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हिमालयी वियाग्रा पर मंडरा रहा खतरा, ये है वजह - देहरादून न्यूज

कीड़ा जड़ी का इस्तेमाल दवा बनाने से लेकर कई महत्वपूर्ण रसायन प्रयोगों में किया जाता है, जिस कारण मार्केट में इसकी हाई डिमांड है.

कीड़ा जड़ी.
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Published : Jul 27, 2019, 2:23 PM IST

Updated : Jul 27, 2019, 11:21 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं के हाई एल्टीट्यूड में पाए जाने वाली कीड़ा-जड़ी को लेकर वन विभाग ने हाल ही में एक रिसर्च करवाया है, जिसमें चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है. कीड़ा-जड़ी के अत्यधिक दोहन से अब इसके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाई जाने वाली ये बेशकीमती जड़ी-बूटी अब विलुप्त होने की कगार पर आ गई है. इसका खुलासा वन विभाग के रिसर्च में हुआ है. वन विभाग इसके लिए बाजार में बढ़ती मांग को जिम्मेदार ठहरा रहा है.

कीड़ा जड़ी का हो रहा दोहन.

दरअसल, कीड़ा जड़ी का इस्तेमाल दवा बनाने से लेकर कई महत्वपूर्ण रसायन प्रयोगों में किया जाता है, जिस कारण मार्केट में इसकी हाई डिमांड है. यही वजह है कि इसकी तस्करी बड़े पैमाने पर की जाती है. तस्करी के कारण ये कीमती जड़ी बूड़ी खत्म होने की कगार पर है. इसकी कमी से वन विभाग को लग रहा है कि जल्द तस्करों पर रोक नहीं लगाई गई तो कीड़ा जड़ी समाप्त हो जाएगी.

पढ़ें-हिमालयन राज्यों के सम्मेलन की तैयारियां पूरी, नॉर्थईस्ट रीजन के 4 सीएम होंगे शामिल

कीड़ा जड़ी उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में 3600 फीट से लेकर 5000 फीट तक की ऊंचाई पर पायी जाती है. हाल ही में वन विभाग द्वारा किए गए अध्ययन से पता चला है कि हाई एल्टीट्यूड क्षेत्रों में कीड़ा जड़ी के अत्यधिक दोहन से ये जड़ी-बूटी कम हो गई है. वहीं उच्च हिमालयी क्षेत्रों में मानवीय गतिविधियां भी पर्यावरण को खतरा पैदा कर रही हैं, जिस पर वन विभाग की रिपोर्ट भी मुहर लगा रही है.

ग्लेशियर पर पड़ रहा असर

वन विभाग के अनुसंधान विंग द्वारा किए गए अध्ययन में पता चला है कि पहाड़ी क्षेत्रों से कीड़ा जड़ी निकालने के लिए जाने वाले लोग 6 हजार से अधिक वर्ग मीटर क्षेत्र में बुग्याल घास के मैदानों को कवर कर लेते हैं और वहां तंबू बनाकर रहते हैं. इन तंबुओं में रहने वाले लोग अपने आप को गर्म रखने और खाना बनाने के लिए मात्र 2 महीने में ही 72 हजार किलोग्राम लकड़ी जलाते हैं. इतनी ऊंचाई पर 72 हजार किलोग्राम लकड़ी जलाने से पर्यावरण को बेहद नुकसान पहुंचता है. साथ ही आसपास मौजूद ग्लेशियरों पर भी इसका सीधा असर पड़ता है.

पढ़ें-तिरंगा लहराकर संजय गुरुंग ने दी थी शहादत, पहाड़ों पर आज भी गूंजते हैं वीरता के किस्से

वहीं आसपास कचरा फैलने की वजह से उच्च हिमालयी क्षेत्रों में प्रदूषण हो रहा है. साथ ही भारी मात्रा में इतनी ऊंचाई पर लकड़ियां जलाने से आने वाले समय मे वहां के तापमान में बदलाव देखने को मिला रहा है. जिस वजह से उस क्षेत्र के वनस्पति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. यही वजह है की पिछले कुछ सालों से कीड़ा जड़ी के पैदावार में काफी कमी देखी जा रही है.

