ETV Bharat / state

परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह की शौर्यगाथा, मरते दम तक दुश्मनों से लेते रहे लोहा

उत्तराखंड के कुमाऊं रेजिमेंट के 13वीं बटालियन की सी कम्पनी के मेजर रहे परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह की वीर गाथा सुनकर आपका दिल भी जोश से भर जाएगा.

परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह की शौर्यगाथा.
author img

By

Published : Oct 6, 2019, 10:28 AM IST

Updated : Oct 6, 2019, 12:18 PM IST

देहरादून: 'दस-दस को एक ने मारा, फिर गिर गए होश गंवा के, जब अंत समय आया तो कह गए कि हम चलते हैं, खुश रहना मेरे देश के प्यारों अब हम तो सफर करते हैं' कवि ये पंक्तियां मेजर शैतान सिंह की शौर्य गाथा को जीवंत करती हैं. उत्तराखंड के कुमाऊं रेजिमेंट के 13वीं बटालियन की सी कम्पनी के मेजर रहे परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह की वीर गाथा सुनकर आपका दिल भी जोश से भर जाएगा.

परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह की शौर्यगाथा.


भारत-चीन सीमा पर स्थित रेजांग पास पर 18 नवंबर 1962 की सुबह, चारो तरफ बर्फीली धुंध और मुंह को ब्लेड सी चीरने वाली शीत लहर. लद्दाख में ठंडी और कलेजा जमा देने वाली हवाएं चल रही थी. सीमा पर भारत के पहरेदार वीर जवान मौजूद थे. 13 वीं कुमाऊं बटालियन की सी कंपनी चुशुल सेक्टर में अपनी ड्यूटी पर तैनात थी. बटालियन में 120 जवान थे. सेना की इस टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे थे मेजर शैतान सिंह. जिनके पास इस पिघला देने वाली ठंड से बचने के लिए कुछ भी नहीं था. सभी इस माहौल के लिए नए बिल्कुल नए थे.

पढ़ेंः सोमेश्वर में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को किया याद, राज्यसभा सांसद ने दी श्रद्धांजलि

सूरज अभी चढ़ा भी नहीं था, कि दूधिया उजाले में दूर से रेजांगला के पास चीन की तरफ से कुछ हलचल हुई. बटालियन के जवानों ने देखा कि उनकी तरफ सीमा की दूसरी तरफ से रोशनी के कुछ गोले टिमटिमाते हुए चले आ रहे हैं. मेजर शैतान सिंह ने बटालियन के जवानों को गोली चलाने के आदेश दे दिए. तभी कुछ देर बाद पता लगा कि ये चीनी सेना की एक साजिश थी. दरअसल रोशनी के गोले असल में लालटेन थी और इन्हें कई सारे यॉक गले में लटका कर चीन की सेना ने भारत की तरफ भेजा था.

पढ़ेंः शहीद के परिजनों से मिलने पहुंचे सीएम, हर संभव मदद का दिया भरोसा


ये दुश्मन की एक साजिश थी. अक्साई चीन को लेकर चीन ने भारत पर हमला कर दिया था. चीनी सेना पूरी तैयारी के साथ थी. ठंड में लड़ने की उन्हें आदत थी और उनके पास पर्याप्त हथियार भी थे. जबकि भारतीय टुकड़ी के पास केवल 300 से 400 राउंड गोलियां और मात्र 1 हजार हथगोले. बंदूकें भी ऐसी जो एक बार में एक ही फायर कर पाती. चीन को ये बात मालूम थी. इसलिए उसने भारतीय सेना की टुकड़ी की गोलियां खत्म करने की साजिश रची. चीन के सैनिकों ने इसके बाद आगे बढ़ना शुरू कर दिया.

