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भ्रष्टाचार के नाम पर इन्होंने किया उत्तराखंड को बदनाम, नेताजी के 'हथियार' बने घपले-घोटाले

राजनीतिक दलों ने भ्रष्टाचार को हथियार बनाकर सिर्फ विपक्ष में रहकर मुद्दा बनाया और सरकार आने पर इन आरोपों को भूल गए. दुर्भाग्य की बात यह है कि राज्य स्थापना के दौरान अंतरिम सरकार के समय से ही घोटालों पर राज्य में हो हल्ला शुरू हो गया था.

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घोटाला
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Published : Dec 9, 2019, 11:53 PM IST

देहरादून: सुनने में थोड़ा अजीब लगे, लेकिन यह सच है कि उत्तराखंड में नेताओं के लिए घपले-घोटाले राजनीतिक हथियार बन गए हैं. पिछले 19 सालों में सैकड़ों कथित घोटालों में चुनिंदा लोगों को ही क़ानूनी फंदे में जकड़ा जा सका है. देखें ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट...

उत्तराखंड में कई कथित घोटाले राष्ट्रीय फलक पर सुर्खियों में रहे. सैकड़ों करोड़ के इन घोटालों में सरकारों की बदनामी तो हुई, लेकिन देवभूमि की छवि को भी बेहद ज्यादा नुकसान पहुंचा है. हैरानी की बात ये है कि इन कथित घपलों में इक्का-दुक्का मामलों पर ही कार्रवाई हो सकी. जबकि बाकी मामले फाइलों में दफन हो गए.

घोटालों का उत्तराखंड

साफ है कि राजनीतिक दलों ने भ्रष्टाचार को हथियार बनाकर सिर्फ विपक्ष में रहकर मुद्दा बनाया और सरकार आने पर इन आरोपों को भूल गए. दुर्भाग्य की बात यह है कि राज्य स्थापना के दौरान अंतरिम सरकार के समय से ही घोटालों पर राज्य में हो हल्ला शुरू हो गया था. जानिए उत्तराखंड के वह भ्रष्टाचार जिसने राज्य की साख को बट्टा लगा दिया.

इन कथित घोटालों से कलंकित हुआ उत्तराखंड

  • साल 2000 में बीजेपी की अंतरिम सरकार आते ही प्रदेशभर में लगने वाले साइन बोर्ड का कथित घोटाला सुर्खियों में रहा.
  • इसी सरकार में प्रचार-प्रसार सामग्री और कार्यालयों के लिए सामान खरीद और निर्माण कार्यों को लेकर भी घोटाले चर्चाओं में रहे.
  • नित्यानंद स्वामी और भगत सिंह कोश्यारी के मुख्यमंत्री रहते लगे इन घोटालों के आरोपों पर आज तक कुछ नहीं हुआ.
  • साल 2002 में कांग्रेस की सरकार आई है और एनडी तिवारी सरकार मुख्यमंत्री बने. इसमें बीजेपी ने 56 घोटाले होने के आरोप लगाए.
  • इस सरकार में पुलिस भर्ती घोटाला बेहद ज्यादा सुर्खियों में रहा. जिस पर जांच के आदेश हुए और 253 दरोगाओं की भर्ती में गड़बड़ी को लेकर तत्कालीन डीजीपी पीडी रतुड़ी और एडीजी राकेश मित्तल समेत कई के खिलाफ चार्जशीट भी दाखिल की गई. ये मामला अब भी सीबीआई कोर्ट में लंबित है.
  • पटवारी भर्ती घोटाला भी इसी सरकार में बहुत चर्चा में रहा. इस मामले पर भी जांच बिठाई गई थी. जिसमें एक आईएएस अधिकारी पर भी गाज गिरी लेकिन न तो कोई सफेदपोश जेल गया और न ही इस पर कोई बड़ी कार्रवाई को अंजाम दिया गया.
  • जेट्रोफा घोटाला भी इसी सरकार में सुर्खियों में आया जिस पर सरकार की खूब किरकिरी हुई, लेकिन इस पर भी कोई कार्रवाई नहीं की गई.
  • इसके बाद 2007 में बीजेपी सरकार बनी जिसमें जल विद्युत परियोजना के आवंटन का घोटाला, सीटूरजिया घोटाला काफी सुर्खियों में आया. इसका आरोप सीधे तौर पर तत्कालीन मुख्यमंत्री पर लगाए गए. इसी सरकार में ढांचा बीज घोटाला भी सुर्खियों में आया जिस पर तत्कालीन कृषि मंत्री की विपक्ष ने खूब घेराबंदी की. इस सरकार में कुंभ घोटाला भी चर्चाओं में रहा जिस पर उत्तराखंड सरकार की खूब किरकिरी हुई.
  • खास बात यह है कि सरकार में लगे आरोपों का भी कोई नतीजा नहीं निकला और किसी भी मामले पर कोई कार्रवाही नहीं हुई.
  • इसके बाद एक बार फिर 2012 में कांग्रेस सरकार आई और उस पर आपदा घोटाले के आरोप लगे. लेकिन फिर इस कथित घोटाले पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई.
  • इसी सरकार में टिहरी विस्थापितों की जमीन आवंटन का घोटाला भी हुआ. जिसमें आईएएस अधिकारी के खिलाफ कागजी कार्रवाई तो की गई लेकिन कानूनी कार्रवाई के रूप में कोई कदम नहीं उठाया गया.
  • कांग्रेस सरकार में एनएच- 74 घोटाला और छात्रवृत्ति घोटाला भी हुआ. जिस पर बीजेपी ने खूब आरोप लगाये थे, लेकिन कार्रवाई के नाम पर कोई कदम नहीं उठाया गया.

