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स्पेशल रिपोर्ट: यहां 'मुर्दों' के बीच पढ़ाई और खाते-पीते हैं मासूम बच्चे

धौलपुर जिले के सैपऊ उपखण्ड़ मुख्यालय स्थिति राजस्थान मदरसा बोर्ड द्वारा संचालित मदरसा तालीमुल में पिछले 16 वर्ष से नौनिहाल बच्चे दफन लाशों के ऊपर पढ़ रहे हैं. देखिये ईटीवी भारत की ग्राउंड रिपोर्ट...

स्पेशल रिपोर्ट : मजबूरी ऐसी कि...कब्रगाह में पढ़ाई करते हैं बच्चे, यहीं खाते हैं मिड-डे मील.
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Published : Nov 8, 2019, 8:11 AM IST

Updated : Nov 8, 2019, 10:02 AM IST

धौलपुर. मदरसे की तालीम ले रहे इन बच्चों को देखिए. ये कोई स्कूल या कोई आम स्थल नहीं कब्रगाह है जहां बैठकर तालीम हासिल कर रहे हैं. जिस कब्रगाह के सन्नाटे में इंसान जाने से घबराने लगता है, उसकी मिट्टी के नीचे दफन लाशों पर बैठकर ये बच्चे पढ़ाई करने को मजबूर हैं.

यहां कब्रगाह में पढ़ाई करते हैं बच्चे, यहीं खाते हैं मिड-डे मील.

ये मामला धौलपुर जिले के सैपऊ कस्बे में बने कब्रिस्तान का है. जहां पिछले 16 वर्षों से चल रहा मदरसा आज भी भवन की आस लगाए बैठा है. सरकारों ने आश्वासन भी दिया लेकिन आज भी इन बच्चों को इन कब्रगाहों में बैठकर पढ़ाई करनी पड़ रही है.

भवन के अभाव के चलते इन बच्चों को खुले आसमन के नीचे बैठना पड़ता है. इतना ही नहीं मिड-डे मील का पोषाहार भी इन बच्चों दफन लाशों के ऊपर बैठकर ही खाना पड़ता है. जब भी किसी मरने वाले का जनाजा कब्रगाह में पहुंचता है तो इनकी पढ़ाई बीच में ही रोकनी पड़ती है. अब जरा सोचिए, मय्यत पर पहुंचने वाले लोगों की सिसकियों का इन बच्चों के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता होगा.

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लेकिन पिछले 16 सालों से ही चला आ रहा है, जो बच्चों के जीवन का हिस्सा बन गया है. मदरसे में कुल तीन शिक्षक नियुक्त हैं. लेकिन भौतिक सुविधाओं का अभाव होने पर बच्चे शिक्षा की तालीम से ऐसे हालातों में ले रहे हैं. एक छात्र इंसान ने बताया कि कस्बे से जब कब्रिस्तान में लाश लाई जाती है, तो उन्हें भय प्रतीत होता है. इतना ही नहीं गंदगी और कूड़ा होने के चलते विषैले सर्प और बिच्छू भी निकल आते हैं. धूप, बारिश और अधिक सर्दी बिना पढ़ाई किये ही घर लौटना पड़ता है.

मदरसा टीचर रुबीना कब्रिस्तान होने के कारण अभिभावक भी अपने बच्चों को भेजने से कतराते हैं. ऐसे में उन्हें खुद बच्चों को घर तक लेने जाना पड़ता है. सर्दी गर्मी और बारिश के मौसम में बच्चे खुले आसमान के नीचे ही पढ़ाई करते है. समस्या को लेकर राजनेताओं एवं प्रशासन के अधिकारियों को भी अवगत करा दिया है. लेकिन बच्चों को भवन उपलब्ध कराने की जहमत किसी ने भी नहीं उठाई है.

पढ़ेंः ऐसी टीम बना लूंगा, जिसके साथ साल 2023 के चुनाव में उतरा जा सके : सतीश पूनिया

अब सवाल ये उठता है राज्य का कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित नहीं रहेगा, सरकारें ऐसा दावा तो करती हैं. लेकिन हकीकत में दावे पूरे होते नहीं दिखते. यही वजह है कि सैपऊ कस्बे के इस मदरसे के नौनिहाल आज भी भवन एवं भौतिक सुविधाओं के अभाव में खुले आसमान के नीचे दफन लाशों के ऊपर पढाई करने को मजबूर हैं.

