देहरादून: डाक विभाग इस सप्ताह (09 अक्टूबर- 13 अक्टूबर) को 'राष्ट्रीय डाक सप्ताह' के रूप में मना रहा है. डाक विभाग देश के सबसे पुराने विभागों में से एक है, जो कि देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह एक ऐसा संगठन है जो न केवल देश के भीतर बल्कि देश की सीमाओं से बाहर अन्य देशों तक पहुंचने में भी हमारी मदद करता है. लेकिन सूचना प्रौद्योगिकी (information technology) के दौर में चिट्ठी और पत्रों का दौर तकरीबन समाप्त हो गया है. उस दौर में भी डाक विभाग कितना प्रासंगिक बना हुआ है? इसके अलावा उत्तराखंड के विषम भौगोलिक माहौल में डाक विभाग का क्या इतिहास रहा है? और आज डाक विभाग कितना अपने आपको रिफॉर्म कर पाया है, आइए जानते हैं.
उत्तराखंड में पहाड़ों को घुंघरू लगे भाले से नापता था हरकारा (डाकिया): कुछ बुजुर्ग लोग बताते हैं कि समाज को जागरूक करने और पहली दफा चिट्ठियों के आदान-प्रदान के लिए 18वीं शताब्दी की शुरुआत तक डाक हरकारे समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हुआ करते थे. उत्तराखंड की बात करें तो सुदूर पहाड़ों पर बसे छोटे गांव तक डाक हरकारा एक भाला जिस पर घुंघरू लगे होते थे. उसके सहारे कई पहाड़ नापता था और गांव में चिट्ठी बांटने का काम करता था. डाक हरकारे को भाला जंगली जानवरों से बचाव के लिए दिया जाता था और उसको घुंघरू इसलिए लगाया जाते थे, ताकि दूर से डाक हरकारे की जानकारी मिल जाए.
अंग्रेजों ने शुरू की डाक सेवाएं: उत्तराखंड में गोरखा साम्राज्य को हराने के बाद अंग्रेजों का आगमन हुआ. इसी दौरान उत्तराखंड में पहली बार डाक सेवाएं शुरू हुईं. अंग्रेज जहां-जहां गए वहां डाक सेवाएं शुरू करते गए. 18वीं शताब्दी में ईस्ट इंडिया कंपनी के आगमन के बाद से ही उत्तराखंड में गोरखा शासन का अंत हुआ. उसके बाद पूरा उत्तराखंड केवल टिहरी रियासत को छोड़कर ब्रितानी हुकूमत के कब्जे में था. उस समय टिहरी रियासत को छोड़कर पूरा उत्तराखंड का क्षेत्र ब्रिटिश गढ़वाल के नाम से जाना जाता था. यहां पर अंग्रेजों ने कई हिल स्टेशन और शहरों का विकास किया. इसके साथ ही अंग्रेज अपने साथ कई तकनीक भी लेकर आए. अंग्रेजों ने डाकघर भी बनाए. अंग्रेजों ने मसूरी, चकराता, अल्मोड़ा, नैनीताल और रानीखेत में डाक घर बनवाए. उत्तराखंड में टिहरी रियासत के इलाकों को देखें तो यह माना जाता है कि टिहरी रियासत को अंग्रेजों ने छोड़ दिया था और वहां पर अंग्रेजों का दखल ज्यादा नहीं था. यही वजह है कि टिहरी रियासत में बहुत ही कम डाकघर देखने को मिलते हैं.
अंग्रेजों ने डाकघरों को सामरिक महत्व दिया: मसूरी का लंढौर डाकघर उनके कुछ पुराने डाकघरों में से एक है. इसी तरह से अंग्रेजों ने चकराता, अल्मोड़ा रानीखेत, देहरादून में भी अपने डाकघर बनाए. अंग्रेजों के समय में डाकघर एक महत्वपूर्ण और सामरिक दृष्टि का केंद्र भी होता था. यही वजह है कि देहरादून का डाकघर शुरू में परेड ग्राउंड में मौजूद ओल्ड कैंट सेना के परिसर में बनाया गया था. अंग्रेजों ने जितने भी डाकघर बनाए, सभी प्राइम लोकेशन पर थे और डाकघरों को सामरिक दृष्टि से बेहद महत्व दिया जाता था.