साथ ही भारी मात्रा में निकलने वाली कार्बन डाई ऑक्साइड से वातावरण और प्रदूषित होता जा रहा है. लिहाजा इतने संवेदनशील क्षेत्र में भारी मात्रा में लकड़ी जलाने से कहीं ना कहीं आने वाले समय में कीड़ा-जड़ी के साथ-साथ ग्लेशियर समेत वहां के वातावरण को प्रभावित कर रहा है.

क्या कहते हैं अधिकारी

वहीं वन अनुसंधान विंग के प्रमुख, वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाए जाने वाले कीड़ा जड़ी पर रिसर्च किया गया. क्योंकि कीड़ा जड़ी से बहुत सारे मेडिकल बेनिफिट्स भी मिलते हैं. लिहाजा तीन बिंदुओं को लेकर अध्ययन किया गया है जिसमें कीड़ा जड़ी से क्या आर्थिक और सामाजिक प्रभाव पड़ते हैं, कीड़ा जड़ी निकालने से वातावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है और सरकार की नीतियां इस पर किस तरह से काम करती है.

रोजगार का साधन

वहीं स्थानीय लोगों को और सरकार को इसका फायदा मिल सके. संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि कीड़ा जड़ी दुर्गम स्थलों में रहने वाले लोगों के आजीविका का एक मुख्य साधन है और कीड़ा जड़ी से वहां के स्थानीय निवासियों को अच्छी-खासी इनकम होती है. क्योंकि कीड़ा जड़ी की चीन के बाजारों में काफी डिमांड है दुर्गम स्थलों में रहने वाले लोगों के साल भर का इनकम कीड़ा जड़ी से ही होती है. जो लोगों की आय का श्रोत भी है.
उत्तराखंड के अलावा नेपाल, भूटान, तिब्बत समेत कुछ अन्य देश भी है जहां कीड़ा-जड़ी बहु मात्रा में पई जाती है. इसके साथ ही नेपाल, भूटान, तिब्बत में कीड़ा जड़ी को लेकर तमाम रिस्ट्रिक्शंस भी लगाए हैं ताकि जहां कीड़ा जड़ी पाई जाती है वह क्षेत्र प्रभावित ना हो, और ज्यादा मात्रा में कीड़ा जड़ी का दोहन ना हो पाए. उसके साथ ही लोगों को इतनी ऊंचाई पर जाने की वजह से ग्लेशियर ज्यादा प्रभाव न हो सके. लेकिन उत्तराखंड के इन क्षेत्रों पर ऐसी कोई नियम कानून नहीं बनाए गए हैं.

क्या है कीड़ा जड़ी

कीड़ा जड़ी उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाये जाने वाली औषधिक गुणों वाली बेशकीमती बूटी है. कीड़ा जड़ी एक प्रकार का फंगस है जो उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाने वाले कीड़े के अंदर ग्रो करना शुरू करता है. हिमालय क्षेत्र में पाए जाने वाले जड़ी बूटियों के जड़ को खा कर कीड़े जीवित रहते हैं और इन्हीं कीड़ों में फंगस लग जाने के बाद यह फंगस धीरे-धीरे कीड़ों को अंदर घुसकर कीड़ों को अंदर से खाना शुरू कर देते हैं, जिसके बाद फंगस कीड़े को मार देती है और फिर जो कीड़े के ऊपर का हिस्सा बचता है तो वह कीड़ा जड़ी होता है.

हालांकि, भारत में इस पर रिसर्च जारी है. यौन शक्ति वर्धक होने के कारण कीड़ा जड़ी को हिमालयी वियाग्रा भी कहा जाता है. वहीं इसका कोई साइड इफेक्‍ट नहीं है हालांकि ये दवा भारत में प्रतिबंधित है. यह कीड़ा जड़ी भारत और तिब्‍बत में मिलने के साथ ही यह नेपाल में भी बहुतायत में पाया जाता है. वहीं चीन में इसका दवा में उपयोग किया जाता है.

