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कुपोषण की गिरफ्त में देवभूमि के नौनिहाल, पोषाहार की योजनाओं पर खड़े हुए सवाल

सूबे के इन जनपदों में कुपोषण का कारण कुछ भी हो, लेकिन ये आंकड़े सरकार महिला और बाल विकास के लिए चलाई जा रही योजनाओं पर सवाल जरूर खडे़ करते हैं. क्योंकि बीते साल की तुलना में ये आंकड़ा तेजी से बढ़ा है.

कुपोषण
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Published : May 9, 2019, 9:32 PM IST

देहरादून: पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड के कई जिले कुपोषण की गिरफ्त में है. जिनमें उधम सिंह नगर, हरिद्वार, देहरादून और नैनीताल की बात करें तो यहां साल 2018-19 में सबसे अधिक कुपोषित और अति कुपोषित बच्चे पाए गए हैं. जो सरकार की कार्यप्रणाली पर सवालियां निशान खड़े करता है. क्योंकि सूबे में बाल एवं महिला विकास विभाग कुपोषण से निपटने के लिए कई योजनाएं चला रहा है, लेकिन इन योजनाओं का कितना लाभ लोगों को मिल रहा है. सरकारी आंकड़े इसकी हकीकत बयां कर रहे हैं.

कुपोषण की गिरफ्त में देवभूमि के नौनिहाल
बता दें कि प्रदेश में कुल 20,066 आंगनबाड़ी केंद्र हैं. जिनके माध्यम से प्रदेश में पोषाहार योजनाओं का संचालन किया जाता है. यहां आंगनबाड़ी कार्यकर्ता मिनी कार्यकर्ता एवं सहायिका है बच्चों व गर्भवती महिलाओं को पोषाहार मुहैया कराती हैं. इसके लिए पहले बच्चे और गर्भवती महिला का केंद्र में पंजीकरण होता है. जिसके बाद केंद्र में हर महीने की 5 तारीख को लाभार्थियों को पोषाहार मुहैया कराया जाता है. लेकिन बावजूद इसके साल 2017-18 की तुलना में साल 2018-19 में प्रदेश में कुपोषित और अति कुपोषित बच्चों की संख्या में इजाफा देखने को मिल रहा है.
साल 2018- 19 के कुपोषित और अति बच्चों के आंकड़े
जनपद कुपोषित और अति कुपोषित बच्चों की संख्या
अल्मोड़ा 55,642
बागेश्वर 3,009
चम्पावत 18,330
देहरादून 11,55,123
हरिद्वार 46,34,541
नैनीताल 15,54,71
पौड़ी 15,033
पिथौरागढ़ 6,722
रुद्रप्रयाग 4,321
टिहरी 27,763
उधम सिंह नगर 82,86,578
उत्तरकाशी 15,838
कुल योग 17,21,41,578


प्रदेश में बढ़ रही कुपोषित और अति कुपोषित बच्चों की संख्या के संबंध में जब हमने अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी से बात की तो कहा कि प्रदेश के हरिद्वार, उधमसिंह नगर कुछ ऐसे जनपद हैं. जहां से अक्सर बाल विवाह के सबसे अधिक मामले सामने आते हैं . यही कारण है कि इन जनपदों में कुपोषित और अति कुपोषित बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा है. क्योंकि जब छोटी उम्र में कोई महिला बच्चे को जन्म देती है तो इसका असर बच्चे की सेहत पर भी पड़ता है. इसके अलावा इन जनपदों में बढ़ रहे कुपोषित और अधिक कुपोषित बच्चों की संख्या को लेकर उन्होंने कहा कि जानकारी के अभाव में बिना फैमिली प्लानिंग के बच्चों को जन्म देने के चलते भी जच्चा और बच्चा दोनों ही कुपोषित पाए जाते है.

बहरहाल, सूबे के इन जनपदों में कुपोषण का कारण कुछ भी हो, लेकिन ये आंकड़े सरकार महिला और बाल विकास के लिए चलाई जा रही योजनाओं पर सवाल जरूर खडे़ करते हैं. क्योंकि बीते साल की तुलना में ये आंकड़ा तेजी से बढ़ा है. ऐसे में राज्य सरकार को इस बात पर मंथन अवश्य करना चाहिए कि सूबे में जो पोषाहार की योजनाएं चल रही हैं उनका धरातल पर कितना क्रियान्वयन हो रहा है.