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उत्तराखंड में डाक सेवा का वर्तमान स्वरूप: धीरे-धीरे डाक सेवाओं का विकास हुआ. 19वीं सदी की शुरुआत में शाही डाक सेवा (Imperial Postal Service) के रूप में डाक सेवा ने काम करना शुरू किया. इसी दौर में उत्तराखंड में भी (उस समय उत्तर प्रदेश का हिस्सा) डाक सेवाओं की शुरुआत हुई. धीरे-धीरे भारतीय डाक सेवा ने गढ़वाल से लेकर कुमाऊं तक अपनी मजबूत पकड़ बनाई. आज उत्तराखंड में 7 डाक मंडल और एक रेल डाक मंडल मौजूद हैं. वहीं, पूरे राज्य में तकरीबन 2,722 डाकघर मौजूद हैं, जिनमें से केवल 2,96 शहरी क्षेत्रों में और बाकी 2,426 डाकघर ग्रामीण क्षेत्रों में मौजूद हैं. इस तरह से उत्तराखंड के 53,483 वर्ग मीटर के क्षेत्रफल में मौजूद तकरीबन 1.17 करोड़ की जनसंख्या को डाक विभाग अपनी सेवाएं देता है.
तकनीकी के इस दौर में कितना प्रासंगिक डाक विभाग: डाक विभाग आज इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी के दौर में कितना अप्रासंगिक है, इस बारे में जानकारी देते हुए देहरादून डाक परिमंडल के निदेशक अनुसूया प्रसाद चमोला बताते हैं कि यह बात सत्य है कि मौजूदा दौर में चिट्ठियों का चलन कम हुआ है, लेकिन डाक विभाग ने खुद को समय के साथ अपडेट किया है. वह बताते हैं कि आज डाक सेवा केवल चिट्ठी पत्री तक सीमित नहीं है. इसके अलावा डाक पार्सल अन्य भौतिक सत्यापन, बैंकिंग, ई-कॉमर्स जैसे क्षेत्रों में काम कर रहा है. सरकार की तमाम योजनाओं और कई तरह के कार्यक्रमों में डाक विभाग की महत्वपूर्ण भूमिका हमेशा से रही है. यही वजह है कि इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (IT) के विकास के साथ-साथ डाक सेवाओं का भी विकास हुआ है.
निजी पत्रों की संख्या घटी लेकिन व्यवसायिक पत्राचार बढ़ा: डाक विभाग के अधिकारी बताते हैं कि इस बात में कोई दो राय नहीं है कि निजी पत्रों का चलन बेहद कम हुआ है लेकिन व्यवसाय पत्रों का चलन पहले की अपेक्षा अब बढ़ गया है. विभाग से मिली जानकारी के अनुसार इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के आने के बाद कमर्शियल पत्राचार डाक विभाग के माध्यम से बढ़ गया है, जिसमें डॉक्यूमेंट के भौतिक सत्यापन और अन्य तरह की कई सेवाएं शामिल हैं. इसके अलावा डाक विभाग पार्सल के क्षेत्र में भी बहुत तेज गति से काम कर रहा है. डाक विभाग का पूरा फोकस अब पार्सल सर्विस पर है. किस तरह से डाक विभाग अपने बड़े नेटवर्क का फायदा पार्सल सर्विस को बेहतर बनाने में कर सकता है, इस पर ध्यान दिया जा रहा है. इसके अलावा पैकेजिंग को लेकर भी डाक विभाग काम कर रहा है.
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भौतिक सत्यापन में डाक विभाग की अहम भूमिका: सरकार द्वारा चलाई जाने वाली कई योजनाएं, कार्ड सेवा सत्यापन समेत अन्य कई तरह की सरकारी योजनाएं, जिनमें अधिकृत सत्यापन की जरूरत होती है. वहां पर डाक विभाग ही काम में लिया जाता है. बैंक एटीएम और अन्य तरह के कॉन्फिडेंसियल डॉक्यूमेंट के लिए डाक विभाग सबसे विश्वसनीय माना जाता है. वहां पर डाक विभाग की महत्ता सबसे महत्वपूर्ण है. डाक विभाग के अधिकारियों का कहना है कि ऑनलाइन ने भले ही जीवन को आसान बनाया है, लेकिन भौतिक रूप से अधिकृत सत्यापन के लिए डाक विभाग हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है और रहेगा भी.
बैंक सेक्टर से जुड़ रहा डाक विभाग: डाक विभाग के देहरादून परिमंडल के निदेशक अनुसूया प्रसाद चमोला ने बताया कि अब किसी भी डाकघर में ग्राहक अपना अकाउंट किसी भी बैंक में होने पर भी लेनदेन कर सकता है, जिसकी सुविधा डाक विभाग ने शुरू की है. वहीं, इसके अलावा डाक एटीएम और अन्य तरह की तमाम सुविधाओं से डाकघर को लैस किया जा रहा है. यानी कि आने वाले समय में एक पोस्ट ऑफिस के अंदर आपको कम्युनिटी सर्विस सेंटर के अलावा कई तरह की सुविधाएं देखने को मिलेंगी और आने वाले समय में देश में मौजूद डाक विभाग अपने नेटवर्क के माध्यम से कई नई सुविधाएं शुरू करने जा रहा है.