देहरादून: सुनने में थोड़ा अजीब लगे, लेकिन यह सच है कि उत्तराखंड में नेताओं के लिए घपले-घोटाले राजनीतिक हथियार बन गए हैं. पिछले 19 सालों में सैकड़ों कथित घोटालों में चुनिंदा लोगों को ही क़ानूनी फंदे में जकड़ा जा सका है. देखें ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट...

उत्तराखंड में कई कथित घोटाले राष्ट्रीय फलक पर सुर्खियों में रहे. सैकड़ों करोड़ के इन घोटालों में सरकारों की बदनामी तो हुई, लेकिन देवभूमि की छवि को भी बेहद ज्यादा नुकसान पहुंचा है. हैरानी की बात ये है कि इन कथित घपलों में इक्का-दुक्का मामलों पर ही कार्रवाई हो सकी. जबकि बाकी मामले फाइलों में दफन हो गए.

घोटालों का उत्तराखंड

साफ है कि राजनीतिक दलों ने भ्रष्टाचार को हथियार बनाकर सिर्फ विपक्ष में रहकर मुद्दा बनाया और सरकार आने पर इन आरोपों को भूल गए. दुर्भाग्य की बात यह है कि राज्य स्थापना के दौरान अंतरिम सरकार के समय से ही घोटालों पर राज्य में हो हल्ला शुरू हो गया था. जानिए उत्तराखंड के वह भ्रष्टाचार जिसने राज्य की साख को बट्टा लगा दिया.