कम दाम मिलने की वजह से होती है तस्करी

कीड़ा जड़ी कि सबसे ज्यादा तस्करी होती है जिसकी वजह यह है कि सरकार और तय की गई एंजेंसियां जिस रेट पर कीड़ा-जड़ी को खरीदती है वे काफी कम दाम हैं. इसी वजह से लोग इसे अवैध रूप से बेचते हैं. हालांकि सबसे ज्यादा कीड़ा-जड़ी तिब्बत, भूटान और नेपाल में पाया जाता है. वहीं उत्तराखंड के पिथौरागढ़, बागेश्वर और चमोली जिले में कीड़ा जड़ी पाई जाती है.

देहरादून: उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं के हाई एल्टीट्यूड में पाए जाने वाली कीड़ा-जड़ी को लेकर वन विभाग ने हाल ही में एक रिसर्च करवाया है, जिसमें चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है. कीड़ा-जड़ी के अत्यधिक दोहन से अब इसके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाई जाने वाली ये बेशकीमती जड़ी-बूटी अब विलुप्त होने की कगार पर आ गई है. इसका खुलासा वन विभाग के रिसर्च में हुआ है. वन विभाग इसके लिए बाजार में बढ़ती मांग को जिम्मेदार ठहरा रहा है.

कीड़ा जड़ी का हो रहा दोहन.

दरअसल, कीड़ा जड़ी का इस्तेमाल दवा बनाने से लेकर कई महत्वपूर्ण रसायन प्रयोगों में किया जाता है, जिस कारण मार्केट में इसकी हाई डिमांड है. यही वजह है कि इसकी तस्करी बड़े पैमाने पर की जाती है. तस्करी के कारण ये कीमती जड़ी बूड़ी खत्म होने की कगार पर है. इसकी कमी से वन विभाग को लग रहा है कि जल्द तस्करों पर रोक नहीं लगाई गई तो कीड़ा जड़ी समाप्त हो जाएगी.

पढ़ें-हिमालयन राज्यों के सम्मेलन की तैयारियां पूरी, नॉर्थईस्ट रीजन के 4 सीएम होंगे शामिल

कीड़ा जड़ी उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में 3600 फीट से लेकर 5000 फीट तक की ऊंचाई पर पायी जाती है. हाल ही में वन विभाग द्वारा किए गए अध्ययन से पता चला है कि हाई एल्टीट्यूड क्षेत्रों में कीड़ा जड़ी के अत्यधिक दोहन से ये जड़ी-बूटी कम हो गई है. वहीं उच्च हिमालयी क्षेत्रों में मानवीय गतिविधियां भी पर्यावरण को खतरा पैदा कर रही हैं, जिस पर वन विभाग की रिपोर्ट भी मुहर लगा रही है.

ग्लेशियर पर पड़ रहा असर

वन विभाग के अनुसंधान विंग द्वारा किए गए अध्ययन में पता चला है कि पहाड़ी क्षेत्रों से कीड़ा जड़ी निकालने के लिए जाने वाले लोग 6 हजार से अधिक वर्ग मीटर क्षेत्र में बुग्याल घास के मैदानों को कवर कर लेते हैं और वहां तंबू बनाकर रहते हैं. इन तंबुओं में रहने वाले लोग अपने आप को गर्म रखने और खाना बनाने के लिए मात्र 2 महीने में ही 72 हजार किलोग्राम लकड़ी जलाते हैं. इतनी ऊंचाई पर 72 हजार किलोग्राम लकड़ी जलाने से पर्यावरण को बेहद नुकसान पहुंचता है. साथ ही आसपास मौजूद ग्लेशियरों पर भी इसका सीधा असर पड़ता है.

