देहरादून: पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड के कई जिले कुपोषण की गिरफ्त में है. जिनमें उधम सिंह नगर, हरिद्वार, देहरादून और नैनीताल की बात करें तो यहां साल 2018-19 में सबसे अधिक कुपोषित और अति कुपोषित बच्चे पाए गए हैं. जो सरकार की कार्यप्रणाली पर सवालियां निशान खड़े करता है. क्योंकि सूबे में बाल एवं महिला विकास विभाग कुपोषण से निपटने के लिए कई योजनाएं चला रहा है, लेकिन इन योजनाओं का कितना लाभ लोगों को मिल रहा है. सरकारी आंकड़े इसकी हकीकत बयां कर रहे हैं.
जनपद | कुपोषित और अति कुपोषित बच्चों की संख्या |
अल्मोड़ा | 55,642 |
बागेश्वर | 3,009 |
चम्पावत | 18,330 |
देहरादून | 11,55,123 |
हरिद्वार | 46,34,541 |
नैनीताल | 15,54,71 |
पौड़ी | 15,033 |
पिथौरागढ़ | 6,722 |
रुद्रप्रयाग | 4,321 |
टिहरी | 27,763 |
उधम सिंह नगर | 82,86,578 |
उत्तरकाशी | 15,838 |
कुल योग | 17,21,41,578 |
प्रदेश में बढ़ रही कुपोषित और अति कुपोषित बच्चों की संख्या के संबंध में जब हमने अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी से बात की तो कहा कि प्रदेश के हरिद्वार, उधमसिंह नगर कुछ ऐसे जनपद हैं. जहां से अक्सर बाल विवाह के सबसे अधिक मामले सामने आते हैं . यही कारण है कि इन जनपदों में कुपोषित और अति कुपोषित बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा है. क्योंकि जब छोटी उम्र में कोई महिला बच्चे को जन्म देती है तो इसका असर बच्चे की सेहत पर भी पड़ता है. इसके अलावा इन जनपदों में बढ़ रहे कुपोषित और अधिक कुपोषित बच्चों की संख्या को लेकर उन्होंने कहा कि जानकारी के अभाव में बिना फैमिली प्लानिंग के बच्चों को जन्म देने के चलते भी जच्चा और बच्चा दोनों ही कुपोषित पाए जाते है.
बहरहाल, सूबे के इन जनपदों में कुपोषण का कारण कुछ भी हो, लेकिन ये आंकड़े सरकार महिला और बाल विकास के लिए चलाई जा रही योजनाओं पर सवाल जरूर खडे़ करते हैं. क्योंकि बीते साल की तुलना में ये आंकड़ा तेजी से बढ़ा है. ऐसे में राज्य सरकार को इस बात पर मंथन अवश्य करना चाहिए कि सूबे में जो पोषाहार की योजनाएं चल रही हैं उनका धरातल पर कितना क्रियान्वयन हो रहा है.