देहरादून: पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड के कई जिले कुपोषण की गिरफ्त में है. जिनमें उधम सिंह नगर, हरिद्वार, देहरादून और नैनीताल की बात करें तो यहां साल 2018-19 में सबसे अधिक कुपोषित और अति कुपोषित बच्चे पाए गए हैं. जो सरकार की कार्यप्रणाली पर सवालियां निशान खड़े करता है. क्योंकि सूबे में बाल एवं महिला विकास विभाग कुपोषण से निपटने के लिए कई योजनाएं चला रहा है, लेकिन इन योजनाओं का कितना लाभ लोगों को मिल रहा है. सरकारी आंकड़े इसकी हकीकत बयां कर रहे हैं.

कुपोषण की गिरफ्त में देवभूमि के नौनिहाल
बता दें कि प्रदेश में कुल 20,066 आंगनबाड़ी केंद्र हैं. जिनके माध्यम से प्रदेश में पोषाहार योजनाओं का संचालन किया जाता है. यहां आंगनबाड़ी कार्यकर्ता मिनी कार्यकर्ता एवं सहायिका है बच्चों व गर्भवती महिलाओं को पोषाहार मुहैया कराती हैं. इसके लिए पहले बच्चे और गर्भवती महिला का केंद्र में पंजीकरण होता है. जिसके बाद केंद्र में हर महीने की 5 तारीख को लाभार्थियों को पोषाहार मुहैया कराया जाता है. लेकिन बावजूद इसके साल 2017-18 की तुलना में साल 2018-19 में प्रदेश में कुपोषित और अति कुपोषित बच्चों की संख्या में इजाफा देखने को मिल रहा है.
साल 2018- 19 के कुपोषित और अति बच्चों के आंकड़े
जनपद कुपोषित और अति कुपोषित बच्चों की संख्या
अल्मोड़ा 55,642
बागेश्वर 3,009
चम्पावत 18,330
देहरादून 11,55,123
हरिद्वार 46,34,541
नैनीताल 15,54,71
पौड़ी 15,033
पिथौरागढ़ 6,722
रुद्रप्रयाग 4,321
टिहरी 27,763
उधम सिंह नगर 82,86,578
उत्तरकाशी 15,838
कुल योग 17,21,41,578


प्रदेश में बढ़ रही कुपोषित और अति कुपोषित बच्चों की संख्या के संबंध में जब हमने अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी से बात की तो कहा कि प्रदेश के हरिद्वार, उधमसिंह नगर कुछ ऐसे जनपद हैं. जहां से अक्सर बाल विवाह के सबसे अधिक मामले सामने आते हैं . यही कारण है कि इन जनपदों में कुपोषित और अति कुपोषित बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा है. क्योंकि जब छोटी उम्र में कोई महिला बच्चे को जन्म देती है तो इसका असर बच्चे की सेहत पर भी पड़ता है. इसके अलावा इन जनपदों में बढ़ रहे कुपोषित और अधिक कुपोषित बच्चों की संख्या को लेकर उन्होंने कहा कि जानकारी के अभाव में बिना फैमिली प्लानिंग के बच्चों को जन्म देने के चलते भी जच्चा और बच्चा दोनों ही कुपोषित पाए जाते है.

बहरहाल, सूबे के इन जनपदों में कुपोषण का कारण कुछ भी हो, लेकिन ये आंकड़े सरकार महिला और बाल विकास के लिए चलाई जा रही योजनाओं पर सवाल जरूर खडे़ करते हैं. क्योंकि बीते साल की तुलना में ये आंकड़ा तेजी से बढ़ा है. ऐसे में राज्य सरकार को इस बात पर मंथन अवश्य करना चाहिए कि सूबे में जो पोषाहार की योजनाएं चल रही हैं उनका धरातल पर कितना क्रियान्वयन हो रहा है.

Intro:Desk please note अपर मुख्य साहिव राधा रतूड़ी की बाइट नही मिल पाई । उन्हें किसी मीटिंग में निकलना था । लेकिन बातचीत के दौरान उन्होंने ये जानकारी दी है जो मेने स्क्रिप्ट में लिखी है । इसके अलावा पीटीसी में भेज रही हूं और कुपोषण के. document में मेल कर रही हु । plz check.

