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पशुपालन विभाग है बदहाल, खाली पड़े हैं चिकित्सकों के कई पद - Shortage of doctors in animal husbandry department

कृषि सेक्टर को लेकर तो राज्य सरकार ने काफी योजनाओं और कार्यक्रमों को प्राथमिकता दी है लेकिन पशुपालन सेक्टर में विभाग की रीढ़ माने जाने वाले वेटरनरी डॉक्टर्स की भर्ती में ही सरकार और शासन लापरवाह नजर आ रहे हैं.

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उत्तराखंड में बदहाल पशुपालन विभाग
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Published : Apr 17, 2021, 4:26 PM IST

Updated : Apr 17, 2021, 8:50 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में लोगों की आजीविका से जुड़ा एक महत्वपूर्ण सेक्टर सरकार और शासन की नजरअंदाजी को झेल रहा है. हाल यह है कि जिस पशुधन के बल पर बेरोजगारी को खत्म करने का सरकार दावा कर रही है, उसी से जुड़े पशुपालन विभाग में वेटरनरी चिकित्सकों की बड़ी संख्या में रिक्तियों को भी सरकार नहीं भर पा रही है. हालत यह है कि प्रदेश में पशु चिकित्सालय तो बनाए गए हैं लेकिन यहां सुविधाओं और चिकित्सकों की मौजूदगी नहीं दिखाई देती है.

उत्तराखंड में बदहाल पशुपालन विभाग


पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में कृषि के साथ पशुपालन एक ऐसा सेक्टर है जहां से बड़ी संख्या में प्रदेश के लोग आजीविका कमाते हैं. खास तौर पर पहाड़ी जनपदों में तो कृषि और पशुपालन ही आजीविका के साधन हैं. कृषि सेक्टर को लेकर तो राज्य सरकार ने काफी योजनाओं और कार्यक्रमों को प्राथमिकता दी है. लेकिन पशुपालन सेक्टर में विभाग की रीढ़ माने जाने वाले वेटरनरी डॉक्टर्स की भर्ती में ही सरकार और शासन लापरवाह नजर आ रहे हैं.

पढ़ें-पीएम मोदी की संतों से अपील- कोरोना संकट की वजह से अब प्रतीकात्मक ही रखा जाए कुंभ

हालत यह है कि प्रदेश में पशु चिकित्सालय तो बनाए गए हैं लेकिन यहां सुविधाओं और चिकित्सकों की मौजूदगी नहीं दिखाई देती है. आंकड़े यह जाहिर करने के लिए काफी हैं कि प्रदेश के तमाम जिलों में पशु चिकित्सालय किस कदर खाली पड़े हैं. अब जानिए राज्य में विभिन्न जिलों में कितने पद सृजित किए गए हैं, उसके सापेक्ष कितनों पर वेटरनरी डॉक्टरों की तैनाती की गई है.

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खाली पड़े हैं चिकित्सकों के कई पद
  • राजधानी देहरादून में उप मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी के 8 पद स्वीकृत हैं. सभी पदों को भरा भी गया है. मगर पशु चिकित्सा अधिकारी के राजधानी में 25 पद हैं. जिनमें 19 पदों पर ही चिकित्सक मौजूद हैं. यहां 6 पद खाली पड़े हैं.
  • पौड़ी जनपद में उप मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी के 17 पद स्वीकृत हैं. इसमें 12 पद भरे गए हैं जबकि 5 पद खाली हैं. इस तरह पशु चिकित्सा अधिकारी के 28 पद हैं, जिसमें 19 भरे गए हैं. यहां 9 पद खाली हैं. यानी कुल मिलाकर जिले में 14 पद खाली हैं.
  • टिहरी जिले में उप मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी के 11 पद हैं. इसमें 2 पद खाली हैं. उधर पशु चिकित्सा अधिकारी के 31 पद हैं. जिसमें 4 पद खाली हैं. इस तरह जिले में 6 पद पशु चिकित्सकों के खाली हैं.
  • चमोली जिले में उप मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी के 13 पद हैं. इसमें 3 पद खाली हैं. पशु चिकित्सा अधिकारी के 20 पद हैं. 4 पद खाली हैं. इस तरह जिले में कुल 7 पशु चिकित्सकों के पद खाली हैं.
  • रुद्रप्रयाग जिले में उप मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी के 5 पद हैं. इसमें दो खाली हैं. उधर पशु चिकित्सा अधिकारी के 13 पद हैं. इसमें 5 पद खाली हैं. कुल 7 पद पशु चिकित्सा अधिकारियों के खाली हैं.
  • उत्तरकाशी जनपद में उप मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी के 9 पद हैं. जिसमें 2 पद खाली हैं. उधर पशु चिकित्सा अधिकारी के 23 पद हैं. 6 पद खाली हैं. कुल 8 पदों पर चिकित्सक नहीं हैं.
  • हरिद्वार जनपद में पशु चिकित्सा अधिकारी के कुल 10 पद हैं. इसमें 4 पद खाली हैं.
  • नैनीताल जिले में पशु चिकित्सा अधिकारियों के 23 पद हैं. यहां पर मात्र 1 पद खाली है. कुल मिलाकर नैनीताल जिले में स्थिति बेहतर है.
  • उधम सिंह नगर जिले में पशु चिकित्सा अधिकारी के 19 पद हैं. इसमें 7 पद खाली हैं.
  • अल्मोड़ा जनपद में पशु चिकित्सा अधिकारी के 27 पद हैं. इसमें 2 पद खाली हैं.
  • पिथौरागढ़ जनपद में 30 पशु चिकित्सा अधिकारियों के पद स्वीकृत हैं. इसमें 9 पद रिक्त चल रहे हैं.
  • चंपावत जनपद में कुल पशु चिकित्सा अधिकारियों के 18 पद हैं. इसमें से 2 पद खाली हैं.
  • बागेश्वर जनपद में कुल 14 पद स्वीकृत हैं. इसमें 1 पद खाली है.


