही सर्दी, जुखाम और बुखार की दवाई खाकर खुद को आश्वस्त कर ले.

राजधानी में दवाइयों के दावों की 'हकीकत'

ऐसे में सरकार के इस आदेश की धरातलीय हकीकत जानने के लिए ETV भारत की टीम ने राजधानी देहरादून के मेडिकल स्टोर्स का रुख किया. हमने कोशिश की कि शहर के बीचों-बीच स्थित दून मेडिकल कॉलेज या बड़े अस्पतालों के इर्द-गिर्द मौजूद मेडिकल स्टोर्स तक ही अपने रियलिटी चेक को सीमित न रखकर इसे शहर भर के दूसरे इलाकों में किया जाये.

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इस कड़ी में बाईपास रोड से होते हुए दून विश्वविद्यालय क्षेत्र के आस-पास की दुकानों में पहुंचे. यहां हमने सबसे पहले जिस मेडिकल स्टोर पर जाकर सर्दी, जुखाम और बुखार की दवाइयों के बारे में पूछा तो दुकानदार ने बिना किसी पूछताछ के ही दवाइयां हमारे हाथों में थमा दी. पहली ही मेडिकल की दुकान पर दवाई मिलने के बाद हम समझ गए कि स्वास्थ्य और ड्रग विभाग के आदेशों को मेडिकल स्टोर संचालक कितनी गंभीरता से ले रहे हैं.

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यहां बिना किसी डर के धड़ल्ले से ये दवाइयां बेची जा रही है. इसके बाद हमने बाईपास चौकी के पास स्थित मेडिकल स्टोर पर जाकर दवाई खरीदने की कोशिश की. यहां भी हालात वही थे. यहां भी हमें बिना किसी डॉक्टर की पर्ची या किसी सलाह से आसानी से दवाई मिल गई. एक के बाद मेडिकल स्टोर्स पर आदेशों की नाफरमानी के बाद एक बात तो साफ हो जाती है कि सरकार और स्वास्थ्य विभाग ने भले ही नाजुक दौर को देखते हुए एहतियात के तौर पर आदेश तो दिये, मगर इन आदेशों की मॉनिटरिंग की कोई व्यवस्था नहीं की. जिसका नतीजा है कि मेडिकल स्टोर्स संचालक बिना किसी डर और हिचकिचाहट के इन दवाइयों को बेच रहे हैं.

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बहरहाल ETV भारत की टीम ने शहर के कुछ दूसरे मेडिकल स्टोर्स पर जाकर भी ऐसी दवाइयों को खरीदने की कोशिश की. जिसमें कई मेडिकल स्टोर संचालक और दुकानदारों ने बिना डॉक्टर के पर्चे के इन दवाइयों को देने से इंकार कर दिया. वहीं कई जगहों पर दुकानदारों ने कैमरे की भनक लगते ही दवाई देने से मना किया.

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आखिरकार क्यों विभाग के आदेश नहीं असरदार

दरअसल, उत्तराखंड में ड्रग विभाग को अभी ठीक से ढांचागत ही नहीं किया गया है. कुछ समय पहले ही इसकी जिम्मेदारी अपर सचिव वित्त अरुणेंद्र चौहान को दी गई है. आपको सुनकर हैरानी होगी कि राजधानी देहरादून में ही होलसेल और रिटेल के रूप में करीब 5200 मेडिकल स्टोर हैं. जबकि प्रदेश में यह आंकड़ा करीब 17000 है. चौंकाने वाली बात यह है कि इतने बड़े क्षेत्र और इतनी बड़ी संख्या में दवाई की दुकानों के लिए महज 6 ड्रग इंस्पेक्टर हैं. इससे बड़ी बात यह है कि बमुश्किल हाल ही में ड्रग का ढांचा कैबिनेट से पास किया गया, लेकिन उसे कुछ दिनों बाद ही इसमें संशोधन के रूप में वापस भेज दिया गया.

Last Updated : Jul 4, 2020, 9:07 PM IST
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