देहरादून: उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं के हाई एल्टीट्यूड में पाए जाने वाली कीड़ा-जड़ी को लेकर वन विभाग ने हाल ही में एक रिसर्च करवाया है, जिसमें चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है. कीड़ा-जड़ी के अत्यधिक दोहन से अब इसके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाई जाने वाली ये बेशकीमती जड़ी-बूटी अब विलुप्त होने की कगार पर आ गई है. इसका खुलासा वन विभाग के रिसर्च में हुआ है. वन विभाग इसके लिए बाजार में बढ़ती मांग को जिम्मेदार ठहरा रहा है.
दरअसल, कीड़ा जड़ी का इस्तेमाल दवा बनाने से लेकर कई महत्वपूर्ण रसायन प्रयोगों में किया जाता है, जिस कारण मार्केट में इसकी हाई डिमांड है. यही वजह है कि इसकी तस्करी बड़े पैमाने पर की जाती है. तस्करी के कारण ये कीमती जड़ी बूड़ी खत्म होने की कगार पर है. इसकी कमी से वन विभाग को लग रहा है कि जल्द तस्करों पर रोक नहीं लगाई गई तो कीड़ा जड़ी समाप्त हो जाएगी.
पढ़ें-हिमालयन राज्यों के सम्मेलन की तैयारियां पूरी, नॉर्थईस्ट रीजन के 4 सीएम होंगे शामिल
कीड़ा जड़ी उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में 3600 फीट से लेकर 5000 फीट तक की ऊंचाई पर पायी जाती है. हाल ही में वन विभाग द्वारा किए गए अध्ययन से पता चला है कि हाई एल्टीट्यूड क्षेत्रों में कीड़ा जड़ी के अत्यधिक दोहन से ये जड़ी-बूटी कम हो गई है. वहीं उच्च हिमालयी क्षेत्रों में मानवीय गतिविधियां भी पर्यावरण को खतरा पैदा कर रही हैं, जिस पर वन विभाग की रिपोर्ट भी मुहर लगा रही है.
ग्लेशियर पर पड़ रहा असर
वन विभाग के अनुसंधान विंग द्वारा किए गए अध्ययन में पता चला है कि पहाड़ी क्षेत्रों से कीड़ा जड़ी निकालने के लिए जाने वाले लोग 6 हजार से अधिक वर्ग मीटर क्षेत्र में बुग्याल घास के मैदानों को कवर कर लेते हैं और वहां तंबू बनाकर रहते हैं. इन तंबुओं में रहने वाले लोग अपने आप को गर्म रखने और खाना बनाने के लिए मात्र 2 महीने में ही 72 हजार किलोग्राम लकड़ी जलाते हैं. इतनी ऊंचाई पर 72 हजार किलोग्राम लकड़ी जलाने से पर्यावरण को बेहद नुकसान पहुंचता है. साथ ही आसपास मौजूद ग्लेशियरों पर भी इसका सीधा असर पड़ता है.
पढ़ें-तिरंगा लहराकर संजय गुरुंग ने दी थी शहादत, पहाड़ों पर आज भी गूंजते हैं वीरता के किस्से
वहीं आसपास कचरा फैलने की वजह से उच्च हिमालयी क्षेत्रों में प्रदूषण हो रहा है. साथ ही भारी मात्रा में इतनी ऊंचाई पर लकड़ियां जलाने से आने वाले समय मे वहां के तापमान में बदलाव देखने को मिला रहा है. जिस वजह से उस क्षेत्र के वनस्पति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. यही वजह है की पिछले कुछ सालों से कीड़ा जड़ी के पैदावार में काफी कमी देखी जा रही है.
साथ ही भारी मात्रा में निकलने वाली कार्बन डाई ऑक्साइड से वातावरण और प्रदूषित होता जा रहा है. लिहाजा इतने संवेदनशील क्षेत्र में भारी मात्रा में लकड़ी जलाने से कहीं ना कहीं आने वाले समय में कीड़ा-जड़ी के साथ-साथ ग्लेशियर समेत वहां के वातावरण को प्रभावित कर रहा है.