पढ़ेंः मसूरी गोलीकांड बरसी: शहीद राज्य आंदोलनकारियों को दी गई श्रद्धांजलि, गंगा में किये 101 दीपदान

भारतीय टुकड़ी की अगुवाई कर रहे मेजर शैतान सिंह ने दुश्मन की इस चाल की जानकारी वायरलेस पर सीनियर अधिकारियों को दी और मदद मांगी. उधर से जवाब आया कि अभी मदद नहीं पहुंच सकती. आप चौकी छोड़कर पीछे हट जाएं. अपनी और अपने साथियों की जान बचाएं. लेकिन मेजर का जज्बा इस बात के लिए तैयार नहीं था. मेजर के लिए चौकी छोड़ने का मतलब हार मान लेना होता, घुटने टेक देना होता. मेजर ने अपनी टुकड़ी के साथ एक छोटी सी मीटिंग की और हालातों की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि अगर कोई पीछे हटना चाहता है तो हट सकता है, लेकिन हम लड़ेंगे. गोलियां कम थी, ठंड की वजह से उनके शरीर जवाब दे रहे थे और चीन से लड़ पाना नामुमकिन सा था. लेकिन बटालियन के मेजर के हौसले के सामने सारी समस्या छोटी लगने लगी.

पढ़ेंः रामपुर तिराहा गोलीकांड की 25वीं बरसी, शहीद आंदोलनकारियों को दी श्रद्धांजलि


दूसरी तरफ तोपों और मोटारार का हमला शुरू हो गया. चीनी सैनिकों से सभी 120 जवान लड़ते रहे. दस-दस चीनी सैनिकों को कुमाऊं रेजिमेंट की इस टुकड़ी के एक-एक जवान ने मार गिराया. इस जंग में ज्यादातर जवान शहीद हो गए थे. बहुत से जवान बुरी तरह घायल हो गए थे. मेजर शैतान सिंह भी खून से सने हुए थे. 2 सैनिक घायल मेजर को एक बड़ी बर्फीली चट्टान के पीछे ले गए. दूर-दूर तक कोई मेडिकल मदद नहीं थी. मदद के लिए बर्फीली पहाड़ियों से नीचे उतरना पड़ता था. मेजर से सैनिकों ने मेडिकल हेल्प लाने की बात कही. लेकिन मेजर ने मना कर दिया और सैनिकों से एक मशीनगन लाने को कहा. कहा कि गन के ट्रिगर को रस्सी से मेरे पैर से बांध दो. उनके दोनों हाथ खून से लथपथ थे. उन्होंने रस्सी की मदद से अपने एक पैर से फायरिंग करनी शुरू कर दी. मौके पर मौजूद दोनों जवानों को सीनियर अफसरों से एक बार फिर संपर्क करने के लिए भेजा गया और वे खुद चीनी सैनिकों से लड़ते रहे.

पढ़ेंः कोटद्वार: मुजफ्फरनगर कांड में शहीद राज्य आंदोलनकारियों को दी श्रद्धांजलि


लड़ाई के 3 महीने बाद जब बर्फ पिघली तो रेड क्रॉस सोसाइटी और सेना के जवानों ने मेजर शैतान सिंह को खोजना शुरू किया. तब एक गड़रिये ने बताया कि एक चट्टान के नीचे कोई दिख रहा है. वे लोग उसी चट्टान के नीचे पहुंचे, जहां मेजर ने मशीनगन से चीनी सैनिकों का मुकाबला किया था. उस जगह पर उनका शव मशीन गन के साथ बंधा हुआ मिला. पैरों से अब भी रस्सी बंधी हुई थी और बर्फ की वजह से उनका पूरा शरीर जम चुका था. ये पता नहीं लग पाया कि मेजर कितनी देर तक चीनी सैनिकों से लड़ते रहे और कब बर्फ ने उन्हें अपने आगोश में ले लिया. उनके साथ उनकी टुकड़ी के 114 जवानों के शव मिले. बाकी सैनिकों को चीनी सेना ने बंदी बना लिया था. हालांकि भारत ये युद्ध हार गया, लेकिन बाद में पता चला कि चीन की सेना का सबसे ज्यादा नुकसान रेजांगला पर ही हुआ था, जहां मेजर शैतान सिंह की सेना तैनात थी. इस लड़ाई में चीन के करीब 1800 सैनिक मारे गए. ये एकमात्र ऐसी जगह थी, जहां भारतीय सेना ने चीनी सेना को घुसने नहीं दिया. इसके बाद कुमाऊं रेजीमेंट ने मेजर शैतान सिंह का राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया. इस बहादुरी के लिए उन्हें देश का सबसे बड़ा वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र मिला.