इन कथित घोटालों से कलंकित हुआ उत्तराखंड

  • साल 2000 में बीजेपी की अंतरिम सरकार आते ही प्रदेशभर में लगने वाले साइन बोर्ड का कथित घोटाला सुर्खियों में रहा.
  • इसी सरकार में प्रचार-प्रसार सामग्री और कार्यालयों के लिए सामान खरीद और निर्माण कार्यों को लेकर भी घोटाले चर्चाओं में रहे.
  • नित्यानंद स्वामी और भगत सिंह कोश्यारी के मुख्यमंत्री रहते लगे इन घोटालों के आरोपों पर आज तक कुछ नहीं हुआ.
  • साल 2002 में कांग्रेस की सरकार आई है और एनडी तिवारी सरकार मुख्यमंत्री बने. इसमें बीजेपी ने 56 घोटाले होने के आरोप लगाए.
  • इस सरकार में पुलिस भर्ती घोटाला बेहद ज्यादा सुर्खियों में रहा. जिस पर जांच के आदेश हुए और 253 दरोगाओं की भर्ती में गड़बड़ी को लेकर तत्कालीन डीजीपी पीडी रतुड़ी और एडीजी राकेश मित्तल समेत कई के खिलाफ चार्जशीट भी दाखिल की गई. ये मामला अब भी सीबीआई कोर्ट में लंबित है.
  • पटवारी भर्ती घोटाला भी इसी सरकार में बहुत चर्चा में रहा. इस मामले पर भी जांच बिठाई गई थी. जिसमें एक आईएएस अधिकारी पर भी गाज गिरी लेकिन न तो कोई सफेदपोश जेल गया और न ही इस पर कोई बड़ी कार्रवाई को अंजाम दिया गया.
  • जेट्रोफा घोटाला भी इसी सरकार में सुर्खियों में आया जिस पर सरकार की खूब किरकिरी हुई, लेकिन इस पर भी कोई कार्रवाई नहीं की गई.
  • इसके बाद 2007 में बीजेपी सरकार बनी जिसमें जल विद्युत परियोजना के आवंटन का घोटाला, सीटूरजिया घोटाला काफी सुर्खियों में आया. इसका आरोप सीधे तौर पर तत्कालीन मुख्यमंत्री पर लगाए गए. इसी सरकार में ढांचा बीज घोटाला भी सुर्खियों में आया जिस पर तत्कालीन कृषि मंत्री की विपक्ष ने खूब घेराबंदी की. इस सरकार में कुंभ घोटाला भी चर्चाओं में रहा जिस पर उत्तराखंड सरकार की खूब किरकिरी हुई.
  • खास बात यह है कि सरकार में लगे आरोपों का भी कोई नतीजा नहीं निकला और किसी भी मामले पर कोई कार्रवाही नहीं हुई.
  • इसके बाद एक बार फिर 2012 में कांग्रेस सरकार आई और उस पर आपदा घोटाले के आरोप लगे. लेकिन फिर इस कथित घोटाले पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई.
  • इसी सरकार में टिहरी विस्थापितों की जमीन आवंटन का घोटाला भी हुआ. जिसमें आईएएस अधिकारी के खिलाफ कागजी कार्रवाई तो की गई लेकिन कानूनी कार्रवाई के रूप में कोई कदम नहीं उठाया गया.
  • कांग्रेस सरकार में एनएच- 74 घोटाला और छात्रवृत्ति घोटाला भी हुआ. जिस पर बीजेपी ने खूब आरोप लगाये थे, लेकिन कार्रवाई के नाम पर कोई कदम नहीं उठाया गया.
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summary-Summary- सुनने में थोड़ा अजीब लगे..लेकिन यह सच है कि उत्तराखंड में नेताओं के लिए घपले-घोटाले राजनीतिक हथियार बन गए हैं..पिछले 19 सालों में सैकड़ों कथित घोटालों में चुनिंदा लोगों को ही क़ानूनी फंदे में जकड़ा जा सका है...देखिये ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट...


Body:उत्तराखंड में कई कथित घोटाले राष्ट्रीय फलक पर सुर्खियों में रहे..सैकड़ों करोड़ के इन घोटालों में सरकारों की बदनामी तो हुई लेकिन देवभूमि की छवि को भी बेहद ज्यादा नुकसान हुआ..हैरानी की बात ये है कि इन कथित घपलों में इक्का-दुक्का मामलों पर ही कार्रवाई हो सकी ...जबकि बाकी मामले फाइलों में दफन हो गए.. साफ है कि राजनीतिक दलों ने भ्रष्टाचार को हथियार बनाकर सिर्फ विपक्ष में रहकर मुद्दा बनाया और सरकार आने पर इन आरोपों को भूल गए.. दुर्भाग्य की बात यह है कि राज्य स्थापना के दौरान अंतरिम सरकार के समय से ही घोटालों पर राज्य में हो हल्ला शुरू हो गया था... जानिए उत्तराखंड के वह भ्रष्टाचार जिसने राज्य की साख को बट्टा लगा दिया...

बाइट-सुरेंद्र आर्य, राजनीतिक विश्लेषक


साल 2000 में भाजपा की अंतरिम सरकार आते ही प्रदेशभर में लगने वाले साइन बोर्ड का कथित घोटाला सुर्खियों में रहा


इसी सरकार में प्रचार-प्रसार सामग्री और कार्यालयों के लिए सामान खरीद और निर्माण कार्यों को लेकर भी घोटाले चर्चाओं में रहे...


नित्यानंद स्वामी और भगत सिंह कोश्यारी के मुख्यमंत्री रहते लगे इन घोटालों केे आरोपोंं पर आज तक कुुुछ नहीं हुआ..


