देहरादून: उत्तराखंड में खेल और खिलाड़ियों के प्रति प्रदेश सरकार कितना संजीदा है, इसका पता इस बात से चलता है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के पहले कार्यकाल में खेल नीति को मंजूरी तो दे दी गई, लेकिन अभी तक इसका शासनादेश लागू नहीं हो पाया है. खेल मंत्री रेखा आर्य ने दावा किया है कि चंपावत उपचुनाव के चलते कई चीजें अधर में लटक गई थी, लेकिन अब जल्द ही खेल नीति का शासनादेश लागू किया जाएगा.
रेखा आर्य के इस दावे पर इसलिए भी सवाल उठता है कि खेल विभाग के निदेशालय स्तर पर विभागीय अधिकारी तक तैनात नहीं है. निदेशक जैसे अहम पद को युवा कल्याण विभाग के निदेशक के जिम्मे सौंपा गया है. प्रदेश में खेल प्रतिभा होने के बावजूद आज भी उत्तराखंड खेलों में पिछड़ा हुआ है. इसका मुख्य कारण प्रदेश बनने के 22 वर्ष बाद भी आज तक उत्तराखंड में ठोस खेल नीति नहीं बन पाई है.
इसके पीछे कारण कहीं हुक्मरानों की हिलहवाली तो कहीं अधिकारियों की मनमानी रही है. उत्तराखंड में खेल नीति की बात करें, तो वर्ष 2006 में तत्कालीन हरीश रावत सरकार ने खेल नीति को मंजूरी दी थी. जिसके बाद प्रदेश के खिलाड़ियों के सपनों की उम्मीद बंध गई थी, लेकिन दुर्भाग्य की उस समय खेल नीति को मंजूरी तो मिली लेकिन ठोस रणनीति के बाद वह धरातल पर नहीं उतर पाई और हजारों प्रतिभाओं के अरमानों पर पानी फिर गया.
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उसके बाद सरकारें और मुख्यमंत्री बदलते रहे, तो 2017 में भाजपा की सरकार आई. जिसमें तीसरे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी बने. सरकार ने नवबंर 2021 में खेल नीति को मंजूरी दी और उसमें ओलंपिक जैसे खेलों में मैडल जितने वाले खिलाड़ियों के लिए नकद पुरस्कार और विभिन्न स्तर पर खेलों में प्रतिभाग करने वाले खिलाड़ियों को सरकारी नौकरी में समाहित करने सहित मुख्यमंत्री उन्नयन खिलाड़ी योजना भी शामिल थी.
वही, धामी 2.0 सरकार के आने के बाद भी अभी तक इस खेल नीति का भी शासनादेश लागू नहीं हो पाया है. खेल मंत्री रेखा आर्य का कहना है कि अधिकारियों को शासनादेश लागू करने के लिए ड्राफ्ट तैयार करने के निर्देश दिए गए हैं. चंपावत उपचुनाव की व्यस्तता के कारण देरी हुई है. इस बजट सत्र के बाद खेल नीति का शासनादेश जारी किया जाएगा.