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लेमन इमीग्रेंट ने बढ़ाई दून के जंगलों की खूबसूरती, ये हैं विशेषताएं - तितलियों के शोधकर्ता डॉक्टर अरुण प्रताप सिंह

लेमन इमीग्रेंट बरसात के सीजन यानी जून-जुलाई में दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवास करती हैं. इनके प्रवास के लिए सबसे मुफीद जगह देहरादून जैसे मैदानी इलाकों के साथ ही मसूरी जैसे ऊंचाई वाले स्थान हैं.

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लेमन इमीग्रेंट ने बढ़ाई दून के जंगलों की खूबसूरती
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Published : Jul 18, 2020, 5:26 PM IST

Updated : Jul 18, 2020, 7:01 PM IST

देहरादून: इन दिनों राजधानी देहरादून और उसके आसपास के जंगलों में आपको को पीले रंग की तितलियां बड़ी संख्या में उड़ती दिखाई देंगी. हो सकता है कि पहली नजर में ये तितलियां आपको सामान्य लगे, मगर इनकी खासियत और खूबी इन्हें औरों से अलग बनाती है. इनके होने के एहसास से यहां की फिजाओं में एक अलग ही अनुभूति है. दरअसल, ये कोई आम तितली नहीं है, इसका नाम लेमन इमीग्रेंट है, जो इन दिनों अपने एक खास सफर पर दक्षिण से उत्तर दिशा की ओर निकली हैं.

अगर आप देहरादून से रुड़की की तरफ जाएं जो इन दिनों देहरादून से सटे राजाजी नेशनल पार्क और इसके आसपास के जंगलों में पीले रंग की तितलियां (लेमन इमीग्रेंट) बड़ी संख्या में दिख जाएंगी.

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लेमन इमीग्रेंट

पढ़ें- उत्तरकाशी में बसता है बुग्यालों का सुंदर संसार, लोगों ने की विकसित करने की मांग

देहरादून फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट FRI में हिमालयन तितलियों पर शोध कर रहे डॉक्टर अरुण प्रताप सिंह ने बताया कि यह तितलियां इस समय दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवास कर रही हैं. अरुण ने बताया कि बरसात के सीजन यानी जून-जुलाई में ये तितली के आकर में आती हैं. इस दौरान वो अपने यौवन के चरम पर होती हैं. यह दक्षिण के मैदानी इलाकों से उड़ते हुए उत्तर की ओर जाती हैं. ये तकरीबन 2000 मीटर की ऊंचाई तक ही जाती हैं.

लेमन इमीग्रेंट ने बढ़ाई दून के जंगलों की खूबसूरती

पढ़ें- जम्मू-कश्मीर : पाकिस्तान की फायरिंग में एक ही परिवार के तीन लोगों की मौत


दक्षिण से उत्तर की ओर जाते हुए यह नदियों, नालों और पानी वाली जगहों के किनारे रेत पर बैठती हैं. वहां से नमक यानी सोडियम को सोखती हैं, जोकि इनके सहवास के लिए जरूरी होता है. शोधकर्ता ने बताया कि इन्हें सहवास के लिए सोडियम की जरूरत होती है. इसलिए इन्हें आसानी से पानी वाली जगहों के आस-पास मिट्टी से नमक मिल जाता है. इस तरह से वो पहाड़ की तरफ सफर जारी रखती हैं.

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खूबसूरत लेमन इमीग्रेंट

पढ़ें- महंत नरेंद्र गिरि बोले मुहूर्त पर होगा महाकुंभ 2021, परिस्थिति देख करेंगे फैसला

उन्होंने बताया कि इनके प्रवास के लिए सबसे मुफीद जगह देहरादून जैसे मैदानी इलाकों के साथ ही मसूरी जैसे ऊंचाई वाले स्थान हैं. उन्होंने बताया कि पीला रंग होने की वजह से ही इनका नाम लेमन इमीग्रेंट पड़ा है. अरुण प्रताप ने बताया कि इस समय ये लेमन इमीग्रेंट अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण पड़ाव को इस सफर के दरमियान पूरा करेंगी.

