देहरादून: उत्तराखंड राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते आपदा जैसे हालात बनना आम बात है. यही नहीं, मॉनसून सीजन के दौरान राज्य की स्थिति और भयावह हो जाती है. मॉनसून के दौरान यहां भूस्खलन की स्थिति हमेशा बनी रहती है. हालांकि, इन परिस्थितियों से निपटने के लिए प्रदेश सरकार समय-समय पर तमाम तरीके अपनाती रही है. मगर, अभी तक कोई ऐसी तकनीक ईजाद नहीं हुई है जिससे भूस्खलन को रोका जा सके.
वहीं, ईको टास्क फोर्स के पूर्व कमांडिंग अफसर कर्नल एचएस राणा प्रदेश में भूस्खलन को रोकने के लिए एक नई तकनीक पर काम करने की बात कह रहे हैं. इस तकनीक से उत्तराखंड में आमतौर पर होने वाले भूस्खलन को रोका जा सकेगा. जिससे न सिर्फ जानमाल के नुकसान को कम किया जा सकेगा, बल्कि भू-कटाव को भी रोका जा सकेगा.
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प्राकृतिक संपदा को बचाने के लिए साल 1982 में ईको टॉस्क फोर्स का गठन हुआ था. उस वक्त मसूरी का तापमान तेजी से बढ़ रहा था. इसके साथ ही पहाड़ों और मैदानों में भी प्रकृति अपना रूप बदल रही थी. ऐसे में ईको टास्क फोर्स का गठन करने का निर्णय लिया गया था. इसके गठन का मकसद देश की प्राकृतिक संपदा को बचाना था. साथ ही नदियों को पुनर्जीवित और पहाड़ों को सुरक्षित रखना भी इसके प्रमुख कामों में शामिल था. मौजूदा समय में उत्तराखंड में ईको टॉस्क फोर्स बड़े स्तर पर काम कर रही है.
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अब ईको टास्क फोर्स के पूर्व कमांडिग अफसर कर्नल एचएस राणा भूस्खलन और बारिश की कारण बहती मिट्टी को रोकने के लिए एक नई तकनीक पर काम करने की बात कह रहे हैं. राणा ने बताया कि अब पहाड़ों में वेटिवर यानी खसखस घास लगाई जानी चाहिए. उनका मानना है की यह घास न सिर्फ मिट्टी को और उपजाऊ बनाती है बल्कि इस घास की जड़े मिट्टी को पकड़कर भी रखती है. जिससे भूस्खलन होने की संभावना बहुत कम हो जाती है.
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कर्नल जीएस राणा इस खसखस घास को लेकर काफी संवेदनशील हैं. उनका मानना है की इससे रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे. वर्तमान समय में तेजी से वेटिवर ग्रास की मांग दुनिया भर में बढ़ रही है. ऑनलाइन वेबसाइट पर भी इसके तेल और जड़ों की मांग भी बढ़ रही है. जिससे यह काफी लाभदायक है. अभी देश के कई हिस्सों में भी इस घास का इस्तेमाल किया जा रहा है. लिहाजा, उत्तराखंड की जिन जगहों पर भूस्खलन होता है या फिर मिट्टी बह जाती है. वहां पर इस घास को लगाया जा सकता है.