पढ़ें-तिरंगा लहराकर संजय गुरुंग ने दी थी शहादत, पहाड़ों पर आज भी गूंजते हैं वीरता के किस्से

वहीं आसपास कचरा फैलने की वजह से उच्च हिमालयी क्षेत्रों में प्रदूषण हो रहा है. साथ ही भारी मात्रा में इतनी ऊंचाई पर लकड़ियां जलाने से आने वाले समय मे वहां के तापमान में बदलाव देखने को मिला रहा है. जिस वजह से उस क्षेत्र के वनस्पति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. यही वजह है की पिछले कुछ सालों से कीड़ा जड़ी के पैदावार में काफी कमी देखी जा रही है.

साथ ही भारी मात्रा में निकलने वाली कार्बन डाई ऑक्साइड से वातावरण और प्रदूषित होता जा रहा है. लिहाजा इतने संवेदनशील क्षेत्र में भारी मात्रा में लकड़ी जलाने से कहीं ना कहीं आने वाले समय में कीड़ा-जड़ी के साथ-साथ ग्लेशियर समेत वहां के वातावरण को प्रभावित कर रहा है.

क्या कहते हैं अधिकारी

वहीं वन अनुसंधान विंग के प्रमुख, वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाए जाने वाले कीड़ा जड़ी पर रिसर्च किया गया. क्योंकि कीड़ा जड़ी से बहुत सारे मेडिकल बेनिफिट्स भी मिलते हैं. लिहाजा तीन बिंदुओं को लेकर अध्ययन किया गया है जिसमें कीड़ा जड़ी से क्या आर्थिक और सामाजिक प्रभाव पड़ते हैं, कीड़ा जड़ी निकालने से वातावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है और सरकार की नीतियां इस पर किस तरह से काम करती है.

रोजगार का साधन

वहीं स्थानीय लोगों को और सरकार को इसका फायदा मिल सके. संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि कीड़ा जड़ी दुर्गम स्थलों में रहने वाले लोगों के आजीविका का एक मुख्य साधन है और कीड़ा जड़ी से वहां के स्थानीय निवासियों को अच्छी-खासी इनकम होती है. क्योंकि कीड़ा जड़ी की चीन के बाजारों में काफी डिमांड है दुर्गम स्थलों में रहने वाले लोगों के साल भर का इनकम कीड़ा जड़ी से ही होती है. जो लोगों की आय का श्रोत भी है.
उत्तराखंड के अलावा नेपाल, भूटान, तिब्बत समेत कुछ अन्य देश भी है जहां कीड़ा-जड़ी बहु मात्रा में पई जाती है. इसके साथ ही नेपाल, भूटान, तिब्बत में कीड़ा जड़ी को लेकर तमाम रिस्ट्रिक्शंस भी लगाए हैं ताकि जहां कीड़ा जड़ी पाई जाती है वह क्षेत्र प्रभावित ना हो, और ज्यादा मात्रा में कीड़ा जड़ी का दोहन ना हो पाए. उसके साथ ही लोगों को इतनी ऊंचाई पर जाने की वजह से ग्लेशियर ज्यादा प्रभाव न हो सके. लेकिन उत्तराखंड के इन क्षेत्रों पर ऐसी कोई नियम कानून नहीं बनाए गए हैं.

क्या है कीड़ा जड़ी

कीड़ा जड़ी उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाये जाने वाली औषधिक गुणों वाली बेशकीमती बूटी है. कीड़ा जड़ी एक प्रकार का फंगस है जो उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाने वाले कीड़े के अंदर ग्रो करना शुरू करता है. हिमालय क्षेत्र में पाए जाने वाले जड़ी बूटियों के जड़ को खा कर कीड़े जीवित रहते हैं और इन्हीं कीड़ों में फंगस लग जाने के बाद यह फंगस धीरे-धीरे कीड़ों को अंदर घुसकर कीड़ों को अंदर से खाना शुरू कर देते हैं, जिसके बाद फंगस कीड़े को मार देती है और फिर जो कीड़े के ऊपर का हिस्सा बचता है तो वह कीड़ा जड़ी होता है.