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जंगलों की खूबसूरती बढ़ाती लेमन इमीग्रेंट

पढ़ें-जम्मू-कश्मीर : पाकिस्तान की फायरिंग में एक ही परिवार के तीन लोगों की मौत

शोधकर्ताओं के अनुसार लेमन इमीग्रेंट अपने इस सफर पर एक निश्चित ऊंचाई पर जाकर प्रजनन करती हैं. देहरादून और मसूरी क्षेत्र में पाए जाने वाले कुछ खास किस्म के पेड़ केसिया तोरा, अमलताश, कचनार जैसे पेड़ों पर अपने अंडे देते हुए यह अपना सफर जारी रखती हैं. एक निश्चित समय के बाद यह पहाड़ से मैदान की तरफ वापस लौट जाती हैं.

देहरादून: इन दिनों राजधानी देहरादून और उसके आसपास के जंगलों में आपको को पीले रंग की तितलियां बड़ी संख्या में उड़ती दिखाई देंगी. हो सकता है कि पहली नजर में ये तितलियां आपको सामान्य लगे, मगर इनकी खासियत और खूबी इन्हें औरों से अलग बनाती है. इनके होने के एहसास से यहां की फिजाओं में एक अलग ही अनुभूति है. दरअसल, ये कोई आम तितली नहीं है, इसका नाम लेमन इमीग्रेंट है, जो इन दिनों अपने एक खास सफर पर दक्षिण से उत्तर दिशा की ओर निकली हैं.

अगर आप देहरादून से रुड़की की तरफ जाएं जो इन दिनों देहरादून से सटे राजाजी नेशनल पार्क और इसके आसपास के जंगलों में पीले रंग की तितलियां (लेमन इमीग्रेंट) बड़ी संख्या में दिख जाएंगी.

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लेमन इमीग्रेंट

पढ़ें- उत्तरकाशी में बसता है बुग्यालों का सुंदर संसार, लोगों ने की विकसित करने की मांग

देहरादून फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट FRI में हिमालयन तितलियों पर शोध कर रहे डॉक्टर अरुण प्रताप सिंह ने बताया कि यह तितलियां इस समय दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवास कर रही हैं. अरुण ने बताया कि बरसात के सीजन यानी जून-जुलाई में ये तितली के आकर में आती हैं. इस दौरान वो अपने यौवन के चरम पर होती हैं. यह दक्षिण के मैदानी इलाकों से उड़ते हुए उत्तर की ओर जाती हैं. ये तकरीबन 2000 मीटर की ऊंचाई तक ही जाती हैं.

लेमन इमीग्रेंट ने बढ़ाई दून के जंगलों की खूबसूरती

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दक्षिण से उत्तर की ओर जाते हुए यह नदियों, नालों और पानी वाली जगहों के किनारे रेत पर बैठती हैं. वहां से नमक यानी सोडियम को सोखती हैं, जोकि इनके सहवास के लिए जरूरी होता है. शोधकर्ता ने बताया कि इन्हें सहवास के लिए सोडियम की जरूरत होती है. इसलिए इन्हें आसानी से पानी वाली जगहों के आस-पास मिट्टी से नमक मिल जाता है. इस तरह से वो पहाड़ की तरफ सफर जारी रखती हैं.

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खूबसूरत लेमन इमीग्रेंट

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उन्होंने बताया कि इनके प्रवास के लिए सबसे मुफीद जगह देहरादून जैसे मैदानी इलाकों के साथ ही मसूरी जैसे ऊंचाई वाले स्थान हैं. उन्होंने बताया कि पीला रंग होने की वजह से ही इनका नाम लेमन इमीग्रेंट पड़ा है. अरुण प्रताप ने बताया कि इस समय ये लेमन इमीग्रेंट अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण पड़ाव को इस सफर के दरमियान पूरा करेंगी.

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जंगलों की खूबसूरती बढ़ाती लेमन इमीग्रेंट

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शोधकर्ताओं के अनुसार लेमन इमीग्रेंट अपने इस सफर पर एक निश्चित ऊंचाई पर जाकर प्रजनन करती हैं. देहरादून और मसूरी क्षेत्र में पाए जाने वाले कुछ खास किस्म के पेड़ केसिया तोरा, अमलताश, कचनार जैसे पेड़ों पर अपने अंडे देते हुए यह अपना सफर जारी रखती हैं. एक निश्चित समय के बाद यह पहाड़ से मैदान की तरफ वापस लौट जाती हैं.

Last Updated : Jul 18, 2020, 7:01 PM IST
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