देहरादून: उत्तराखंड में लंपी वायरस तेजी से फैल रहा है. प्रदेश में अब तक 699 जानवरों की इस बीमारी से मौत हो चुकी है. जबकि 33 हजार (Lumpy Skin Disease in Cattle) से ज्यादा जानवरों में इस बीमारी का पता लग चुका है. इससे न केवल गाय में दूध उत्पादन को लेकर कमी आई है. पशुपालन विभाग के आंकड़ों पर गौर करें तो राज्य में अब तक 699 जानवर लंपी बीमारी (Lumpy Skin Disease) से जान गवां चुके हैं. उधर अब तक 33143 जानवरों में इस वायरस की पहचान हो चुकी है, जिसमें से 33,096 जानवरों का इलाज किया जा रहा है.
पशुपालन विभाग के मुताबिक 20,608 जानवर ठीक भी हो चुके हैं. राज्य में अभी 11,836 जानवरों में यह बीमारी मौजूद है. खास बात यह है कि 4,84,153 जानवरों को इस वायरस से बचाने के लिए वैक्सीन लगाई जा चुकी है. उधर दूध उत्पादकों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार तमाम तरह की योजना चला रही है और जानवरों को बचाने के लिए भी प्रयास जारी है.
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बता दें कि प्रदेश में लंपी वायरस का पहला मामला करीब दो महीने पहले ही आ चुका है. सबसे ज्यादा मामले हरिद्वार और उधमसिंह नगर में आए थे. हरिद्वार जिले में लंपी वायरस का पहला मामला आया था. जिसके बाद बाकी जिलों में भी वायरस फैलता गया. इस दौरान राज्य सरकार ने पशुओं के एक राज्य से दूसरे राज्य में ले जाने से लेकर जिलों तक में प्रतिबंध लगाए थे.
क्या है लंपी वायरस: लंपी स्किन डिजीज को गांठदार त्वचा रोग वायरस भी कहा जाता है. पशु चिकित्साधिकारी डॉ शैलेंद्र वशिष्ठ (Veterinary Officer Dr Shailendra Vashisht)के मुताबिक यह एक संक्रामक बीमारी है, जोकि एक पशु से दूसरे में होती है. संक्रमित पशु के संपर्क में आने से इससे दूसरा पशु भी ग्रसित हो सकता है. इस वायरस का संबंध गोट फॉक्स और शीप पॉक्स से है. इससे मवेशियों में बुखार समेत कई तरह की दिक्कतें पैदा हो जाती हैं.
ज्यादातर शरीर पर गांठे बन जाती हैं. बाहरी शरीर के साथ नाके भीतर के साथ जननांगन पर गांठे हो जाती है. गांठों का साइज दो से सात सेंटीमीटर तक हो सकता है. इससे पशु परेशान होता है और पैरों में है, तो चलने और उठने बैठने में दिक्कत होती है. दस्त और थनेला आदि भी हो सकता है. संक्रमण के चलते दुग्ध उत्पादन पर भी असर पड़ता है. खासकर मक्खी-मच्छर वाहक के रूप में संक्रमण को फैला सकते हैं. ऐसे में साफ-सफाई बेहद जरूरी है. संक्रमण लक्षण दिखने पर पशु चिकित्सक की सलाह जरूर लें.