हालांकि, भारत में इस पर रिसर्च जारी है. यौन शक्ति वर्धक होने के कारण कीड़ा जड़ी को हिमालयी वियाग्रा भी कहा जाता है. वहीं इसका कोई साइड इफेक्‍ट नहीं है हालांकि ये दवा भारत में प्रतिबंधित है. यह कीड़ा जड़ी भारत और तिब्‍बत में मिलने के साथ ही यह नेपाल में भी बहुतायत में पाया जाता है. वहीं चीन में इसका दवा में उपयोग किया जाता है.

कम दाम मिलने की वजह से होती है तस्करी

कीड़ा जड़ी कि सबसे ज्यादा तस्करी होती है जिसकी वजह यह है कि सरकार और तय की गई एंजेंसियां जिस रेट पर कीड़ा-जड़ी को खरीदती है वे काफी कम दाम हैं. इसी वजह से लोग इसे अवैध रूप से बेचते हैं. हालांकि सबसे ज्यादा कीड़ा-जड़ी तिब्बत, भूटान और नेपाल में पाया जाता है. वहीं उत्तराखंड के पिथौरागढ़, बागेश्वर और चमोली जिले में कीड़ा जड़ी पाई जाती है.

Intro:नोट - फीड ftp पर है.....
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उत्तराखंड के वन महकमे की इस वक्त नींद उड़ी हुई है इस नींद के उड़ने का कारण है उत्तराखंड के हाई एटीट्यूड पर जन्म लेने वाला एक ऐसा कीड़ा, जिसकी कीमत लाखों की होती है। तेजी से विलुप्त होते इस कीड़े की चिंता अब वन महकमे को इतनी सताने लगी है कि बाकायदा वन विभाग ने इस कीड़े की कमी का मुख्य कारण माने जाने वाले तस्करों पर रोक लगाने के लिए सरकार से भी आग्रह किया है। दरअसल उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं के हाई एटीट्यूड पाए जाने वाली कीड़ा जड़ी को लेकर वन विभाग ने हाल ही में एक रिसर्च करवाई है, जिसमें सामने आया है कि कीड़ा जड़ी अचानक से उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में विलुप्त हो रही है और इसका मुख्य बाजार उन लोगों को ही माना जा रहा है जो इसकी लगातार तस्करी कर रहे हैं। दरअसल इस कीड़ा-जड़ी का प्रयोग दवाई बनाने से लेकर कई महत्वपूर्ण रसायन प्रयोगों में किया जाता है लिहाजा अब इसकी कमी से वन विभाग को ही लगता है कि अगर जल्द ही इन तस्करों पर रोक नहीं लगाई गई तो कीड़ा जड़ी को उत्तराखंड खो देगा।


Body:उत्तराखंड राज्य को प्रकृति ने कई अनमोल तौफो से नवाजा है यही वजह है कि उत्तराखंड ना सिर्फ पर्यटन क्षेत्र के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है बल्कि उत्तराखंड में हजारों प्रकार की जड़ी- बूटियां पाई जाती है, जिससे तमाम बड़ी से बड़ी बीमारियों से निजात मिल सकता है। इन्ही जड़ी बूटियों में शामिल है उत्तराखंड पहाड़ी क्षेत्रों में पाए जाने वाला कीड़ा जड़ी जो 3600 फीट से लेकर 5000 फीट तक की ऊँचाई पर पाए जाते हैं। हाल ही में वन विभाग द्वारा किए गए अध्ययन से पता चला है कि हाई एटीट्यूड क्षेत्रों में कीड़ा-जड़ी निकालने जाने वाले लोगों का अत्यधिक निष्कर्षण और संबंधित गतिविधिया क्षेत्र के संवेदनशील पारिस्थितिकी के लिए गंभीर खतरा पैदा करती हैं।


कीड़ा-जड़ी,पर्यावरण और ग्लेसियर पर पड़ रहा है असर...... 

