देहरादून: त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के बाद उत्तराखंड में सियासी तूफान थम गया है. हालांकि, प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता का यह कोई पहला मामला नहीं है. इससे पहले भी उत्तराखंड की राजनीति में ने सिर्फ उथल-पुथल हुई है, बल्कि कई बड़े नेतृत्व परिवर्तन भी किए गए हैं. प्रदेश की जनता ने वो दौर भी देखा था जब उत्तराखंड की राजनीति के बड़े चेहरों ने कांग्रेस का साथ छोड़ भाजपा का दामन पकड़ लिया था. वहीं, अब त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस्तीफे के बाद लगता है कि भाजपा के अंदर सब कुछ ठीक नहीं है. अब भाजपा प्रवक्ता भी दबी जुबां में ऐसा मान रहे हैं.
शनिवार को देहरादून में मचे सियासी बवंडर के बीच, भाजपा ने अपने दिग्गज नेताओं को देश के अलग-अलग शहरों से देहरादून पहुंचने का हुक्म दिया था. भाजपा के महामंत्री संगठन अजय कुमार को भी बंगाल से तत्काल देहरादून बुला लिया गया था. इसके साथ ही शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को लखनऊ से देहरादून गये थे.
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इसके बाद कोर कमेटी की बैठक भी की गई. जिसके बाद सभी नेताओं में ऑल इज वेल का नारा देते हुए तब नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों को साफ तौर से नकार दिया था. मगर सोमवार को हाईकमान के आदेश पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के दिल्ली दरबार में हाजिरी के बाद आज मंगलवार को त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस्तीफे के बाद पूरा राजनीतिक घमासान थम सा गया है.
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बीते कुछ दिनों में हुए घटनाक्रम से ये साफ हो गया था कि उत्तराखंड भाजपा में सब कुछ ठीक नहीं है. पार्टी के अंदर से रह-रहकर विधायकों की नाराजगी की खबरें सामने आती रही हैं. इसके साथ ही कई कैबिनेट मंत्री ऐसे हैं जो त्रिवेंद्र सिंह रावत की कार्यप्रणाली से खुश नहीं थे.
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वरिष्ठ राजनीतिक जानकार भगीरथ शर्मा और जयसिंह रावत के अनुसार मंत्रियों-विधायकों की नाराजगी, अफसरों का कुछ ज्यादा ही भरोसा और अक्खड़ स्वभाव मुख्यमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल चार साल में ही खत्म करने के लिए जिम्मेदार रहा. गैरसैंण को तीसरा मंडल घोषित करना त्रिवेंद्र के लिए वाटरलू का युद्ध साबित हुआ.
आखिर क्या है नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों का कारण
- वरिष्ठ नेताओं के ऊपर दी गई थी तरजीह
भाजपा के तमाम वरिष्ठ नेताओं की मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से नाराजगी कोई आज की नहीं है बल्कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद से ही ये नाराजगी शुरू हो गई थी. मार्च 2017 में 70 विधानसभा सीटों में से 57 सीटें जीतकर उत्तराखंड में प्रचंड बहुमत हासिल कर बीजेपी सत्ता पर काबिज हुई थी. तब सीएम पद के लिये जिन वरिष्ठ टॉप-5 नेताओं के नामों की चर्चा थी, उनमें त्रिवेंद्र सिंह रावत का नाम शामिल नहीं था, लेकिन आलाकमान ने त्रिवेंद्र सिंह रावत के नाम को आगे कर दिया था.
पार्टी आलाकमान का ये फैसला नेताओं ने माना जरूर लेकिन नाराजगी तभी से शुरू हो गई थी. सबसे ज्यादा नाराज वो नेता दिखे, जो कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे. सतपाल महाराज और हरक सिंह रावत जैसे नेताओं में काफी नाराजगी देखने को मिली थी. हालांकि, उस समय आलाकमान के आदेश को इन तमाम वरिष्ठ नेताओं ने मान लिया और विरोध नहीं किया, क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत न सिर्फ पद संभालने के बाद उन्हें साथ लेकर चलेंगे बल्कि उनका सम्मान भी करेंगे. मगर ऐसा न हो सका, समय बीतने के साथ तमाम वरिष्ठ नेताओं ने खुलकर विरोध शुरू कर दिया था. वहीं, केंद्रीय नेतृत्व के पास पिछले साल से फीडबैक था कि त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार और पार्टी संगठन के बीच समन्वय ठीक नहीं है.
हाल ही में (6 मार्च) हुई कोर कमेटी की बैठक के दौरान देहरादून पहुंचे केंद्रीय पर्यवेक्षक डॉ. रमन सिंह और प्रदेश प्रभारी दुष्यंत कुमार को इन वरिष्ठ नेताओं ने अपनी नाराजगी जाहिर की थी और इस बात पर भी बल दिया था कि वह नेतृत्व परिवर्तन करें, नहीं तो वह इस्तीफा दे सकते हैं.
- गैरसैंण को मंडल बनाये जाने को लेकर विरोध
4 मार्च को बजट सत्र के दौरान गैरसैंण को नया मंडल बनाए जाने की घोषणा के बाद से ही त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ तमाम मामलों को लेकर घेराबंदी शुरू हो गई थी. तमाम विधायकों ने गैरसैंण को नया मंडल बनाए जाने पर आपत्ति जताई थी. ऐसे में अब भाजपा के ही वरिष्ठ विधायकों की नाराजगी से लेकर उत्तराखंड में बनाए गए नए गैरसैंण मंडल की राजनीति और भाजपा की अंदरूनी कलह पूरी तरह से राजनीतिक स्थिरता पर हावी हो गई है. ऐसे में पार्टी के भीतर मुख्यमंत्री को बदलने का दबाव था.