देखा जाए तो कुमाऊं मंडल में गढ़वाल मंडल की अपेक्षा स्थितियां बेहतर हैं. गढ़वाल मंडल के विभिन्न जिलों में पशु चिकित्सा अधिकारियों की भारी कमी है. विभाग के अधिकारी मानते हैं कि पशुपालन विभाग में चिकित्सकों की कमी के कारण दिक्कतें आती हैं. यह विभाग की रीढ़ हैं. वे कहते हैं कि पशु चिकित्सकों के लिए अधियाचन आयोग को भेजे गए थे लेकिन नियमावली में बदलाव के निर्देशों के बाद फिलहाल यह मामला प्रक्रिया में ही है.

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खाली पड़े हैं चिकित्सकों के कई पद

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उत्तराखंड में गाय और भैंसों की संख्या को देखें तो अनुमानत: इनकी संख्या करीब 27 लाख है. ऐसे में पशु चिकित्सकों के पास न केवल इन पशुओं के वैक्सीनेशन का काम है बल्कि इनकी टैगिंग और ऑनलाइन जानकारियां दुरुस्त रखने की चुनौती भी है. इसके अलावा पशुओं के उपचार से लेकर तमाम योजनाओं को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी भी उनके कंधों पर ही है. खास बात यह है कि जितने पद सृजित हैं उससे कहीं ज्यादा पदों की विभाग को आवश्यकता है. मगर मौजूदा सृजित पदों के सापेक्ष भी चिकित्सकों की कमी चल रही है.

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खास बात यह है कि चिकित्सकों की नियुक्ति अब तक इंटरव्यू के आधार पर की जाती थी, लेकिन लोक सेवा आयोग की तरफ से लिखित परीक्षा को अनिवार्य करने के निर्देशों के बाद पशुपालन विभाग इसको लेकर नियमावली तैयार करने में ही लगा हुआ है. उधर विभाग की मंत्री रेखा आर्य कहती हैं कि प्रत्येक 5 किलोमीटर पर पशुधन प्रसार केंद्र बनाये जाने का मानक हैं. जिसे विभाग की तरफ से व्यवस्थित करने का प्रयास किया गया है, लेकिन चिकित्सालयों में सुविधाओं को लेकर कमी बनी हुई है.

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पशुपालन विभाग है बदहाल

दुधारू पशुओं की संख्या में आई गिरावट

साल 2019 से पहले साल 2012 में पशुधन गणना की गई थी. इस दौरान प्रदेश में दुधारू पशुओं की संख्या कुल 20 लाख थी, लेकिन 7 साल के अंतराल के बाद जब साल 2019 में पशु गणना हुई. इसमें प्रदेश में दुधारू पशुओं की संख्या घटकर 18 लाख 52 हज़ार हो गई. इस तरह साल 2019 की पशु गणना के आधार पर प्रदेश में दुधारू पशुओं की संख्या में 1,47,877 की गिरावट साफ देखी जा सकती है. साल 2019 की पशुधन गणना रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में दुधारू पशुओं की संख्या में 7% तक की गिरावट देखने को मिली है. वहीं महेशवंशियों (भैंस) की संख्या में भी 12% की कमी आई है.