वन विभाग के वन अनुसंधान विंग द्वारा किए गए अध्ययन में पता चला है कि पहाड़ी क्षेत्रों से कीड़ा जड़ी निकालने के लिए जाने वाले लोग 6 हज़ार से अधिक वर्ग मीटर ऊंची बुग्याल घास के मैदानों को कवर कर लेते हैं और वहां तंबू बना कर रहते हैं। साथ ही इन तंबू में रहने वाले सभी लोग अपने आप को गर्म रखने और खाना बनाने के लिए मात्र 2 महीने में ही 72 हज़ार किलोग्राम लकड़ी जला देते हैं। इतनी ऊंचाई पर 72 हज़ार किलोग्राम लकड़ी जलाने से पर्यावरण को बेहद नुकसान पहुंचता है। साथ ही आसपास मौजूद ग्लेशियरों पर भी इसका सीधा असर पड़ता है। और आसपास कचरा फैलने की वजह से काफी प्रदूषण फैलता है। साथ ही भारी मात्रा में इतनी ऊंचाई पर लकड़ियां जलाने से आने वाले समय मे वहां के तापमान में अच्छा खासा बदलाव देखने को मिला है, जिस वजह से उस क्षेत्र के वनस्पति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, यही वजह है की पिछले कुछ सालो से कीड़ा जड़ी के पैदावार में काफी कमी देखि जा रही है। साथ ही भारी मात्रा में निकलने वाली कार्बन डाई ऑक्साइड से वातावरण और प्रदूषित होता जा रहा है। लिहाजा इतने संवेदनशील क्षेत्र में भारी मात्रा में लकड़ी जलाने से कहीं ना कहीं आने वाले समय में कीड़ा-जड़ी के साथ-साथ ग्लेशियर समेत वहां के वातावरण को काफी प्रभावित कर सकती है। 


क्या है कीड़ा जड़ी........ 

कीड़ा जड़ी उच्च हिमालई क्षेत्रों में पाया जाता है। कीड़ा जड़ी एक प्रकार का फंगस है जो उच्च हिमालई क्षेत्रों में पाए जाने वाले कीड़े के अंदर ग्रो करना शुरू करता है। हिमालय क्षेत्र में पाए जाने वाले जड़ी बूटियों के जड़ को खा कर कीड़े जीवित रहते हैं और इन्हीं कीड़ों में फंगस लग जाने के बाद यह फंगस धीरे धीरे कीड़ों को अंदर घुसकर कीड़ों को अंदर से खाना शुरू कर देते हैं। और फंगस कीड़े को मार देती है। और फिर जो कीड़े के ऊपर का हिस्सा बचता है तो वह कीड़ा जड़ी होता है। हालांकि भारत में अभी तक दुर्गम छेत्रो में पाए जाने वाले कीड़ों पर कोई रिसर्च नहीं कि गयी है।


15वीं शताब्दी में तिब्बत के ग्रंथों में मिला था कीड़ा जड़ी की जानकारी............. 

कीड़ा जड़ी की जानकारी 15वीं शताब्दी में तिब्बत के ग्रंथों में मिला था जिसमे कीड़ा जड़ी को सभी बीमारियों का इलाज बताया गया था, इसके बाद धीरे-धीरे कीड़ा जड़ी का क्रेज चीनी बढ़ने लगा और वहां पर भी यह कहा गया कि इससे थकान खत्म हो जाती है और इससे सेक्स पावर भी बढ़ता है। इसके बाद 1990 में वर्ल्ड ओलंपिक चैंपियन में चीन के एथलीटों ने जबरदस्त परफॉर्मेंस दिया था जिसके बाद उनके कोच ने दावा किया था कि कीड़ा जड़ी खाने की वजह से ही एथलीटों की परफॉर्मेस बढ़ गई थी। इसके बाद धीरे-धीरे कीड़ा जड़ी का इस्तेमाल मेडिसिन के रूप में किया जाने लगा और सबसे अधिक व्यापार चीन में बढ़ने लगा। 


वन विभाग ने तीन बिंदुओं पर किया अध्ययन........ 