साल 2002 में कांग्रेस की तिवारी सरकार आई और इसमें भाजपा ने 56 घोटाले होने के आरोप लगाए...


इस सरकार में पुलिस भर्ती घोटाला बेहद ज्यादा सुर्खियों में रहा.. जिस पर जांच के आदेश हुए और 253 दरोगाओं की भर्ती में गड़बड़ी को लेकर तत्कालीन डीजीपी पीडी रतूड़ी और एडीजी राकेश मित्तल समेत कई के खिलाफ चार्जशीट भी दाखिल की गई... और अब भी सीबीआई कोर्ट में मामला लंबित है...


पटवारी भर्ती घोटाला भी इसी सरकार में बहुत चर्चा में रहा.. इस मामले पर भी जांच बिठाई गई... जिसमें एक आईएएस अधिकारी पर भी गाज गिरी लेकिन ना तो कोई सफेदपोश जेल गया और ना ही इस पर कोई बड़ी कार्रवाई को अंजाम दिया गया..


जेट्रोफा घोटाला भी इसी सरकार में सुर्खियों में आया जिस पर सरकार की खूब किरकिरी हुई लेकिन इस पर भी कोई कार्यवाही नहीं की गई


इसके बाद 2007 में भाजपा सरकार बनी जिसमें जल विद्युत परियोजना के आवंटन का घोटाला, सीटूरजिया घोटाला बेहद ज्यादा सुर्खियों में आया... और इसकी आरोप सीधे तौर पर तत्कालीन मुख्यमंत्री पर लगाए गए.. इसी सरकार में ढांचा बीज घोटाला भी सुर्खियों में आया जिस पर तत्कालीन कृषि मंत्री की विपक्ष ने खूब घेराबंदी की... इस सरकार में कुंभ घोटाला भी चर्चाओं में रहा जिस पर उत्तराखंड सरकार की खूब किरकिरी हुई..


खास बात यह है कि सरकार में लगे आरोपों का भी कोई नतीजा नहीं निकला और किसी भी मामले पर कोई कार्यवाही नहीं हुई..


इसके बाद एक बार फिर 2012 में कांग्रेस सरकार आई और उस पर आपदा घोटाले के आरोप लगे... लेकिन फिर इस कथित घोटाले पर भी कोई कार्यवाही नहीं हुई...


इसी सरकार में टिहरी विस्थापितों की जमीन आवंटन का घोटाला भी हुआ.. जिसमें आईएएस अधिकारी के खिलाफ कागजी कार्रवाई तो की गई लेकिन कानूनी कार्रवाई के रूप में कोई कदम नहीं उठाया गया...


कांग्रेस सरकार में अरे 74 घोटाला और छात्रवृत्ति घोटाला भी हुआ.. जिस पर विपक्षी दल भाजपा ने खूब आरोप लगाये.. लेकिन कार्रवाई के नाम पर कोई कदम नहीं उठाया गया...


उत्तराखंड में ऐसे कई घोटाले हैं जिनको लेकर राष्ट्रीय स्तर पर बहस हुई.. लेकिन आरोप लगाने वाली राजनीतिक दल ने सत्ता में आने के बाद इन पर कोई कार्यवाही नहीं की.. साफ है कि या तो राजनीति दलों ने भ्रष्टाचार को हथियार बनाकर सत्ता पाने के लिए उत्तराखंड को बदनाम किया या फिर फाइलें दबाकर एक दूसरे के खिलाफ कानूनी कार्यवाही नहीं करने का सोचसमझा अनुुुबध ...


बाइट-डॉ आरपी रतूड़ी, प्रदेश प्रवक्ता उत्तराखंड कांग्रेस


इस मामले पर भाजपा राजनीतिक बयान देती हुई दिखाई देती है... भाजपा के मीडिया प्रभारी देवेंद्र भसीन कहते हैं कि पार्टी पूरी कोशिश करती है कि भ्रष्टाचार के मामले पर जीरो टॉलरेंस बनाए रखें....


वाइट देवेंद्र भसीन मीडिया प्रभारी उत्तराखंड भाजपा


भ्रष्टाचार को लेकर कितने भी बदलाव की बात कही जाए लेकिन हकीकत यही है कि राजनीतिक दल इन्हीं भ्रष्टाचार पर राजनीतिक रोटियां सेक कर जनता का बेवकूफ बना रहे हैं.. 




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