देहरादून: 'दस-दस को एक ने मारा, फिर गिर गए होश गंवा के, जब अंत समय आया तो कह गए कि हम चलते हैं, खुश रहना मेरे देश के प्यारों अब हम तो सफर करते हैं' कवि ये पंक्तियां मेजर शैतान सिंह की शौर्य गाथा को जीवंत करती हैं. उत्तराखंड के कुमाऊं रेजिमेंट के 13वीं बटालियन की सी कम्पनी के मेजर रहे परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह की वीर गाथा सुनकर आपका दिल भी जोश से भर जाएगा.

परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह की शौर्यगाथा.


भारत-चीन सीमा पर स्थित रेजांग पास पर 18 नवंबर 1962 की सुबह, चारो तरफ बर्फीली धुंध और मुंह को ब्लेड सी चीरने वाली शीत लहर. लद्दाख में ठंडी और कलेजा जमा देने वाली हवाएं चल रही थी. सीमा पर भारत के पहरेदार वीर जवान मौजूद थे. 13 वीं कुमाऊं बटालियन की सी कंपनी चुशुल सेक्टर में अपनी ड्यूटी पर तैनात थी. बटालियन में 120 जवान थे. सेना की इस टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे थे मेजर शैतान सिंह. जिनके पास इस पिघला देने वाली ठंड से बचने के लिए कुछ भी नहीं था. सभी इस माहौल के लिए नए बिल्कुल नए थे.

पढ़ेंः सोमेश्वर में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को किया याद, राज्यसभा सांसद ने दी श्रद्धांजलि

सूरज अभी चढ़ा भी नहीं था, कि दूधिया उजाले में दूर से रेजांगला के पास चीन की तरफ से कुछ हलचल हुई. बटालियन के जवानों ने देखा कि उनकी तरफ सीमा की दूसरी तरफ से रोशनी के कुछ गोले टिमटिमाते हुए चले आ रहे हैं. मेजर शैतान सिंह ने बटालियन के जवानों को गोली चलाने के आदेश दे दिए. तभी कुछ देर बाद पता लगा कि ये चीनी सेना की एक साजिश थी. दरअसल रोशनी के गोले असल में लालटेन थी और इन्हें कई सारे यॉक गले में लटका कर चीन की सेना ने भारत की तरफ भेजा था.

पढ़ेंः शहीद के परिजनों से मिलने पहुंचे सीएम, हर संभव मदद का दिया भरोसा


ये दुश्मन की एक साजिश थी. अक्साई चीन को लेकर चीन ने भारत पर हमला कर दिया था. चीनी सेना पूरी तैयारी के साथ थी. ठंड में लड़ने की उन्हें आदत थी और उनके पास पर्याप्त हथियार भी थे. जबकि भारतीय टुकड़ी के पास केवल 300 से 400 राउंड गोलियां और मात्र 1 हजार हथगोले. बंदूकें भी ऐसी जो एक बार में एक ही फायर कर पाती. चीन को ये बात मालूम थी. इसलिए उसने भारतीय सेना की टुकड़ी की गोलियां खत्म करने की साजिश रची. चीन के सैनिकों ने इसके बाद आगे बढ़ना शुरू कर दिया.

