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दोहरी चुनौती से जूझ रहा मंडी परिषद, सरकार से लगाई राहत की गुहार

वैश्विक महामारी कोरोना ने कृषि मंडियों के सामने दोहरी चुनौती खड़ी कर दी है. एक तरफ तो मंडियों पर लॉकडाउन का असर है. दूसरी तरफ केंद्र सरकार के नए कृषि कानून से भी मंडियों को काफी नुकसान उठाना पड़ा है.

मंडियों पर छाया कोरोना का साया
मंडियों पर छाया कोरोना का साया
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Published : Jun 5, 2021, 8:18 PM IST

Updated : Jun 5, 2021, 9:30 PM IST

देहरादून: वैश्विक महामारी कोविड-19 का हर क्षेत्र पर बुरा असर हुआ है. अगर कृषि मंडियों की बात करें तो यहां भी कोरोना का खासा असर देखने को मिला है. उत्तराखंड कृषि विपणन बोर्ड के डिप्टी डायरेक्टर विजय थपलियाल ने बताया कि उत्तराखंड में कुल 27 कृषि मंडी हैं, जिनमें से 23 कृषि मंडी रेगुलेटेड है. उन्होंने बताया कि कोविड-19 के इस दौर में लगातार मंडियां काम कर रही है. पिछले साल भी लगातार काम हो रहे थे. हालांकि संक्रमण के दृष्टिगत कुछ बदलाव किए गए थे, जिसमें मंडियों को रात को संचालित किया जाता था. उन्होंने बताया कि देहरादून की सबसे बड़ी कृषि मंडी रात को 2 बजे से सुबह 6 बजे तक और हरिद्वार की कृषि मंडी सुबह 4 बजे से 11 बजे तक संचालित की जाती है. कृषि मंडियों में कोरोना प्रोटोकॉल का विशेष ख्याल रखा जा रहा है.

दोहरी चुनौती से जूझ रहा है मंडी परिषद

नए कृषि बिल से किसानों को फायदा, मंडियों को नुकसान...

डिप्टी डायरेक्टर विजय थपलियाल ने बताया कि केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए नए कृषि कानून से निश्चित तौर पर किसानों को फायदा हुआ है, लेकिन नए कानून से कृषि मंडियों को भारी घाटे से गुजरना पड़ रहा है. विजय थपलियाल ने बताया कि नए कृषि कानून के बाद किसान तो अपना माल बेचने के लिए स्वतंत्र हैं. मंडियों में आवक कम हो चुकी है, जिसका सीधा असर कृषि मंडियों की आर्थिक स्थिति पर पड़ा है.

एमएसपी भुगतान में गेंहू सबसे आगे

उत्तराखंड में एमएसपी की बात करें तो यहां गेहूं, धान और मक्का इत्यादि पर एमएसपी दिया जाता है. इस बार गेहूं की पैदावार अच्छी हुई है. उन्होंने बताया कि इस बार गेहूं के लिए तकरीबन 216 केंद्र स्थापित किए गए हैं. सरकार द्वारा एमएसपी 1975 रुपए निर्धारित किये गये हैं तो वहीं राज्य सरकार द्वारा अतिरिक्त 20 रुपये बोनस किसानों को दिया जा रहा है.

पढ़ें: कोरोनाकाल में ठप हुआ प्रिंटिंग कारोबार, प्रेस हुईं बंद, कर्मचारी बेरोजगार

मंडी परिषद का 120 करोड़ वार्षिक टर्नओवर 45 करोड़ पर सिमटा

उत्तराखंड कृषि विपणन बोर्ड के डिप्टी डायरेक्टर विजय थपलियाल ने बताया कि एक तो वैश्विक महामारी कोविड-19 और इसके अलावा केंद्र से लागू की गई कृषि कानून से कृषि मंडी को भारी नुकसान उठाना पड़ा है. नए कानून के लागू होने के बाद मंडी का राजस्व घट गया है. विजय थपलियाल ने बताया कि कृषि मंडी जो पहले 120 करोड़ सालाना का राजस्व रखती थी. वह इस बार केवल 45 से 50 करोड़ के टर्नओवर पर सिमट गई है. उन्होंने बताया कि मंडी की आर्थिक स्थिति में 25 से 30% गिरावट आई है. इस प्रकार मंडी परिषद का तीन से चार करोड़ का नुकसान हुआ है.

खर्च ज्यादा, इनकम कम

उत्तराखंड मंडी परिषद के चेयरमैन राजेश शर्मा ने बताया कि वैश्विक महामारी कोविड-19 के चलते किसानों की तुलना में व्यापारियों का नुकसान ज्यादा हुआ है. चेयरमैन राजेश शर्मा ने बताया कि कृषि कानूनों के चलते किसानों को तो अतिरिक्त अधिकार मिले हैं, लेकिन मंडी परिषद का नुकसान हुआ है. उन्होंने बताया कि उनका शुल्क समाप्त हो गया है. प्रति माह मंडी परिषद का औसत 22 से 25 लाख तक है, लेकिन प्रति माह जो मंडी परिषद का खर्च है, वह 28 लाख केवल कर्मचारियों का वेतन है. इसके अलावा अन्य खर्चों को मिलाकर मंडी परिषद का प्रतिमाह का खर्च तकरीबन 45 लाख है, जिससे स्पष्ट है कि मंडी लगातार घाटे में जा रही है. उन्हें उम्मीद है कि सरकार इस पर जल्द ही कोई बड़ा फैसला लेगी.

