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अधिकारियों का कारनामा! सरकारी भवन होने के बाद भी किराए के घर में शिफ्ट हुआ चिकित्सा चयन बोर्ड

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Published : Apr 9, 2022, 5:53 PM IST

Updated : Apr 26, 2022, 5:40 PM IST

अधिकारी किस तरह से सरकारी खजाने को ठिकाने लगाने के लिए खेला कर रहे हैं, इसकी एक तस्वीर स्वास्थ्य विभाग के इस नए कारनामे के बाद सामने आई है. यहां सरकारी बिल्डिंग में चल रहे चिकित्सा चयन बोर्ड के दफ्तर को किराए के घर में शिफ्ट किया गया है, जिसका सरकार को लाखों रुपए का किराया देना पड़ रहा है.

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चिकित्सा चयन बोर्ड

देहरादून: उत्तराखंड में मितव्ययता का ढोल पीटने वाली सरकार हकीकत में कैसे काम करती है, इसका ताजा उदाहरण स्वास्थ्य विभाग से देखने को मिला है, जहां सरकारी भवन में चल रहे चिकित्सा चयन बोर्ड को बड़े किराए वाले निजी भवन में शिफ्ट कर दिया गया है. मजे की बात ये है कि बोर्ड के हटने के बाद स्वास्थ्य विभाग की सरकारी बिल्डिंग खाली धूल फांक रही है.

ये उत्तराखंड सरकार और उसके सरकारी सिस्टम का ही खेल है कि आज प्रदेश 70 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा के कर्ज तले तबा हुआ है. साल 2015 में अस्तित्व में आया चिकित्सा चयन बोर्ड पिछले 6 सालों से स्वास्थ्य विभाग के सरकारी भवन से चल रहा था. लेकिन न जाने ऐसी क्या बात हुई कि अचानक इस बोर्ड को सरकारी भवन से खाली करवा कर एक निजी भवन में शिफ्ट कर दिया गया.
पढ़ें- जानिए नौकरशाही के ACR मामले में क्या कह रहे राजनीतिक विशेषज्ञ, मंत्री मांग पर क्यों हैं मुखर

वैसे तो स्वास्थ्य विभाग के भवन में ही बोर्ड के कार्यालय के होने से वित्तीय और अधिकारियों की सहूलियत के लिहाज से फायदा मिल रहा था, लेकिन इन दोनों ही पहलुओं को भूलकर अधिकारियों ने इसे शास्त्री नगर स्थित एक निजी कोठी में शिफ्ट कर दिया. अब आरोप लग रहा है कि अपने किसी चहेते को फायदा दिलवाने के लिए ऐसा किया गया है.

कहा जा रहा है कि किराए के रूप में सरकार को भारी रकम चुकानी पड़ रही है. यह स्थिति तब है जब स्वास्थ्य विभाग में खाली किया गया भवन अब भी धूल फांक रहा है. प्रदेश में ये स्थिति तब है जब सरकार कर्म खर्च को लेकर अधिकारियों को नसीहत देती रही है, लेकिन अधिकारी है कि अपने निजी फायदे के लिए सरकारी पैसे की बंदरबांट करने से बाज नहीं आ रहे है.
पढ़ें- 'उत्तराखंड में लागू होगी नई शिक्षा नीति, रोजगारपरक शिक्षा को मिलेगा बढ़ावा'

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इस पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि जब सरकारी भवन मौजूद है तो प्राइवेट भवनों में सरकारी दफ्तरों को शिफ्ट करने का औचित्य नहीं बनता. वहीं कांग्रेसी नेता गरिमा दसौनी ने कहा कि यह भ्रष्टाचार का एक बड़ा जरिया बनता दिखाई दे रहा है, जहां सरकारी भवन होने के बावजूद लाखों रुपए किराया चुका कर उन्हें वहां से संचालित किया जा रहा है.

यहां बता दें कि जिस बिल्डिंग यानी घर में स्वास्थ्य चयन बोर्ड का भवन चल रहा है, उसे स्वास्थ्य महानिदेशक के आवास के रूप में तैयार किया गया था. लेकिन स्वास्थ्य महानिदेशक तृप्ति बहुगुणा खुद कहती हैं वो जगह उनके रहने लायक नहीं है. जाहिर है कि वह यहां पर भविष्य में भी नहीं रहने जा रही हैं. ऐसे में फिर ये भवन क्यों खाली किया गया ये समझ से परे है. हालांकि स्वास्थ्य महानिदेशक इस पर एक नया तर्क देते हुए कहती हैं कि जल्दी केंद्रीय संस्थान को इसे किराए पर दिया जाएगा.
पढ़ें- कोविड से उभरकर एक फिर उत्तराखंड तोड़ेगा पर्यटन के सारे रिकॉर्ड, पर्यटन मंत्री ने साझा की रणनीति

बड़ी अजीब बात है कि उत्तराखंड के स्वास्थ्य से जुड़े एक बोर्ड को तो इस भवन से हटा दिया जाता है और फिर इसे किराए पर देने की बात कही जाती है. यानी सरकार किराए के लिए खुद मोटी रकम खर्च करने को तैयार है. लेकिन सरकारी बोर्ड को भवन देने के लिए तैयार नहीं. बहरहाल मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस मामले पर कहा कि सरकार मितव्ययिता और नियमों के अनुसार ही काम करेगी. यदि कोई विभाग सरकारी व्यवस्था को खराब करने की हिमाकत करता है तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी.