पढ़ेंः मसूरी गोलीकांड बरसी: शहीद राज्य आंदोलनकारियों को दी गई श्रद्धांजलि, गंगा में किये 101 दीपदान

भारतीय टुकड़ी की अगुवाई कर रहे मेजर शैतान सिंह ने दुश्मन की इस चाल की जानकारी वायरलेस पर सीनियर अधिकारियों को दी और मदद मांगी. उधर से जवाब आया कि अभी मदद नहीं पहुंच सकती. आप चौकी छोड़कर पीछे हट जाएं. अपनी और अपने साथियों की जान बचाएं. लेकिन मेजर का जज्बा इस बात के लिए तैयार नहीं था. मेजर के लिए चौकी छोड़ने का मतलब हार मान लेना होता, घुटने टेक देना होता. मेजर ने अपनी टुकड़ी के साथ एक छोटी सी मीटिंग की और हालातों की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि अगर कोई पीछे हटना चाहता है तो हट सकता है, लेकिन हम लड़ेंगे. गोलियां कम थी, ठंड की वजह से उनके शरीर जवाब दे रहे थे और चीन से लड़ पाना नामुमकिन सा था. लेकिन बटालियन के मेजर के हौसले के सामने सारी समस्या छोटी लगने लगी.

पढ़ेंः रामपुर तिराहा गोलीकांड की 25वीं बरसी, शहीद आंदोलनकारियों को दी श्रद्धांजलि


दूसरी तरफ तोपों और मोटारार का हमला शुरू हो गया. चीनी सैनिकों से सभी 120 जवान लड़ते रहे. दस-दस चीनी सैनिकों को कुमाऊं रेजिमेंट की इस टुकड़ी के एक-एक जवान ने मार गिराया. इस जंग में ज्यादातर जवान शहीद हो गए थे. बहुत से जवान बुरी तरह घायल हो गए थे. मेजर शैतान सिंह भी खून से सने हुए थे. 2 सैनिक घायल मेजर को एक बड़ी बर्फीली चट्टान के पीछे ले गए. दूर-दूर तक कोई मेडिकल मदद नहीं थी. मदद के लिए बर्फीली पहाड़ियों से नीचे उतरना पड़ता था. मेजर से सैनिकों ने मेडिकल हेल्प लाने की बात कही. लेकिन मेजर ने मना कर दिया और सैनिकों से एक मशीनगन लाने को कहा. कहा कि गन के ट्रिगर को रस्सी से मेरे पैर से बांध दो. उनके दोनों हाथ खून से लथपथ थे. उन्होंने रस्सी की मदद से अपने एक पैर से फायरिंग करनी शुरू कर दी. मौके पर मौजूद दोनों जवानों को सीनियर अफसरों से एक बार फिर संपर्क करने के लिए भेजा गया और वे खुद चीनी सैनिकों से लड़ते रहे.

पढ़ेंः कोटद्वार: मुजफ्फरनगर कांड में शहीद राज्य आंदोलनकारियों को दी श्रद्धांजलि


लड़ाई के 3 महीने बाद जब बर्फ पिघली तो रेड क्रॉस सोसाइटी और सेना के जवानों ने मेजर शैतान सिंह को खोजना शुरू किया. तब एक गड़रिये ने बताया कि एक चट्टान के नीचे कोई दिख रहा है. वे लोग उसी चट्टान के नीचे पहुंचे, जहां मेजर ने मशीनगन से चीनी सैनिकों का मुकाबला किया था. उस जगह पर उनका शव मशीन गन के साथ बंधा हुआ मिला. पैरों से अब भी रस्सी बंधी हुई थी और बर्फ की वजह से उनका पूरा शरीर जम चुका था. ये पता नहीं लग पाया कि मेजर कितनी देर तक चीनी सैनिकों से लड़ते रहे और कब बर्फ ने उन्हें अपने आगोश में ले लिया. उनके साथ उनकी टुकड़ी के 114 जवानों के शव मिले. बाकी सैनिकों को चीनी सेना ने बंदी बना लिया था. हालांकि भारत ये युद्ध हार गया, लेकिन बाद में पता चला कि चीन की सेना का सबसे ज्यादा नुकसान रेजांगला पर ही हुआ था, जहां मेजर शैतान सिंह की सेना तैनात थी. इस लड़ाई में चीन के करीब 1800 सैनिक मारे गए. ये एकमात्र ऐसी जगह थी, जहां भारतीय सेना ने चीनी सेना को घुसने नहीं दिया. इसके बाद कुमाऊं रेजीमेंट ने मेजर शैतान सिंह का राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया. इस बहादुरी के लिए उन्हें देश का सबसे बड़ा वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र मिला.