देहरादून- पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड के कई मैदानी और पहाड़ी जनपद कुपोषण की गिरफ्त में है। विशेषकर बात की जाए उधम सिंह नगर, हरिद्वार , देहरादून , नैनीताल जनपद की तो ये प्रदेश के कुछ ऐसे जनपद हैं जहां साल 2018-19 में सबसे अधिक कुपोषित और अति कुपोषित बच्चे पाए गए हैं।




Body:गौरतलब है कि बाल एवं महिला विकास विभाग की ओर से यूं तो कुपोषण से निपटने के लिए कई योजनाएं हैं । जिसमें से प्रदेश में टेक होम राशन,कुक्ड फ़ूड, ऊर्जा आहार जैसी तमाम योजनाएं आंगनबाड़ी केंद्रों की मदद से संचालित की जा रही हैं। लेकिन प्रदेश में कुपोषित और अति कुपोषित बच्चों के जो आंकड़े सामने आए हैं वह इन योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन पर कई सवाल खड़े करते हैं ।

साल 2018- 19 के कुपोषित और अति बच्चों के आंकड़े-

जनपद कुपोषित अति कुपोषित

अल्मोड़ा 556 42
बागेश्वर 30 09
चमोली। 121 07
चम्पावत 183 30
देहरादून 1155 123
हरिद्वार 4634 541
नैनीताल 1554 71
पौड़ी 150 33
पिथौरागढ़ 67 22
रुद्रप्रयाग। 43 21
टिहरी। 277 63
ऊ.सी नगर 8286 578
उत्तरकाशी। 158 38

कुल योग 17214 1578


बता दें कि प्रदेश में कुल 20,066 आंगनबाड़ी केंद्र हैं ।जिनके माध्यम से प्रदेश में पोषाहार योजनाओं का संचालन किया जाता है । यहां आंगनबाड़ी कार्यकर्ता मिनी कार्यकर्ता एवं सहायिका है बच्चों व गर्भवती महिलाओं को पोषाहार मुहैया कराती हैं इसके लिए पहले बच्चे और गर्भवती महिला का केंद्र में पंजीकरण होता है । जिसके बाद केंद्र में हर महीने की 5 तारीख को लाभार्थियों को पोषाहार मुहैया कराया जाता है । लेकिन इसके बावजूद साल 2017 18 की तुलना में साल 2018 और 19 में प्रदेश में कुपोषित और अति कुपोषित बच्चों की संख्या में इजाफा देखने को मिल रहा है।



Conclusion:प्रदेश में बढ़ रही कुपोषित और अति कुपोषित बच्चों की संख्या के संबंध में जब हमने अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी से बात की तो उनका कहना था कि प्रदेश के हरिद्वार, उधमसिंह नगर कुछ ऐसे जनपद है जहां से अक्सर बाल विवाह के सबसे अधिक मामले सामने आते हैं । यही कारण है कि इन जनपदों में कुपोषित और अति कुपोषित बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा है । क्योंकि जब छोटी उम्र में कोई महिला बच्चे को जन्म देती है तो इसका असर बच्चे की सेहत पर जरूर पड़ता है। इसके अलावा इन जनपदों में बढ़ रहे कुपोषित और अधिक कुपोषित बच्चों की संख्या को लेकर उन्होंने एक और कारण बताया । उनके मुताबिक जानकारी के अभाव में बिना फैमिली प्लैनिंग के बच्चों को जन्म देने के चलते भी जज़्ज़ा और बच्चा दोनों ही कुपोषित पाए जाते है ।

बरहाल कारण चाहे जो भी हो लेकिन आंकड़ों का सच यही है कि प्रदेश में साल 2017- 18 की तुलना में साल 2018-19 में कुपोषित और अति कुपोषित बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। ऐसे में आने वाले सालों में इस संख्या में आगे और बढ़ोतरी देखने को न मिले इसे लेकर राज्य सरकार को जरूर विचार करना चाहिए । साथ ही साथ इस बात का आकलन भी करना चाहिए कि जो पोषाहार योजनाएं प्रदेश में चल रही हैं उनका सही तरह से क्रियान्वयन हो भी रहा है या नहीं ।
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