क्या कहते हैं अधिकारी
वहीं वन अनुसंधान विंग के प्रमुख, वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाए जाने वाले कीड़ा जड़ी पर रिसर्च किया गया. क्योंकि कीड़ा जड़ी से बहुत सारे मेडिकल बेनिफिट्स भी मिलते हैं. लिहाजा तीन बिंदुओं को लेकर अध्ययन किया गया है जिसमें कीड़ा जड़ी से क्या आर्थिक और सामाजिक प्रभाव पड़ते हैं, कीड़ा जड़ी निकालने से वातावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है और सरकार की नीतियां इस पर किस तरह से काम करती है.
रोजगार का साधन
वहीं स्थानीय लोगों को और सरकार को इसका फायदा मिल सके. संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि कीड़ा जड़ी दुर्गम स्थलों में रहने वाले लोगों के आजीविका का एक मुख्य साधन है और कीड़ा जड़ी से वहां के स्थानीय निवासियों को अच्छी-खासी इनकम होती है. क्योंकि कीड़ा जड़ी की चीन के बाजारों में काफी डिमांड है दुर्गम स्थलों में रहने वाले लोगों के साल भर का इनकम कीड़ा जड़ी से ही होती है. जो लोगों की आय का श्रोत भी है.
उत्तराखंड के अलावा नेपाल, भूटान, तिब्बत समेत कुछ अन्य देश भी है जहां कीड़ा-जड़ी बहु मात्रा में पई जाती है. इसके साथ ही नेपाल, भूटान, तिब्बत में कीड़ा जड़ी को लेकर तमाम रिस्ट्रिक्शंस भी लगाए हैं ताकि जहां कीड़ा जड़ी पाई जाती है वह क्षेत्र प्रभावित ना हो, और ज्यादा मात्रा में कीड़ा जड़ी का दोहन ना हो पाए. उसके साथ ही लोगों को इतनी ऊंचाई पर जाने की वजह से ग्लेशियर ज्यादा प्रभाव न हो सके. लेकिन उत्तराखंड के इन क्षेत्रों पर ऐसी कोई नियम कानून नहीं बनाए गए हैं.
क्या है कीड़ा जड़ी
कीड़ा जड़ी उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाये जाने वाली औषधिक गुणों वाली बेशकीमती बूटी है. कीड़ा जड़ी एक प्रकार का फंगस है जो उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाने वाले कीड़े के अंदर ग्रो करना शुरू करता है. हिमालय क्षेत्र में पाए जाने वाले जड़ी बूटियों के जड़ को खा कर कीड़े जीवित रहते हैं और इन्हीं कीड़ों में फंगस लग जाने के बाद यह फंगस धीरे-धीरे कीड़ों को अंदर घुसकर कीड़ों को अंदर से खाना शुरू कर देते हैं, जिसके बाद फंगस कीड़े को मार देती है और फिर जो कीड़े के ऊपर का हिस्सा बचता है तो वह कीड़ा जड़ी होता है.
हालांकि, भारत में इस पर रिसर्च जारी है. यौन शक्ति वर्धक होने के कारण कीड़ा जड़ी को हिमालयी वियाग्रा भी कहा जाता है. वहीं इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है हालांकि ये दवा भारत में प्रतिबंधित है. यह कीड़ा जड़ी भारत और तिब्बत में मिलने के साथ ही यह नेपाल में भी बहुतायत में पाया जाता है. वहीं चीन में इसका दवा में उपयोग किया जाता है.
कम दाम मिलने की वजह से होती है तस्करी
कीड़ा जड़ी कि सबसे ज्यादा तस्करी होती है जिसकी वजह यह है कि सरकार और तय की गई एंजेंसियां जिस रेट पर कीड़ा-जड़ी को खरीदती है वे काफी कम दाम हैं. इसी वजह से लोग इसे अवैध रूप से बेचते हैं. हालांकि सबसे ज्यादा कीड़ा-जड़ी तिब्बत, भूटान और नेपाल में पाया जाता है. वहीं उत्तराखंड के पिथौरागढ़, बागेश्वर और चमोली जिले में कीड़ा जड़ी पाई जाती है.