Intro:Note- इस स्पेशल स्टोरी की फीड FTP पर (uk_deh_01_mejor_shaitan_singh_pkg_7205800) नाम से भेजी जा रही है।

एंकर- 'दस दस को एक ने मारा, फिर गिर गए होश गंवा के, जब अंत समय आया तो कह गए कि हम चलते हैं, खुश रहना मेरे देश के प्यारों अब हम तो सफ़र करते हैं' कवि प्रदीप की ये पंक्तियां मेजर शैतान सिंह की शौर्य गाथा को जीवंत करती है। आपके सीने को भी गर्व से भर देगी उत्तराखंड के कुमाऊँ रेजिमेंट के 13 कुमाऊं बटालियन की सी कम्पनी के मेजर रहे परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह की वो वीर गाथा।


Body:भारत-चीन सीमा पर स्थित रेजांग पास पर 18 नवंबर 1962 की सुबह, चारो तरफ बर्फीली धुंध और मुह को ब्लेड सी चीरने वाली शीत लहर। लद्दाख में ठंडी और कलेजा जमा देने वाली हवाएं चल रही थी यहां सीमा पर भारत के पहरेदार वीर जवान मौजूद थे, 13 कुमाऊ बटालियन की सी कंपनी चुशुल सेक्टर में अपनी ड्यूटी पर तैनात थी। बटालियन में 120 जवान थे जिनके पास इस पिघला देने वाली ठंड से बचने के लिए कुछ भी नहीं था वह इस माहौल के लिए नए बिल्कुल नए थे इससे पहले उन्हें इस तरह की बर्फ के बीच रहने का कोई अनुभव नहीं था और सेना की इस टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे थे मेजर शैतान सिंह।

सूरज अभी चढ़ा नही था की उस से पहले दूधिया उजाले में दूर से रेजांगला रेजांग पास पर चीन की तरफ से कुछ हलचल हुई। बटालियन के जवानों ने देखा कि उनकी तरफ सीमा की दूसरी तरफ से रोशनी के कुछ गोले टिमटिमाते हुए चले आ रहे हैं।बटालियन को मेजर शैतान सिंह ने उन्होंने गोली चलाने के आदेश दे दिए थे तभी कुछ देर बाद पता लगा कि यह चीनी सेना की एक साजिश थी। दरसल रोशनी के गोले असल में लालटेन थी और इन्हें कई सारे याक गले में लटका कर चीन की सेना ने भारत की तरफ भेजा था।

यह दुश्मन की एक साजिश थी और अक्साई चीन को लेकर चीन ने भारत पर हमला कर दिया था। चीनी सेना पूरी तैयारी के साथ थी। ठंड में लड़ने की उन्हें आदत थी और उनके पास पर्याप्त हथियार भी थे। जबकि भारतीय टुकड़ी के पास केवल 300 से 400 राउंड गोलियां और मात्र 1 हजार हथगोले मात्र। बंदूकें भी ऐसी जो एक बार में एक ही फायर कर पाती थी। चीन को इस बात की जानकारी थी इसलिए उसने भारतीय सेना की टुकड़ी की गोलियां खत्म करने की साजिश रची। चीन के सैनिकों ने इसके बाद आगे बढ़ना शुरू कर दिया।