अनुसंधान विंग के प्रमुख, वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि उत्तराखंड के उच्च हिमालई क्षेत्र में पाए जाने वाले कीड़े जड़ी पर रिसर्च किया गया, क्योंकि कीड़ा जड़ी से बहुत सारे मेडिकल बेनिफिट्स भी मिलते हैं। लिहाजा तीन बिंदुओं को लेकर अध्ययन किया गया है जिसमें कीड़ा जड़ी से क्या आर्थिक और सामाजिक प्रभाव पड़ते हैं, कीड़ा जड़ी निकालने से वातावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है और सरकार की नीतियां इस पर किस तरह से काम करती है ताकि स्थानीय लोगों को और सरकार को इसका फायदा मिल सके। संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि कीड़ा जड़ी दुर्गम स्थलों में रहने वाले लोगों के आजीविका का एक मुख्य साधन है और कीड़ा जड़ी से वहां के स्थानीय निवासियों को अच्छी-खासी इनकम होती है क्योंकि कीड़ा जड़ी का चीन में और ईस्ट एशिया के बाजारों में काफी डिमांड है दुर्गम स्थलों में रहने वाले लोगों के साल भर का इनकम कीड़ा जड़ी से ही होता है। और यह एक तरीके से प्रकृति का दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले स्थानीय लोगों की कमियों को पूरा किया है। यही वजह है की इन क्षेत्रों से अभी तक प्लान नहीं हुआ है लिहाजा यह दुर्गम क्षेत्र ऐसे हैं जहां सरकार चाहकर भी विकास नहीं कर सकती। 


सबसे ज्यादा तिब्बत में मिलती है कीड़ा जड़ी......... 

उत्तराखंड के अलावा नेपाल, भूटान, तिब्बत समेत कुछ अन्य देश भी है जहां कीड़ा-जड़ी पाए जाते हैं इसके साथ ही नेपाल, भूटान, तिब्बत में कीड़ा जड़ी को लेकर तमाम रिस्ट्रिक्शंस भी लगाए हैं ताकि जहां कीड़ा जड़ी पाई जाती है वह क्षेत्र प्रभावित ना हो, और ज्यादा मात्रा में कीड़ा जड़ी का दोहन ना हो पाए। उसके साथ ही लोगों को इतनी ऊंचाई पर जाने की वजह से ग्लेशियर पर ज्यादा प्रभाव ना पड़े। लेकिन उत्तराखंड के इन क्षेत्रों पर ऐसी कोई नियम कानून नहीं बनाए गए हैं ताकि ज्यादा मात्रा में कीड़ा जड़ी का दोहन ना हो पाए इसके साथ ही पर्यावरण पर इसका ज्यादा फर्क ना पड़े।


कम दाम मिलने की वजह से होती है तस्करी......... 

कीड़ा जड़ी कि सबसे ज्यादा तस्करी होती है जिसकी वजह यह है कि सरकार जिस रोड पर कीड़ा जड़ी को खरीदती है या फिर राज सरकार द्वारा निर्धारित एजेंसियां जो सरकार की नीति के तहत कीड़ा जड़ी को लेती है उस रेट और इलीगल रूप से कीड़ा जड़ी को बेचने के रेट में जमीन आसमान का अंतर होता है यही वजह है कि दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले लोग कीड़ा जड़ी को चीन में इलीगल तरीके से बेचते है। हालांकि सबसे ज्यादा कीड़ा-जड़ी तिब्बत में पाया जाता है और भूटान और नेपाल में होता है इसके बाद उत्तराखंड के पिथौरागढ़, बागेश्वर और चमोली जिले में कीड़ा जड़ी पाई जाती है।

बाइट - संजीव चतुर्वेदी, प्रमुख, वन अनुसंधान विंग


Conclusion:
Last Updated : Jul 27, 2019, 11:21 PM IST
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