देहरादून: उत्तराखंड में मितव्ययता का ढोल पीटने वाली सरकार हकीकत में कैसे काम करती है, इसका ताजा उदाहरण स्वास्थ्य विभाग से देखने को मिला है, जहां सरकारी भवन में चल रहे चिकित्सा चयन बोर्ड को बड़े किराए वाले निजी भवन में शिफ्ट कर दिया गया है. मजे की बात ये है कि बोर्ड के हटने के बाद स्वास्थ्य विभाग की सरकारी बिल्डिंग खाली धूल फांक रही है.

ये उत्तराखंड सरकार और उसके सरकारी सिस्टम का ही खेल है कि आज प्रदेश 70 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा के कर्ज तले तबा हुआ है. साल 2015 में अस्तित्व में आया चिकित्सा चयन बोर्ड पिछले 6 सालों से स्वास्थ्य विभाग के सरकारी भवन से चल रहा था. लेकिन न जाने ऐसी क्या बात हुई कि अचानक इस बोर्ड को सरकारी भवन से खाली करवा कर एक निजी भवन में शिफ्ट कर दिया गया.
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वैसे तो स्वास्थ्य विभाग के भवन में ही बोर्ड के कार्यालय के होने से वित्तीय और अधिकारियों की सहूलियत के लिहाज से फायदा मिल रहा था, लेकिन इन दोनों ही पहलुओं को भूलकर अधिकारियों ने इसे शास्त्री नगर स्थित एक निजी कोठी में शिफ्ट कर दिया. अब आरोप लग रहा है कि अपने किसी चहेते को फायदा दिलवाने के लिए ऐसा किया गया है.

कहा जा रहा है कि किराए के रूप में सरकार को भारी रकम चुकानी पड़ रही है. यह स्थिति तब है जब स्वास्थ्य विभाग में खाली किया गया भवन अब भी धूल फांक रहा है. प्रदेश में ये स्थिति तब है जब सरकार कर्म खर्च को लेकर अधिकारियों को नसीहत देती रही है, लेकिन अधिकारी है कि अपने निजी फायदे के लिए सरकारी पैसे की बंदरबांट करने से बाज नहीं आ रहे है.
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पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इस पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि जब सरकारी भवन मौजूद है तो प्राइवेट भवनों में सरकारी दफ्तरों को शिफ्ट करने का औचित्य नहीं बनता. वहीं कांग्रेसी नेता गरिमा दसौनी ने कहा कि यह भ्रष्टाचार का एक बड़ा जरिया बनता दिखाई दे रहा है, जहां सरकारी भवन होने के बावजूद लाखों रुपए किराया चुका कर उन्हें वहां से संचालित किया जा रहा है.

यहां बता दें कि जिस बिल्डिंग यानी घर में स्वास्थ्य चयन बोर्ड का भवन चल रहा है, उसे स्वास्थ्य महानिदेशक के आवास के रूप में तैयार किया गया था. लेकिन स्वास्थ्य महानिदेशक तृप्ति बहुगुणा खुद कहती हैं वो जगह उनके रहने लायक नहीं है. जाहिर है कि वह यहां पर भविष्य में भी नहीं रहने जा रही हैं. ऐसे में फिर ये भवन क्यों खाली किया गया ये समझ से परे है. हालांकि स्वास्थ्य महानिदेशक इस पर एक नया तर्क देते हुए कहती हैं कि जल्दी केंद्रीय संस्थान को इसे किराए पर दिया जाएगा.
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बड़ी अजीब बात है कि उत्तराखंड के स्वास्थ्य से जुड़े एक बोर्ड को तो इस भवन से हटा दिया जाता है और फिर इसे किराए पर देने की बात कही जाती है. यानी सरकार किराए के लिए खुद मोटी रकम खर्च करने को तैयार है. लेकिन सरकारी बोर्ड को भवन देने के लिए तैयार नहीं. बहरहाल मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस मामले पर कहा कि सरकार मितव्ययिता और नियमों के अनुसार ही काम करेगी. यदि कोई विभाग सरकारी व्यवस्था को खराब करने की हिमाकत करता है तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी.

Last Updated : Apr 26, 2022, 5:40 PM IST
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