देहरादून: उत्तराखंड में लोगों की आजीविका से जुड़ा एक महत्वपूर्ण सेक्टर सरकार और शासन की नजरअंदाजी को झेल रहा है. हाल यह है कि जिस पशुधन के बल पर बेरोजगारी को खत्म करने का सरकार दावा कर रही है, उसी से जुड़े पशुपालन विभाग में वेटरनरी चिकित्सकों की बड़ी संख्या में रिक्तियों को भी सरकार नहीं भर पा रही है. हालत यह है कि प्रदेश में पशु चिकित्सालय तो बनाए गए हैं लेकिन यहां सुविधाओं और चिकित्सकों की मौजूदगी नहीं दिखाई देती है.

उत्तराखंड में बदहाल पशुपालन विभाग


पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में कृषि के साथ पशुपालन एक ऐसा सेक्टर है जहां से बड़ी संख्या में प्रदेश के लोग आजीविका कमाते हैं. खास तौर पर पहाड़ी जनपदों में तो कृषि और पशुपालन ही आजीविका के साधन हैं. कृषि सेक्टर को लेकर तो राज्य सरकार ने काफी योजनाओं और कार्यक्रमों को प्राथमिकता दी है. लेकिन पशुपालन सेक्टर में विभाग की रीढ़ माने जाने वाले वेटरनरी डॉक्टर्स की भर्ती में ही सरकार और शासन लापरवाह नजर आ रहे हैं.

पढ़ें-पीएम मोदी की संतों से अपील- कोरोना संकट की वजह से अब प्रतीकात्मक ही रखा जाए कुंभ

हालत यह है कि प्रदेश में पशु चिकित्सालय तो बनाए गए हैं लेकिन यहां सुविधाओं और चिकित्सकों की मौजूदगी नहीं दिखाई देती है. आंकड़े यह जाहिर करने के लिए काफी हैं कि प्रदेश के तमाम जिलों में पशु चिकित्सालय किस कदर खाली पड़े हैं. अब जानिए राज्य में विभिन्न जिलों में कितने पद सृजित किए गए हैं, उसके सापेक्ष कितनों पर वेटरनरी डॉक्टरों की तैनाती की गई है.

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खाली पड़े हैं चिकित्सकों के कई पद
  • राजधानी देहरादून में उप मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी के 8 पद स्वीकृत हैं. सभी पदों को भरा भी गया है. मगर पशु चिकित्सा अधिकारी के राजधानी में 25 पद हैं. जिनमें 19 पदों पर ही चिकित्सक मौजूद हैं. यहां 6 पद खाली पड़े हैं.
  • पौड़ी जनपद में उप मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी के 17 पद स्वीकृत हैं. इसमें 12 पद भरे गए हैं जबकि 5 पद खाली हैं. इस तरह पशु चिकित्सा अधिकारी के 28 पद हैं, जिसमें 19 भरे गए हैं. यहां 9 पद खाली हैं. यानी कुल मिलाकर जिले में 14 पद खाली हैं.
  • टिहरी जिले में उप मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी के 11 पद हैं. इसमें 2 पद खाली हैं. उधर पशु चिकित्सा अधिकारी के 31 पद हैं. जिसमें 4 पद खाली हैं. इस तरह जिले में 6 पद पशु चिकित्सकों के खाली हैं.
  • चमोली जिले में उप मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी के 13 पद हैं. इसमें 3 पद खाली हैं. पशु चिकित्सा अधिकारी के 20 पद हैं. 4 पद खाली हैं. इस तरह जिले में कुल 7 पशु चिकित्सकों के पद खाली हैं.
  • रुद्रप्रयाग जिले में उप मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी के 5 पद हैं. इसमें दो खाली हैं. उधर पशु चिकित्सा अधिकारी के 13 पद हैं. इसमें 5 पद खाली हैं. कुल 7 पद पशु चिकित्सा अधिकारियों के खाली हैं.
  • उत्तरकाशी जनपद में उप मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी के 9 पद हैं. जिसमें 2 पद खाली हैं. उधर पशु चिकित्सा अधिकारी के 23 पद हैं. 6 पद खाली हैं. कुल 8 पदों पर चिकित्सक नहीं हैं.
  • हरिद्वार जनपद में पशु चिकित्सा अधिकारी के कुल 10 पद हैं. इसमें 4 पद खाली हैं.
  • नैनीताल जिले में पशु चिकित्सा अधिकारियों के 23 पद हैं. यहां पर मात्र 1 पद खाली है. कुल मिलाकर नैनीताल जिले में स्थिति बेहतर है.
  • उधम सिंह नगर जिले में पशु चिकित्सा अधिकारी के 19 पद हैं. इसमें 7 पद खाली हैं.
  • अल्मोड़ा जनपद में पशु चिकित्सा अधिकारी के 27 पद हैं. इसमें 2 पद खाली हैं.
  • पिथौरागढ़ जनपद में 30 पशु चिकित्सा अधिकारियों के पद स्वीकृत हैं. इसमें 9 पद रिक्त चल रहे हैं.
  • चंपावत जनपद में कुल पशु चिकित्सा अधिकारियों के 18 पद हैं. इसमें से 2 पद खाली हैं.
  • बागेश्वर जनपद में कुल 14 पद स्वीकृत हैं. इसमें 1 पद खाली है.