धौलपुर. मदरसे की तालीम ले रहे इन बच्चों को देखिए. ये कोई स्कूल या कोई आम स्थल नहीं कब्रगाह है जहां बैठकर तालीम हासिल कर रहे हैं. जिस कब्रगाह के सन्नाटे में इंसान जाने से घबराने लगता है, उसकी मिट्टी के नीचे दफन लाशों पर बैठकर ये बच्चे पढ़ाई करने को मजबूर हैं.

यहां कब्रगाह में पढ़ाई करते हैं बच्चे, यहीं खाते हैं मिड-डे मील.

ये मामला धौलपुर जिले के सैपऊ कस्बे में बने कब्रिस्तान का है. जहां पिछले 16 वर्षों से चल रहा मदरसा आज भी भवन की आस लगाए बैठा है. सरकारों ने आश्वासन भी दिया लेकिन आज भी इन बच्चों को इन कब्रगाहों में बैठकर पढ़ाई करनी पड़ रही है.

भवन के अभाव के चलते इन बच्चों को खुले आसमन के नीचे बैठना पड़ता है. इतना ही नहीं मिड-डे मील का पोषाहार भी इन बच्चों दफन लाशों के ऊपर बैठकर ही खाना पड़ता है. जब भी किसी मरने वाले का जनाजा कब्रगाह में पहुंचता है तो इनकी पढ़ाई बीच में ही रोकनी पड़ती है. अब जरा सोचिए, मय्यत पर पहुंचने वाले लोगों की सिसकियों का इन बच्चों के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता होगा.

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लेकिन पिछले 16 सालों से ही चला आ रहा है, जो बच्चों के जीवन का हिस्सा बन गया है. मदरसे में कुल तीन शिक्षक नियुक्त हैं. लेकिन भौतिक सुविधाओं का अभाव होने पर बच्चे शिक्षा की तालीम से ऐसे हालातों में ले रहे हैं. एक छात्र इंसान ने बताया कि कस्बे से जब कब्रिस्तान में लाश लाई जाती है, तो उन्हें भय प्रतीत होता है. इतना ही नहीं गंदगी और कूड़ा होने के चलते विषैले सर्प और बिच्छू भी निकल आते हैं. धूप, बारिश और अधिक सर्दी बिना पढ़ाई किये ही घर लौटना पड़ता है.

मदरसा टीचर रुबीना कब्रिस्तान होने के कारण अभिभावक भी अपने बच्चों को भेजने से कतराते हैं. ऐसे में उन्हें खुद बच्चों को घर तक लेने जाना पड़ता है. सर्दी गर्मी और बारिश के मौसम में बच्चे खुले आसमान के नीचे ही पढ़ाई करते है. समस्या को लेकर राजनेताओं एवं प्रशासन के अधिकारियों को भी अवगत करा दिया है. लेकिन बच्चों को भवन उपलब्ध कराने की जहमत किसी ने भी नहीं उठाई है.

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अब सवाल ये उठता है राज्य का कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित नहीं रहेगा, सरकारें ऐसा दावा तो करती हैं. लेकिन हकीकत में दावे पूरे होते नहीं दिखते. यही वजह है कि सैपऊ कस्बे के इस मदरसे के नौनिहाल आज भी भवन एवं भौतिक सुविधाओं के अभाव में खुले आसमान के नीचे दफन लाशों के ऊपर पढाई करने को मजबूर हैं.

Intro:धौलपुर जिले के सैपऊ उपखण्ड मुख्यालय स्थिति राजस्थान मदरसा वोर्ड द्वारा संचालित मदरसा तालीमुल में पिछले 16 बर्ष से नौनिहाल बच्चे दफन लाशों के ऊपर पढ़ रहे है जीवन का पाठ,कक्षा एक से पांच तक के बच्चों को मुर्दे पढ़ा रहे है एक पाठ ,,, ,देखिये ईटीवी भारत की ग्राउंड रिपोर्ट ,,, स्पेशल स्टोरी





