देहरादून: जोशीमठ आपदा प्रभावितों के पुनर्वास को लेकर राज्य सरकार लगातार कवायद में जुटी हुई है. सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि वैज्ञानिकों की रिपोर्ट के आधार पर भविष्य में यदि जोशीमठ के आपदाग्रस्त क्षेत्र को बसाने की जरूरत पड़ी तो केदारनाथ की तर्ज पर पुनर्निर्माण किया जाएगा, ऐसे में कई सवाल है जैसे क्या केदारनाथ की तर्ज पर जोशीमठ शहर में पुनर्निर्माण कार्य किए जा सकते हैं ? क्या दोनों क्षेत्रों की भौगोलिक परिस्थितियां समान है. केदारघाटी के संवेदनशील क्षेत्र में हो रहे पुननिर्माण कार्य वास्तव में पूरी तरह से सुरक्षित है. जानिए क्या कहते हैं वैज्ञानिक ?
केदारनाथ आपदा: साल 2013 में आई केदारनाथ आपदा के बाद केदार घाटी पूरी तरह से तहस-नहस हो गई थी. इस दौरान कहा जा रहा था कि घाटी को फिर से खड़ा नहीं किया जा सकता, लेकिन कई सर्वे के बाद केदार घाटी में पुनर्निर्माण का कार्य शुरू किया गया. वर्तमान में केदारघाटी में दूसरे चरण का पुनर्निर्माण कार्य चल रहा है. ऐसे में क्या ऐतिहासिक, पौराणिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण शहर जोशीमठ को भी मास्टर प्लान के तहत विकसित किया जा सकता है. इसके लिए वर्तमान स्थिति के सामान्य होने के बाद वैज्ञानिकों से सर्वे कराकर रिपोर्ट के आधार पर ही कुछ कहा जा सकता है.
जोशीमठ की घरों में बढ़ रही दरार: जोशीमठ शहर में दरारों की चपेट में आने वाले मकानों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है. वर्तमान समय में जोशीमठ नगर क्षेत्र में भू धंसाव के कारण अभी तक 863 भवनों में दरार चिन्हित किया गया है. इसमें से 181 भवन असुरक्षित जोन में हैं. आपदा प्रभावित 282 परिवारों के 947 सदस्यों को राहत शिविरों में ठहराया गया है. राहत शिविरों में भोजन, पेयजल, चिकित्सा आदि की मूलभूत सुविधाएं प्रभावितों को उपलब्ध कराई जा रही हैं. इसके साथ ही चमोली जिला प्रशासन के मुताबिक अभी तक 585 प्रभावितों को 388.27 लाख की राहत धनराशि वितरित की जा चुकी है.
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केदारघाटी की तर्ज पर जोशीमठ में होगा पुनर्निर्माण: जोशीमठ शहर ऐतिहासिक, पौराणिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है. यही नहीं, बदरीनाथ धाम का रास्ता भी जोशीमठ से होकर गुजरता है. यही वजह है कि राज्य सरकार जोशीमठ शहर के प्रभावितों के विस्थापन और पुनर्वास के साथ ही इस शहर को फिर से बसाने पर भी विचार कर रही है. आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत कुमार सिन्हा ने बताया कि जिस तरह से केदारघाटी में पुनर्निर्माण के कार्य किए गए है. उसी तर्ज पर जोशीमठ शहर में भी पुनर्निर्माण के कार्य किए जायेंगे. जोशीमठ शहर को अच्छा बनाया जाएगा.
जोशीमठ में भूमि स्टेबल होने का इंतजार: वाडिया इंस्टिच्यूट से रिटायर्ड हिमनद वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल ने कहा जोशीमठ शहर की जो स्थिति है, उसको देखते हुए फिलहाल जोशीमठ को तब तक नहीं छेड़ा जाए, जब तक जोशीमठ शहर अपने आप स्टेबल ना हो जाए. क्योंकि अभी जोशीमठ में छेड़छाड़ करेंगे तो दिक्कत और अधिक बढ़ने की काफी अधिक संभावना है. जोशीमठ शहर को फिर से बसाने या केदारनाथ धाम की तर्ज पर पुनर्निर्माण कार्यों को करने से पहले उस क्षेत्र का सर्वे कराने की जरूरत है. शहर की अच्छे से मैपिंग की जाए. साथ ही शहर का जियोलॉजिकल, जियोटेक्निकल और सिस्मोलॉजिकल सर्वे कराया जाना चाहिए.
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डेढ़ साल तक न हो जोशीमठ में छेड़छाड़: सबसे से पहले जोशीमठ क्षेत्र का सर्वे कराना जरूरी है. ताकि पता चल सके कि यहां की लैंड कैसी है? जिससे पता चलेगा कि अगर यहां पुनर्निर्माण कार्य कराए जाएंगे तो वह सक्सेस होगा या नहीं? उसके बाद ही डेवलपमेंट के कार्य किए जाएं. वहीं, फिलहाल जोशीमठ शहर को स्टेबल होने में कितना समय लगेगा यह नहीं कहा जा सकता, लेकिन इतना जरूर है कि एक से डेढ़ साल तक इस शहर को नहीं छेड़ना चाहिए. क्योंकि शहर को स्टेबल होने में कम से कम इतना वक्त लगेगा.
साइंटिफिक असेसमेंट पर हो जोशीमठ में पुनर्निर्माण: वाडिया के निदेशक काला चंद्र साईं ने बताया कि केदार घाटी का जो रॉक फॉरमेशन और जियोलॉजिकल कंडीशन है, अगर जरूरत पड़े तो रिएसेसमेंट करने से यह जानकारी मिली कि वहां पर जो चीजों का इस्तेमाल किया जा रहा है. वह सही डायरेक्शन में है या नहीं. उसके बाद ही अन्य जगहों पर उसे इंप्लीमेंट किया जाना चाहिए. जिस क्षेत्र में स्नो-कवर्ड रीजन, स्लोप स्टेबिलिटी रीजन और भूकंप से आपदा आने के साथ ही बहुत सारे नेचुरल फेक्टर जुड़े हुए हो तो, ऐसे में कोई भी कदम उठाने से पहले साइंटिफिक असेसमेंट कराए जाने की आवश्यकता है. क्योंकि बिना साइंटिफिक असेसमेंट बेस के कोई भी कदम उठाना खतरनाक हो सकता है.