देखा जाए तो कुमाऊं मंडल में गढ़वाल मंडल की अपेक्षा स्थितियां बेहतर हैं. गढ़वाल मंडल के विभिन्न जिलों में पशु चिकित्सा अधिकारियों की भारी कमी है. विभाग के अधिकारी मानते हैं कि पशुपालन विभाग में चिकित्सकों की कमी के कारण दिक्कतें आती हैं. यह विभाग की रीढ़ हैं. वे कहते हैं कि पशु चिकित्सकों के लिए अधियाचन आयोग को भेजे गए थे लेकिन नियमावली में बदलाव के निर्देशों के बाद फिलहाल यह मामला प्रक्रिया में ही है.

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खाली पड़े हैं चिकित्सकों के कई पद

पढ़ें- सल्ट उपचुनाव के लिए मतदान जारी, दोनों प्रत्याशियों ने डाले वोट

उत्तराखंड में गाय और भैंसों की संख्या को देखें तो अनुमानत: इनकी संख्या करीब 27 लाख है. ऐसे में पशु चिकित्सकों के पास न केवल इन पशुओं के वैक्सीनेशन का काम है बल्कि इनकी टैगिंग और ऑनलाइन जानकारियां दुरुस्त रखने की चुनौती भी है. इसके अलावा पशुओं के उपचार से लेकर तमाम योजनाओं को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी भी उनके कंधों पर ही है. खास बात यह है कि जितने पद सृजित हैं उससे कहीं ज्यादा पदों की विभाग को आवश्यकता है. मगर मौजूदा सृजित पदों के सापेक्ष भी चिकित्सकों की कमी चल रही है.

पढ़ें- सल्ट उपचुनावः मतदान को लेकर वोटरों में खासा उत्साह, 7 प्रत्याशियों का भाग्य EVM में होगा कैद

खास बात यह है कि चिकित्सकों की नियुक्ति अब तक इंटरव्यू के आधार पर की जाती थी, लेकिन लोक सेवा आयोग की तरफ से लिखित परीक्षा को अनिवार्य करने के निर्देशों के बाद पशुपालन विभाग इसको लेकर नियमावली तैयार करने में ही लगा हुआ है. उधर विभाग की मंत्री रेखा आर्य कहती हैं कि प्रत्येक 5 किलोमीटर पर पशुधन प्रसार केंद्र बनाये जाने का मानक हैं. जिसे विभाग की तरफ से व्यवस्थित करने का प्रयास किया गया है, लेकिन चिकित्सालयों में सुविधाओं को लेकर कमी बनी हुई है.

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पशुपालन विभाग है बदहाल

दुधारू पशुओं की संख्या में आई गिरावट

साल 2019 से पहले साल 2012 में पशुधन गणना की गई थी. इस दौरान प्रदेश में दुधारू पशुओं की संख्या कुल 20 लाख थी, लेकिन 7 साल के अंतराल के बाद जब साल 2019 में पशु गणना हुई. इसमें प्रदेश में दुधारू पशुओं की संख्या घटकर 18 लाख 52 हज़ार हो गई. इस तरह साल 2019 की पशु गणना के आधार पर प्रदेश में दुधारू पशुओं की संख्या में 1,47,877 की गिरावट साफ देखी जा सकती है. साल 2019 की पशुधन गणना रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में दुधारू पशुओं की संख्या में 7% तक की गिरावट देखने को मिली है. वहीं महेशवंशियों (भैंस) की संख्या में भी 12% की कमी आई है.

Last Updated : Apr 17, 2021, 8:50 PM IST
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