विकासनगरः उत्तराखंड को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता है, यहां कोने-कोने में देवी-देवताओं का वास है. यहां पर विराजमान आस्था के केंद्र, संस्कृति, लोक पर्व और परंपराएं इस पावन धरा को अलग पहचान दिलाते हैं. इसी कड़ी में जनजातीय क्षेत्र के जौनसार बावर का मरोज पर्व भी शामिल है, जो माघ महीने में धूमधाम से मनाया जाता है.
यह त्योहार मेहमान नवाजी, आपसी भाईचारा, मेल मिलाप और मोहब्बत का प्रतीक है. जिसके तहत प्रवासी लोग यानी गांव से बाहर गए लोग अपने गांव आते हैं. जहां पर सभी लोग रात को एक साथ मिलकर मरोज पर्व का जश्न मनाते हैं.
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इस दौरान रात का महफिल देखने लायक होता है. जहां पर ढोलक की थाप और खंजरी की झंकार के साथ पांरपरिक गीत हारुल, नाटी लगाई जाती है. जिसमें क्या बच्चे, क्या बूढ़े, क्या नौजवान, क्या महिलाएं सभी लोग मिल जुलकर रात भर नाचते हैं.
इस खास पर्व पर विवाहिता बेटियों को न केवल याद किया जाता है. बल्कि, उन्हें विशेष सम्मान भी दिया जाता है. इस त्योहार के बहाने ही बेटियां अपनी सखी और सहेलियों से आपसी मेल मिलाप कर पाती हैं. जबकि, विशेष भोज में मीठी रोटी के साथ घी परोसने की पंरपरा है. इसलिए तो यह पर्व आपसी मेल मिलाप और रिश्ते नाते निभाने को लेकर खास बनाता है.