Body:सन्नाटे में दबी हुई इन कब्रों से बड़े से बड़े इंसान की रूह काँप सकती है ,इन्ही दफ़्न लाशों पर बच्चे पढ़ रहे है जीवन की पाठशाला,जी हाँ जो आप देख रहे है,वो आइने की तरह साफ़ है। धौलपुर जिले के सैपऊ कस्बे के कब्रिस्तान में पिछले 16 बर्ष से संचालित मदरसा आज भी भवन की आस लगाए बैठा है। सरकारें आई चली गई। कब्रिस्तान में पढ़ने वाले बच्चों को अस्वासन भी दिए गए। लेकिन खुले आसमान के निचे दफ़्न लाशों में भूत प्रेत के सायों में बच्चों को मजबूरी में शिक्षा की तालिश हासिल करनी पड़ रही है। जो बच्चे नानी दादी से भूत प्रेतों और आत्माओं की कहानी सुना करते थे। उन बच्चों को हकीकत एवं साकार रूप में रूबरू होना पड़ रहा है। बच्चों को भवन का अभाव होने पर खुले आसमन के निचे बिठाना पड़ता है। बच्चों को मिडेमिल का पोषाहार भी दफ़्न लाशों के ऊपर ही खाना पड़ता है। बस्ती से जब किसी की मईयत मदरसे में पहुंच जाती है। तो नौनिहाल मासूम भय से सिसक जाते है। ऐसा पिछले 16 बर्षों से चला आ रहा है। जो बच्चों के जीवन का हिस्सा बन गया है। सरकार द्वारा तीन शिक्षक लगाए गए है। जो समय से अपनी सेवायें दे हे है। लेकिन भौतिक सुबिधाओं का अभाव होने पर बच्चे शिक्षा की तालीम से बंचित रह रहे है। छात्र इंसान ने बताया कि मदरसे में भौतिक सुख सुबिधाओं का अभाव है। खुले आसमान के नीचे पढ़ना पड़ता है। कस्बे से जब कब्रिस्तान में लाश लाई जाती है। उस समय बच्चे डर और भय से सहम जाते है। मजबूरी में बच्चों की छुट्टी करनी पड़ती है। कब्रिस्तान में गंदगी और खास कूड़ा होने पर बिशेले सर्प बिच्छू भी निकल आते है। उसके अलावा बारिश और सर्दी अधिक होने पर भी बच्चों को बिना पढ़ाई किये हुए घर जाना पड़ता है। विधालय की शिक्षिका रुबीना ने बताया कि मदरसा शुरू से ही कबिस्तान में संचालत किया जा रहा है। जिसकी बजह से बच्चे भय के साये में बने रहते है। कब्रिस्तान में आने पर बड़े लोग भी कतराते है। ऐसे में बच्चे तालीम हासिल कर रहे है। शिक्षिका ने कहा कि मदरसा में मईयत आने पर बच्चे दो तीन दिन तक भय के साये में रहते है। अभिभावक बच्चों को भेजने से डरते है। जिससे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। बच्चों को घर तक लेने जाना पड़ता है। सर्दी गर्मी और बारिश के मौसम में बच्चे खुले आसमान के नीचे ही पढ़ाई करते है। समस्या को लेकर राजनेताओं एवं प्रशासन के अधिकारियों को भी अवगत करा दिया है। लेकिन बच्चों को भवन उपलब्ध कराने की जहमत किसी ने भी नहीं उठाई है। 





Conclusion:अब सवाल सरकार के उस दावे पर उठता है जिसका सरकार दावा करती है। राज्य का कोई भी बच्चा शिक्ष  से बंचित नहीं रहेगा। एक ओर सरकार जहाँ शिक्षा की गुणवक्ता एवं भौतिक सुबिधायें देने के लिए एड़ी से चोटी तक का दम लगा रही है वहीँ सैपऊ कस्बे के मदसरे के मासूम नौनिहाल आज भी भवन एवं भौतिक सुबिधाओं के अभाव में खुले आसमान के निचे दफन लाशों के ऊपर पढाई करने को मजबूर है। ऐसे में मुर्दा किसे कहा जाए उस कब्रिस्तान या दफन लाशों को जो मरने बाद भी इन मासूम नौनिहालों को बैठने के लिए आश्रय और पनाह दे रहे है। या हुकूमत या फिर हुकूमत के जिम्मेदारों को। जो जीवित होकर भी इन बच्चों की सुध लेने को तैयार नहीं है। 
Byte :-आसमा,छात्रा
Byte :- सामीन,छात्रा
Byte :-इंसान,छात्र
Byte :-रुबीना,शिक्षिका
Byte :-दिनेश गोस्वामी,शिक्षक
Report:-
Neeraj Sharma
Dholpur

Last Updated : Nov 8, 2019, 10:02 AM IST
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