- नहीं सुनते त्रिवेंद्र
त्रिवेंद्र सिंह रावत के सीएम बनने के बाद उनके फैसलों से भी पार्टी नेता नाराज रहने लगे थे. मंत्री और विधायकों ने आरोप लगाना शुरू कर दिया था कि रावत उनकी बात नहीं सुनते. त्रिवेंद्र सिंह रावत के कामकाज के तरीके को लेकर भी विरोध के सुर उठने लगे थे. इसको लेकर पार्टी में दो धड़े भी बन गए थे. इस बात की खबर ने भी आलाकमान को चिंता में डाल दिया था. कई दफा वरिष्ठ नेताओं, मंत्रियों और मुख्यमंत्री को दिल्ली बुलाया गया कि सब ठीक किया जा सके लेकिन वक्त के साथ स्थिति खराब ही होती गई.
- अफसरों को खुली छूट
सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत पर मंत्री और विधायकों का आरोप था कि उन्होंने कुछ खास अफसरों को खुली छूट दी है और पहाड़ के अफसरों की उपेक्षा करने का काम किया.
- मंत्रिमंडल में खाली पड़े पद
मंत्रिमंडल में लंबे समय से खाली पड़े पदों को भरने की मांग विधायक लगातार कर रहे थे, कई दफा शिकायतों के बाद भी त्रिवेंद्र सिंह रावत ने नहीं भरा, जिसको लेकर विधायकों में काफी रोष था.
- आम जनता के प्रति सीएम का व्यवहार
आम जनता के प्रति सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत का व्यवहार भी इस नाराजगी की बड़ी वजह बताया जा रहा है. हाल ही में घाट-नंदप्रयाग सड़क चौड़ीकरण को लेकर प्रदर्शन कर रहे ग्रामीणों और महिलाओं ने गैरसैंण बजट सत्र के पहले दिन (1 मार्च) भराड़ीसैंण विधानसभा का घेराव करने के लिए रैली निकाली. इस दौरान प्रदर्शनकारियों पर जमकर लाठीचार्ज किया गया. इस घटना को लेकर लोगों में काफी रोष था.
इसके साथ ही त्रिवेंद्र रावत के सीएम बनते ही एक वीडियो सबसे ज्यादा वायरल हुआ, जिसमें वो अपने जनता दरबार में एक महिला सरकारी टीचर उत्तरा पंत बहुगुणा के साथ बहुत सख्ती से पेश आ रहे थे और उनको सस्पेंड करने का आदेश दे रहे थे. सीएम ने पुलिस से उन्हें बाहर निकालने और हिरासत में लेने को भी कहा था. इस घटना को लेकर भी सीएम की जमकर आलोचना हुई थी.
- त्रिवेंद्र सिंह रावत पर भ्रष्टाचार के आरोप
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं, जिसकी सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है. इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में बुधवार (10 मार्च) को होनी है. अटकलें थीं कि त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ फैसला आने की सूरत में भाजपा हाईकमान उन्हें हटा सकता है. उससे पहले ही ये कार्य कर दिया गया.
दरअसल, दो पत्रकारों द्वारा मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पर भ्रष्टाचार के आरोपों से संबंधित याचिका दायर की गई थी. ये याचिका भी त्रिवेंद्र रावत पर भारी पड़ी. पत्रकार उमेश जे कुमार ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पर आरोप लगाए हैं कि 2016 में जब त्रिवेंद्र सिंह रावत, भाजपा के झारखंड प्रभारी थे, उस दौरान उन्होंने एक व्यक्ति को गौ सेवा आयोग का अध्यक्ष बनाए जाने को लेकर घूस ली थी. साथ ही उन पैसों को अपने रिश्तेदारों के खातों में ट्रांसफर कराया था.
बता दें कि सेवानिवृत प्रोफेसर हरेंद्र सिंह रावत ने देहरादून के राजपुर थाने में पत्रकार उमेश शर्मा के खिलाफ ब्लैकमेलिंग, दस्तावेजों की कूट रचना और गलत तरीके से बैंक खातों की जानकारी हासिल करने का आरोप लगाते हुए एफआइआर दर्ज कराई थी. आरोप लगाया गया था कि पत्रकार ने सोशल मीडिया पर वीडियो डाला था जिसमें प्रोफेसर रावत और उनकी पत्नी सविता रावत के खाते में नोटबंदी के दौरान झारखंड के अमृतेश चौहान ने 25 लाख रुपये की रकम जमा कराई थी. 25 लाख की यह रकम रावत को देने को कहा गया.
कथित वीडियो में सविता रावत को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की सगी बहन बताया गया था. प्रोफेसर रावत के अनुसार सभी तथ्य असत्य हैं और उमेश ने फर्जीवाड़ा करके उनके बैंक के कागजात बनवाए. बैंक खाते की सूचना भी गैरकानूनी तरीके से हासिल की. बता दें कि उमेश शर्मा ने एफआईआर रद कराने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी जिस पर नैनीताल हाई कोर्ट ने फैसला दिया है. इसी फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मुख्यमंत्री और राज्य सरकार दोनों पहुंची हैं.