भारतीय टुकड़ी की अगुवाई कर रहे मेजर शैतान सिंह ने दुश्मन की इस चाल की जानकारी वायरलेस पर सीनियर अधिकारियों को दी और मदद मांगी। उधर से जवाब आया कि अभी मदद नहीं पहुंच सकती आप चौकी छोड़कर पीछे हट जाएं, अपनी और अपने साथियों की जान बचाएं। लेकिन मेजर का जज्बा इस बात के लिए लिए तैयार नहीं था। मेजर के लिए चौकी छोड़ने का मतलब हार मान लेना, घुटने टेक देना। मेजर ने अपनी टुकड़ी के साथ एक छोटी सी मीटिंग की और हालातों की जानकारी दी और कहा कि अगर कोई पीछे हटना चाहता है तो हट सकता है लेकिन हम लड़ेंगे। गोलियां कम थी ठंड की वजह से उनके शरीर जवाब दे रहे थे चीन से लड़ पाना नामुमकिन सा था लेकिन बटालियन के मेजर के हौसले के सामने यह सारी समस्या छोटी लगने लगी।

दूसरी तरफ से तोपों और मोटारार का हमला शुरू हो गया। चीनी सैनिकों से यह 120 जवान लड़ते रहे। दस-दस चीनी सैनिकों को कुमाऊँ रेजिमेंट की इस टुकड़ी के एक एक जवान ने मार गिराया। और इसी जंग पर कवि प्रदीप ने लिखा- "दस दस को एक ने मारा फिर गिर गए होश गंवा के, जब अंत समय आया तो कह गए हम चलते हैं, खुश रहना देश के प्यारों अब हम तो सफ़र करते हैं"

इस जंग में ज्यादातर जवान शहीद हो गए थे और बहुत से जवान बुरी तरह घायल हो गए थे। मेजर शैतान सिंह खून से सने हुए थे 2 सैनिक घायल मेजर को एक बड़ी बर्फीली चट्टान के पीछे ले गए। दूर-दूर तक कोई मिडकल मदद नहीं थी, मदद के लिए बर्फीली पहाड़ियों से नीचे उतरना पड़ता था। मेजर से सैनिकों ने मेडिकल हेल्प लाने की बात कही लेकिन मेजर ने मैंने मना कर दिया और सैनिकों को कहा कि एक मशीनगन ले कर आओ। मशीनगन आई तो उन्होंने कहा कि गन के ट्रिगर को रस्सी से मेरे पैर से बांध दो। उनके दोनों हाथ लथपथ थे, उन्होंने रस्सी की मदद से अपनी अपने एक पैर से फायरिंग करनी शुरू कर दी। उन्होंने साथ मे मोजूद दोनों जवानों को सीनियर अफसरों से एक बार फिर संपर्क करने के लिए वंहा से भेज दिया और खुद लड़ते रहे।

बाद में उनके बारे में कई दिनों तक कुछ पता नहीं चला। 3 महीने बाद जब बर्फ पिघली तो रेड क्रॉस सोसाइटी और सेना के जवानों ने उन्हें खोजना शुरू किया। तब एक गड़रिये ने बताया कि एक चट्टान के नीचे कोई दिख रहा था। लोग उसी चट्टान के नीचे पहुंचे जहां में मेजर ने मशीनगन से चीनी सैनिकों का मुकाबला किया था। उस जगह उनका शव मशीन गन के साथ बंधा हुआ मिला। पैरों में अब भी रस्सी बंधी हुई थी और बर्फ की वजह से उनका शरीर जम गया था।

पता नहीं कितनी देर तक वह चीनी सैनिकों से लड़ते रहे और कब बर्फ ने उन्हें अपने आगोश में ले लिया। उनके साथ उनकी टुकड़ी के 114 जवानों के भी शव मिले। बाकी लोगों को चीन ने बंदी बना लिया था। हालांकि भारत ये युद्ध हार गया लेकिन बाद में पता चला कि चीन की सेना का सबसे ज्यादा नुकसान रेजांगला पर ही हुआ था। चीन के करीब 1800 सैनिक इस जगह मारे गए थे। यह एकमात्र ऐसी जगह थी जहां भारतीय सेना ने चीनी सेना को घुसने नहीं दिया था।

बाद में मेजर शैतान सिंह का कुमाऊं रेजीमेंट ने राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया इसके बाद उन्हें देश का सबसे बड़ा वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र मिला।


Conclusion:
Last Updated : Oct 6, 2019, 12:18 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.