सरकार से लगाई मदद की गुहार

कोविड-19 महामारी और केंद्रीय कृषि कानूनों के मंडी परिषद पर पड़ रहे इन लगातार दुष्प्रभाव से हो रहे नुकसान को लेकर मंडी परिषद को सरकार से उम्मीद है. इसको लेकर सरकार से वार्ता की जा रही है. केंद्र सरकार ने कहा है कि मंडी परिषद के नुकसान को लेकर विचार किया जाएगा. राज्य सरकार से भी मंडी परिषद को उम्मीद है कि कुछ राहत दी जाएगी.

देहरादून: वैश्विक महामारी कोविड-19 का हर क्षेत्र पर बुरा असर हुआ है. अगर कृषि मंडियों की बात करें तो यहां भी कोरोना का खासा असर देखने को मिला है. उत्तराखंड कृषि विपणन बोर्ड के डिप्टी डायरेक्टर विजय थपलियाल ने बताया कि उत्तराखंड में कुल 27 कृषि मंडी हैं, जिनमें से 23 कृषि मंडी रेगुलेटेड है. उन्होंने बताया कि कोविड-19 के इस दौर में लगातार मंडियां काम कर रही है. पिछले साल भी लगातार काम हो रहे थे. हालांकि संक्रमण के दृष्टिगत कुछ बदलाव किए गए थे, जिसमें मंडियों को रात को संचालित किया जाता था. उन्होंने बताया कि देहरादून की सबसे बड़ी कृषि मंडी रात को 2 बजे से सुबह 6 बजे तक और हरिद्वार की कृषि मंडी सुबह 4 बजे से 11 बजे तक संचालित की जाती है. कृषि मंडियों में कोरोना प्रोटोकॉल का विशेष ख्याल रखा जा रहा है.

दोहरी चुनौती से जूझ रहा है मंडी परिषद

नए कृषि बिल से किसानों को फायदा, मंडियों को नुकसान...

डिप्टी डायरेक्टर विजय थपलियाल ने बताया कि केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए नए कृषि कानून से निश्चित तौर पर किसानों को फायदा हुआ है, लेकिन नए कानून से कृषि मंडियों को भारी घाटे से गुजरना पड़ रहा है. विजय थपलियाल ने बताया कि नए कृषि कानून के बाद किसान तो अपना माल बेचने के लिए स्वतंत्र हैं. मंडियों में आवक कम हो चुकी है, जिसका सीधा असर कृषि मंडियों की आर्थिक स्थिति पर पड़ा है.

एमएसपी भुगतान में गेंहू सबसे आगे

उत्तराखंड में एमएसपी की बात करें तो यहां गेहूं, धान और मक्का इत्यादि पर एमएसपी दिया जाता है. इस बार गेहूं की पैदावार अच्छी हुई है. उन्होंने बताया कि इस बार गेहूं के लिए तकरीबन 216 केंद्र स्थापित किए गए हैं. सरकार द्वारा एमएसपी 1975 रुपए निर्धारित किये गये हैं तो वहीं राज्य सरकार द्वारा अतिरिक्त 20 रुपये बोनस किसानों को दिया जा रहा है.

पढ़ें: कोरोनाकाल में ठप हुआ प्रिंटिंग कारोबार, प्रेस हुईं बंद, कर्मचारी बेरोजगार

मंडी परिषद का 120 करोड़ वार्षिक टर्नओवर 45 करोड़ पर सिमटा

उत्तराखंड कृषि विपणन बोर्ड के डिप्टी डायरेक्टर विजय थपलियाल ने बताया कि एक तो वैश्विक महामारी कोविड-19 और इसके अलावा केंद्र से लागू की गई कृषि कानून से कृषि मंडी को भारी नुकसान उठाना पड़ा है. नए कानून के लागू होने के बाद मंडी का राजस्व घट गया है. विजय थपलियाल ने बताया कि कृषि मंडी जो पहले 120 करोड़ सालाना का राजस्व रखती थी. वह इस बार केवल 45 से 50 करोड़ के टर्नओवर पर सिमट गई है. उन्होंने बताया कि मंडी की आर्थिक स्थिति में 25 से 30% गिरावट आई है. इस प्रकार मंडी परिषद का तीन से चार करोड़ का नुकसान हुआ है.

खर्च ज्यादा, इनकम कम

उत्तराखंड मंडी परिषद के चेयरमैन राजेश शर्मा ने बताया कि वैश्विक महामारी कोविड-19 के चलते किसानों की तुलना में व्यापारियों का नुकसान ज्यादा हुआ है. चेयरमैन राजेश शर्मा ने बताया कि कृषि कानूनों के चलते किसानों को तो अतिरिक्त अधिकार मिले हैं, लेकिन मंडी परिषद का नुकसान हुआ है. उन्होंने बताया कि उनका शुल्क समाप्त हो गया है. प्रति माह मंडी परिषद का औसत 22 से 25 लाख तक है, लेकिन प्रति माह जो मंडी परिषद का खर्च है, वह 28 लाख केवल कर्मचारियों का वेतन है. इसके अलावा अन्य खर्चों को मिलाकर मंडी परिषद का प्रतिमाह का खर्च तकरीबन 45 लाख है, जिससे स्पष्ट है कि मंडी लगातार घाटे में जा रही है. उन्हें उम्मीद है कि सरकार इस पर जल्द ही कोई बड़ा फैसला लेगी.

सरकार से लगाई मदद की गुहार

कोविड-19 महामारी और केंद्रीय कृषि कानूनों के मंडी परिषद पर पड़ रहे इन लगातार दुष्प्रभाव से हो रहे नुकसान को लेकर मंडी परिषद को सरकार से उम्मीद है. इसको लेकर सरकार से वार्ता की जा रही है. केंद्र सरकार ने कहा है कि मंडी परिषद के नुकसान को लेकर विचार किया जाएगा. राज्य सरकार से भी मंडी परिषद को उम्मीद है कि कुछ राहत दी जाएगी.

Last Updated : Jun 5, 2021, 9:30 PM IST
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